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जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी|Jehi Par Kripa Na Karahi Purari

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जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी॥
अस उर धरि महि बिचरहु जाई। अब न तुम्हहि माया निअराई॥

अर्थ: भगवान विष्णु नारद जी से कहते हैं कि हे मुनि जिस पर पुरारी (पुर दानव के शत्रु भगवान शिव) की कृपा न हो तो उसे मेरी भक्ति नहीं प्राप्त होती। आप ये बात अपने मन में रखकर अब जाइये भ्रमण करिये। अब मेरी माया आपके निकट आएगी। अर्थात अब आप मेरी माया से प्रभावित नहीं होंगे।

सन्दर्भ एवं प्रसंग

यह प्रसंग तब का है जब नारद जी माया की रचित राजकुमारी से विवाह करना चाहते थे और भगवान विष्णु ने उन्हें बन्दर का स्वरुप दे दिया था। स्वयंवर में असफल होने पर नारद जी प्रभु को श्राप देते हैं परन्तु बाद में माया रचित राजकुमारी के अदृश्य हो जाने पर उन्हें अपनी भूल का अनुभव हुआ। तब वह प्रभु से क्षमा मांगने लगे। इस पर भगवान उन्हें समझाते हैं।

इसके पहले की चौपाई-कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें

इसके पहले की चौपाई इस प्रकार है


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जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत बिश्रामा॥
कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें॥

अर्थ: भगवान विष्णु नारद जी से कहते हैं कि हे मुनि अब तुम जाकर भगवान शिव के शतनाम का जाप करो। इससे तुम्हारे हृदय में शांति होगी। शिव के समान कोई भी मुझे प्रिय नहीं है ऐसा ढृढ़ विश्वास कभी भूल कर भी मत छोड़ना।

इसके बाद की चौपाई

इसके बाद की चौपाई इस प्रकार है

बहुबिधि मुनिहि प्रबोधि प्रभु तब भए अंतरधान।
सत्यलोक नारद चले करत राम गुन गान॥

अर्थ: भगवान विष्णु नारद जी को बहुत प्रकार से समझा बुझाकर (सांत्वना देकर) अंतर्ध्यान हो गए। तब नारद जी भगवान राम का के गुणों का गान करते हुए सत्यलोक को चले गए।

FAQ- बहुविध प्रश्नोत्तरी

Q1. जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी किस कांड में है ?

A. यह चौपाई बालकाण्ड में है।

Q2. जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी के रचयिता कौन हैं ?

A. इस चौपाई के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

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