हिन्दू वीर का क्रोध जब जमकर बरसा : महावीर महादजी सिंधिया की शौर्यगाथा
हिन्दू वीर का क्रोध जब देशद्रोहियों पर जमकर बरसा : महावीर महादजी सिंधिया की शौर्यगाथा
जब कोई हिन्दू क्रोधित होता है तो न तो घर जलते हैं और न ही राष्ट्र विरोधी नारे लगते हैं, केवल एक वृहत ज्वालामुखी फूटता है और उसका लावा सब कुछ जला देता है। क्या होता है जब एक हिंदू प्रतिशोध लेता है? एक बानगी देखिये।
1761 का पानीपत क युद्ध हो गया था , अनुमानतः एक लक्ष से अधिक मराठे योद्धा इस युद्ध में हत रहे थे। I युद्ध में सबसे अधिक हानि पेशवा वंश का हुआ था क्योंकि उनके उत्तराधिकारी सदाशिव विश्वास राव भाउ ने वीरगति को प्राप्त किया था
परन्तु एक और राजवंश था जिसने अपने चार अमूल्य हीरे खो दिए थे, वह थे सिंधिया। पानीपत की लड़ाई में सिंधिया परिवार के पांच लोग लड़े थे, जिनमें से चार वीरगति को प्राप्त हो गए थे। और उनमें से केवल एक महादजी सिंधिया ही जीवित बचे थे।
Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀
महादजी सिंधिया का पैर युद्ध में घायल हो गया था और इस कारण वे दो वर्षों तक सही से चल नहीं पाए थे। महादजी के भाईयों को बड़ी बेरहमी से मार डाला गया था।महादजी ने उनके मर्मान्तक अंत के दृश्य को कभी भुलाया नहीं।
उस काल में उत्तर भारत में अफगान पठानों का बहुत बड़ा प्रभाव था। उनके सरदार नजीब खान ने अब्दाली को बुलाया था और इन सभी पठानों ने इस्लाम के नाम पर अब्दाली का समर्थन किया था और देश तथा हिन्दुओं को धोखा दिया था।
इसलिए महादजी ने प्रण लिया कि अब भारत की धरती पर कोई भी अफगान जिंदा नहीं बचेगा। अफ़गानों ने प्रतिज्ञा के बारे में सुना, और इसे मज़ाक समझ कर भूल गए।
1766 में महादजी सिंधिया स्वस्थ होकर पुणे आए और सिंहासनस्थ पेशवा माधवराव के सम्मुख अपनी तलवार निकाल कर रख दी। दृश्य संकल्प महादजी ने निवेदन किया, “आप बस इसे चलाने के आदेश दीजिये मैं समस्त गद्दार पठानों के सर आपके कदमों में रख दूंगा।”
महावीर का उद्घोष सिंह के सामान गंभीर और पर्वत के सामान दृढ था। पेशवा उनके दृश्य संकल्प पर विस्मित अवश्य हुए पर उन्होंने महादजी की प्रतिभा और महत्व को अच्छी तरह पहचाना और उन्हें संकल्प पूर्ति की अनुमति देते हुए ग्वालियर का शासक नियुक्त कर दिया।
फिर प्रारम्भ हुआ भयंकर नरसंहार, 1767 में महादजी सिंधिया ने यमुना पार की और मराठा साम्राज्य का पुनः विस्तार शुरू किया। 1771 में उन्होंने दिल्ली के लाल किले पर फिर से भगवा फहराया। मुग़ल मराठों के आगे फिर न ठहर सके। दिल्ली में, महादजी ने अपनी तलवार हवा में लहराई और अफगानों को मारने की घोषणा की……….अर्थात जहाँ जो अफगान दिखे उसे मारो। पठानों के संहार का सिलसिला 1766 से शुरू हुआ वह 1773 तक निरंतर चलता रहा।
हिन्दू वीरों का क्रोध जमकर बरसा। मराठों ने चुन-चुन कर पानीपत का प्रतिशोध लिया और 5 लाख पठानों का संहार कर दिया।
नजीब खान किस्मत ने साथ दिया था क्योंकि कि वह पहले ही मर चुका था परन्तु उसका बेटा दर बदर ठोकर खाता रहा। उस समय मराठों का भय इतना अधिक था कि पठानों को कहीं किसी का आश्रय भी नहीं मिला।
इसके बाद मराठों ने रुहेलखंड पर हमला किया, हरिद्वार में पठानों ने मंदिरों तोड़ कर मस्जिदों का निर्माण कर दिया था। मस्जिदों में घुसकर भीषण नरसंहार किया गया… कोई धार्मिक सद्भावना या मानवीयता नहीं दिखाई गयी। उनके साथ वही बर्ताव किया गया जो उन्होंने ने वहां के हिन्दुओं के साथ किया था। हिन्दू वीरों का क्रोध अब अपने पूरे उफान पर था। सूद दर सूद बदला चुकाया गया। मराठों ने मस्जिदों को तोड़कर पुनः मंदिर बनवाए। इस कार्यवाही में यहां 1 लाख पठान और मारे गए।
अब्दाली को पठानों की मौत की खबर मिल गई थी, लेकिन इस बार वह कुत्ता भी डर के मारे उन्हें बचाने नहीं आया। पानीपत का युद्ध किसी प्रकार से वह हारते-हारते भाग्यवश जीत पाया था। इस बार उसमें पुनः मराठों का सामना करने को हिम्मत नहीं बची थी। निस्सहाय पठानों में हड़कंप मच गया, कुछ नेपाल भाग गए और कुछ सिखों के क्षेत्र में चले गए।
महादजी ने सिखों को भी पत्र लिखकर उन्हें पठानों को मराठों को सौंपने के लिए कहा, और समझाया कि चूंकि एक हिंदू को दूसरे हिंदू से नहीं लड़ना चाहिए और हिन्दुओं के शत्रु की सहायता नहीं करनी चाहिए। इसलिए सुखों ने नवरात्रि के दौरान कई पठानों को मराठों को सौंप दिया। मराठों ने इन सबके सिर काट कर तुलजा भवानी को अर्पण कर दिया।
अंत में एक समय ऐसा आया कि भारत में अफगान बचे ही नहीं। इतिहास में पहली बार हिंदुओं ने क्रोधित होकर ऐसा सर्वनाश किया कि पूरे समुदाय का ही नामोनिशान मिटा दिया गया। आज भी अगर आप उत्तर भारत में जाएं तो शायद मुट्ठी भर आपको अफरीदी और पठान मिले। जबकि इतिहास में कभी वहाँ उनकी बस्तियों की बस्तियां हुआ करती थीं।
ये है हिन्दुओं वीरों का क्रोध, आज जिहाद के बहकावे में आकर हिन्दुओं से द्रोह करने वाले लोग उसी तरह की बुद्धिहीनता का परिचय दे रहे हैं। ईश्वर जानते हैं कि हिन्दू बहुत ही सहिष्णु समाज है, इसे सहिष्णु रखिये, जिस दिन ये समाज शुद्धि पर आ गया उस दिन समस्त देशद्रोही हिन्दूद्रोहियों का अस्तित्व रोहिल्लों की तरह मिट जायेगा।
Wow It’s helps to know our history of hindus. Thanks for sharing this content.
Thanks for taking time out for acknowledgement.