बंगाल की हिंदू रानी भवशंकरी राय को क्या आप जानते है? पठानों में इनके आतंक को देखकर अकबर ने इन्हे बाघिन कहकर पुकारा था
भावशंकरी का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था, उनकी माता का देहांत बचपन में ही हो गया था जिसके पश्चात पिता ने ही उन्हे पाला था
पिता ने उन्हे तलवारबाजी, घुड़सवारी, राजनीति और धर्म सिखाया
उस समय मुगल और पठानों के बीच संघर्ष की स्थिति थी, इस बीच आम हिंदू जन परेशान थे क्योंकि अपने लाभ के लिए इन्हे घर से जबरन उठा लिया जाता था, सैन्य पूर्ति के लिए हिंदू घर को लूटना आम था
धर्मांतरण की खुली छूट थी, अधिकतर हिंदू ओडिशा और असम में भागने को मजबूर थे
तब रानी ने राजनीति में सुधार करते हुए प्रत्येक नवयुवकों को सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया गया, पुराने को मरम्मत कर, नए किले बनाए गए, उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था को पुनः दुरुस्त किया
इस प्रकार राजा के सहयोग से रानी ने घुसपैठ कर होने वाले आक्रमणों को रोक लिया
कुछ समय के बाद राजा का देहांत हो गया, रानी ने भी स्वयं को सती करने का विचार कर लिया, किंतु तब राजगुरु हरिदेव भट्टाचार्य जी ने उन्हे समझाते हुए रोक लिया कि आप केवल एक पत्नी नही एक बालक की मां भी है
आप एक रानी भी है और आपके राज्य में अफगान और मुगलों का खतरा मंडरा रहा है इस समय मातृभूमि को आपकी आवश्यकता है
बात को स्वीकार करते हुए रानी ने अपने पुत्र को राजा बनाया और स्वयं उनके संरक्षक के तौर पर राज करने लगी
इसे पठान सेनापति उस्मान खान ने अवसर मान लिया, इसमें उनके साथ राज्य का गद्दार चतुर्भुज चक्रवर्ती भी आ गया
उसने गुप्त सुरंग का मार्ग बता दिया जिसके सहारे रानी मां चंडी की उपासना करने मंदिर जाती थी
उस्मान खान ने दो सौ सैनिकों के साथ गुपचुप तरीके से मंदिर को घेर लिया, वे सभी हिंदू सन्यासियो के भेष में आए थे
किंतु रानी तैयार थी उनके अंगरक्षक भी महिलाए ही थी, जिसका अर्थ था महिलाओं को भी राज्य में सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता था
तमाम प्रयत्नों के बाद भी पठानों को बुरी हार झेलनी पड़ी, स्वयं उस्मान मुश्किल से प्राण बचा कर वापस ओडिशा भाग गया, इसे कस्तसनगढ़ की लड़ाई भी कहते है
इसके बाद भी रानी ने सेनानयक चक्रवर्ती को दंडित नही किया केवल पद से हटा कर छोटा पद दे दिया
लेकिन गद्दार कहां सुधरता है? उसने पुनः पठानों को स्थान और समय बता दिया जब रानी कम अंगरक्षकों में रहती है
एक शिकारी ने जब पठानों की सेना को देखा तो उसने ये सूचना सैनिकों को दी किंतु ये समाचार दुर्भाग्य से चक्रवर्ती को मिल गई जिसे उसने दबा दिया
हालांकि ये जानकारी बाद में नवनियुक्त सेनापति भूपति कृष्ण रॉय तक भी गई उन्होंने तुरंत बिजली की गति से पठानों की जानकारी रानी तक पहुंचाई, ये वहीं थे जिन्होंने पिछले युद्ध में पठानों की पहचान की थी
चक्रवर्ती की मंशा पठानों की सेना से मिलकर एक साथ रानी से लड़ने का था, कृष्णा रॉय ने उसकी दुष्ट बुद्धि को भांप लिया और चक्रवर्ती को पठानों की सेना में मिलने से रोकने के लिए स्वयं उससे लड़ने चले गए
वहीं रानी ने भी पठानों के आने की प्रतीक्षा न करते हुए सीधा आक्रमण बोल दिया, उनके साथ सामान्य जन भी जिन्हे रानी ने प्रशिक्षित किया था लड़ने लगे
इसे बशुरी का युद्ध कहा जाता है इसमें समस्त पठान मारे गए और गद्दार चक्रवर्ती भी
इस युद्ध की जानकारी जब अकबर तक गई तो उसने उन्हे राय बाघिन कह कर पुकारा, दरअसल अकबर भी पठानों के प्रभुत्व से चिंतित था अतः उसने भूरीश्रेष्ठ राज्य को मान्यता प्रदान की और मुगलों द्वारा इस राज्य में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा ये करार किया गया
इसके लिए अकबर की ओर से स्वयं मानसिंह आया था जब वे अपने बंगाल अभियान पर थे
बाद में राजकुमार जब बड़े हुए तो उनको सत्ता सौंप कर रानी #भावशंकरी काशी चली गई देव आराधना करने के लिए और अपना अंतिम समय वहीं बिताया
इनका उल्लेख अबुल फजल की आईने अकबरी में विस्तार से वर्णन है
Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,
Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com