साधु अवज्ञा का फल ऐसा , जरै नगर अनाथ के जैसा
विरक्त सन्यासी साधु की अवज्ञा या अवमानना करने का फल बड़ा ही भयानक होता है। श्री रामचिरतमानस में दी हुयी पंक्तियाँ,
“साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥”
श्री विभीषण जी के बारे में लिखी हुयी है इसका अर्थ यह हैं कि – जब विभीषण की धर्मसम्मत सलाह न मानकर जब रावण ने उन्हें अपमानित किया तब इसका फल उसे ऐसे मिला कि समस्त लंका नगरी ही हनुमान जी के द्वारा जलाई गयी। वह त्रेता युग था। आईए अब साधु अवज्ञा वस्तुतः अवमानना का फल कलियुग में कैसे मिला एक सच्ची कथा से जानते हैं।
बिहार के मोक्षदायिनी नगरी गया में देश विदेश के कोने कोने से लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म करने आते हैं। मान्यता है कि यहाँ श्राद्ध करने पर पूर्वजों की अवश्य मुक्ति हो जाती है। और गया करने के बाद यदि आप किसी कारणवश वार्षिक श्राद्ध न भी कर पाए तो दोष नहीं लगता है। ऐसी परम पुण्यमयी गया भूमि के समीप ही आकाश गंगा पहाड़ी है। यहां पर कई सारे साधू सन्यासी अपनी साधना में निमग्न रहते हैं। कई वर्षों पूर्व इसी आकाश गंगा पहाड़ पर एक परमहंस जी निवास करते थे। उनके साथ उनके कुछ शिष्य भी रहा करते थे।
रीति है कि केवल गृहस्थ ही नहीं वरन साधु सन्यासी भी भगवद कृपा प्राप्त करने के लिए एकादशी का व्रत रखते हैं। उन शिष्य महाराज ने भी एकादशी का निर्जल व्रत रखा हुआ था। बिना भोजन जल के एकादशी का दिन बिताने के बाद अगले दिन द्वादशी को प्रातः तड़के उठकर उन्होंने फल्गु नदी में स्नान किया और मंदिर में भगवन के दर्शन के लिए चले। विष्णुपद का दर्शन करते हुए उन्हें थोड़ा विलम्ब हो गया। उन्होंने देखा कि द्वादशी के पारण में अब कुछ ही समय शेष रह गया है। एकादशी के व्रत के नियम के अनुसार व्रत का द्वादशी तिथि में ही कुछ अन्न प्रसाद आदि ग्रहण करके पारण करना होता है अन्यथा व्रत अपूर्ण माना जाता है।
साधु महाराज अपने पास एक गोपाल जी के विग्रह को सदा ही रखते थे। पारण के समय को बीतता देख वो निकट ही स्थित एक हलवाई कि दुकान पर जाकर उन्होंने दुकानदार से याचना की की ,’व्रत के पारण का समय निकला जा रहा है , तुम थोड़ी मिठाई दे दो तो मैं गोपाल जी को भोग लगाकर में थोड़ा जल ग्रहण करूंगा। ‘
दुकानदार ने साधु महाराज की बात सुनकर भी अनसुनी कर दी। साधु महाराज ने व्रत की रक्षा विचार कर तीन चार बार और माँगा पर कुछ भी उत्तर न मिलने पर एक छूटा बताशा (चीनी की बनी एक छोटी सस्ती मिठाई ) लेने के लिए उन्होंने जैसे ही हाथ बढ़ाया धन के मद में चूर दुकानदार और उसके पुत्र ने साधु की खूब पिटाई कर दी।
निर्जला उपवास की कारन पहले से ही दुर्बल हुए साधु महाराज इस सम्मिलित प्रहार को सह न सके और गिर पड़े। आते जाते लोगों ने बीच बचाव करके साधु महाराज की रक्षा की।
साधु महाराज ने दुकानदार से एक शब्द भी न कहा बल्कि ऊपर की और देखकर थोड़ा हँसते हुए से बोले , ” भली रे कृपालु भगवन आपकी लीला। ” इतना कहते हुए साधु महाराज जी आकाश गंगा पहाड़ की और बढ़ गए।
उधर उनके गुरु महाराज पहाड़ की एक शिला पर ध्यानमग्न बैठे हुए थे परन्तु यकायक चौंक कर आसान से कूदकर बड़ी तेज गति से गोदावरी नमक रास्ते की और चल पड़े।
शिष्य साधु महाराज रास्ते में ही परमहसं गुरूजी को मिल गए। देखते ही गुरूजी ने कहा ,” क्यों रे बच्चा , तूने क्या किया ?”
शिष्य साधु महाराज जी ने कहा ,” गुरुदेव मैंने तो कुछ नहीं किया। “
परमहंस गुरूजी ,” बहुत कुछ कर दिया। बहुत बुरा काम किया। सबकुछ बिल्कुल रामजी के ऊपर छोड़ दिया। जाकर देखो रामजी ने उसका कैसा हाल कर दिया।
फिर शिष्य को लेकर गुरु महाराज हलवाई की दुकान के समीप पहुंचे। उन्होंने देखा की हलवाई का सर्वनाश हो गया है। साधु महाराज को पीटने के बाद जलाने की लकड़ी लेने के लिए हलवाई का लड़का जैसे ही ईंधन की कोठरी में घुसा था की उसे काले नाग ने डस लिया। उधर हलवाई घी गर्म कर रहा था। सर्पदंश के कारण पुत्र की चीख सुनकर उसे देखने दौड़ा। उसकी बुद्धि शिथिल हो गया और उधर घी के जलाने से दुकान की फूस की छत पर आग लग गयी। दूकान धूं धूं कर धधक उठी। भयंकर दृश्य उपस्थित हो गया लड़का रास्ते पर मृत पड़ा है और दूकान आग की लपटों में स्वाहा होती जा रही है। अब करने लायक कुछ भी न बचा था।
परमहंस जी शिष्य को लेकर पुनः आकाश गंगा पहाड़ पर आ गए। शिष्य को खूब फटकारते हुए कहा कि जब कोई निरर्थक अत्याचार करता है तो क्रोध न आने पर भी साधु पुरुष को कम से कम एक गाली तो देकर ही आना चाहिए। साधु के थोड़ा प्रतिकार करने पर अत्याचारी कि भी रक्षा हो जाती है। परमात्मा के ऊपर सब छोड़ देने पर वो बहुत कठोर दंड देते हैं। निरपराध पर अत्याचार करने वालों के लिए उनकी दंड व्यवस्था बड़ी कठोर हैं।
साधु अवज्ञा का फल ऐसा , जरै नगर अनाथ के जैसा
इस बार व्यापारी की केवल दुकान ही न जाली वरन उसके वंश के कर्णधार का भी सर्वनाश हो गया। अभी कुछ समय पूर्व सुनाने में आया था की पालघर के निर्दोष साधुओं को मारने वाले व्यक्ति भी जलकर मृत्यु हो गयी थी।
अतएव अनीति और अत्याचार से हमेशा बचें , विशेषकर साधु और सज्जनों को कभी भी बिलकुल न त्रास दें।
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