उत्तर प्रदेश और बिहार में यह कहावत ‘आगे नाथ न पीछे पगहा‘ (Aage Nath Na Piche Pagha) अभी भी गावों में प्रयोग की जाती है। खासकर उन नौजवान बेफिक्रे युवाओं के लिए जो बिल्कुल स्वच्छंद हैं और किसी प्रकार के नियम कानून को मानना पसंद नहीं करते। लेकिन यह कहावत थोड़ा नकारात्मक रंग लिए हुए है।
आगे नाथ न पीछे पगहा का अर्थ – Aage Nath Na Piche Pagha Ka Arth
अर्थ: इसका सीधा अर्थ है ‘परम स्वच्छंद’, बिना किसी के रोक टोक के या नियंत्रण के, बिल्कुल बेफिक्रे। जब किसी चीज की कोई जिम्मेदारी अपने ऊपर न हो तो इस मुहावरे का प्रयोग किया जाता है। जब किसी को इस प्रकार की स्वतंत्रता मिल जाती है तो वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं रह जाता। इसी को आगे नाथ न पीछे पगहा (Aage Nath Na Piche Pagha) कहते हैं
मुहावरे में ‘नाथ’ क्या है? Nath Kya hai
गावों में जब हल बैल से खेती होती थी तो बैलों के नाक में एक पतली रस्सी की नकेल डाल देते थे जो एक तरफ के नथुने से निकल कर दूसरे तरफ से निकल कर बैल के गर्दन में बंधी रस्सी जुड़ा रहता था। ऐसा इसलिए किया जाता था क्योंकि कुछ जिद्दी बैल किसान के इशारे पर न चल कर दूसरी दिशा में चले जाते थे। इससे कार्य का बड़ा नुकसान होता था और अनावश्यक देरी होती थी। इसी नकेल को नाथ भी कहते हैं। यह किसी का स्वामित्व स्वीकार करने का भी परिचायक है।
और ‘पगहा’ क्या है? Pagaha Kya hai
अब यहाँ पगहे का अर्थ बैल या पशु की गर्दन से एक रस्सी को जमीन में एक निश्चित कड़ी या बांस के खूंटे से बांधना है। यह पगहा उस रस्सी को कहते हैं जो पशु को कार्य के बाद एक स्थान पर बांधकर रखने के लिए होती है। कार्य के बाद बैल को खूंटे से बांधकर उनके सामने खाने के लिए चारा डाल दिया जाता है। इससे पशु कहीं भटकता नहीं वरन अपनी जगह पर विश्राम करता है। फिर अगले दिन कार्य के लिए उठता है।
पहले (आगे) नाथ- बाद में(पीछे) पगहा क्यों होता है?
इस प्रकार कार्य करने वाले बैल को कार्य से पहले नाथ डालते हैं और कार्य के बाद पगहा। यह गॉंव में खेती के कार्यों का स्वाभाविक नियम है। इस प्रकार कोई भी कार्य के ‘आगे नाथ लगता है व पीछे पगहा’ होता है
अब यदि किस व्यक्ति के ऊपर कोई शासन न हो , परम स्वछन्द हो कोई उससे यदि यह पूछने वाला न हो कि अमुक कार्य उनसे क्यों किया तो उसके ऊपर कोई नाथ नहीं है। वह परम स्वच्छंद है। ऐसे ही अगर उसके ऊपर घर परिवार कि जिम्मेदारियां भी न हों तो उसे घर में रोकने वाली कोई बेड़ी या पगहा भी नहीं है। फिर उसका भटकना स्वाभाविक है।
अतः जिस व्यक्ति के ऊपर कोई बड़ा अनुशासन करने वाला न हो और साथ में कोई जिम्मेदारी भी न हो वह व्यक्ति ‘आगे नाथ न पीछे पगहा‘ (Aage Nath Na Piche Pagha) के सामान होता है।
आगे नाथ न पीछे पगहा वाक्य प्रयोग
अपने पिताजी की मृत्यु के बाद उनके इकलौते पुत्र होने के नाते गिरीश उनकी अथाह संपत्ति का स्वामी हो गया। अब बस सारा दिन इधर उधर घूमना और नजदीक के कस्बे में जाकर गुलछर्रे उड़ाना उसका रोज का काम हो गया है। घर परिवार कि कोई जिम्मेदारी न होने कि वजह से गिरीश बिल्कुल आगे नाथ न पीछे पगहा (Aage Nath Na Piche Pagha)वाली स्थिति को प्राप्त हो गया है।
मुहावरे का गलत उच्चारण
कुछ लोग सुनने में भ्रम होने के कारण इस मुहावरे को गलत तरीके से बोलने लग जाते हैं। जैसे नीचे दिए गए सभी उदाहरण गलत उच्चारण के हैं –
1.आगे नाथ न पीछे पगला (aage nath na piche pagla)
2.आगे नाथ न पीछे पगार (aage nath na piche pagaar)
3.आगे नाथ न पीछे पगा (aage nath na piche paga)
4.आगे नाथ न पीछे पड़ा / पदा (aage nath na piche pada)
5.आगे नाथ न पीछे पिकार (aage nath na piche picar)
इन सभी उच्चारणों का कोई अर्थ नहीं है।इनका प्रयोग करने से बचें। सही कहावत केवल आगे नाथ न पीछे पगहा (Aage Nath Na Piche Pagha) ही है।
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