जासु नाम भव भेषज-अर्थ, व्याख्या व प्रयोग
जासु नाम भव भेषज-पूर्ण दोहा
जासु नाम भव भेषज हरण घोर त्रय शूल
सो कृपाल मोहिं तो पर सदा रहउँ अनुकूल ॥124 क॥
कठिन शब्दार्थ
भव – जन्म मरण रुपी संसार चक्र
भेषज – औषधि, दवाई
त्रय- तीन
शूल – कष्ट देने वाले कारण, पीड़ा
कृपाल – कृपा करने वाले
अनुकूल – हमारे लिए लाभकारी , प्रसन्न
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भावार्थ
जिनका नाम ( राम ) ही जन्म मरण चक्र के रोग के उपचार के लिए औषधि के समान है और इस रोग की तीन पीड़ाओं ( दैहिक, दैविक, भौतिक ) को समाप्त कर देता है , वह दया करने वाले प्रभु सदा ही हमारे ऊपर प्रसन्न रहे।
Meaning in English: Whose name(Ram) is the cure for the illness of cycle of birth-death-rebirth and destroyer of all three types of Pain( Bodily, materialistic and metaphysical). May that that merciful God(Shri Ram) always remain pleased with us.
व्याख्या
मनुष्य भव रोग अर्थात संसार के जन्म मरण रुपी चक्र में फंसा हुआ होने के कारण इस पृथ्वी पर जन्म लेता है और इस भव रोग की तीन प्रकार की पीड़ाएं दैहिक , दैविक और भौतिक को सहन करता हुआ जीवन बिताता रहता है।
–दैहिक पीड़ा, शरीर की पीड़ाएं – रोग ,चोट ,सर्दी, गर्मी आदि होती हैं जो हर व्यक्ति काम या अधिक मात्रा में अवश्य झेलता है।
-दैविक पीड़ा , प्राकृतिक आपदायें जैसे सूखा, बाढ़, भूकंप आदि होते हैं जो मनुष्य अपने समाज सहित झेलता है।
–भौतिक पीड़ायें वो होती है जो अपने आस-पास के बाह्य वातावरण से मिलती हैं। सामाजिक ईर्ष्या , चोरी हो जाना , अपमानित होना आदि।
इन तीनो पीड़ाओं के मूल में यद्यपि अपने की पूर्व या वर्तमान कर्म मूल होते हैं फिर भी मनुष्य अज्ञानतावश भाग्य, ईश्वर , दैव आदि को दोष देता रहता है। व्यक्ति यदि इन पीड़ाओं से मुक्त होना चाहता है तो उसे कर्मफल से मुक्त होना होगा। अभिमान और कर्तापन के भाव से हमेशा युक्त होने के कारण मनुष्य को इनसे मुक्त होना बड़ा ही कठिन है।
परन्तु भगवान का नाम मात्र , ‘राम’ इन सभी पीड़ाओं और जन्म मरण के बंधन से निकालने वाला बड़ा ही सरल उपाय है। यह ऐसी औषधि है जो हर युग में कार्य करती है और निश्चय ही मुक्ति प्रदान करती है।
इसलिए महाकवि भक्त शिरोमणि श्री तुलसीदास जी प्रार्थना करते हैं की हे प्रभु आप सदा ही हम पर अनुकूल रहिये अर्थात हम पर हमेशा दया दृष्टि बनाये रखें।
FAQ बहुधा पूछे जाने वाले प्रश्न
Q. यह चौपाई कहाँ से ली गयी है
A. यह चौपाई गोस्वामी श्री तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के उत्तर काण्ड से ली गयी है। इसकी दोहा सोरठा संख्या 124 (क) है।
दोहे का प्रयोग
भगवान शिव के आश्रीवाद से श्री रामचरितमानस के दोहे चौपाइयां मन्त्रों के सामान कार्य करते हैं। क्योंकि भगवान शिव ने आशीर्वाद दिया था की यह सामवेद के समान फलवती होगी। सामवेद मन्त्रों का ही वेद है अतः श्री रामचरितमानस की चौपाइयां दोहे आदि स्वतः सिद्ध मन्त्र हैं।
कई लोग इस चौपाई का प्रयोग रोग से मुक्ति के लिए भी करते हैं। यहाँ हम एक सत्य घटना का लिंक दे रहे हैं जहाँ व्यक्ति अपनी उच्च रक्तचाप की समस्या से लाचार हो गया था पर इस चौपाई का जाप करके सफलतापूर्वक रोगमुक्त हुआ। केवल यही नहीं बल्कि ऐसे कई उदहारण हैं जहाँ पर श्री राम के केवल नाम प्रभाव से अद्भुत चटकार घटित हुए हैं।
बोलिये पतित पावन श्री सीता राम जी की जय!