यह कहावत सबसे पहले मैंने मेरे दादाजी से सुना था । बाद में गाँव की बारातों में कई अलग अलग गांवों में जाना हुआ। प्रायः ये सारी बारातें तहसील और जिले के अंदर ही होती थीं। हर बार मैं दूसरे गाँव में वहाँ की थोड़ी अलग बोली और अलग तरह की जल का स्वाद और हवा से थोड़ा अलग ही तरह का अनुभव होता था। इतने कम दूरी के अंदर ऐसा परिवर्तन देखकर मैं अक्सर अपने दादा की यह बात याद करता था ‘कोस कोस पे बदले पानी, चार कोस पे बानी‘।
कोस-कोस पे बदले पानी, चार कोस पे बानी
अर्थ : हमारे भारतवर्ष देश में हर एक कोस की दूरी पर जल का स्वाद बदल जाता है और 4 कोस पर बोली (भाषा) भी बदल जाती है।
और तो और देश में इतनी अधिक प्राकृतिक विविधता है कि कोस भर की दूरी पर जलवायु भी बदल जाती है। नदी पहाड़ अदि इतनी विविधता उत्पन्न करते हैं कि कहीं कोस भर पर ही बंजर जमीन मिलेगी तो अगले कोस पर अत्यंत उपजाऊ भूमि। कोस कोस पे बदले पानी से यह अर्थ भी बनता है।
अब मैं अपने स्वयं के अनुभव से कहता हूँ कि कोस-कोस पर पानी का स्वाद तो बदलता ही है तथा 4 कोस पर भाषा-बोली भी भिन्न प्रतीत होती है।
कठिन शब्दार्थ
- कोस – दूरी मापने की एक इकाई (1 कोस = लगभग 1.8 किलोमीटर)
- बानी – वाणी /बोली
- चार – 4
- 4 कोस = लगभग 7.2 किलोमीटर
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