Join Adsterra Banner By Dibhu

पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी |Puri Ka Pet Sohari Se na Bhari

0
(0)

यह मुहावरा ‘पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी (Puri Ka Pet Sohari Se na Bhari)‘ उन लोगों को तुरंत समझ में आएगा जिन्होंने गाँव देहात की शादी व्याह के निमंत्रणों का आनंद लिया है। पहले लोग भोजन में खूब पूरियां आग्रह कर-कर खिलाते हैं और बाद में जब आपका पेट लगभग पूरा भर जाता है तो सोहारी लेकर प्रस्तुत हो जाते हैं और आपको मना करना मुश्किल हो जाता है।

आइए अब मुहावरे का सीधा अर्थ भी समझ लेते हैं ।

पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी (Puri Ka Pet Sohari Se na Bhari)

अनुवाद- पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा।

अर्थ : भारी गरिष्ठ व्यंजन खाने वाले की हल्के-फुल्के व्यंजन से तृप्ति नहीं होगी। अर्थात व्यक्ति रुचि के अनुसार भोजन कराना चाहिए। संक्षेप में कहें तो व्यक्ति की रूचि के अनुसार कार्य करें।

पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी-शब्दार्थ

पूरी/पूड़ी = तेल में तली हुयी आटे की गोल छोटी-छोटी गोल संरचना वाला स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ
सोहारी = पूरी जैसी ही पर उससे बड़ी और पतले संरचना वाला खाद्य व्यंजन

पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी का संदर्भ

इस मुहावरे को समझने के लिए यह जानना आवश्यक है की पूरी/पूड़ी और सोहारी में क्या अंतर है।

गांव में होने वाले भोज निमंत्रण में लोग प्रायः पूरियां खिलाते हैं। कारण की खेतो में काफी मेहनत का काम होता है और पूरियां पौष्टिक सत्तू , दाल या अन्य पदार्थों से भरकर बनाते है। पूरियां स्वादिष्ट होती है। अतः पूरियां थोड़ी मोटी होती हैं और खाने पर जल्दी पेट भर जाता है। पूरियां लोग सूखी या गीली सब्जी के साथ खाते हैं।

वहीं सोहारी के अंदर कोई भरवा (फिलिंग ) नहीं होती और ये पतली और पूरी से थोड़ी ही बड़ी होती हैं। सोहारी हल्की होती है और लोग इसे मीठे बूंदी आदि के साथ खाते हैं। सोहारी सादे स्वाद वाली होती है। माना जाता ही की सोहारी बहुत जल्दी पच जाती है जबकि पूरियां देर तक पेट में ठहरती हैं। भोज में लोग पहले पूरियां परोसते हैं और अंत में सोहारी क्योंकि पूरियां खाने के बाद भी लोग एक दो सोहारी खा सकते हैं।

अब यदि लोगों को स्वादिष्ट पूरी खिलाये बिना ही यदि सादे स्वाद वाली केवल सोहारी परोस दिया जाय तो खाने वाले की रूचि नहीं होगी। उसका पेट नहीं भरेगा। इसीलिए व्यक्ति की रूचि के अनुसार उसके गुणवत्ता का भोजन परोसना चाहिए। इसी प्रकार व्यक्ति के रूचि के अनुसार गुणवत्ता वाला कार्य भी कराना चाहिए। अन्यथा वह असंतुष्ट रहेगा। इसीलिए कहा गया है कि ‘पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी (Puri Ka Pet Sohari Se na Bhari)

पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी का वाक्य प्रयोग

गांव के स्कूल से पुराने शिक्षक अलोक सर का स्थानांतरण हो गया। उनकी जगह नए टीचर जमील आये लेकिन उनका पढ़ने का ढंग बहुत बोरिंग था और वह बच्चों को मारते भी थे। सभी बच्चों ने जाकर प्रधानाध्यापक से उनकी शिकायत की। तब जाकर नए शिक्षक को समझ आया कि पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी।

अन्य प्रकार से उच्चारण

कुछ लोग इसी मुहावरे का अन्य प्रकार से भी कहते हैं परन्तु उन सभी का अर्थ एक ही होता है जैसा की हमने ऊपर बताया है

  1. पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी
  2. पूड़ी क पेट सोहारी से न भरी
  3. पूड़ी क पेट सोहारी से न पूजी

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः