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बाघों से भी लड़ जाने वाले पेशवाई योद्धा गंगू बाबा

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उत्तर पेशवाई के स्वातंत्र्य महावीर गंगू वाल्मीक बाबा

गंगू बाबा का संघर्षमय जीवन ‘गंगू भंगी या गंगू मेहतर’ से गंगू बाबा बनने तक जाने कितने हृदयों का प्रेरणास्त्रोत बना। देश अंग्रेज़ों के जाल में फंस कर अपनी स्वतंत्रता खो चुका था । ऐसे समय में सन १८५७ का स्वतंत्रता संग्राम में भारत माता के जाने कितने सपूत काम आये। हिन्दू समाज के सभी वर्गों की माताओं ने अपने संतानों को इस स्वातंत्र्य यज्ञ में बलिदान दिया। गंगू बाबा जीवन संघर्ष की आग में तपकर कुंदन बनेऔर अपनी वीरता की अमित छाप छोड़ी।

एक जब वह अपनी पीठ पर मरे हुए बाघ के साथ जंगल से लौट रहे थे। उस समय बिठूर के राजा नाना साहब पेशवा अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध करने के लिए अच्छे सैनिकों की खोज कर रहे थे, वह अपनी सेना के साथ उस स्थान से गुजरे। उन्होंने गंगू बाबा को अपनी पीठ पर एक बाघ के साथ देखा। वह बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने गंगू बाबा को अपनी सेना में शामिल होने के लिए कहा क्योंकि उन्होंने उस समय पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी थी। गंगू बाबा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। शुरुआत में उन्हें युद्ध घोष का नगाड़ा बजाने का कार्य मिला

स्वातंत्र्य महावीर गंगू मेहतर का इतिहास

नगाड़ा बजाने वाले गंगू बाबा को कई नामों से पुकारा गया। वो वाल्मीकि जाति से थे, इसलिए शुरू में उन्हें ‘गंगू मेहतर’ के नाम से बुलाया गया, फिर पहलवानी का शौक़ होने के कारण ‘गंगू पहलवान’ और ‘गंगूदीन’ का भी नाम मिला।

गंगू के पुरखे कानपुर जिले के अकबरपुरा के रहने वाले थे लेकिन बेगार से दुखी होकर कानपुर शहर के चुन्नी गंज इलाके में रहने लगे थे। सती चोरी गाँव में इनका पहलवानी का अखाड़ा था।

Gangu Baba

गंगू बाबा नगाड़ा बजने के आलावा नाना साहब पेशवा की सेना को पहलवानी के गुर भी सिखाते थे और जब 1857 में सिपाही विद्रोह शुरू हुआ और नाना साहब ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध लड़ाई लड़ने का फ़ैसला किया,तो गंगू पहलवान ने नगाड़ा बजाने का छोड़कर सेना में शामिल हो गए और सूबेदार का पद हासिल किया।

गंगू पहलवान को नाना साहब का विश्वास हासिल था। इसलिए नाना साहब की गिरफ्तारी के बाद भी अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध जारी रहा। गंगू पहलवान ने अपने साथियों की मदद से 200 से ज़्यादा अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया।

इस कत्ल-ए-आम से अंग्रेज़ी सरकार सहम सी गई थी। इसलिए जब वो पकड़े गये तो अंग्रेजों ने उन्हें घोड़े में बांध कर पूरे कानपुर शहर में घुमाया। और फिर हाथों में हथकड़ियाँ व पैरों में बेड़ियाँ पहनाकर काल कोठरी में डाल दिया और फिर उनपर तरह – तरह के ज़ुल्म किये।

इसके बाद गंगू बाबा पर महिलाओं और बच्चों के कत्ल का झूठा मुक़दमा चलाया गया और मुकदमे के नाटक के बाद फांसी की सज़ा सुनाई गयी। आठ सितम्बर, 1859 को कानपुर के चुन्नी गंज चौराहे पर उन्हें फाँसी दी गयी थी।
कानपुर के चुन्नी गंज में इनकी प्रतिमा लगाई गई है।

जिन्होंने अंतिम साँस तक अंग्रेजों को ललकारा, वह कहते थे कि “ भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का खून व क़ुर्बानी की गंध है, एक दिन यह मुल्क आज़ाद हो कर रहेगा”।

स्वतंत्रता संग्राम के इस वीर योद्धा को हिन्दवी स्वराज प्रचार एवं सेवा संघ , उत्तर पेशवाई (ब्रजक्षेत्र) सादर नमन करता है
इस गुमनाम योद्धा की कहानी देश के सामने लाने की जिम्मेदारी हर राष्ट्रवादी व्यक्ति की है,, इसलिए ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

सन्दर्भ:-कैंपस क्रॉनिकल (18 अगस्त 2020)। “द ग्रेट अनसंग शहीद योद्धा ‘गंगू बाबा'” . 5 अक्टूबर 2021 को मूल से संग्रहीत। 5 अक्टूबर 2021 को लिया गया ।

प्रस्तुति:- पंत देवेश गौतम
उत्तर पेशवाई (ब्रजक्षेत्र) उत्तरी कमांड

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