Join Adsterra Banner By Dibhu

दादा, खेमुआ ने आज खाया नहीं

0
(0)

खेमुआ (“दादा खेमुआ ने आज खाया नहीं”)

आश्रम में ऐसे कई अवसर आते थे जब जब हम देखते थे कि किसी के भूखे रह जाने पर बाबा कितनी तकलीफ पाते थे।

आश्रम का एक कर्मचारी था खेमुआ। खेमुआ किचन में साफ सफाई करने, कमरों की सफाई करने और लकड़ी काटने लाने का काम करता था। खेमुआ बहुत अजीब तरह के कपड़े पहनता था। पाजामा, शर्ट और उसके ऊपर पुलिसवाली हैट। उसे दूसरे कर्मचारी अक्सर चिढ़ाते भी थे जिस पर वह कभी कभी चिल्लाता जरूर था लेकिन कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता था।

खेमुआ को खाने कपड़े या फिर रुपये पैसे में कोई रुचि न थी। मैंने उसे कुछ नये कपड़े दिये थे लेकिन उसे अपने ही कपड़ों में रुचि थी। वह मुझसे बहुत जुड़ गया था और जब भी मुझे देखता तो खड़े होकर सैल्यूट मारता था। बाबा कहते, “दादा जाइये और एक सिगरेट उसके लिए भी सुलगा दीजिए। फिर दोनों खड़े होकर पीजिए।”

एक बार खेमुआ ने रसोई के कर्मचारियों के साथ लड़ाई झगड़ा कर लिया। इस पर बाबा ने उसे बुलाया और कहा कि, “खेमुआ तू यहां से जा।”

खेमुआ ने कहा, “मैं नहीं जाऊंगा।”

बाबा ने कहा, “तुझे जाना ही होगा।”

खेमुआ ने कहा, “जब तक हनुमानजी का काम नहीं हो जाता मैं नहीं जाऊंगा।”

बाबाजी ने कहा, “अब मैं क्या कर सकता हूं। यह नहीं जाएगा।”

बाद में खेमुआ को रसोईं के काम से हटाकर जानवरों की देखभाल के लिए आश्रम के फार्म पर रख दिया गया। खेमुआ को आश्रम में प्रवेश पर भी पाबंदी लगा दी गयी। वह रात में आश्रम के गेट पर आकर इंतजार करता जहां रसोईं का कोई कर्मचारी भोजन पहुंचा देता था।

एक रात आश्रम में बड़ी हलचल थी। लोग इधर से उधर भाग दौड़ कर रहे थे। कीर्तन भी चल रहा था। आमतौर पर बाबा शाम का दर्शन देने के बाद अपने कमरे में आते थे तो कुछ हल्का प्रसाद पाते थे। उस रात उन्होंने कोई प्रसाद ग्रहण नहीं किया। रात के करीब एक बजे चौकीदार मेरे बिस्तर के पास आया और बोला कि, “महाराज जी आपको बुला रहे हैं।”

जब मैं उनके कमरे में पहुंचा तो सिद्धि दीदी ने मुझसे कहा कि, “उन्होंने कुछ खाया नहीं है। बस इसी तरह बैठे हैं।”

बाबाजी चुपचाप बैठे थे और उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।

“दादा, खेमुआ ने आज खाया नहीं है।”

“ओह ! यह कैसे हो गया बाबा ?”

“वह दरवाजे पर लंबे समय तक इंतजार करता रहा लेकिन किसी ने उसे भोजन नहीं दिया। लगता है भोजन देनेवाला भूल गया था। वह इंतजार करता रहा, इंतजार करता रहा और फिर भूखा ही चला गया।”

मैंने कहा, “बाबा हम अभी फार्म पर उसको भोजन देकर आते हैं।”

“नहीं नहीं अब करने का कोई फायदा नहीं। इतनी रात में वह खायेगा नहीं।”

अगली सुबह जब मैं बाबा के कमरे में आया तो माताएं महाराज जी के नित्य पूजन आरती की तैयारी कर रही थीं। यह माताओं के लिए बहुत आनंद का समय होता था क्योंकि इस दौरान वे महाराज जी की कृपा प्राप्त करतीं थीं और उनकी हंसी ठिठोली भरी बातों से पूरा माहौल आनंदमय रहता था। लेकिन उस दिन ऐसा नहीं था। हर कोई खड़ा चुपचाप आंसू बहा रहा था।

बाबाजी बता रहे थे कि किसी को भूखा रखना कितना पीड़ादायक होता है। वे उस धर्म के बारे में बता रहे थे कि जब आप पर कोई निर्भर हो और आप उसकी जरुरतों को पूरा न कर पाते हों।

(सुधीर ‘दादा’ मुखर्जी: बाई हिज ग्रेस, (1990, 2001) पेज- 103-105)

Excerpt From- By His Grace: A Devotee’s Story (Page 103-105)

जय नींब करौरी बाबा!

दादा, खेमुआ ने आज खाया नहीं

दादा, खेमुआ ने आज खाया नहीं

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


संकलित लेख

About संकलित लेख

View all posts by संकलित लेख →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः