May 29, 2023

जानिए लोटा और गिलास के पानी में अंतर

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भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है, ये गिलास जो है विदेशी है। गिलास भारत का नही है। गिलास यूरोप से आया। और यूरोप में पुर्तगाल से आया था। ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे थे तब से गिलास में हम फंस गये।

गिलास अपना नही है। अपना लोटा है, और लोटा कभी भी एकरेखीय (Linear) नही होता। आयुर्वेद में वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय(Linear) हैं उनका त्याग कीजिये। वो काम के नही हैं। इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता। लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है। इस पोस्ट में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे।

लोटा-Lota
लोटा

फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही गुण उसमें आते है। पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं। जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं। दही में मिला दो तो छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा। दूध में मिलाया तो दूध का गुण। लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा। अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा।

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अगर थोडा भी भौतिक विज्ञान और गणित आप समझते हैं तो जानेंगे कि हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम रहता है। क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा। तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सतही तनाव (Surface Tension) कम होगा। और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सतही तनाव(Surface Tension) वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है।अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है। क्योंकि उसमें शरीर को तकलीफ देने वाला अधिक दबाव (Extra Pressure) आता है।

(टिप्पणी: यह सतही तनाव वही है किसकी वजह से आप अति छोटे जीवों को पानी के ऊपर दौड़ते हुए भी देख सकते हैं।)

भौतिक विज्ञान का नियम है कि जिस वस्तु का सतही क्षेत्रफल जितना कम होगा उसका सतही तनाव उतना ही कम होगा। अतः आकार में सिलिंडर जैसी वस्तुओं का सतही तनाव गोल वस्तुओं के जैसे घड़े के अपेक्षाकृत अधिक होगा। गोल वस्तु का सतही तनाव सबसे कम होता है। इसीलिए वर्षा कि बूंदे बदल से निकलते ही स्वतः ही गोल आकार ले लेती हैं, जिससे उनका सतही तनाव सबसे कम हो।

गिलास और लोटा के पानी में अंतर गिलास के पानी और लौटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है। इसी तरह कुए का पानी, कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है। आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी साधू संत कुए का ही पानी पीते है। न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं, जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे। वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्यूंकि कुआ गोल है, और उसका सतही क्षेत्रफल(Surface Area)कम है।

(टिप्पणी: अब आप कहेंगे कि कुएं का आकर भी गिलास कि तरह हो होता है तो वह गोल कहाँ हुआ। बात सही है कुएं का पानी वस्तुतः वर्तुला कार है जो कि लम्बवत नदी के पानी से बेहतर है। और नदी का पानी उत्तरोत्तर सागर के पानी से बेहतर है ज्यामिति के अनुसार। इसमें पानी के रासायनिक संरचना को संज्ञान में नहीं लिया जा रहा है।)

सरफेस टेंशन कम है। और साधू संत अपने साथ जो केतली की तरह(कमण्डलु) पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है. जो नीचे चित्र में दिखाई गई है।

कमण्डलु

सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है। पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है। आपकी बड़ीआंत है और छोटीआंत है, आप जानते हैं कि उसमें मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है। पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है। ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो। अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है।
दुसरे तरीके से समझें, आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिये. थोडा सा दूध ले और उसे चेहरे पे लगाइए, 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये. तो वो रुई काली हो जाएगी। स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी। इसे दूध बाहर लेकर आया। अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है। तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया, दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है।

लोटा-Lota
लोटा

इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी। और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया। यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है। आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया। जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई। अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्यूंकि तनाव बढेगा। तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है। अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा भगन्दर, बवासीर, मुल्व्याद(मूलव्याधि) जैसी सैकड़ों पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा।

इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए. इसलिए लौटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है, गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है। गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा। नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है। क्योंकि नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है। नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है।

अगर प्रकृति में देखेंगे तो बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है. मतलब सभी बूंदे गोल होती है क्यूंकि उसका सरफेस टेंशन बहुत कम होता है। तो गिलास की बजाय पानी लोटे में पीयें. तो लोटे ही घर में लायें।

लोटा-Lota
लोटा

गिलास का प्रयोग बंद कर दें। जब से आपने लोटे को छोड़ा है तब से भारत में लौटे बनाने वाले कारीगरों की रोजी रोटी ख़त्म हो गयी. गाँव गाँव में कसेरे कम हो गये, वो पीतल और कांसे के लौटे बनाते थे। सब इस गिलास के चक्कर में भूखे मर गये। तो वागभट्ट जी की बात मानिये और लौटे वापिस लाइए।

लेख सौजन्य : विजय डोंगरे , मूल लेख स्त्रोत

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