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स्वतंत्रता सेनानी सरदार अजीत सिंह

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सरदार अजीत सिंह- 23 फरवरी जन्म दिन पर शत शत नमन

सरदार अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को पंजाब के जालंधर के खटकड़ कलां गांव में हुआ था। अजीत सिंह शहीद भगत सिंह के चाचा थे। साल 1907 में अंग्रेज सरकार तीन किसान विरोधी कानून लेकर आई, जिसके खिलाफ अजीत सिंह ने ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन चलाया। जीवनभर देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले सरदार अजीत सिंह का भारत की आजादी के दिन ही 66 साल की उम्र में देहांत हो गया।

एक और उर्मिला (माता हरनाम कौर जी क्रांतिकारी भगत सिंह जी की चाची)
रामायण के लक्ष्मण जी तो उर्मिला को 14 साल बाद मिल गए थे परंतु इनका त्याग तो उससे भी बड़ा था
भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह जी स्वतन्त्रता की धुन मे वर्षो तक घर से बाहर विदेशो मे भटकते रहे। वर्षो बाद जब वह घर आए तो तो उनकी पत्नी ने उन्हे पहचाना ही नहीं।

सरदार अजीत सिंह (1881–1947) भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी थे। वे भगत सिंह के चाचा थे। उन्होने भारत में ब्रितानी शासन को चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया। उन्हें राजनीतिक ‘विद्रोही’ घोषित कर दिया गया था। उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता। १९०६ ई. में लाला लाजपत राय जी के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था।

इनके बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं । जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल 25 साल थी। 1909 में अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया।
लॉ की पढ़ाई बीच में छोड़ने के बाद अजीत सिंह का साल 1906 में बाल गंगाधर तिलक से परिचय हुआ और वह उनसे बेहद प्रभावित हुए। किशन सिंह और अजीत सिंह ने भारत माता सोसाइटी की स्थापना की और अंग्रेज विरोधी किताबें छापनी शुरू कर दीं। अपने लेख ‘स्वाधीनता संग्राम में पंजाब का पहला उभार’ में भगत सिंह ने लिखा, ‘जो युवक लोकमान्य (बालगंगाधर तिलक) के प्रति विशेष रूप से आकर्षित हुए थे, उनमें कुछ पंजाबी नौजवान भी थे। ऐसे ही दो पंजाबी जवान मेरे पिता किशन सिंह और मेरे आदरणीय चाचा सरदार अजीत सिंह जी थे।’

‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन के जनकसाल 1907 में अंग्रेज सरकार तीन किसान विरोधी कानून लेकर आई, जिसके खिलाफ देशभर में किसानों ने नाराजगी जताई। सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में हुआ और सरदार अजीत सिंह ने आगे बढ़कर इस विरोध को सुर दिया। उन्होंने पंजाब के किसानों को एकजुट किया और जगह-जगह सभाएं कीं। इन सभाओं में लाला लापजत राय को भी बुलाया गया। मार्च 1907 की लायलपुर की सभा में पुलिस की नौकरी छोड़ आंदोलन में शामिल हुए लाला बाँके दयाल ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ शीर्षक से एक कविता सुनाई। बाद में यह कविता इतनी लोकप्रिय हुई कि उस किसान आंदोलन का नाम ही ‘पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन’ पड़ गया।


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इस एक साल के दौरान सरदार अजीत सिंह के भाषणों की गूंज अंग्रेजी हुकूमत के कानों में चुभने लगी थी। अंग्रेज सरकार सरदार अजीत सिंह को शांत कराने का कोई मौका तलाश रही थी और यह मौका उन्हें 21 अप्रैल 1907 को मिल ही गया। रावलपिंडी की एक सभा में अजीत सिंह ने ऐसा भाषण दिया, जिसे अंग्रेज सरकार ने बागी और देशद्रोही भाषण माना। उन पर आईपीसी की धारा 124-ए के तहत केस दर्ज किया गया। हालांकि आंदोलनों का असर यह रहा कि अंग्रेज सरकार ने तीनों कानूनों को वापस ले लिया, मगर लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को छह महीने के लिए बर्मा की मांडले जेल में डाल दिया।

मांडले जेल से निकलने के बाद अजीत सिंह दिसंबर 1907 में आयोजित हुई सूरत कांग्रेस में भाग लेने गए, जहां लोकमान्य तिलक ने अजीत सिंह को ‘किसानों का राजा’ कह कर एक ताज पहनाया। अजीत सिंह ने किसान आंदोलन के अलावा पंजाब औपनिवेशीकरण कानून और पानी के दाम बढ़ाने के खि‍लाफ भी विरोध प्रदर्शन किए।

इसके बाद सरदार अजीत सिंह अपने साथी क्रांतिकारी सूफी अंबा प्रसाद के साथ ईरान चले गए और वहां अगले दो साल रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में लगे रहे। दोनों ने मिलकर ऋषिकेश लेथा, जिया उल हक, ठाकुर दास धुरी जैसे कई और आंदोलनकारी खड़े किए। इसके बाद उन्होंने रोम, जिनीवा, पैरिस, रियो डी जनीरो जैसे दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में घूम-घूमकर क्रांतिकारियों को संगठित किया। साल 1918 में वह सैन फ्रांसिस्को में गदर पार्टी के संपर्क में आए और उनके साथ कई सालों तक काम किया। 1939 में यूरोप लौटने के बाद उन्होंने इटली में सुभाष चंद्र बोस की भी मदद की।

15 अगस्त 1947 को सुबह 4 बजे उन्होंने दुनिया से विदा ले ली।

Freedom Fighter Sardar Ajeet Singh-Chacha ji of Bhagat Singh
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