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रामायण मनका में श्री राम कथा | Shri Ram Katha

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इस संक्षिप्त श्री राम कथा ( Shri Ram Katha) का पाठ करने से आपको संपूर्ण रामायण पढ़ने के समान लाभ मिलेगा! इसे रामायण 108 मनका के नाम से भी जानते हैं।

इस पाठ में श्री रामचंद्रजी के जन्म से लेकर वैकुण्ठ प्रस्थान तक के जीवन का सम्पूर्ण चित्रण कुल 108 दोहों में किया गया है। अपने आप में यह संपूर्ण राम कथा (Ram Katha) है। रामायण की सभी प्रमुख घटनाओं का यहाँ संक्षेप में उद्धरण किया गया है। यह एक प्रकार से रामायण का एक मधुर भक्तिमय लघु संस्करण है। श्री तुलसीदास द्वारा जी द्वारा ही विरचित संपूर्ण रामचरितमानस को पढ़ने में 24 घंटे से थोड़ा अधिक समय लगता है जबकि श्री राम कथा- रामायण 108 मनका को पढ़ने में मात्र लगभग 1 घंटा ही लगेगा।आप चाहें तो इसे केवल सुन भी सकते हैं, तो भी अपार लाभ होगा।

श्री राम कथा का पढ़ने सुनने फल

श्री राम कथा मनका उन श्री राम भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो सम्पूर्ण रामायण को नहीं पढ़ पा रहे हैं। कहा गया है कि जो इस 108 मनका रुपी श्री राम कथा को पढ़ता है, उसे वैसा ही आशीर्वाद मिलेगा, जैसा कि वह संपूर्ण रामायण को पढ़ने से मिलता है।

लोग यह भी मानते हैं कि यदि कोई इस मनका का 108 पाठ करता है तो उसकी मनोकामना शीघ्र पूरी होती है।


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रामायण मनका 108 का घर के सभी सदस्य नित्यकर्म से निवृत्त होकर घर में मंगलवारशनिवार को या प्रतिदिन सस्वर पाठ करने से सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं । परिवार में सुख शांति , आपसी सामंजस्य , अपार प्रभु श्री राम की कृपा बनी रहती हैं ।

भक्तों की सुविधा के लिए यहाँ हिंदी और अंग्रेजी दोनों लिपियों में दोहे उपलब्ध हैं। यह संक्षिप्त मनका श्री राम कथा बहुत ही लोकप्रिय भजन है। यदि आप इसे पूरी भक्ति भाव के साथ सुनते हैं तो आपको ऐसा लगेगा की आप साक्षात् प्रभु के लीला के प्रत्यक्ष साक्षी हो रहे हों। यह पाठ बहुत चमत्कारी है ध्यानपूर्वक श्रवण करें बहुत लाभ मिलेगा।

श्री राम कथा कुमार विशु के स्वर में- Shri Ramayan Manka Katha By Kumar Vishu

कुमार विशु के स्वर में श्री रामायण मनकाराम कथा की प्रस्तुति बड़ी मनमोहक संगीतमय है। मैं स्वयं प्रायः यही सुनाता हूँ। यह प्रस्तुति १ घंटे की है और घर में एकांत में सुनाने का अलावा आप लम्बी ड्राइव पर जाते हुए भी इसे सुन सकते हैं। स्वयं सुनकर निर्णय करें।

श्री राम कथा सरिता जोशी के स्वर में-Shri Ramayan Manka Katha By Sarita Joshi

सरिता जोशी जी के स्वर में यह श्री रामायण मनका कथा बड़ी मधुर,स्पष्ट भावमय प्रस्तुति है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है की ये केवल आधे घंटे (लगभग ३६ मिनट ) में पूर्ण हो जाती है। यदि आपके पास समय का आभाव है तो इसे अवश्य सुने। मात्र आधे घंटे में सम्पूर्ण रामायण का फल , अब इसे अधिक सुविधाजनक क्या होगा ?

कुमार विशु और सरिता जोशी दोनों की प्रस्तुतियां सुन्दर हैं। आपको जो अच्छा लगे सुने और श्री राम कथा के श्रवण का पुण्य अर्जित करें।

श्री रामायण मनका – राम कथा : Shri Ram Katha Manka

प्रस्तुत हैं श्री रामायण मनकाराम कथा के पदाक्षर (Lyrics) बोल अर्थ सहित। अर्थ लिखने की प्रक्रिया अभी भी जारी है, शीघ्र ही आप सभी पदों के अर्थ पूर्ण पाएंगे।

मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदशरथ अजिर बिहारी।।
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

अर्थ : अर्थ: “हे प्रभु राम आप सर्वदा सुबह कल्याण का भण्डार है और दुर्भाग्य को दूर करने वाले हैं। हे दशरथ जी के आंगन में विहार करने वाले अजर अमर भगवान राम आप मुझ (भक्तों ) पर दया करें।

हरि अनंत हरि कथा अनंता कहहि सुनहि बहु विधि सब सन्ता।।
राम सिया राम सिया राम जय जय राम

अर्थ:  श्री हरि (भगवान विष्णु अवतार प्रभु राम ) अनंत हैं और उनकी कथाएं भी अनंत हैं। इन कथाओं सब संत जन विभिन्न प्रकार से कह-सुन कर आनन्दित होते हैं।

भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे, दूर करो प्रभु दुख हमारे।
दशरथ के घर जन्मे राम।।1।।

अर्थ : हे प्रभु जब भक्तों पर आपत्ति पड़ी तब उन्होंने आपको पुकारा है कि आप उनके दुःख दूर करें। भक्तों कि ऐसी ही पुकार पर दशरथ जी के घर प्रभु ने राम जी के रूप में जन्म लिया।।

विश्वामित्र मुनिश्वर आए , दशरथ भूप से वचन सुनाए ।
संग मे भेजे लक्ष्मण राम।।2।।

अर्थ : (प्रभु श्री राम के किशोर वय होने पर) विश्वामित्र मुनि ने आकर राजा दशरथ से कहा कि राम लक्ष्मण को उनके साथ (उनके वन स्थित आश्रम में यज्ञ की रक्षा के लिए ) भेजा जाय।

वन में जाय ताड़का मारी, चरण छुआय अहिल्या तारी।
ऋषियों के दुख़ हरते राम।।3।।

अर्थ: वन में जाकर प्रभु श्री राम ने तड़का राक्षसी को मारा फिर बाद में उनके चरण स्पर्श से (शिला बनी हुयी गौतम ऋषि की पत्नी ) अहिल्या का उद्धार हुआ। इस प्रकार प्रभु श्री राम ने (राक्षसों का वध करके और यज्ञ की रक्षा करके) ऋषियों के दुःख को समाप्त किया।

जनकपुरी रघुनंदन आए , नगर निवासी दर्शन पाए।
सीता के मन भाए राम।।4।।

अर्थ: वन में ऋषियों के कष्ट दूर करने के बाद श्री राम और लक्ष्मण (गुरु विश्वामित्र के साथ ) जनकपुर आये जहाँ नगर निवासी उनेक दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुए। वहीँ (पुष्प वाटिका में दर्शन होने पर ) सीताजी को भी प्रभु श्री राम भा गए।

रघुनंदन ने धनुष चढ़ाया , सब राजों का मान घटाया।
सीता ने वर पाए राम।।5।।

अर्थ: श्री राम जी ने (भगवान शिवजी का) धनुष बड़ी आसानी से उठा लिया। इससे स्वयंवर में उपस्थित अन्य राजाओं को बहुत अपमान का अनुभव हुआ क्योंकि वे धनुष को हिला भी नहीं पाए थे। इस प्रकार सीताजी ने अपने मनचाहे वर श्री रामजी को प्राप्त किया।

परशुराम क्रोधित हो आए, दुष्ट भूप मन में हरषाए।
जनक राय ने किया प्रणाम।।6।।

अर्थ: भगवान परशुराम ने श्री राम द्वारा धनुष-भंग का ध्वनि सुनी और तुरंत स्वयंवर स्थान पर प्रकट हुए। (भगवन परशुराम क्षत्रिय राजाओं के शत्रु के रूप में प्रसिद्ध थे)। इसलिए वहां उपस्थित दुष्ट राजा खुश हो गए कि अब परशुराम अपने गुरु भगवान शिव के धनुष को तोड़ने के लिए क्षत्रिय राजकुमार श्री राम पर क्रोधित होंगे। इस बीच राजा जनक (सीताजी के पिता) ने परशुराम को प्रसन्न करने के लिए उन्हें प्रणाम किया और उनका स्वागत किया।

बोले लखन सुनो मुनि ज्ञानी, संत नही होते अभिमानी
मीठी वाणी बोले राम।।7।।

अर्थ : लक्ष्मणजी ने परशुरामजी से यह कहकर कि मुनि को अभिमान नहीं करना चाहिए उनकी खिल्ली उड़ाते थे, जबकि प्रभु श्री रामजी परशुरामजी के प्रति बहुत विनम्र भाव से बात करते थे।

लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो , जो कुछ दंड दास को दीजो।
धनुष तुड़ईया मैं हूँ राम।।8।।

अर्थ : श्री राम जी ने परशुरामजी से निवेदन किया कि वे लक्ष्मण के तीखे वचनों पर ध्यान न दें। जो कुछ भी दंड देना हो वह उन्हें दिया जाना क्योंकि उन्होंने भगवान शिव के धनुष को तोड़ा है, लक्ष्मण ने नहीं।

लेकर के यह धनुष चढ़ाओ , अपनी शक्ति मुझे दिखाओ।
छूवत चाप चढ़ाए राम।।9।।

अर्थ: परशुराम जी ने श्री राम जी को अपना दिव्य सारंग धनुष देकर उन्हें चाप चढाने को कहा ताकि वे प्रभु श्री राम के वास्तविक स्वरूप की पुष्टि कर सकें। प्रभु श्री राम ने धनुष लिया और उस पर तुरंत बाण चढ़ा दिया। (इससे भगवान परशुराम के सभी संदेह दूर हो गए और वे इसके तुरंत बाद वहां से चले गए।}

हुई उर्मिला लखन की नारी, श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन पियारी।
हुई मांडवी भरत के वाम ।।10।।

अर्थ: इसके पश्चात प्रभु श्री राम का विवाह सीताजी से हुआ था। भरत जी का विवाह मांडवी से, लक्ष्मणजी का विवाह उर्मिला से और शत्रुघ्न का विवाह श्रुतकीर्ति से हुआ था।

अवधपुरी रघुनंदन आए, घर-घर नारी मंगल गावे ।
बारह वर्ष बिताए राम।।11।।

अर्थ: भगवान श्री राम (और सभी भाई और उनकी पत्नियाँ) अयोध्या आए। अयोध्या के हर घर में लोगों ने मंगल गीत गाकर ख़ुशी मनाई । इस प्रकार हंसी ख़ुशी बारह वर्ष बीत गए।

गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी, राजतिलक तैयारी केनी।
कल को होंगे राजा राम।।12।

अर्थ: इसके पश्चात (राजा दशरथ) ने भगवान राम के राजतिलक के लिए गुरु वशिष्ठ से अनुमति ली थी। अब आने वाले दिनों में श्रीराम जी क राजा बनाना तय हो गया था।

कुटिल मंथरा ने बहकाई , कैकेयी ने यह बात सुनाई,
दे दो मेरे दो वरदान ।।13।।

अर्थ: लेकिन दुष्ट मंथरा की सलाह पर, कैकेयी ने राजा दशरथ से अपने दो वरदान देने के लिए कहा, जिनका प्राण राजा दशरथ ने बहुत पहले (देवासुर संग्राम में) किया था ।

मेरी विनती तुम सुन लीजो, भरत पुत्र को गद्दी दीजो।
होत प्रात वन भेजो राम।।14।।

अर्थ: कैकेयी ने वरदान में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत को राजगद्दी देने और श्री राम को अगले दिन सुबह ही वन (14 वर्ष के लिए) भेजने के लिए कहा।

धरणी गिरे भूप तत्कला, लागा हृदय शूल विशला।
तब सुमंत बुलवाए राम।।15।।

अर्थ: यह सुनते ही राजा दशरथ को ह्रदय में अपार कष्ट हुआ और वह तुरन्त भूमि पर गिर पड़े।तब मंत्री सुमंत्र ने श्री राम जी को बुलवाया।

राम पिता को शीश नवाए , मुख से वचन कहा नही जाए।
कैकेयी वचन सुनियो राम।।16।।

अर्थ: प्रभु श्री राम ने पिता को प्रणाम किया। राजा दशरथ मुख से दुःख के मारे बोली नहीं फूट रही थी। फिर कैकेयी के वचन को श्री राम ने सुना।

राजा के तुम प्राण पियारे, इनके दुख हरोगे सारे।
अब तुम वन में जाओ राम।।17।।

अर्थ: कैकेयी ने कहा की हे राम तुम राजा दशरथ के प्राणों से भी प्यारे हो। अब तुम्ही इनके दुःख को दूर करो। इसलिए इनके वचन पालन के लिए तुम वन में जाओ राम।

वन मैं चौदह वर्ष बिताओ, रघुकुल नीति अपनाओ
आगे इच्छा तेरी राम।।18।।

अर्थ: कैकेयी ने आगे कहा कि रघुकुल की वचन निभाने की परम्परा के अनुसार तुम चौदह वर्ष के लिए वन में जाओ। अब इसे निभाना न निभाना तुम्हारी इच्छा है।

सुनत वचन राघव हरषाए, माता जी के मंदिर आए,
चरण कमल में किया प्रणाम।।19।।

अर्थ : माता कैकेयी की बात सुनते ही श्री राम जी बड़े प्रसन्न हुए। फिर प्रभु माता कौशल्या के महल में आये और उन्हें प्रणाम किया।

माताजी मैं तो वन जाऊं, चौदह वर्ष बाद फिर आऊं।
चरण कमल देखूं सुख धाम।।20।।

अर्थ: भगवान ने कहा माता अब मैं चौदह वर्ष के लिए वन में रहकर फिर लौटकर सुख के धाम आपके इन चरणों में पुनः प्रणाम करूंगा।

सुनी शूल सम जब यह बानी , भू पर गिरी कौशल्या रानी।
धीरज बँधा रहे श्रीराम।।21।।

अर्थ: माता कौशल्या ने जब यह तीर के सामान चुभने वाली बात सुनी तो वह भूमि पर गिर पड़ीं। फिर श्री राम उनको धीरज बंधाते हैं।

सीताजी जब यह सुन पाई, रंगमहल से तब नीचे आईं।
कौशल्या को किया प्रणाम।।22।।

अर्थ : सीता जी ने जब यह सुना तब वह अपने महल से नीचे आयीं और माता कौशल्या को प्रणाम किया।

मेरी चूक क्षमा कर दीजो, वन जाने की आज्ञा दीजो।
सीता को समझाते राम।।23।।

अर्थ : सीता जी ने भी श्री राम संग वन जाने की आज्ञा मांगी। इस पर श्री राम जी सीता जी को समझाते हैं की यह उचित नहीं हैं।

मेरी सीख सिया सुन लीजो , सास-ससुर की सेवा कीजो।
मुझको भी होगा विश्राम।।24।।

अर्थ : भगवान श्री राम जी ने कहा कि हे सीता तुम वन न जाकर यही रहकर सास ससुर कि सेवा करना। इससे मुझे भी विश्रांति रहेगी।

मेरा दोष बता प्रभु दीजो, संग मुझे सेवा में लीजो,
अर्धांगिनी तुम्हारी राम।।25।।

अर्थ : सीता जी ने कहा प्रभु मेरा क्या दोष है जो आप मुझे अपनी सेवा में नहीं ले रहे हैं जबकि मैं आपकी पत्नी-अर्धांगिनी हूँ। इसलिए आपके हर कार्य में मेरा साथ अनिवार्य है।

समाचार सुनि लक्ष्मण आए, धनुष बाण संग परम सुहाए।
बोले संग चलूँगा राम।।26।।

अर्थ : यह समाचार सुनकर धनुष बाण धारी लक्ष्मण वहां आये और कहा कि वह भी भगवान राम के साथ वन में जायेंगे।

राम लखन मिथिलेश कुमारी, वन जाने की करी तैयारी,
रथ में बैठ गये सुखधाम।।27।।

अर्थ : इसके बाद प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और सीताजी ने वन में जाने की तयारी कर ली और रथ में बैठ गए।

अवधपुरी के सब नर नारी ,समाचार सुन व्याकुल भारी।
मचा अवध में अति कोहराम।।।28।।

अर्थ : अयोध्या के सभी स्त्री पुरुष सुनकर एकदम दुखी हो गए। चारो तरफ जैसे कोहराम मच गया।

शृंगवेरपुर रघुवर आए , रथ को अवधपुरी लौटाए।
गंगा तट पर आए राम।।29।।

अर्थ : अयोध्या से चलकर प्रभु श्री राम श्रृंगवेरपुर तक आए फिर वहां से रथ को वापस लौटा दिया। फिर प्रभु राम गंगा के तट पर पहुंचे।

केवट कहे चरण धुलवाओ, पीछे नौका में चढ़ जाओ ।
पत्थर कर दी नारी राम।।30।।

अर्थ : गंगा तट पर केवट निवेदन करता है कि प्रभु पहले आप चरण धुलवाइये फिर नाव में बैठिये क्योंकि आपके चरणों की धुल से स्पर्श से पत्थर भी स्त्री (अहिल्या ) में परिवर्तित हो गया था।( इस प्रकार कहीं आपके चरण रज के स्पर्श से मेरी नाव भी न स्त्री बन जाए फिर मैं कैसे कमाई कर परिवार का भरण पोषण करूंगा। )


लाया एक कठौता पानी, चरण कमल धोए सुख मानी।
नाव चढ़ाए लक्ष्मण राम।।31।।


उतराई में मुदरी दीनी , केवट ने यह विनती कीनी।
उतराई नही लूँगा राम।।32।।


तुम आए हम घाट उतारे , हम आएँगे घाट तुम्हारे।
तब तुम पार लगा लो राम।।33।।


भारद्वाज आश्रम पर आए, राम लखन ने शीश नवाए,
एक रात कीना विश्राम।।34।।


भाई भरत अयोध्या आए, कैकेयी को कटु वचन सुनाए।
क्यों तुमने वन भेजे राम।।35।।


चित्रकूट रघुनंदन आए, वन को देख सिया सुख पाए।
मिले भरत से भाई राम।।36।।


अवधपुरी को चलिए भाई, ये सब कैकेयी की कुटिलाई।
तनिक दोष नही मेरा राम,।।37।।


चरण पादुका तुम ले जाओ , पूजा कर दर्शन फल पाओ,
भरत को कंठ लगाए राम।।38।।


आगे चले राम रघुराया, निशाचरों का वंश मिटाया।
ऋषियों के हुए पूरन काम।।39।।


अनुसूया की कुटिया आए, दिव्य वस्त्र सिय मा ने पाए।
था मुनि अत्रि का वह धाम।।40।।


मुनि स्थान आए रघुराई , सुर्पणखा की नाक कटाई।
खर दूषण को मारे राम।।41।।


पंचवटी रघुनंदन आए, कनक मृग मारीच संग धाये।
लक्ष्मण तुम्हे बुलाते राम।।42।।


रावण साधु भेष में आया, भूख ने मुझको बहुत सताया।
भिक्षा दो यह धर्म का काम।।43।।


भिक्षा लेकर सीता आई, हाथ पकड़ रथ में बैठाई।
सूनी कुटिया देखी राम।।44।।


धरनी गिरे राम रघुराई , सीता के बिन व्याकुलताई ।
हे प्रिय सीते सीते राम।।45।।


लक्ष्मण सीता छोड़ नही आते, जनकदुलारी नही गवाँते।
बने बनाए बिगड़े काम।।46।।


कोमल बदन सुहासिनी सीते, तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते।
लगे चाँदनी जैसे घाम।।47।।


सुन री मैंना सुन रे तोता, मैं भी पँखो वाला होता,
वन वन लेता ढूँढ तमाम।।48।।


श्यामा हिरनि तू ही बता दे, जनक नंदिनी मुझे मिला दे।
तेरे जैसी आँखें श्याम।।49।।


वन-वन ढूँढ रहे रघुराई , जनक दुलारी कहीं ना पाई।
गिद्ध राज ने किया प्रणाम।।50।।


चख-चख कर फल शबरी लाई, प्रेम सहित पाए रघुराई।
ऐसे मीठे नही हैं आम।।51।।


विप्ररूप धरी हनुमत आए, चरण कमल में शीश नवाए।
कंधे पर बैठाए राम।।52।।


सुग्रीव से करी मिलाई , अपनी सारी कथा सुनाई।
बाली पहुँचाया निज धाम।।53।।


सिंहासन सुग्रीव बिठाया , मन में वह अति हरषाया ।
वर्षा ऋतु आई हे राम।।54।।


हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ, वानरपति को यूँ समझाओ।
सीता बिन व्याकुल हैं राम।।55।।


देश-देश वानर भिजवाए , सागर के सब तट पर आए।
सहते भूख प्यास और घाम।।56।।


संपाती ने पता बताया, सीता को रावण ले आया।
सागर कूद गये हनुमान।।57।।


कोने-कोने पता लगाया, भगत विभीषण का घर पाया।
हनुमान ने किया प्रणाम।।58।।


अशोक वाटिका हनुमत आए, वृक्ष तले सीता को पाए।
आँसू बरसे आठो याम।।59।।


रावण संग निशाचर लाके , सीता को बोला समझाके।
मेरी ओर तुम देखो वाम।।60।।


मंदोदरी बना दूं दासी, सब सेवा में लंकवासी।
करो भवन चलकर विश्राम।।61।।


चाहे मस्तक कटे हमारा, मैं नही देखूं वदन तुम्हारा।
मेरे तन मन धन हैं राम।।62।।


उपर से मुद्रिका गिराई, सीताजी ने कंठ लगाई।
हनुमान ने किया प्रणाम।।63।।


मुझको भेजा है रघुराया, सागर कूद यहाँ मैं आया।
मैं हूँ रामदास हनुमान।।64।।


भूख लगी फल खाना चाहूं, जो माता की आज्ञा पाउ।
सबके स्वामी हैं श्रीराम।।65।।


सावधान होकर फल खाना, रखवालों को भूल ना जान।
निशाचरो का है यह धाम।।66।।


श्री हनुमत ने वृक्ष उखाड़े, देख देख माली ललकारे।
मार मार पहुँचाए धाम।।67।।


अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुँचाया, इंद्रजीत फाँसी ले आया।
ब्रह्म पाश से बँधे हनुमान।।68।।


सीता को तुम लौटा दीजो , उनसे क्षमा याचना कीजो।
तीन लोक के स्वामी राम।।69।।


भगत विभीषण ने समझाया, रावण ने उसको धमकाया।
सन्मुख देख रहे हनुमान।।70।।


रूई तेल घृत वसन मंगाई, पूंछ बाँधकर आग लगाई
पूंछ घुमाई हैं हनुमान।।71।।


सब लंका में आग लगाई, सागर में जा आग बुझाई।
हृदय कमल में राखे राम।।72।।


सागर कूद लौट कर आए, समाचार रघुवर ने पाए।
जो माँगा सो दिया इनाम।।73।।


वानर रीछ संग में लाए, लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए।
लगे सुखाने सागर राम।।74।।


सेतु कपि नल-नील बनावे, राम राम लिख शिला तिरावें।
लंका पहुँचे राजा राम।।75।।


अंगद चल लंका में आया, सभा बीच में पाँव जमाया।
बालीपुत्र महाबलधाम।।76।।


रावण पाँव हटाने आया, अंगद ने फिर पाँव उठाया।
क्षमा करें तुझको श्रीराम।।77।।


निशाचरों की सेना आई, गरज-गरज के हुई लड़ाई।
वानर बोलें जय सियाराम।।78।।


इंद्रजीत ने शक्ति चलाई, धरनी गिरे लखन मुरझाई।
चिंता करके रोए राम।।79।।


जब मैं अवधपुरी से आया, हाय पिता ने प्राण गँवाया।
वन में चुराई गयी भाम।।80।।


भाई तुमने भी छिटकाया जीवन में कुछ सुख नही पाया।
सेना में भारी कोहराम।।81।।


जो संजीवनी बूटी लाए, तो भाई जीवित हो जाए।
बूटी लाएगा हनुमान।।82।।


जब बूटी का पता ना पाया, पर्वत ही ले करके आया।
कालनेम पहुँचाया धाम।।83।।


भक्त भरत ने बाण चलाया, चोट लगी हनुमत लंगड़ाया।
मुख से बोले जय सियाराम।।84।।


बोले भरत बहुत पछता कर, पर्वत सहित बाण बैठकर,
तुम्हे मिला दूं राजा राम।।85।।


बूटी लेकर हनुमत आया, लखनलाल उठ शीश नवाया,
हनुमत कंठ लगाए राम।।86।।


कुम्भ्करण उठकर तब आया, एक बाण से उसे गिराया,
इंद्रजीत पहुँचाया धाम।।87।।


दुर्गा पूजन रावण कीनो, नौ दिन तक आहार ना लीनो।
आसन बैठ किया है ध्यान।।88।।


रावण का व्रत खंडित कीना, परमधाम पहुँचा ही दीना।
वानर बोले जय सियाराम।।89।।


सीता ने हरि दर्शन कीना,चिंता शोक सभी तज दीना।
हंसकर बोले राजा राम।।90।।


पहले अग्नि परीक्षा पाओ, पीछे हमारे निकट आओ ।
तुम हो पतिव्रता हे वाम।।91।।


करि परीक्षा कंठ लगाई, सब वानर सेना हर्षाई ।
राज्य विभीषण दीना राम।।92।।


फिर पुष्पक विमान माँगाया, सीता सहित बैठे रघुराया।
दंडक वन में उतरे राम।।93।।


ऋषिवर सुन दर्शन को आए, स्तुति कर वो मन में हरषाए ।
तब गंगा तट आए राम।।94।।


नंदी ग्राम पवनसुत आए, भगत भरत को वचन सुनाए।
लंका से आए हैं राम।।95।।


कहो विप्र तुम कहाँ से आए , ऐसे मीठे वचन सुनाए।
मुझे मिला दो भैया राम।।96।।


अवधपुरी रघुनंदन आए, मंदिर-मंदिर मंगल छाये ।
माताओं को किया प्रणाम।।97।।


भाई भरत को गले लगाया, सिंहासन बैठे रघुराया।
जग ने कहा है राजा राम।।98।।


सब भूमि विप्रो को दीनी, विप्रो ने वापस दे दीनी।
हम तो भजन करेंगे राम।।99।।


धोबी ने धोबन धमकाई, रामचंद्र ने यह सुन पाई।
वन में सीता भेजी राम।।100।।


वाल्मीकि आश्रम में आई, लव व कुश होये दो भाई।
धीर वीर ज्ञानी बलवान।।101।।


अश्वमेध यज्ञ कीना राम, सीता बिन सूने सब काम।
लव कुश वहाँ दियो पहचान।।102।।


सीता राम बिना अकुलाई, भूमि से यह विनय सुनाई।
मुझको अब दीजो विश्राम।।103।।


सीता भूमि माई समाई, देखके चिंता की रघुराई।
बार बार पछताए राम।।104।।


राम राज में सब सुख पावें, प्रेम मगन हो हरि गुण गावें।
दुख कलेश का रहा ना नाम।।105।।


ग्यारह हज़ार वर्ष पर्यंता , राज कीन्ह श्री लक्ष्मीकांता ।
फिर बैकुंठ पधारे राम।।106।।


अवधपुरी वैकुंठ सिधाई, नर नारी सबने गति पाई।
शरणागति प्रतिपालक राम।।107।।


सब भक्तों ने लीला गाइ, मेरी भी विनय सुनो रघुराई।
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम।।108।।

Ram Manka 108
Shri Ram Darbar

Ram Katha Lyrics in English

Lyrics in English alphabets  for the convenience of those devotees  who are not Indian and  not fluent with Hindi letters::


Mangal bhavan amangal hari, dravahu sudashrath ajir bihari।।-2
Hari anant Hari katha ananta, kahahi sunahi bahu vidhi sab santa।।-2


Bheer padi jabe bhakt pukare , door karo prabhu dukh hamare।
Dasharath ke ghar janme Ram।।1।।


Vishwamitra Munishwar aaye, Dasharath bhoop se vachan sunaye,
Sang mein bheje Lakshman Ram ।।2।।


Van mein jaay Tadaka mari, charan chhuaay Ahilya Tari,
Rishiyon ke dukh harate Ram।।3।।


Janakpuri Raghunandan aaye, Nagar nivasi darshan paaye,
Sita ke man bhaaye Ram।।4।।


Raghunandan ne dhanush chadhaya , sab rajon ka maan ghataya,
Site ne var paaye Ram।।5।।


Parashuram krodhit ho aaye, dusht bhoop man mein harshaaye,
Janakrai ne kiya pranam।।6।।


Bole Lakhan suno muni gyani, sant nahi hote abhimani,
Meethi vani bole Ram।।7।।


Lakshman vachan dhyan mat deejo, jo kuchh dand das ko deejo,
Dhanush tudaiya main hoon Ram।।8।।


Lekarke yah dhanush chadhao, apani shakti mujhe dikhao,
Chhuvat chap chadhaye Ram।।9।।


Huyi Urmila Lakhan ki nari, Shrutikirti Ripusudan piyari,
Huyi Mandavi Bharat ke vam।।10।।


Awadhpuri Raghunandan aaye, ghar-ghar nari mangal gaave,
Barah varsh bitaye Ram।।11।।


Guru Vashishth se agya leeni, Rajtilak taiyari keeni,
Kal ko Raja honge Ram।।12।।


Kutil Manthara ne bahakai, Kaikeyi ne yah baat sunai,
De do mere do varadan।।13।।


Meri Vinati tum sun lijo, Bharat putra ko gaddi dijo,
Hot prat van bhejo Ram ।।14।।


Dharani gire bhoop tatkala, laga hriday shool vishala,
Tab Sumant bulvaye Ram।।15।।


Ram pita ko sheesh navaye, mukh se vachan kaha nahi jaaye,
Kaikeyi vachan suniyo Ram।।16।।


Raja ke tum pran piyare, inke dukh haroge saare,
Ab tum van mein jaao Ram।।17।।


Van mein chaudah varsh bitao, Raghukul neeti apnao,
Aage ichha teri Ram।।18।।


Sunat vachan Raghav harshaye, Mataji ke mandir aaye,
Charan kamal mein kiya pranam।।19।।


Mataji main to van jaaun, chaudah varsh baad fir aaun,
Charan kamal dekhoon sukh dhaam।।20।।


Suni shool sam jab yah vani, bhu par giri Kaushalya Rani,
Dheeraj bandha rahe Shri Ram।।21।।


Sitaji jab yah sun payin, Rangmahal se neeche aayin,
Kaushalya ko kiya pranam।।22।।


Meri chook kshama kar deejo, van jaane ki agya deejo,
Sita ko samjhate Ram।।23।।


Meri seekh Siya sun leejo, Saas-Sasur ki seva keejo,
Mujhako bhi hoga vishram।।24।।


Mera dosh bata Prabhu deejo, sang mujhe seva mein leejo,
Ardhangini tumhari Ram,।।25।।


Samachar suni Lakshman aaye, dahnush baan sang param suhaye,
Bole sang chalunga Ram।।26।।


Ram Lakhan Mithileshkumari, van jaane ki kari taiyari,
Rath mein baith gaye sukhdham।।27।।


Awadhpuri ke sab nar nari, samachar sun vyakul bhari,
Macha Awadh mein ati kohram।।28।।


Shringverpur Raghuvar aaye, rath ko Awadhpuri lautaye,
Ganga tat par aaye Ram।।29।।


Kevat kahe charan dhulwao , peechhe nauka mein chadh jaao,
Patthar kar di nari Ram।।30।।


Laya ek kathauta pani, charan kamal dhoye sukh mani,
Naav chadhaye Lakshman Ram।।31।।


Utarai men mudari deeni, Kevat ne yah vinati keeni,
Utarai nahi loonga Ram।।32।।


Tum aaye ham ghaat utare, ham aayenge ghat tumhare,
Tab tum par laga lo Ram।।33।।


Bharadwaj ashram aaye, Ram Lakhan ne sheesh navaye,
Ek rat keena vishram।।34।।


Bhai bharat Ayodhya aaye, Kaikeyi ko katu vachan sunaye,
Kyon tumane van bheje Ram।।35।।


Citrakoot Raghunandan aaye, van ko dekh Siya sukh paaye,
Mile Bharat se bhai Ram।।36।।


Awadhpuri ko chaliye bhai, ye sab Kaikeyi ki kutilai,
Tanik dosh nahi mera Ram।।37।।


Charan paduka tum le jaao, pooja kar darshan fal paao,
Bharat ko kanth lagaye Ram।।38।।


Aage chale Ram Raghuraya, Nishacharon ka vansh mitaya,
Rishiyon ke huye pooran kaam।।39।।


Anusuya ki kutiya aaye, divya vastra Siya maa ne paaye,
Tha muni Atri ka vah dhaam।।40।।


Muni sthan aaye Raghurai, Surpnakha ki naak katayi,
Khar dushan ko maare Ram।।41।।


Panchavati Raghunandan aaye, kanak mrig Marich sang dhaye,
Lakshman tumhe bulate Ram।।42।।


Ravan sadhu bhesh mein aaya, bhookh ne mujhako bahut sataya,
Bhiksha do yah dharm ka kaam।।43।।


Bhiksha lekar Sita aayi, haath pakadke rath mein baithayi,
Sooni kutiya dekhi Ram।।44।।


Dharani gire Ram Raghurai Sita ke bin vyakultai,
he priy Site Site Ram।।45।।


Lakshman Sita chhod nahi aate, Janakdulari nahi gavante
bane banaye bigade kam।।46।।


Komal badan suhasini Site, tum bin vyarth rahene jeete,
Lage chandani jaise ghaam।।47।।


Sun ri maina, sun re tota, main bhi pankhon wala hota
Van van leta dhoondh tamam।।48।।


Shyama hirani tu hi bata de, Janaknandini mujhe mila de
Tere jaisi aankhein shyam।।49।।


Van van dhoondh rahe Raghurai , Janakdulari kahin na payi
Giddharaj ne kiya pranam।।50।।


Chakh chakh kar fal shabari layi, prem sahit paye Raghurai
Aise meethe nahi hain aam।।51।।


Vipraroop dhari hanumat aaye, charan kamal mein sheesh navaye
Kandhe par baithaye ram।।52।।


Sugreev se kari milai, apani sari katha sunayi
Bali pahunchaya nij dhaam।।53।।


Sinhasan Sugreev bithaya, man mein vah ati harshaya
Varsha ritu aayi he Ram।।54।।


He bhai Lakshman tum jaao, vanarapati ko yun samjhao
Sita bin vyakul hain Ram।।55।।


Desh desh vanar bhijvaye , sagar ke sab tat par aaye,
Sahate bhookh pyas aur ghaam।।56।।


Sampati ne pata bataya, Sita ko ravan le aaya
Sagar kood gaye Hanuman।।57।।


Kone kone pata lagaya, bhagat Vibhishan ka ghar paya
Hanuman ne kiya pranam।।58।।


Ashok vatika Hanumat aaye,vriksh tale Sita ko paaye,
Aansoo barase aatho yaam।।59।।


Ravan sang nishichar lake, Sita ko bola samahake,
Meri or tum dekho vaam।।60।।


Mandodari bana doon dasi, sab seva mein Lankavasi,
Karo bhavan chalkar vishram।।61।।


Chahe mastak kate hamara, nahi dekhoon vadan tumhara,
Mere tan man dhan hain Ram।।62।।


Upar se mudrika girayi, Sitaji ne kanth lagayi,
Hanuman ne kiya pranam।।63।।


Mujhako bheja hai Raghuraya, sagar kood yahan main aaya,
Main hoon Ramdas Hanuman।।64।।


Bhookh lagi fal khana chahun, jo mata ki agya paaun,
Sabke swami hain ShriRam।।65।।


Savadhan hokar fal khana, rakhwalon ko bhool na jaana,
Nishacharon ka hai yah dhaam।।66।।


Shri Hanumat ne vriksh ukhade, dekh dekh mali lalkare,
Mar mar pahunchaye dhaam।।67।।


Akshay Kumar ko swarg pahunchaya, Indrajeet fansi le aaya,
Brahmpash se bandhe Hanuman।।68।।


Seeta ko tum lauta deejo, unse kshama yachana keejo,
Teeno lok ke swami Ram।।69।।


Bhagat Vibhishan ne samajhaya, Ravan ne usko dhamkaya.
Sanmukh dekh rahe Hanuman।।70।।


Rui Tel ghrit vasan mangayi, poonchh bandhkar aag lagayi,
Poonchh ghumayi hai Hanuman।।71।।


Sab Lanka mein aag lagayi, Sagar mein jaa aag bujhayi,
Hriday kamal mein raakhe Ram।।72।।


Sagar kood lautkar aaye, samachar Raghuvar ne paaye,
Jo manga so diya inaam।।73।।


Vanar reechh sang mein laaye, Lakshman sahit sindhu tat aaye,
Lage sukhane sagar Ram।।74।।


Setu Kapi Nal Neel banavein, Ram Ram likh shila tiravein,
Lanka pahunche Raja Ram।।75।।


Angad chala sabha mein aaya, sabha beech mein panv jamaya,
Baliputra mahabaldham।।76।।


Ravan panv hatane aaya, Angad ne fir paanv uthaya,
Kshama karein tujhako Shri Ram।।77।।


Nishacharon ki sena aayi, garaj garaj ke huyi ladai,
Vanar bolein Jai Siya Ram।।78।।


Indrajit ne skhakti chalayi, dharani gire Lakhan murjhai,
Chinta karke roye Ram,।।79।।


Jab main Awadhpuri se aaya, haay pita ne pran ganvaya,
Van mein churayi gayi bham।।80।।


Bhai tumne bhi chhitkaya, jeevan mein kuchh sukh nahi paya,
Sena mein bhaari Kohram।।81।।


Jo Sanjeevani booti laaye, to bhai jeevit ho jaaye,
Booti layega Hanuman।।82।।


Jab booti ka pata na paaya, parvat hi lekarke aaya,
Kaalnem pahunchaya dhaam।।83।।


Bhakt Bharat ne baan chalaya, chot lagi Hanumat langadaya,
Mukh se bole Jai Siyaram।।84।।


Bole Bharat bahut pachhatakar, parvat sahit baan baithakar,
Tumhe mila doon Raja Ram।।85।।


Booti lekar Hanumat aaya, Lakhanlal uth sheesh navaya,
Hanumat kanth lagaye Ram।।86।।


Kumbhkaran uthkar tab aaya, ek baan se use giraya,
Indrajit pahunchaya dhaam।।87।।


Durga pooja Ravan keeno, nau din tak ahar na leeno,
Asan baith kiya hai dhyan।।88।।


Ravan ka vrat khandit keena, Paramdham pahuncha hi deena,
Vanar bole Jai SiyaRam।।89।।


Sita ne Hari darshan kinha,chinta shok sabhi taj deenha,
Hanskar bole Raja Ram।।90।।


Pahale agni pariksha pao, peechhe hamare nikat aao,
Tum ho pativrata he vaam।।91।।


Kari pariksha kantha lagai, sab vanar sena harshai,
Rajya Vibhishan deenha Ram।।92।।


Fir Pushpak viman mangaya, Sita sahit baithe Raghuraya,
Dandak van mein utare Ram।।93।।


Rishivar sun darshan ko aaye, stuti kar vo man mein harshaye,
Tab Ganga Tat aaye Ram।।94।।


Nandigram Pavansut aaye, Bhagat Bharat ko vachan sunaye,
Lanka se aaye hain Ram।।95।।


Kaho vipra kahan se aaye, aise meethe vachan sunaye,
Mujhe mila do Bhaiya Ram।।96।।


Awadhpuri Raghunandan aaye, mandir mandir mangal chhaye,
Mataon ko kiya pranam।।97।।


Bhai Bharat ko gale lagaya, sinhasan baithe Raghuraya,
Jag ne kaha hai Raja Ram।।98।।


Sab bhoomi vipron ko deeni, vipron ne vapas kar deeni,
Ham to bhajan karenge Ram।।99।।


Dhobi ne dhoban dhamkai, Ramchandra ne yah sun paai,
Van mein Sita bheji Ram।।100।।


Valmiki ashram mein aayin , Lav Kush hoye do bhai,
Dheer veer gyani balwan,।।101।।


Ashwamedh yagya keena Ram, Seeta bin soone sab kaam,
Lav Kush vahan diyo pahachan।।102।


Sita Ram bin akulai, bhoomi se yah vinay sunai,
Mujhako ab deejo vishram।।103।।


Sita Bhoomi mai samai, dekhke chinta ki Raghurai,
Bar bar pachhataye Ram।।104।।


Ram Raj mein sab sukh paavein, prem magan ho Hari gun gaavein,
Dukh kalesh ka raha na naam।।105।।


Gyarah hazar varsh paryanta, Raj keenh Shri Lakshmikanta,
Fir Baikunth padhare Ram।।106।।


Awadhpuri vaikunth sidhayi, nar nari sabne gati paayi,
Sharanagati pratipalak Ram।।107।।


Sab bhakton ne leela gaayi, Meri bhi vinay suno Raghurai,
Bhooloon nahi tumhara naam।।108।।

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