अयोध्या तीर्थ की महिमा
अयोध्या धाम की महिमा
अयोध्या क्या है
पहले तो यह जान लें की अयोध्या है क्या :-
अकारो ब्रह्म च प्रोक्तं यकारो विष्णु रुच्यते। धकारो रुद्ररूपश्च अयोध्या नाम वर्तते।।
अयोध्या में ‘अ’ ब्रह्मा जी का स्वरूप है ‘य’ साक्षात विष्णु जी हैं और ‘ध’ रूद्र स्वरूप माना गया है। इन्हीं तीनों अक्षरों से मिलकर की अयोध्या बना है अर्थात जहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश साक्षात निवास करें वहीं अयोध्या है।
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अयोध्या महिमा चौपाई
अयोध्या बारे में और भी लिखा गया है :-
अवध मग कंकर पे कोटि रत्न वारि डारौं ,तीरथहूँ वारि डारौं सरयू की धार पै।
धवल धाम देखत ही अमरावति वारि डारौं , वारौं ध्रुवधाम एक भूप के दुवार पै।।
सची रती सचीश अवध वासिन्ह पै वारि डारौं , वारौं वैकुष्ठ अौध सौध के विहार पै।
मंगलहूँ मुदित वारौं पर्व सर्वरीश वारौं , कोटि काम वारौं कोशलेश के कुमार पै।।
भावार्थ : अवध के रास्तों के कंकर पत्थर पर करोड़ों रत्न न्योछावर हैं, और सभी तीर्थ सरयू के धारा पर न्योछावर हैं।
इस पवित्र नगरी पर स्वर्ग की अमरावती और सर्वदा स्थिर रहने वाला ध्रुव लोक, भी न्योछवार करने योग्य है।
इंद्र, शची, रति और भी सर्वोत्तम देवगण, अवध के निवासियों पर न्योछावर कर दें और तो और वैकुंठ का वैभव भी अवध पूरी के तुलना में नगण्य है। और करोड़ कामदेव और सभी सुमंगल भी फीके हैं, हमारे प्यारे कौशलेश कुमार प्रभु श्री राम के आगे।
अयोध्या तीर्थ की महिमा
अब रही बात तीर्थ की तो :-
प्रयाग को सभी तीर्थों का राजा अर्थात “तीर्थराज” कहा जाता है। परंतु अयोध्या जी एवं सरयू महारानी की महिमा इतनी है कि स्वयं तीर्थराज प्रयाग भी मानव तन रखकर सरयू में स्नान करके अपने कल्मष धोते हैं एवं अवध की गलियों में स्वयं को धन्य मानते हैं ।
अयोध्या के विषय में भगवान श्री राम का कथन
अयोध्या एवं सरयू के विषय में स्वयं भगवान श्री राम कहते हैं:–
अवधपुरी मम पुरी सुहावनि , उत्तर दिसि बह सरयू पावनि |
जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा , मम समीप नर पावहिं बासा ||
मनोहर अयोध्या पुरी के उत्तर दिशा में परम पवित्र सरयू नदी बहती है, जिसमे स्नान करने से मनुष्य बिना प्रयास के ही मेरे समीप वास करता है अर्थात मृत्यु के बाद मेरे निकट वैकुंठ धाम में निवास करता है।
जय जय श्री सीता राम