June 9, 2023
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यह शाम का समय , प्रायः गोधुलि वेला से दो घड़ी पहले का प्रहर, अपने आप में बहुत सारी रोचकता को समेटे हुए है| गंगा के किनारे बैठना और लहरों में अठखेलियाँ करती सूर्य  रश्मियों  को निहारना, कितना रोचक हो सकता है, शायद आज की भाग दौड़ और अत्यधिक मानसिक दबाव वाली कार्य संस्कृति में समझाना थोड़ा मुश्किल है|

पूर्वी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर गंगा के किनारे काफ़ी बड़े और प्राचीन घाट बने हुए हैं| पत्थर की बनी हुई सीढ़ियाँ गंगा में उतरती हुई ऐसा प्रतीत होती हैं की मानो वो गंगा की ही समृद्ध और सर्वव्यापी चेतना का ही विस्तार हों| दोपहर की तपती धूप के बाद सांझ की ठंडी हवायें गंगा किनारे बैठने का आमंत्रण देती मालूम होती हैं|

गंगा की विशेषता है कि चाहे कितनी भी गंदगी क्यों ना हो अगर तोड़ा अंतराल मिलता है तो इसका पानी पुनः शुद्ध हो जाता है| शायद यही गुण इसके पानी को हमेशा इतना मृदु और स्वच्छ रखता है|

घाट पर बैठकर गंगा का पानी हाथ में लेकर थोड़ा सिर पर लगाना , थोड़ा पीना, फिर देर तक बैठ कर नदी की अविरल धारा को देखना. यह सारी क्रियायें गंगा की ही चेतना को आत्मसात करने की एक प्रक्रिया कही जा सकती है| ऐसा करने को कोई कहता ना हो तो भी अनायास ही , यह सब हो जाता है|

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यह गंगा तट का घाट  एकांत विरही जनो के लिए समय बिताने का सहारा, दुनिया से थके हारों के लिए एक अनांत आशा स्त्रोत, साधु सन्यासियों के लिए शांति का धाम, विद्यार्थियों के लिए अध्ययन का उपयुक्त स्थान और मेरे लिए साक्षात पवित्रता का ही अवतरित रूप है|

सूरज की   किरणे  जब गंगा की लहरों पर खेलती हैं, तो ऐसा लगता है की मेरे मन में चलते हुए विचारों को ही प्रतिबिंबित कर रही हैं| अक्सर किशोर मन यही सोचता है की कल मेरा भविष्य कैसा होगा| मेरे मन का भी चित्रण दूर-दूर तक भविष्य की आशायें ढूँढ-ढूँढ कर लाता था| इस आयु में युक्ति कम और आशायें अधिक प्रबल होती हैं|

मेरा मन कभी एक सुखी पारिवारिक जीवन का चित्र, तो कभी एक आदर्श योग और संयमित जीवन की अभिलाषा देखता था, तो कभी एकदम से निपट  सन्यासी वेश की भी कल्पना करता था|  लेकिन अंततः सांसारिक जीवन का भाव ही विजयी होता प्रतीत होता था | लेकिन थोड़ी ही देर बाद विचारों के बादल धीरे धीरे छ्टने लगते थे और गंगा के पानी के उपर खेलती सूर्य की रश्मियाँ, मन को और भी स्वस्थ कर देती थीं | मन अब थोड़ा शांत होकर जीवन की सच्चाई देखने का प्रयास करने लगता था | जीवन की निस्सारता का बोध थोड़ा और भी गहरा हो चलता था| अवसाद नही, विषाद नही बस एक तटस्थता ही उचित प्रतीत होती थी| कभी मन में आता था की यहीं से उठाकर वैराग्य लेने चला जाउँ |

फिर गंगा माता बोलती सी प्रतीत होती थीं कि, पुत्र अभी तुम्हारीअवस्था और मन सन्यास लेने के योग्य परिपक्व नहीं हुआ है |

इस बीच गंगा के बीच में सूईस (गंगा डॉल्फिन) ने एक छलाँग लगाई और ध्यान तोड़ा |मैं अब आस पास के वातावरण के बारे में सचेत हुआ|   गंगा के मछुआरे सूईस को गाय के समान पूज्य समझते हैं और इसे कभी मारते नहीं हैं | नदी के बीच में  तैरती हुई नाव, मन को एक संबल सा देती प्रतीत होती थी | जैसे कह रही हो, सब ठीक हो जाएगा और सब अच्छा होगा | ऐसी भावनायें मान में प्रबल उत्साह का संचार करती थीं |

तभी नदी के दूसरे तरफ एक नाव, नव-विवाहित दूल्हा दुल्हन को गंगा माता के आशीर्वाद लेने की लिए आती दिखी | यह याद आया की सिर्फ़ जीवन समाप्ति ही नही, जीवन प्रारंभ और जीवन संग भी गंगा की विशेषता है | गंगा किनारे रहनेवाले हर गाँव के लोग गंगा के ही विस्तृत परिवार का हिस्सा हैं | गंगा साक्षी है उनके जीवन के आरंभ की, अनेक छोटी -बड़ी खुशियों का, नव-विवाहित जीवन के प्रारंभ का और जीवन की अंतिम यात्रा का भी| एक ऐसी माता जो आपके सुख दुख में हमेशा भागीदार रहती है | आप उदास हैं, या प्रसन्नचित्त, आशीर्वाद लेते हैं, या फिर तीज त्योहार मनाते हैं, गंगा सबमे खुले मन से सम्मिलित होती हैं |

दादा-दादी, नाना नानी से किस्से कहानियों में गंगा का नाम कई बार सुना था | आज उनके ना होने पर ये नदी उनकी ही प्यार भरी गोद सी प्रतीत होती है| क्यों ना हो , परम्परानुसार मेरे दादा-दादी, नाना-नानी की अस्थियों का विसर्जन भी गंगा में ही संपन्न हुआ था | प्रकृति के पॅंचतत्त्वों में विलीन होने के क्रम में, सबसे पुण्यदायक क्रिया गंगा में ही विसर्जन माना जाता है|

अब धीरे-धीरे धुन्धलका गहरा हो चुका था | दूर नदी के बीच में जाती हुई नाव मन में एक अनजाना रहस्य का भाव पैदा कर देती थी | और नाव में जलती एक मद्धम सी रोशनी कई-कई बातें कहती सी लगती थी | कुछ जीवन के इस पार की, और कुछ उस पार की बातें | देर तक बैठकर जाने क्या क्या समझा मैने उस रोशनी से | फिर याद आया कि, घर भी जाना है | फिर इस सजी संवरी शाम को , दूर कहीं बैठे हुए सन्यासियों को संध्या वंदन में प्रवृत जानकर अब मैं अपने सामयिक गंतव्य, अपने घर को चला. फिर कभी अपनी इस मूक लेकिन अति  सुंदर मुलाकात को पुनः जारी रखने के लिए |

This article has been written keeping the beauty of this place(Sundar Ghat) in mind.

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