Join Adsterra Banner By Dibhu

राम चरित मानस नाम ही क्यों रखा गया

5
(2)

तुलसीदास जी के ग्रन्थ का राम चरित मानस नाम ही क्यों रखा गया

यह पोस्ट प्रकाशित करने के बाद मैं अपने अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया। कल रात सोने से पहले कुछ कल्याण पत्रिका की प्रतियां मेरे बिस्तर के पास में राखी हुयी थी। कई दिनों से वो ऐसी ही पड़ी थी और मैंने सोचा था कभी बाद में इत्मीनान से इन्हे पढूंगा। ऐसे ही एक प्रति उठाई और बीच से एक पृष्ठ खोला। खोलते ही एक बंधु का श्री रामचरित मानस के बारे में अनुभव लेख था। पहले ही परिच्छेद में उल्लेख था की तुलसीदास जी के इस ग्रन्थ का नाम रामचरितमानस क्यों पड़ा। उन्होंने उल्लेख किया था कि इसकी रचना सर्वप्रथम भगवान शंकर जी के मानस में हुयी अतः इसका नाम श्री रामचरितमानस रखा गया।

इसके सम्बन्ध में एक स्वय गोस्वामी जी का ही कथन है :

रचि महेस निज मानस राखा। पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥

भावार्थ:-श्री महादेवजी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर पाकर पार्वतीजी से कहा। इसी से शिवजी ने इसको अपने हृदय में देखकर और प्रसन्न होकर इसका सुंदर ‘रामचरित मानस’ नाम रखा॥6॥

इस बात को त्रुटि सुधार के लिए साक्षात् भगवद प्रेरणा समझकर मैंने लेख को पुनः शोधित कर प्रकाशित करने का निर्णय लिया। ईश्वर का कोटिश धन्यवाद अन्यथा मैं इस परम पुनीत ग्रन्थ के प्रति एक अपूर्ण लेख, जिससे केवल भ्रम कि स्थिति कि उत्पन्न होती , के भयंकर अपराध से बच गया।

तुलसीदास जी पहले इसे संस्कृत में लिखना चाहते थे , परन्तु दिन में जो भी रचना करते वह रात्रि में लुप्त हो जाती। फिर भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिया और उन्हें जन भाषा अवधी में रचना करने का आदेश दिया और यह भी कहा की उनके आशीर्वाद से यह रचना सामवेद के सामान फलवती होगी।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है की शिवजी विशेषतः सामवेद के सामान ही कहा। सामवेद यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले मन्त्रों व सुन्दर स्त्रोतों का संग्रह है। यह बहुत ही शक्तिशाली एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाले होते हैं। यहाँ तक भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि,

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव: |
इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना || १0। २२ ||

अर्थात वेदों में मैं सामवेद हूँ , देवो में वासव (इन्द्र) , इन्द्रियों में मन और भूतों में चेतना ।

भगवान श्री कृष्ण ने साम वेद कि महत्ता स्वयं अपने श्री मुख से वर्णन कि है। और भगवान शिव के आशीर्वाद से श्री रामचरितमानस स्वयं सामवेद के सामान फलवती है । शाबर मंत्रो के रचयिता भगवान् शंकर के मानस में उत्पन्न उनके ही आशीर्वाद से पूरित श्री रामचरितमानस के हर पद एक शक्तिशाली मंत्र के सामान ही फल देने वाला है। इस बात में संदेह नहीं। इसी कारन से कभी संकट में पड़ने पर या विशेष प्रयोजनों से लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए श्री रामचरितमानस का सम्पुट सहित पाठ का आयोजन करते हैं।

– बैरागी

मूल लेख निम्नवत है । यह श्री रामचरित मानस के किसी भी समय पाठ किये जा सकने के महत्त्व को दर्शाता है।:-

तुलसी दास जी ने जब राम चरित मानस की रचना की,तब उनसे किसी ने पूंछा कि बाबा! आप ने इसका नाम रामायण क्यों नहीं रखा? क्योकि इसका नाम रामायण ही है.बस आगे पीछे नाम लगा देते है, वाल्मीकि रामायण,आध्यात्मिक रामायण.आपने राम चरित मानस ही क्यों नाम रखा?

बाबा ने कहा – क्योकि रामायण और राम चरित मानस में एक बहुत बड़ा अंतर है। रामायण का अर्थ है राम का मंदिर, राम का घर।जब हम मंदिर जाते है तो एक समय पर जाना होता है। मंदिर जाने के लिए नहाना पडता है। जब मंदिर जाते है तो खाली हाथ नहीं जाते कुछ फूल,फल साथ लेकर जाना होता है। मंदिर जाने कि शर्त होती है,मंदिर साफ सुथरा होकर जाया जाता है।

और मानस अर्थात सरोवर, सरोवर में ऐसी कोई शर्त नहीं होती,समय की पाबंधी नहीं होती,जाती का भेद नहीं होता कि केवल हिंदू ही सरोवर में स्नान कर सकता है,कोई भी हो ,कैसा भी हो? और व्यक्ति जब मैला होता है, गन्दा होता है तभी सरोवर में स्नान करने जाता है। माँ की गोद में कभी भी कैसे भी बैठा जा सकता है।

इसलिए जो शुद्ध हो चुके है वे रामायण में चले जाए और जो शुद्ध होना चाहते है वे राम चरित मानस में आ जाए। रामकथा जीवन के दोष मिटाती है।

“रामचरित मानस एहिनामा, सुनत श्रवन पाइअ विश्रामा”

राम चरित मानस तुलसीदास जी ने जब किताब पर ये शब्द लिखे तो आड़े (horizontal) में रामचरितमानस ऐसा नहीं लिखा, खड़े में लिखा (vertical) रामचरित मानस। किसी ने गोस्वामी जी से पूंछा आपने खड़े में क्यों लिखा?

तो गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस राम दर्शन की ,राम मिलन की सीढी है। जिस प्रकार हम घर में कलर कराते है तो एक लकड़ी की सीढी लगाते है। जिसे हमारे यहाँ नसेनी कहते है,जिसमे डंडे लगे होते है। गोस्वामी जी कहते है रामचरित मानस भी राम मिलन की सीढी है जिसके प्रथम डंडे पर पैर रखते ही श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन होने लगते है।अर्थात यदि कोई बाल काण्ड ही पढ़ ले, तो उसे राम जी का दर्शन हो जायेगा।

सत्य ही शिव है सुन्दर है!!

-भृगु ज्योतिष रिसर्च संस्थान भटिंडा

!!जय श्रीराम!!

Buy authentic Ebooks from Dibhu.com below

Prabhu Shri Ram Pooja Hymn Collection

Pooja Procedure, Shri Ram Chalisas, Rakshastrot, Stuti & Arati with Meaning in English & Hindi

1.Shodashopachar Pooja Procedure
2.Shri Ram Chalisas by Sant Haridas & Sundardas
3.Ramrakshastrot by Buhdkaushik Rishi
4.Shri Ram Stuti done by Bhagwan Shiva
5.Shri Ramchandra Kripalu Bhajman Aarti by Tulasidas ji
6.Also All Hymns: Only Transliteration & Hindi-Roman Text (For distraction free recitation during Pooja)

In case if you have any ebook transaction related query,please email to heydibhu@gmail.com.

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com