श्री जानकी स्तुतिः संस्कृत
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ।
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥ १॥
दारिद्र्यरणसंहत्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् ।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥ २॥
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ।
पौलस्त्यैश्वर्यसन्त्री भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥ ३॥
पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥ ४॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥ ५॥
नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥ ६॥
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षस्थलालयाम् ।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥ ७॥
आह्लादरूपिणीं सिद्धि शिवां शिवकरी सतीम् ।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥ ८॥
इति श्रीस्कन्दमहापुराणे सेतुमाहात्म्ये श्रीहनुमत्कृता
श्रीजानकीस्तुतिः सम्पूर्णा ।
हिन्दी भावार्थ -
श्री हनुमान्जी बोले-- जनकनन्दिनी ! आपको नमस्कार करता हूँ । आप सब पापों का नाश तथा दारिद्र्य का संहार करनेवाली हैं।
भक्तों को अभीष्ट वस्तु देनेवाली भी आप ही हैं । राघवेन्द्र श्रीरामको आनन्द प्रदान करनेवाली विदेहराज जनक की लाड़ली श्रीकिशोरीजी को मैं प्रणाम करता हूँ ।
आप पृथ्वी की कन्या आर विद्या (ज्ञान) -स्वरूपा हैं, कल्याणमयी प्रकृति भी आप ही हैं । रावण के ऐश्वर्य का संहार तथा भक्तों के अभीष्टका दान करनेवाली सरस्वतीरूपा भगवती सीता को
मैं नमस्कार करता हूँ ।
पतिव्रताओं मे अग्रगण्य आप श्रीजनकदुलारी को मैं प्रणाम करता हूँ । आप सबपर अनुग्रह करनेवाली समृद्धि,
पापरहित और विष्णुप्रिया लक्ष्मी हैं । आप ही आत्मविद्या, वेदत्रयी तथा पार्वतीस्वरूपा हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।
आप ही क्षीरसागर की कन्या महालक्ष्मी हैं, जो भक्तों को कृपा-प्रसाद प्रदान करनेके लिये सदा उत्सुक रहती हैं । चन्द्रमा की भगिनी (लक्ष्मीस्वरूपा) सर्वांगसुन्दरी सीताको मैं प्रणाम करता हूँ । धर्म की आश्रयभूता करुणामयी वेदमाता गायत्रीस्वरूपिणी श्रीजानकीको मैं नमस्कार करता हूँ ।
आपका कमल में निवास है, आप ही हाथमे कमल धारण करनेवाली तथा भगवान् विष्णुके वक्षःस्थल में निवास
करनेवाली लक्ष्मी हैं, चन्द्रमण्डल में भी आपका निवास है, आप चन्द्रमुखी सीतादेवी को मैं नमस्कार करता हूँ ।
आप श्रीरघुनन्दन की आह्लादमयी शक्ति हैं, कल्याणमयी सिद्धि हैं और भगवान् शिव की अर्द्धांगिनी कल्याणकारिणी सती हैं । श्रीरामचन्द्रजी की परम प्रियतमा जगदम्बा जानकी को मैं प्रणाम करता हूँ । सर्वांगसुन्दरी सीताजी का मैं अपने हृदयमे निरन्तर चिन्तन करता हूँ ।
इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराणान्तर्गत सेतुमाहात्म्य में श्री जानकी स्तुति सम्पूर्ण हुई ।
Skandapurana 46/50/57
Reference : Sanskritdocuments.org
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