राम नाम जप का महत्त्व पर दोहे: Ram Naam Jap Ka Mahatv
राम नाम नरकेसरी, कनक कशिपु कलिकाल।
जापक जल प्रहलाद जिमी, पालिहि दलि सुरसाल ।।
Ram naam Narkesari, Kanak Kashipu Kalikal।
Jaapak jal Prahalad jimi, Paalihi dali sursal।।
अर्थ: श्री रामजी का नाम भगवान नरसिंह के सामन है और कलियुग , हिरण्यकश्यप राक्षस के समान । राम नाम भजने वाले भक्तजन प्रहलाद के समान हैं ।राम नाम कलियुग का हनन करके जापक और देवताओं की रक्षा करता है।
राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥
Ram Ram Rameti Rame Rame Manorame।
Sahasra Na Tattulya Ramnam varanane।।
अर्थ: शिवजी ने पार्वती जी से कहा,”हे सुमुखि पार्वती ‘राम-राम’ के इस सुंदर नाम जप में मन डूबा रहना ही सबसे अच्छा है। भगवान विष्णु के हजार नाम के बराबर, एक राम नाम का जप है ।
Meaning: Shivaji said to Parvati ji “Saying Ram Ram , like this, Mind is immersed(Rame) in this beautiful name. Rather than saying thousand names of God(Vishnu) , one single Ram name chant is equal to that o beautiful faced ( Parvati).
रामनाम का अंक है, सब साधन है सून।
अंक गये कुछ हाथ नही, अंक रहे दस गून।।
अर्थ: श्री राम जी के नाम बिना सारे साधन (जप, ताप, वैराग्य आदि) शून्य के समान हैं। श्री राम जी का नाम आँक के समान है । जैसे अंक शून्य के पहले लगा देने पर दस गुना हो जताता है, उसी प्रकार, जप, तप , वैराग्य आदि दस गुना फल देंगे, अगर श्री रामजी का नाम साथ में लिया जाय तो।
राम भक्ति के प्रभाव पर दोहे-Ram Bhakti ka Prabhav
सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥
SakalVighna vyapahi nahi tehi। Ram Sukripa bilokahin jehi।।
अर्थ: श्री राम की कृपा जहाँ भी हो वहाँ किसी प्रकार के विघ्न नहीं आते हैं।
Meaning: All kinds of obstacles cannot not take place wherever Shri Ram’s benevolence is present.
दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥
Dahik Davik Bahutik Tapa। Ram Raj mah kahu nahi vyapa।।
अर्थ: शारीरिक कष्ट से उत्पन्न दुःख, दैवीय हस्तक्षेप के कारण दुःख, और भौतिकवादी खोज से संबंधित दुःख; ये सभी समस्याएं राम के राज्य में कहीं भी मौजूद नहीं थीं।
Meaning: Sorrows arisen out of bodily discomfort , sorrows dues to divine intervention, and sorrows related to materialistic pursuit; all of these problems did not exist anywhere in Kingdom of Ram.
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
Bayar na kar kahu san koi। Ram Pratap vishamat khoi।।
अर्थ: जिस व्यक्ति पर भगवान राम की कृपा है, उसका कोई शत्रु नहीं हो सकता। भगवान राम की कृपा से उनके प्रति सभी वैर और मतभेद दूर हो जाते हैं।
Meaning: No one can be enemy of a person who is blessed by Lord Rama. All enmity and difference towards him are lost due to Lord Ram’s grace.
राम चरण पंकज प्रिय जिन्हहीं।विशय भोग बस करहिं कि तिन्हहीं।
अर्थ: जिन्हें श्रीराम के चरण कमल प्रिय हैं उन्हें विशय भोग कभी बस में नहीं कर सकते हैं।
शठ सेवक की प्रीति रूचि , रखिहहि राम कृपाल।
उपल किए जल जान जहि, सचिव सुमति कपि भालू।।
Shath sevak ki preeti ruchi , Rakhihahi Ram Kripal।
Upal kiye jal jaan jahi, Sachiv sumati kapi bhalu।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की प्रभु श्री राम मुझ जैसे दुष्ट सेवक की भी प्रीति और रूचि को अवश्य रखेंगे जैसे उन्होने पत्थरों को भी जहाज़ बना दिया और बंदरों और भालुओं को भी मंत्री।
प्रभु तरु तर कपि डार पर, पीकिये आप समान।
तुलसी कहु ना राम से, साहिब शील निधान।।
Prabhu taru tar Kapi daar par, Peekiye aap samaan।
Tulasi kahu na Ram se, Sahab sheel nibhan।।
अर्थ: प्रभु श्री राम वृक्ष के नीच बैठने वाले हैं और बंदर वृक्ष की शाखाओं पर बैठने वाले लेकिन फिर भी प्रभु ने उनको अपने समान बना दिया। तुलसीदास जी कहते हैं की प्रभु श्री राम सा शीलवान और सज्जन स्वामी कहाँ मिलेगा,अर्थात कहीं नही।
राम से विमुख होने का कुफल पर दोहे-Ram Se Vimukh Hone Ka Kufal
ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुॅ मन विश्राम
भूत द्रोह रत मोह बस राम विमुख रति काम।
अर्थ: जो जीवों का द्रोही मोह माया के अधीन ईश्वर भक्ति से विमुख और काम वासना में लिप्त है उसे सपना में भी धन संपत्ति शुभ शकुन और हृदय मन की शान्ति नहीं हो सकती है।
राम काम तरु परहित , सेवत काल आरू ठूंठ।
स्वारथ परमारथ चहत, सकल मनोरथ झूठ।।
अर्थ: जो व्यक्ति प्रभु राम रूपी कल्पवृक्ष से विमुख होकर ढूंठ वृक्ष रूपी कलियुग का गुणगान करता है अर्थात् पाप कर्म करता हुआ उससे स्वार्थ व मोक्ष की इच्छा रखता है, उसकी कामना कभी पूरी नहीं होती। उसे न तो मोक्ष मिलता है और ना ही संसारिक सुख।
रसना सांपिन वदन बिल, जे न जपहि हरिनाम।
तुलसी प्रेम ना राम सो , ताही विधाता वाम।।
अर्थ: जो लोग हरिनाम को नही जपते उनकी जीभ साँप के समान और मुख सर्प के बिल के समान है। जिसे श्री राम से प्रेम नही उससे तो विधाता ही रुष्ट हैं।
रामनाम अवलंब बिनु , परमारथ की आस।
बरसत वारिद बूँद गहि , चाहत चढ़न अकाश ।।
अर्थ: श्री राम जी के नाम के आसरे के बिना यदि कोई परलोक में कल्याण चाहता है तो यह उसी प्रकार से व्यर्थ है जैसे कोई बारिश के पानी को पकड़ के आकाश में चढ़ना चाहे।
राम भक्ति के नियम पर दोहे- Ram Bhakti ke Niyam Par Dohe
सुनहु राम कर सहज सुभाउ।जन अभिमान न राखहिं काउ।
संसृत मूल सूलप्रद नाना।सकल सोक दायक अभिमाना।
अर्थ: यह प्रभु का स्वभाव है कि वे किसी भक्त में अभिमान नही रहने देते हैं। यह घमंड जन्म मृत्यु रूपी संसार की जड़ है।यह अनेकों तकलीफों और सभी दुखों का दाता है।
बिनु संतोश न काम नसाहीं।काम अछत सुख सपनेहुॅ नाहीं।
राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा।थल बिहीन तरू कबहुॅ कि जामा।
अर्थ: संतोश बिना इच्छाओं का नाश और इच्छाओं के रहते स्वप्न में भी सुख नहीं हो सकता है। बिना ईश्वर भक्ति के कामनाओं का विनाश नहीं हो सकता जैसे कि बिना धरती क्या पेड़ उग सकता है।
बिनु विस्वास भगति नहि तेहि बिनु द्रवहि न रामु
राम कृपा बिनु सपनेहुॅ जीव न लह विश्राम।
अर्थ: विश्वास किये बिना भक्ति नही और प्रभु द्रवित होकर कृपा नही करते।ईश्वर की कृपा बिना हम सपने में भी शान्ति नहीं पा सकते हैं।
राम भक्त के लक्षण- Ram Bhakt Ke Lakshan
सकल कामना हीन वे, राम भगति रस लीन।
सदा चरण यो रत रहे, तुलसी ज्यों जल मीन।।
अर्थ: जो लोग श्री रामजी की भक्ति में लीन रहते हैं उनकी सारी भौतिक इच्छायें समाप्त हो जाती हैं। वो श्री राम जी के चरणो केध्यान में इस तरह डूबे रहते हैं, जैसे जल में मछली। श्री राम जी के चरणो के ध्यान को छोड़ कर क्षण भर भी रहना उन्हे स्वीकार नही है।
राम भक्ति का फल पर दोहे-Ram Bhakti ka Fal Par Dohe
सीता लखन समेत प्रभु, सोहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरसत सुमन, सगुन सुमंगल वास।।
अर्थ: श्री राम चंद्रजी माता सीता और लक्ष्मण जी सहित शोभायमान हो रहे हैं। उनको देखकर देवता हर्षित हो कर फूल बरसा रहे हैं । जहाँ प्रभु हैं वहाँ सभी सुमंगल भी बसते हैं।
जपहिं नामु जन आरत भारी।मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।
राम भगत जग चारि प्रकारा।सुकृति चारिउ अनघ उदारा।
अर्थ: संकट में पडे भक्त नाम जपते हैं तो उनके समस्त संकट दूर हो जाते हैं और वे सुखी हो जाते हैं। संसार में चार तरह के अर्थाथी;आर्त;जिज्ञासु और ज्ञानी भक्त हैं और वे सभी भक्त पुण्य के भागी होते हैं।
वचन वेश के सो बने , सो बिगरै परिणाम।
तुलसी मनपे जो बने, बनी बनाई राम ।।
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की छल- कपट भारी वेश और बातों से जो बात बनती है ,वही बात खुल जाने पर बहुत जल्दी बिगड़ भी जाती है। लेकिन जो कार्य स्वाभाविक रूप से बनते है, वो श्री राम जी की कृपा से बनते ही चले जाता है।
राम नाम पर नाम तें, प्रीति प्रतीति भरोस।
सो तुलसी सुमिरत सकल, सगुन सुमंगल कोस।।
अर्थ: प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि जो रामनाम के अधीन है और रामनाम में ही जिसका प्रेम और विश्वास है, रामनाम का स्मरण करते ही वह सभी सद्गुणों और श्रेष्ठ मंगलों का खजाना बन जाता है।
स्वारथ सुख सपनेहु अगम, परमारथ ना प्रवेश।
राम नाम सुमिरत मिटहि , तुलसी कठिन कलेश।।
Swarath sukh sapanehu agam, Paramarath na pravesh।
Ram naam sumart mitahi, Tulasi kathin kalesh।।
अर्थ: स्वार्थी व्यक्ति जिनके लिए सपने में भी सुख सुलभ नही है और, परमार्थ में मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में जिनका प्रवेश नही है। ऐसे लोगों को भी राम नाम जपने से कठिन से कठिन दुखों से भी छुटकारा मिल जात है । अर्थात, जिनका स्वार्थ नही सिद्ध होता और न ही परमार्थ सिद्ध होता है, ऐसे लोगों के भी इन दोनो लक्ष्यों की प्रति के लिए, रास्ते के क्लेश और दुख सिर्फ़ राम नाम जपने से मिट जाते हैं।
निज दूषन गुन राम के, समुझें तुलसीदास।
होइ भलो कलिकाल हूँ, उभय लोक अनयास।
Nij dooshan gun ram ke ,Samujhe Tulasidas।
Hoi bhali kalikalhu, Ubhayalok aniyas।।
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की जो मनुष्य अपने दोषो और श्री रामजी के गुणो को समझ लेता है , इस कलियुग में उसके इह लोक और परलोक दोनो ही सुधार जाते हैं ।
सुधा साधु सुर तरु सुमन, सुफल सुहावनी बात।
तुलसी सीता पति भगती, सगुण सुमंगल सात।।
Sudha sadhu sur taru suman, Sufal suhavani baat।
Tulasi Sitapati bhagati, Sagun sumangal saat।।
अर्थ: : तुलसीदासजी कह रहे हैं की अमृत, साधु, कल्प वृक्ष, सुंदर पुष्प, सुंदर फल और सुहावनी बात और सीता पति श्री राम जी की भक्ति ये सात मंगलकारी हैं । ये हमेशा सुख देने वाले है और शुभ ही करते हैं ।
राम भक्ति कैसे करें पर दोहे-Ram Bhakti Kaise Karein Par Dohe
सकल कामना हीन जे राम भगति रस लीन
नाम सुप्रेम पियुश हृद तिन्हहुॅ किए मन मीन।
जो सभी इच्छाओं को छोड कर राम भक्ति के रस मेंलीन होकर राम नाम प्रेम के सरोवर में अपने मन को मछली के रूप में रहते हैं और एक क्षण भी अलग नही रहना चाहते -वही सच्चा भक्त है।
कामिही नारी पियारि जिमी, लोभिहि प्रिय जिमी दाम।
तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहू मोहि राम।।
अर्थ: जिस प्रकार से कामातुर व्यक्ति को स्त्री प्रिय होती है और लालची व्यक्ति को धन, उसी प्रकार या उससे भी बढ़कर तुलसीदासजी तो प्रभु श्री राम जी से प्रेम हैं। उनका प्रभु से प्रेम संसार की हर वस्तु से बढ़कर है।
राम का ध्यान कैसे करे-Ram Ka Dhyan Kaise Kare Par Dohe
Ram Bhakti Par Important Tips wale Dohe
राम वाम दिशि जानकी, लखन दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्याणमय , सुर तरु तुलसी तोर।।
अर्थ: श्री रामजी के बाईं तरफ माता सीता और दाहिनी तरफ लक्ष्मण जी खड़े है। इस प्रकार से ध्यान करना सभी कल्याण को देने वाले कल्प वृक्ष के समान है।
मज्जहिं सज्जन वृंद बहु , पावन सरजू नीर।
जपहि राम धरि ध्यान उर, सुंदर श्याम शरीर।।
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की पवित्र सरयू नदी के किनारे भले लोगों का बहुत बड़ा समूह स्नान करता हैं। वो श्री राम जी के सुंदर श्याम रूप का का हृदय में ध्यान करते हैं।
जड़, चेतन, जग,जीव,जत, सकल राम मय जान।
वंदौ सबके पद कमल, सदा जोरि जुग पानी।।
अर्थ: जो जड़ हैं , गति हीन हैं, और जीवित हैं, संसार में जीतने भी जीव जन्तु निष्प्राण पदार्थ हैं , सभी को ऱाममय समझो। मैं हाथ जोड़कर इन सबके चरण कमल की वंदना करता हूँ क्योंकि सबमे श्री राम ही हैं।
चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत।
राम नाम जप जापकहि, तुलसी अभिमत देत।।
अर्थ: चित्रकूट ही वह पावन धाम है जहाँ आज भी श्री राम , सीता और लक्ष्मण के साथ सदा सर्वदा मौजूद रह कर अपने भक्तों का कल्याण करते हैं।तुलसीदास कहते है की वह रामप्रभु रामनाम का जप करनेवाले को इच्छित फल देते है।
पय आहार खाई जपु, राम नाम षट मास।
सकल सुमंगल सिद्ध सब, करतल तुलसीदास।।
अर्थ: सिर्फ़ दूध पीकर श्री रामजी का नाम छह (6) महीने जपने से सभी सुमंगल और सिद्धियाँ हस्तगत हो जाती हैं। ऐसा श्री राम जी के नाम का प्रताप है।
राम भक्ति न करने पर धिक्कार के दोहे: Ram Bhakti Na Karane Par Dhikkar Ke Dohe
जिन्ह हरि भगति हृदय नहि आनी। जीवत सब समान तेइ प्राणी।
जो नहि करई राम गुण गाना।जीह सो दादुर जीह समाना।
जिसने भगवान की भक्ति को हृदय में नही लाया वह प्राणी जीवित मूर्दा के समान है।जिसने प्रभु के गुण नही गाया उसकी जीभ मेढक की जीभ के समान है।
सेए सीताराम नही, भजे ना शंकर गौरी।
जनम गँवायो व्यर्थ ही, अरत पराई पौरी।।
अर्थ: जिसने सीता राम की सेवा(पूजा, भक्ति , भजन ) नही की या शंकर पार्वती का भजन नही किया, उन्होंने किसी दूसरे द्वार पर माथा टेककर इस जन्म को व्यर्थ ही गंवा दिया।
राम नाम की महिमा के दोहे-Shri Ram Ki Mahima Par dohe
राम नाम की महिमा अपरम्पार है। निम्न दोहे इसी को स्पष्ट करते हैं।
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता।कहहि सुनहि बहु बिधि सब संता।
रामचंन्द्र के चरित सुहाए।कलप कोटि लगि जाहि न गाए।
अर्थ: भगवान अनन्त हैं, उनकी कथा भी अनन्त है। संत लोग उसे अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं। श्रीराम के सुन्दर चरित्र करोडों युगों मे भी नही गाये जा सकते हैं।
रे मन सब सो नीरस है, सरस राम सो होहि।
भलो सिखवान देत हैं, निस दिन तुलसी तोहि ।।
अर्थ: यह सब संसार नीरस और तत्वहीन है और सिर्फ़ राम के प्रताप से ही सब सरस होता है। यह हित करने वाली सीख तुलसी सदा सबसे कहते हैं।
तुम्ह परिपूरन काम जान सिरोमनि भावप्रिय
जन गुन गाहक राम दोस दलन करूनायतन।
प्रभु पूर्णकाम सज्जनों के शिरोमणि और प्रेम के प्यारे हैं। प्रभु भक्तों के गुणग्राहक बुराईयों का नाश करने बाले और दया के धाम हैं
सत्संग से राम भक्ति पर के दोहे-Satsang Se Ram Bhakti Par Dohe
मुद मंगलमय संत समाजू।जो जग जंगम तीरथ राजू।
राम भक्ति जहॅ सुरसरि धारा।सरसई ब्रह्म विचार प्रचारा।
अर्थ: संत समाज आनन्द और कल्याणप्रद है।वह चलता फिरता तीर्थराज है।वह ईश्वर भक्ति का प्रचारक है।
बिनु सतसंग विवेक न होई।राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
सत संगत मुद मंगल मूला।सोई फल सिधि सब साधन फूला ।
अर्थ: संत की संगति बिना विवेक नही होता।प्रभु कृपा के बिना संत की संगति सहज नही है। संत की संगति आनन्द और कल्याण का मूल है।इसका मिलना हीं फल है।अन्य सभी उपाय केवल फूलमात्र है।
संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
बाल बिनय सुनि करि कृपा राम चरण रति देहु।
अर्थ: संत सरल हृदय का और सम्पूर्ण संसार का कल्याण चाहते हैं। अतः मेरी प्रार्थना है कि मेरे बाल हृदय में राम के चरणों में मुझे प्रेम दें।
गगन चढई रज पवन प्रसंगा।कीचहिं मिलई नीच जल संगा।
साधु असाधु सदन सुक सारी।सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं।
अर्थ: हवा के साथ धूल आकाश पर चढता है।नीचे जल के साथ कीचर में मिल जाता है। साधु के घर सुग्गा राम राम बोलता है और नीच के घर गिन गिन कर गालियाॅ देता है।संगति से ही गुण होता है।
बिनु सत्संग ना हरि कथा, तेहि बिनु मोह ना भाग।
मोह गये बिनु राम पद, होई ना दृढ़ अनुराग।।
अर्थ: बिना सत्संग किए और हरी कथा सुने मोह नही जाता और बिना मोह गये श्री रामजी के चरनो में दृढ़ प्रीति नही होती।
गुरु कृपा से राम की कृपा- Guru Kripa Se Ram Ki Kripa
गुरू पद रज मृदु मंजुल अंजन।नयन अमिअ दृग दोश विभंजन।
तेहि करि विमल विवेक बिलोचन।बरनउॅ राम चरित भव मोचन।
अर्थ: गुरू के पैरों की धूल कोमल और अंजन समान है जो आॅखों के दोशों कोदूर करता है। उस अंजन से प्राप्त विवेक से संसार के समस्त बंधन को दूर कर राम के चरित्र का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
राम के लिए समर्पण पर दोहे-Ram Ke Liye Samarpan Par Dohe
स्वारथ सीता राम सो, परमारथ सिया राम।
तुलसी तेरो दूसरे, द्वार कहाँ कहूँ काम।।
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की मेरे स्वार्थ और परमार्थ दोनो ही सीता राम से है, और किसके के द्वार पर मेरा क्या काम?अर्थात मेरे तो सब कुछ सीता राम ही हैं।
बिगरी जनम अनेक की, सुधरै अबही आजू।
होहि राम को नाम जप, तुलसी तजिको समाज।।
अर्थ: तुलसी दासजी कहते हैं की जन्म -जन्म की बिगड़ी को सुधारने का समय अब आ गया है , सब समाज की चिंता छोड़ करके अब श्री रामजी का ही नाम जपना है।
संत सरल चित जगत हित, जानी सुभाउ सनेहु।
बाल विनय सुन करि कृपा, राम चरण रति देहु।।
अर्थ: संतों का सरल हृदय होता है और उनका स्वभाव स्नेहपूर्ण होता है। उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानकर मैं प्रार्थना करता हूँ कि मुझ बालक की विनती सुन कृपा करके श्रीरामजी के चरणों में प्रीति दें।
नीच मीचु लै जाइ जो राम रजायसु पाइ।
तौ तुलसी तेरो भलो न तु अनभलो अघाइ।।
Meench meechu le jaaye jo, Ram rajayasu paay।
Ta Tulasi tero bhalo, Natu an bhalo aghay।।
अर्थ: ऐ नीच! प्रभु श्रीराम के कार्यों को करते हुए तुझे मौत भी आ जाए तो इसमें भी तू अपना भला ही समझ क्योंकि भगवान राम की सेवकाई के बिना तो तेरा जीवन के बिना तो तेरा जीवन व्यर्थ है। यदि श्री रामजी के लिए प्राण भी चले जायें तो भी हमे अपनी हानि नही समझनी चाहिए।
मुझे भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।
एक राम घनश्याम हित , चातक तुलसीदास।।
Mujhe bharoso ek bal, Ek aas vishwas।
Ek Ram ghanshyam hit, Chatak Tulasidas।।
अर्थ: प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि केवल एक ही भरोसा है, एक ही बल है, एक ही आशा है ।और एक ही विश्वास है। एक रामरूपी श्यामघन ( मेघ ) के लिए ही यह तुलसीदास चातक बना हुआ है।
राम से विरह पर दोहे-Ram se Virah Par Dohe
तुलसी दिन भाल साहू कह, भली चोर कह रात।
निसि वासर को कह भलो, मानो राम विताती।।
Tulasi din bhal sahu kah, Bhali chor kah raaat।
Nis vasar ko kah bhalo, Mano Ram viatati।।
अर्थ: तुलसीदासजी कह रहे हैं की साहूकार और सेठ लोग दिन को अच्छा बताते हैं और चोर रात्रि तो अच्छा बताते हैं (अपने अपने लाभ को सोचते हुए) लेकिन राम भक्तों के लिए तो रात और दिन एक सामना हैं । वो किसे अच्छा कहें किसे बुरा कहें क्योकि बिन राम के दिन और रात, कोई भला नही है ।
राम प्रेम बिना दूबरो, राम प्रेम ही पीन।
ऱघुबर कबहु ना कर हुंगे, तुलसी जो जल मीन।।
Ram prem bina doobaro, Ram prem hi peen।
Raghubar kabahu na kar hunge, Tulasi jo jal meen।।
अर्थ: तुलसीदासजी उस दिन की बाट देख रहे हैं कि जैसे मछली जल से ही प्राणवान है और बिना जल के प्राण छोड़ देती है, उसी प्रकार प्रभु कब आप मुझ पर ऐसी कृपा करेंगे कि राम का प्रेम ही हमारा बल हो और राम प्रेम के बिना हम दुबले हो जायें।
राम कृपा से तुलसीदास के कल्याण पर दोहे- Ram Kripa Se Tulasidas Ke Kalyan Par Dohe
होहु कहावत सब कहत , राम सहत उपहास।
साहिब सीतानाथ सो, सेवक तुलसीदास।।
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की मेरे परम शक्तिमान श्री राम तो सर्वा समर्थ हैं और ये बड़े ही संकोच की बात है की उन जैसे स्वामी का तुलसीदास जैसा तुच्छ सेवक है। यहा तुलसीदास अपने आप को प्रभु श्री राम के समक्ष एकदम नगण्य करके देख रहे हैं। यह भक्ति की उच्चतम अवस्था है।
लहहि ना फूटी कौड़िहू, की चाहे केहि काज।
सो तुलसी महंगो कियो, राम ग़रीब निवाज़ ।।
अर्थ: तुलसीदास स्वयं के बारे में कहते हैं कि जिस तुलसीदास को पहले फूटी कौड़ी भी नही मिलती थी।उसी तुलसी का महत्व और समाज में स्थान श्री रामजी की कृपा से बहुत बढ़ गया है।
राम निकाइ रावरी, है सबही को नीक।
जो यह सांची है सदा, तो नीका तुलसीक।।
Ram nikaai raavari, Hai sabahi ko neek।
Jo yah saanchi hai sada, To neeka Tulaseek।।
अर्थ: हे रामजी आपके अच्छाई से सबका ही भला होता है, जो यह बात सत्य है, तो तुलसीदास का भी सदा कल्याण होगा। इसमे कोई संदेह नही है ।
चित्रकूट के घाट पे, भाई संतन की भीर।
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करें रघूबीर।।
Chitrakoot ke ghat pe, Bhai santan ki bheer।
Tulasidas chandan ghise, Tilak karein Raghubeer।।
प्रसंग: कहा जाता है यह दोहा श्री हनुमान जी ने तोते का रूप धारण करके तुलसीदासजी को ध्यान दिलाया था कि वो जिस बालक का तिलक कर रहे हैं वो कोई और नही बल्कि प्रभु श्री राम और लक्ष्मण हैं।
अर्थ: चित्रकूट के घाट पे, कई संत आए हुए हैं और तुलसीदास चंदन घिसकर श्री रामचन्द्रजी के माथे पर तिलक लगा रहे हैं।
रामभक्ति से ज्ञान-Ram Bhakti Ka Gyan Wale Dohe
घर कीन्हे घर जात है, घर छोड़े घर जाई।
तुलसी घर वन बीच ही, राम प्रेम पुरछाइ।।
अर्थ: तुलसीदास जी इस पद में जीव के उस परम स्थाई घर की बात कर रहे हैं जिससे जीव आया है. ओर निर्वाण रूपी घर , घर में चिपक कर रहने से नही मिलेगा और उस घर का लक्ष्य छोड़ देने पर भी नही मिलेगा। उस निर्वाण रूपी घर को पाने का उपाय यही है कि घर और वन के बीच में राम प्रेम की पूरच्छाई बना ली जाय और उसी का सेवन किया जाय ।अर्थात राम प्रेम में निरंतर डूबे रहने पर अवश्य ही निर्वाण रूपी घर मिलेगा।
रामकथा के महत्त्व पर दोहे-Ramkatha Ke Mahatv Par Dohe
श्रोता, वक्ता, ज्ञान निधि, कथा राम के ग़ूढ।
किमि समझौं मैं जीव जड़, कलिमल ग्रसित विमूढ़।।
अर्थ: रामायण को सुनने वाले , और कथा सुनाने वाले ज्ञान के सागर होते हैं । उनको मैं कलियुग के बुराइयों से ग्रसित मनुष्य भला किस प्रकार समझ सकता हूँ ।
राम कथा मंदाकिनी, चित्रकूट चितचारू।
तुलसी सुभग सनेह वन, सिय रघुबीर विहारू।।
अर्थ: श्री राम जी की कथा पवित्र मंदाकिनी नदी है। निर्मल चित्त (मन) ही चित्रकूट है और सुंदर स्नेह ही वन है जिसमे श्री रामजी और सीता माता विहार करते हैं।
रामचरित राकेस कर, सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित, हित बिसेषि बड़ लाहु।।
अर्थ: श्री रामजी का चरित्र पूर्णिमा के चाँद के समान सबको सुख और प्रसन्नता प्रदान करने वाला है। लेकिन सज्जन रूपी कमाल और चकोर के मन को विशेष प्रसन्नता देने वाली है।
जुगुती बेधि पुनि टोहि अही, रामचरित बरताग।
पहिरहि सज्जन विमल उर,शोभा अति अनुराग।।
अर्थ: कवित्व का सौंदर्य रामचरित रूपी तागे में विवेक से बीन्ध कर प्रभु भक्ति की माला बनती है। ‘सजन अपने विमल उर पर इसको ( मणिमाला को ) पहनते हैं और अनुराग की शोभा उत्पन्न होती है।
प्रिय लागहि अति सबहि मम , भलित राम जस संग।
दारू विचारू की करई कोउ , बन्दिअ मलय प्रसंग।।
अर्थ: तुलसीदास कहते हैं कि श्रीरामजी के यश के संग से मेरी कविता सभी को अत्यन्त प्रिय लगेगी, जैसे मलय पर्वत के संग से काष्टमात्र चन्दन बनकर वन्दनीय हो जाता है, फिर क्या कोई काठ का विचार करता है ।
श्याम सुरभि पय विशद अति , गुणद करहि सब पान।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस , गावहि सुनहि सुजान।।
अर्थ: श्याम गौ काली होने पर भी उसका दूध बहुत गुणकारी होता है, ऐसा मानकर सब दूध पीते हैं । उसी प्रकार श्री राम चरितमानस की भाषा गवाँरु होने पर भी श्री राम नाम के रस से युक्त होने के कारण सब इसे बड़े चाव से सुनते हैं।
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संत कबीर का प्रभु राम से सम्बन्ध भक्त और भगवान का है। कहीं सुना था कि शायद कबीर जी प्रह्लाद जी के अंशावतार थे। मैं ये दावा नहीं कर रहा हूँ पर कोई सिद्ध संत ही सच्चाई बता सकते हैं।
भगवान श्री राम के दोहे बहुत अच्छे लगे वागाराम s/o हरजीराम चौधरी कृषि फार्म भादरूणा सांचौर जालोर राजस्थान