पुरानी बात है एक रोज चौधरी अनूप सिंह अपनी पत्नी शांति देवी और नौ भाइयों की इकलौती बहन रघुबीर कौर के साथ किसी काम से व्र॔दावन में थे जहाँ उन्हें एक बाबाजी के बारे में पता चला जो तब वहीं किसी के यहाँ ठहरे हुए थे। किसी तरह ये लोग भी उन चमत्कारी बाबाजी के दर्शन करने जा पहुचे। अच्छी भीड़ थी। अनूप सिंह जी अपनी पत्नी और बहन को वहां छोड़ कुछ फल खरीदने चले गए। इस बीच शांति देवी अपनी ननद को ले किसी तरह बाबाजी के सामने पहुचने मे कामयाब हो ही गईं।
बाबाजी को प्रणाम करके दोनों वहीं बैठ गईं। अब तक अनूप सिंह जी भी जो भी मिले फल खरीद कर आ गए थे। फल बाबाजी के घुटनों के पास रख कर शांति देवी सोच ही रहीं थीं कुछ कि तभी बाबाजी ने कुछ फल निकाल कर रघुबीर कौर की तरफ बढ़ा दिये जिन्हें रघुबीर कौर ने तत्काल अपने आंचल मे ले लिया।
बाबाजी ने अपनी मोहक मुस्कान के साथ कहा- तेरी पांच संतानें होंगी!
तीनों के तीनों मौन रह गए एकबारगी क्योंकि रघुबीर कौर को तो उनके ससुराल वालों ने वापस लौटाऐ सात आठ साल हो चुके थे। समझौते की कोई गुंजाइश नहीं थी। हालांकि रघुबीर कौर के पति चौधरी रणबीर सिंह जी को अपनी धर्म पत्नी से कोई शिकायत न थी पर उनकी बहन को अपनी अति सुन्दर चांदी सी रंगत वाली भाभी फूटी आंख पसंद न थी।
तो,
थोड़ा झिझकते हुए रघुबीर कौर की ननद यानि शांति देवी ने बाबाजी को ये बात बताई कि ननद को तो वे लोग अर्सा पहले छोड़ चुके हैं। कैसे होगी संतान?
‘हमने केह दई सो केह दई।’ बाबाजी जवाब दे कर दूसरों से मुखातिब हो रहे ।
ये तीनों बुझे मन से वापस आ गए ।
अनूप सिंह जी कुछ नाराज भी हुऐ अपनी पत्नी शांति देवी पर कि कहीं भी मुंह उठाये चल दी बाबाजी बाबाजी करती।
कुछ दिन बाद पुलिस का एक बड़ा लाव लश्कर गांव के बाहर टिका। चौधरी अनूप सिंह जी के पिता ने जो कि गांव के चौधरी थे पूछा- रे कोई जवान कुछ कर करा के तो ना आ छुपा है गांव में? भला यहाँ पुलिस का के काम?
लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। पुलिस वालों ने मुखिया को तलब किया और उनके चीफ ने जो कि आई जी थे ने कहा कि वे अपनी बहन रघुबीर कौर को विदा कराने आऐ हैं!
गांव में हड़कंप मच गया। पंचायत बैठी और आखिर रघुबीर कौर इस शर्त पर विदा हो के आईं कि वे पति के साथ रहेंगी मगर जिस ससुराल मे उन्हें नाहक़ सताया गया वे ससुराल नहीं जाऐंगी। और इस तरह बाबाजी के वचन सही हुऐ।
जय श्री बाबा नीम करोली
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