June 2, 2023

Dussehra 2022: दशहरा कब है? महत्त्व, मान्यताएं, कथा

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दशहरा २०२२ में ४ अक्टूबर को मनाया जायेगा। दशहरा समस्त भारतवर्ष में मनाया जाने वाला हर्षोल्लास का पर्व है। बुराई के ऊपर सर्वदा अच्छाई के जीत का त्यौहार है।

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दशहरा का क्या महत्व है?- Significance of Dussera

दशहरा का त्यौहार समस्त भारतवर्ष में मनाया जाने वाला हर्षोल्लास का पर्व है। यह त्यौहार प्रतीक है मानव मात्र की सबसे बड़ी आशा का – बुराई के ऊपर सर्वदा अच्छाई के जीत की अदम्य जीवंत अभिलाषा का। आप जीवन में भले ही कितनी ही निराशा के दौर में हों दशहरे का ये त्यौहार आपको ये विश्वास दिलाता है कि एक दिन बुराई के ऊपर अच्छी की विजय अवश्य होगी। अन्य त्यौहार जैसे होली है उमंग का , दिवाली है प्रकाश का, शिवरात्रि है ज्ञान का , जन्माष्टमी वात्सल्य रस। परन्तु दशहरा है त्यौहार का आशा का। यह त्यौहार आपको उत्साह देता है पुनः लड़ने का , संघर्ष करने का। यही विशेषता इसे अन्य त्योहारों से इसे अलग करती है।

बुराई के ऊपर अच्छाई के विजय का पर्व- Victory of Good over Evil Festival-Vijayadashami

यह आशा का त्यौहार देवताओं के लिए भी था जब उनका महिषासुर द्वारा वरदान के प्रभाव से छीना हुआ सृष्टि प्रदत्त स्वर्ग का राज्य उन्हें माँ दुर्गा ने उस दुष्ट असुर को मारकर उन्हें इसी दशहरे के दिन वापस दिलाया था। सोचिये कितना कठिन संघर्ष रहा होगा उनका जब सर्वसमर्थ होते हुए भी उन्हें अपने अधिकार से वंचित होना पड़ा। लेकिन इसी परम पावन विजयदशमी के दिन उन्हें विजय श्री मिली और यह दिन दशमी तिथि कि होने के कारण विजयदशमी(Vijayadashami) के नाम से जाना गया।

संघर्ष की यह गाथा केवल देवताओं के साथ ही नहीं हुयी वरन धरती के उसे समय की नगरों गावों में निवास करने वाली मनुष्य जाति और वन प्रांतर में निवास करने वाले वानर , किरात, रीक्ष आदि जातियों के साथ भी हुयी जब युगांतर से राज करने वाले आततायी रावण (रावण का बखान: कितना सच कितना झूठ) ने सबका यहाँ तक कि इतर योनियों यक्ष, गन्धर्व आदि का भी मान मर्दन करते हुए त्रेतायुग में भी कलियुग का दृश्य उपस्थित कर दिया। इतने अंतराल के पश्चात जब कोई आस न बची तब भगवान ने स्वयं मानव अवतार लेकर दशहरे के दिन दस सर वाले रावण के दसो शीश हर लिए ; तब यह त्यौहार दशहरे के नाम से भी जाना गया।

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अतः केवल इसे अच्छाई का बुराई के ऊपर विजय का त्यौहार केवल कह देने मात्र से इति श्री नहीं हो जाती। वरन जब तक आप मन की गहराइयों से यह प्रेरणा न लें की अच्छाई के उत्थान के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, तब तक आपने सही अर्थों में दशहरा मनाया ही नहीं। उठें और अच्छाई की विजय के लिए पुनः संघर्ष का संकल्प लें दशहरे के परम पुनीत दिवस पर इस बार।

कब आता है दशहरा – When is Dussera celebrated?

विजय दशमी का पावन पर्व हिंदी पंचांग कैलेंडर के अनुसार आश्विन मास की दशमी तिथि को मनाया जाता है। दशाहार शारदीय नवरात्र के तुरंत बाद की ठीक अगली तिथि है। अर्थात आश्विन शुक्ल पक्ष के पहले ९ दिन नवरात्रि और दसवें दिन दशहरा। इसके ठीक अगले दिन आश्विन शुक्ल एकादशी पड़ती है। बता दें की शारदीय नवरात्री के पहले १५ दिन तक पितृ पक्ष चलते हैं जिसमें लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। इस प्रकार दशहरे का परम शुभ त्यौहार लगभग २६ दिनों तक लगातार चलने वाले आध्यात्मिक पर्वों के समूह की पूर्णाहुति से ठीक पूर्व का द्योतक है। संभवतः इसीलिए यह इतनी सारे आध्यात्मिक लाभ और विशेषताओं से संपन्न है ।

२०२२ में दशहरा कब है-When is Dussehra 2022?

इस बार वर्ष २०२२ में अश्विन शुक्ल पक्ष दशमी तिथि ४ अक्टूबर २०२२(4 October 2022) को दोपहर २ बजकर २० मिनट(2.20 pm start) से आरंभ होगी और अगले दिन यानि ५ अक्टूबर २०२२ को इसका समापन  दोपहर १२ बजे (12 pm , 5 October 2022 End) होगा। अतः इस बार रावण , कुम्भकर्ण , नेघनाथ के पुतलों का दहन ४ अक्टूबर २०२२ को ही संध्या काल में होगा।

किन किन नामों से जान जाता है दशहरा-Different names of Dussera

दहहसरे के विभिन्न नाम : दशहरा (Dashahara), विजय दशमी(Vijayadashami) , दसरा(Dasara) (दक्षिण भारत में ), दशेरा (Dussera) (लोकांचल में ), आयुध पूजा (Ayudh Pooja)

दशहरे की विशेषताएं- Why Dussera is special?

इस दिन कोई भी कार्य किया जय तो उसमें सफलता मिलने का विधान है। ( यहाँ आपके पूर्वकृत कर्मफल भी अनुकूल होने चाहिए।)
यह दिन शस्त्र पूजा का है , बल का है।
इस दिन वाहन की पूजा भी करते हैं।
इस दिन लोग नए घर, वाहन आदि का भी क्रय करते हैं।
यह दिन अनबूझ मुहूर्त में से आता है। अर्थात कोई भी कार्य कारण एक लिए यह शुभ दिन है। इस दिन मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं है। केवल विवाह इस दिन नहीं होता अन्यथा सारे शुभ कर्म किये जा सकते हैं।
तंत्र आदि सिद्ध करने के लिए यह एक शक्तिशाली दिन है।

दशहरा की पौराणिक कथाएं-दशहरा की कहानी क्या है?-Dussera Story

दशहरा की पौराणिक कथाएं-1: माता दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध

पौराणिक काल में महिषासुर नमक असुर ने कठोर तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके किसी भी देवत और पुरुष से न मारे जाने का वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान प्राप्त होने के बाद महिषासुर निरंकुश हो गया और उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवता वरदान के प्रभाव से उसके आगे न ठहर सके। वरदान के प्रभाव से महिषासुर ने त्रिदेवों को भी परास्त कर दिया। स्वर्ग का राज्य खोकर समस्त देवता त्रिदेवों के साथ एक स्थान पर एकत्र हुए और देवी भगवती की स्तुति करने लगे।

निराकार निर्गुण पराम्बा भगवती अपने भक्तों की पुकार पर द्रवित हो उठीं और उनका कल्याण करने हेतु सगुण रूप धारण करने का निश्चय किया। सभी देवताओं के मुख से उनका शक्ति का तेज़ प्रवाहित होने लगा। समस्त तेज़ पुंजीभूत होके माता दुर्गा के रूप में प्रकट हुआ। माता ने देवताओं को आश्वस्त करके विदा किया।

महिषासुर को परम सुंदरी के पर्वत पर निवास करने की सूचना मिली। दुर्बुद्धि महिषासुर ने पराम्बा भगवती को ही दूतों द्वारा विवाह प्रस्ताव भिजवाया। माता ने सन्देश कहलवाया की वह युद्ध की ही इच्छुक हैं । दूतों के असफल लौट आने पर उसने कई बार सेना भेजी सबके समाप्त हो जाने पर और अंततः स्वयं युद्ध के लिए आया। भयंकर युद्ध के पश्चात माता दुर्गा ने रूप बदलने में निपुण मायावी महिषासुर को भैसे के रूप बहार आते हुए त्रिशूल से मार डाला। इस प्रकार नवरात्रि के नौ दिनों युद्ध चलने के बाद विजयदशमी को तीनो लोकों को त्रास देने वाले दुष्ट महिषासुर का अंत हुआ।

दशहरा की पौराणिक कथाएं-2: प्रभु श्री राम द्वारा रावण का संहार

त्रेता युग में दुष्ट रावण के अत्याचारों से पृथ्वी त्राहि त्राहि कर उठी। रावण ने अपने कुकृत्यों से त्रेतायुग में ही कलिकाल सा दृश्य उपस्थित कर दिया। मनुष्य तो मनुष्य यक्ष, गन्धर्व , देवता आदि भी उसके अत्याचारों से न बच पाए। विधाता ब्रह्मा जी के वरदान ने रावण को नितांत निर्भय और निरंकुश बना दिया था। धरती माता ने स्वयं पालनकर्ता भगवान विष्णु के पास जाकर पापों का बोझ काम करने के लिए गुहार लगायी। तब उन सबके आदि भगवान विष्णु ने जगत कल्याण के लिए और युगों युगों तक मानव को सत्प्रेरणा देते रहने के लिए सुन्दर चरित्र वाले मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान के रूप में अवतार लिया।

एक आदर्श पुत्र, भाई , पति और राजा के कर्तव्यों का एक अप्रतिम मानदंड स्थापित किया। प्रभु श्री राम जी ने एक आदर्श पुत्र का कर्त्तव्य निभाते हुए और पिता के वचनों की रक्षा के लिए उनके द्वारा प्रकट आज्ञा न दिए जाने पर भी १४ वर्ष के लिए वन गमन कर गए। उनके साथ उनके आदर्श भाई शेषावतार श्री लक्ष्मण जी ने और उनकी आदर्श पत्नी साक्षात् भगवती जगदम्बा माता सीता जी ने भी न कहे जाने पर भी उनका अनुगमन किया। इसके साथ ही इन तीनो दिव्यात्माओं ने ही मानवों के लिए एक उच्चतम चरित्र मानदण्ड स्थापित कर दिया। प्रभु चाहते तो केवल इच्छा मात्र से भी रावण को मार सकते थे परन्तु उनका उद्देश्य युग-युगांतर तक मानवता के नैतिक मूल्यों के महत्व का सन्देश देना था।

वन का कष्टों का दृढ़तापूर्वक सहन करते हुए , मार्ग में अनेकों भक्तो ऋषि मुनियों का कष्ट दूर करते हुए और उन्हें अपने दर्शनों से कृतार्थ करते हुए भगवान श्री राम ने, देवी सीता और अनुज लक्ष्मण सहितकई वर्ष व्यतीत किये। इस बीच भिन्न अवसरों पर वन में राक्षसों , दानवों का संहार करके वनप्रांतर को निरापद बनाते रहे। दैव की प्रेरणा से राक्षस रावण की विधवा बहन सूर्पनखा ने प्रभु राम से अनुचित अनुराग के आधीन होकर देवी सीता का भक्षण करना चाहा और अपने नाक-कान कटवा बैठी। बहन की उपलब्ध पर लंकापति रावण चोरों की भाँति प्रभु श्री राम की अनुपस्थिति में माता सीता का हरण कर ले जाता है।

वापस आने पर भगवान राम माता सीता को खोजते हुए सुग्रीव एवं हनुमान आदि वानर मित्रों की सहायता से लंका पर आक्रमण कर देते हैं। एक-एक कर लंका का सभी महापराक्रमी राक्षसों का वध हो जाता है। अंत में नाभि कमल में अमृतधारी होने के कारण स्वयं को अमर समझने वाला रावण प्रभु श्री राम के हाथों इसी पवन दशहरे के दिन मारा जाता है। एक बार पुनः अच्छाई की बुराई पर विजय होती है। इस उपलक्ष्य में आज भी दशहरा को रावण , कुम्भकर्ण और मेघनाद का पुतला जलाया जाता है।

क्या क्या होता है दशहरा पर-What happens in Dussera?

दशहरा -विजयदशमी पर लोग देवी दुर्गा और भगवान श्री राम की पूजा करते हैं। संध्या वेला में शहरों और गावों में लोग रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाते हैं। देश मैं कई जगहों पर रामलीला नाटकों का कई दिनों से चल रहा मंचन दशहरे के दिन ही रावण वध के प्रसंग से समाप्त होता है। नौ दिनों से चली आ रही दुर्गा पूजा का समापन विजयदशमी के ही दिन होता है। पश्चिमी भारत में सुप्रसिद्ध शारदीय नवरात्र का गरबा नृत्य का उत्सव भी विजयदशमी को ही समाप्त होता है। हर जगह हर्ष उल्लास का वातारवरण होता है। कई जगहों पर मेले भी लगते हैं। लोग इस दिन नए वाहन खरीदते हैं। गृह प्रवेश जैसे आदि कई शुभ कर्म भी विजयदशमी के दिन किये जाते हैं। हथियार-शस्त्रों एवं वाहनों की पूजा भी आज ही के दिन संपन्न होती है। साधकगण इस दिन कई तंत्र मन्त्र की साधनायें भी संपन्न करते हैं।

दशहरा पर हम घर पर क्या करते हैं?-What to do in Dussehra 2023?

दशहरा पर हिन्दू परिवारों में तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजन, पकवान और मिठाइयां आदि बनायी जाती हैं। पूरी, हलवा, खीर, कचौड़ी , मोतीचूरबेसन के लड्डू , बर्फी, पेड़ा व्यंजन बड़े चाव से बनाये व खाये-खिलाये जाते हैं। बालक वृद्ध सब पारम्परिक परिधानों में सज धजकर माँ दुर्गा व भगवान राम की पूजा करने के बाद रावण दहन देखने के लिए मैदान में जाते हैं।

दशहरे की पूजा कैसे की जाती है?-Dussehra 2023 Pooja Procedure

दशहरा की पूजा हमेशा विजय काल में होती है। पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त, विजय या अपराह्न काल सर्वोत्तम है। पूजा करने का स्थान घर का ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व दिशा सबसे उत्तम है। देवी देवत की मूर्ति का मुख पश्चिम की और हो और आप स्वयं पूर्वाभिमुख होकर पूजा के लिए बैठें। पूजा स्थल को खूब अच्छे से स्वच्छ करके गंगाजल से पवित्र कर लें। फिर उस पर अष्टकमल दाल का निर्माण करके देवी दुर्गा व भगवान राम की प्रतिमाओं की स्थापना करे लें। अब प्रभु से घर परिवार की सुख-समृद्धि, आरोग्य,कल्याण की कामना करते हुए षोडशोपचार पूजा संपन्न करें।

कहाँ कहाँ का दशहरा प्रसिद्ध है- Famous Dussehra to watch in 2023

वैसे तो देश में हर स्थान का दशहरा अपना अलग महत्व रखता है और उनकी अपनी विशेषता है। फिर भी कई स्थानों पर विजयदशमी के उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्द हैं। कर्णाटक राज्य के मैसूर राजघराने द्वारा मनाया जाने वाला दशहरा वहां दसरा कहकर सम्बोधित किया जाता है और गज की सवारी सहित अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के चलते मनमोहक दृश्य उपस्थित करता है। यह दशहरा विश्वप्रसिद्ध है।

उत्तराखंड का कुल्लू का दशहरा भी पर्वतीय अंचलों में बहुत प्रसिद्द है। इसी प्रकार हिन्दू देश नेपाल में भी दशहरा बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।

दिल्ली के रामलीला मैदान का रावण दहन भी बहुत प्रसिद्द है।

भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाली काशी नगरी के रामनगर का रामलीला भी वसीहवा प्रसिद्द है । यहाँ रामलीला का विभिन्न चरणों का मंचन सहारा के विभिन्न स्थलों पर होता है। इसका समापन भी दशहर के दिन होता है और कई सांस्कृतिक काय्रक्रमों का आयोजन होता है।

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