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श्राद्ध पितृ पक्ष कैलेंडर| Pitru Paksha 2022|Shradh Dates in 2022

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श्राद्ध क्यों मनाते हैं- पितृ पक्ष क्यों मनाते हैं

श्राद्ध हिन्दू धर्म में अपने पूर्वजों की आत्माओं के संतुष्टि एवं सम्मान के लिए पवित्र पितृ पक्ष में किया जाने वाला शास्त्रीय विधान है। आइये जानते हैं कि पितृ पक्ष महालया श्राद्ध पर्व मनाये जाने का कि इतना बड़ा महत्त्व क्यों है:

व्यक्ति के मरने के बाद उसकी आत्मा अपने कर्मानुसार विभिन्न लोकों को जैसे प्रेतलोक, पितरलोक, यक्षलोक आदि को प्राप्त होती है। यहाँ शुभ कर्म का अभाव होने की स्थिति में प्रायः आत्माओं को प्रकाश रहित नर्क जैसी अवस्थाओं में भी रहना पड़ सकता है।इस सूर्य से वंचित गहन अंधकारयुक्त वातावरण में आत्माएं बड़ा कष्ट सहती हैं।

वर्ष के ३६५ दिनों में से केवल १६ दिन इन्हे ऐसे मिलते हैं जब उन्हें प्रकाश उपलब्ध होता हैं और उन्हें पुनः मृत्यु लोक में आवागमन का मार्ग उपलब्ध होता है। बाकी के ३४९ दिन उनके लिए पुनः अंधकार युक्त नर्क होते हैं। यह १६ दिन भाद्रपद पूर्णिंमा के अतिरिक्त दिन को सम्मिलित करके आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक का पूरा पक्ष माना जाता है। यह १६ दिन इन आत्माओं के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इन १६ दिनों में इन आत्माओं के निमित्त किये गए शुभ कर्म जैसे अन्न-जल, वस्त्र आदि दान पुण्य , ब्राह्मण भोजन आदि तत्व रूप से उन आत्माओं को प्राप्त होते हैं जिनसे उनकी तृप्ति होती है। इसके प्रभाव से पितर गण वर्ष भर तक आशीर्वाद की वर्षा करते रहते हैं। जिनके पितरों की तिथि भाद्रपद पूर्णिमा को पड़ती है उनके लिए पूर्णिमा को ही श्राद्ध का विधान है।

श्राद्धकर्म के विषय में अपस्तंब ऋषि कहते हैं–जैसे यज्ञ के माध्यम से देवताओं को उनका भाग और शक्ति प्राप्त होती है, उसी प्रकार श्राद्ध और तर्पण से पितृलोक में बैठे पितरों को उनका अंश प्राप्त होता है।

श्राद्ध पितृपक्ष महालया की अवधि कब से कब तक होती है

श्राद्ध पक्ष- पितृ पक्ष आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक का पूरा १५ दिन का पक्ष माना जाता है। हालाँकि जिनके पितरों की तिथि भाद्रपद पूर्णिमा को पड़ती है उनके लिए पूर्णिमा को ही श्राद्ध का विधान है। इस प्रकार कुल श्राद्ध पक्ष-महालया पितृ पक्ष की कुल अवधि १६ दिन की अवधि तक मानी जा सकती है।


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श्राद्ध का अर्थ क्या होता है?

‘देश काल च पात्रे च श्रद्धया विधिना च यत्।
पितृनुद्दिश्य विप्रेभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाहृतम्।।

देश काल परिस्थिति के अनुसार सुपात्र के द्वारा श्रद्धा एवं विधिविधान के अनुसार पितरों के (तृप्ति के ) उद्देश्य से ब्राह्मण को जो भी श्रद्धा और आनंद सहित दिया जाता है वह श्राद्ध है।

श्राद्ध कब से शुरू है 2022 लिस्ट- Shradh Dates in 2022-Pitru Paksha 2022

सन 2022 में श्राद्ध पितर पक्ष निम्न तिथियों में हैं

क्र.दिनांकहिन्दू मास तिथिश्राद्ध दिवस
111 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण प्रतिपदाप्रतिपदा श्राद्ध
212 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण द्वितीयाद्वितीया श्राद्ध
313 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण तृतीयातृतीया श्राद्ध
414 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण चतुर्थीचतुर्थी श्राद्ध
515 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण पंचमीपंचमी श्राद्ध
616 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण षष्ठीषष्ठी श्राद्ध
717 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण सप्तमीसप्तमी श्राद्ध
818 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण अष्टमीअष्टमी श्राद्ध
919 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण नवमीनवमी श्राद्ध
1020 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण दशमीदशमी श्राद्ध
1121 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण एकादशीएकादशी श्राद्ध
1222 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण द्वादशीद्वादशी श्राद्ध
1323 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण त्रयोदशीत्रयोदशी श्राद्ध
1424 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण चतुर्दशीचतुर्दशी श्राद्ध
1525 सितंबर 2022आश्विन कृष्ण अमावस्याअमावस्या श्राद्ध

पितरों की शांति के लिए यह भी कर सकते हैं,

  • एक माला प्रतिदिन ऊं पितृ देवताभ्यो नम: की करें
  • ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम: का जाप करते रहें
  • भगवद्गीता के सातवें अध्याय का पाठ भी कर सकते हैं

श्राद्ध कौन कर सकता है?

श्राद्ध का अधिकार सर्व प्रथम बड़े पुत्र का होता है। उसकी अनुपस्थिति में ने पुत्रों क्रमश सबसे छोटे ये फिर उससे बड़े पुत्रों को यह मिलता है। उनके भी न होने पर मृतक आत्मा के भाई , पिता आदि भी यह कार्य संपन्न कर सकते हैं। इसी प्रकार बेटा या बेटी के पुत्र आदि अपने दादा दादी या नाना नानी का श्राद्ध संस्कार कर सकते हैं। उनके भी न होने पर बेटियां , बहु या घर की स्त्रियां भी यह कार्य संपन्न कर सकती हैं। जैसे गया में प्रभु श्री राम के आने में देरी होने पर माता सीता ने भी अपने श्वसुर महाराज दशरथ जी का श्राद्ध कर दिया था।

पितर कौन बनता है- Who Become Pitars in Hindi

जिन मृतकों की प्रेत आत्माओं का भली प्रकार से विधवत श्राद्ध आदि संस्कार हो जाता है उस प्रक्रिया से उन्हें बल मिलता है और वो आत्माएं पितर का रूप धारण करती हैं। अन्यथा वह प्रेत अवस्था में ही कष्ट पाती रहती हैं। पितर आत्माएं देवताओं से इतर होती हैं परन्तु प्रसन्न होने पर अपने कुल के लिए देव तुल्य ही धन संपत्ति और संतति की वर्षा करने में समर्थ होती हैं। पितर सर्वदा प्रेत आदि से शक्तिशाली होते हैं और अपने कुलजनो की रक्षा करते हैं परन्तु दुःख पाने पर ,अप्रसन्न होने पर कष्ट भी देते हैं जिसे पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

श्राद्ध का समय कब होता है

महान तंत्र विशारद और अपना सम्पूर्ण जीवन परलोक विज्ञान कि साधना में समर्पित करने वाले परमपूजनीय श्री अरुण कुमार शर्मा जी के अनुसार श्राद्ध के लिए सबसे सर्वोत्तम समय दिन का तीसरा प्रहर होता है क्योंकि पितरों के लिए तीसरा प्रहर ही प्रकृति द्वारा निर्धारित किया गया है। यह तीसरा प्रहार जो दोपहर दिन के 12 बजे से 3 बजे तक है। इसी समय प्रेतलोक व् पितृलोक से उनका पथ खुलता है, इसके पूर्व नहीं। जो जल्दबाज लोग बिना जाने सुबह से ही श्राद्धकर्म करके ब्राह्मण भोजन, दान-पुण्य करने लगते हैं, उनका वह कर्म वृथा हो जाता है और पितरों को प्राप्त नहीं हो पाता है। अतः उचित समय पर ही श्राद्ध कर्म संपन्न करें।

गया जाने से पहले क्या करना चाहिए?

गया श्राद्ध की महान महिमा है। श्राद्ध के लिए गया जाने पहले श्रीमदभागवद का सप्ताह पर्यन्त पाठ करना अनिवार्य बताया गया है। पुराणों के अनुसार धन्धुकारी नामक प्रेत की मुक्ति श्रीमदभागवद के सप्ताह परायण तत्पश्चात गया श्राद्ध से ही हुयी थी। श्री मद भगवद परायण के बिना गया श्राद्ध की प्रक्रिया अप्पूर्ण मानी जाती है। इसके अतिरिक्त गया जाने से ब्राह्मण को बुलाकर कर घर पर भी पहला पिंड दान करते हुए , अपने समस्त ग्राम का चक्कर लगाकर अपने पूर्वजों का नाम लेकर पुकारते हुए उन्हें गया जाने का निमंत्रण भी देने का विधान है। इस प्रक्रिया से अपने भूले भटके पूर्वज भी गया के लिए प्रस्थान करने निमित्त आ जाते हैं।

पितरों को पानी कौन कौन दे सकता है?

पितरों को पानी देने का अर्थात तर्पण अधिकार समस्त बेटे बेटियों, नाती पोतों , चाचा-चाची, बुआ-माता , दादा दादी सहित समस्त रक्त सम्बन्धी पटीदारों का होता है। ये सभी वंश कुल के रक्त सम्बन्धी मृतका के दसगात्र तक आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय रूप से करते हैं। वस्तुतः जिस किसी से भी कुल का रक्त सम्बन्ध होता है वह सभी पितरों को पानी दे सकते हैं अर्थात उनका तर्पण करते हैं।

पितरों को पानी कैसे देना चाहिए – Pitru Tarpan In Hindi

तर्पण कैसे करें

श्राद्ध के निर्धारित दिन १२ बजने के कुछ क्षणों के उपरांत पुत्र या श्राद्ध करने वाला सम्बन्धी जल पात्र में कला तिल,दूध, चीनी, सफ़ेद पुष्प मिलकर दक्षिण दिशा कि ओर मुख कर ले। पानी देने अर्थात तर्पण का जल अर्पण करने से पहले व्यक्ति अपना नाम , पिता का नाम, गोत्र का उच्चारण करे साथ में उसे दिन, तिथि, वर्ष , क्षेत्र , नगर , राज्य देश का नाम भी कहना चाहिए (संकल्प कैसे करें?) और पितरों का तर्पण ग्रहण के लिए आह्वान करना चाहिए। पानी देते – जल दान करते समय अनामिका उंगली में कुश घास की पैंती या सोने कि अंगूठी पहनने आवश्यक है। जल को पितरों का नाम लेते हुए हथेली के पितृ तीर्थ से तीन -तीन अंजलि जल अर्पण करना चाहिए। पानी देते समय ये ध्यान रखें कि जल के नीचे गिरने पर छींटे पैर पर न पड़ें। इससे बचने के लिए नीचे एक और बर्तन रख लें और जलधार उसी में गिरा कर समर्पित करें।

पितरों को कौन सी दिशा में पानी देना चाहिए?

पितरों को पानी तर्पण दक्षिणाभिमुख अर्थात दक्षिण दिशा की ओर मुख करके देना चाहिए। पितरों को पानी देते हुए जनेऊ दाहिने कंधे पर होना चाहिए इस अवस्था को अपसव्य होना कहते हैं।

विगत वर्ष का श्राद्ध कैलेंडर : पितृ श्राद्ध आरम्भ -२ सितम्बर २०२०

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