May 29, 2023

व्रत और उपवास में क्या अंतर होता है?| Difference Between Vrat and Upvas in Hindi

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उपवास निराहार रहकर की जाने वाली ईश्वर साधना है और व्रत दृढ संकल्प के साथ नियम पालन कर धर्म की वृहत्तर ईश्वर उपासना है।उपवास व्रत के अंतर्गत आता है ।

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प्रायः हम व्रत और उपवास को सामनार्थी शब्द की तरह प्रयोग करते हैं। यद्यपि कई अवसरों पर यह प्रयोग उचित हो सकता है परन्तु यदि हम इसका मूल अर्थ समझें तो इनमें व्यापक अंतर स्पष्ट हो जाता है।लोग आजकल निराहार रहने को ही व्रत और उपवास की संज्ञा देने लगे हैं जी की एक भ्रामक धारणा है। आइये इन्हे थोड़ा और गूढता से समझें।

उपवास क्या है

जब व्यक्ति किसी दिन निराहार रहकर भगवान की उपासना में समर्पित रहता है तो उसे उपवास की संज्ञा दी जाती है। उपवास दो शब्दों से मिलकर बना है ‘उप’ और ‘वास’। उप से अर्थ है ‘समीप’ और वास से अर्थ है ‘बैठना या निवास करना’। अर्थात जिस दिन लोग भगवान से समीपता प्राप्त करने हेतु निराहार रहकर साधना करते हैं उसे उपवास कहते हैं। केवल निराहार रहने से उपवास सार्थक नहीं होता यदि आपका मन ईश्वर से न लगा हो। किसी विशेष दिन निराहार रहकर भगवान् की उपासना करने व्यक्ति के पूर्वकृत पाप और कुसंस्कार कटते हैं और व्यक्ति की आत्मा क्रमश: और शुद्ध होकर भगवान के और समीप पहुंचती है।

अतः निराहार रहकर मन ईश्वर में लगाए रखने से ही उपवास नाम सार्थक है। यहाँ वस्तुतः उद्देश्य परमात्मा से समीपता प्राप्त करना है।

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अब समझते हैं व्रत के बारे में :

व्रत किसे कहते हैं

व्रत किसी विशेष उद्देश्य के साधन के नियम पालन का संकल्प है। व्रत किसी दिन निराहार रहकर भगवान की साधना का भी हो सकता है और किसी लक्ष्य प्राप्ति हेतु कोई प्रण भी इसके अंतर्गत आता है। व्रत पालन एकदम सीमित अवधि का भी हो सकता है और बहुत दीर्घ काल के लिए भी किया जा सकता है। इसमें व्यक्ति का दृढ संकल्प और इच्छा शक्ति ही प्रधान है। उदाहरण के लिए महाभारत में भीष्म पितामह ने आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का व्रत लिया था।

व्रत में केवल एक या कई नियमों का सम्मिलित पालन भी हो सकता है। जैसे जब वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में चतुर्मास व्रत(चतुर्मास व्रत क्या है?) का संकल्प लिया जाता है तो व्यक्ति कई नियमों के पालन का व्रत ले सकता है जैसे मंदिर की स्वच्छता में नित्य सेवा देना, प्रतिदिन दान देना, गौ सेवा आदि। यहाँ कितने भी नियम लिए गए हों उनको चातुर्मास व्रत के नाम से जाना जाता है।

व्रत एक संकल्प का पालन है परन्तु व्रत का लक्ष्य हमेशा धर्म पालन ही होता है। धर्म के पालन से भी व्यक्ति ईश्वर का कृपा पात्र बनता है और धीरे धीरे अपने कर्म बंधनो से मुक्त होकर अपने इष्ट के साथ सायुज्यता प्राप्त करता है।

केवल अहंकार या प्रतिशोध की भावना से संकल्पपूर्ति व्रत की श्रेणी में नहीं आता। जैसे भीम द्वारा दु:शासन का रक्त पीने का संकल्पपूर्ति धर्म की श्रेणी में नहीं कहा जा सकता। यद्यपि उसे मारना आवश्यक और पूर्णतयाः उचित था।

व्रत की विशेषताएं

व्रत प्रायः लम्बी अवधि के लिए होते हैं। भगवान की उपासना के लिए बनाये गए शास्त्रीय व्रत आवृत्तिशील होते हैं। जैसे एकादशी (एकादशी व्रत क्या है?), त्रयोदशी, चतुर्थी आदि व्रत पाक्षिक होते हैं और मास में दो बार आते हैं ऐसे ही पूर्णिमा, अमावस्या व्रत महीने में एक बार, साप्ताहिक व्रत जैसे सोमवार , मंगलवार आदि व्रत सप्ताह में एक बार आते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष प्रयोजनों हेतु कुछ विशिष्ट व्रत बनाये गए हैं जैसे प्रायश्चित के लिए चांद्रायण व्रत, त्वरित उद्देश्य पूर्ती के निमित्त पांच रात्रि व्रत आदि। यहाँ भी लक्ष्य कर्म बंधन को काट कर ईश्वर के सायुज्य की प्राप्ति ही मुख्य उद्देश्य है।

व्रत के प्रकार एवं उदाहरण

व्रतों के कुछ भिन्न उदहारण हमारे समझने के लिए नीचे दिए हुए हैं, जैसे :

१.दानव्रत

यह नियमित दान का भी व्रत होता है। उदाहरण के लिए कर्ण का दानव्रत का संकल्प था। वह प्रतिदिन स्वर्ण दान करते थे और यदि किस ने कुछ माँगा तो भी वह दान देने से पीछे नहीं हटते थे। यहाँ तक कि कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में भी अपने अंत समय में अपने मुख के स्वर्ण दन्त का दान कर दिया।

२.सत्यव्रत

यह व्रत सदा सच बोलने का होता है। उदाहरण के लिए राजा हरिश्चंद्र सत्यव्रती थे। वह हमेशा सच बोलते थे। महात्मा युधिष्ठिर का सत्य व्रत था। सनातन धर्म में सत्य का व्रत सबसे महान धर्म कहा गया है। यह बिना त्रुटि के पालन करते रहने पर एक ऐसी अवस्था आती है कि व्यक्ति कहा हुआ ही सत्य होने लगता है। इस व्रत के आगे बड़ी से बड़ी तपस्या भी छोटी पड़ सकती है।

३.त्यागव्रत

किसी नित्य प्रयोग की वस्तु का त्याग भी व्रत भी हो सकता है उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति पवित्र चतुर्मास के महीनों में मीठा छोड़ सकता है या कोई नमक छोड़ता है, कोई किसी विशेष फल का त्याग करता है , कोई अन्न छोड़ता है और कोई दूध का त्याग है आदि। चातुर्मास की अवधि समाप्त होने पर व्यक्ति उन छोड़ी गयी वस्तुओं का उपयोग पुनः प्रारम्भ करता है।

४.सेवाव्रत

इनके अतिरिक्त प्रतिदिन तुलसी सेवा जैसे तुलसी को जल चढ़ाना या माता-पिता की सेवा करना, प्रतिदिन संध्या करना, गौ सेवा का व्रत भी महान पुण्यदायी होता है।

५.ब्रह्मचर्य व्रत

एक व्रत जो अत्यधिक सम्माननीय है, वह है ब्रह्मचर्य व्रत है। पहले गुरुकुलों में छात्र जीवन प्रथम २५ वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते थे। इससे उनमें ओज तेज़ का विकास होता था और उनकी साधनाएं सफल होती थीं।

६. प्रणाम व्रत

प्रणाम व्रती एक प्रकार का व्रत हो सकता है। अर्थात हर ऋषि-मुनि या ब्राह्मण को प्रणाम करना। प्रलय के समय में भी जीवित रहने वाले ऋषि मार्कण्डेय की मृत्यु ज्योतिषियों द्वारा १२ की अवस्था तक बतायी थी। इस पर देवर्षि नारद ने बालक मार्कण्डेय को हर ऋषि-मुनि और ब्राह्मणों को प्रणाम करने का निर्देश दिया था। इसी प्रक्रिया में, एक दिन मार्कंडेय ने कुछ ऋषियों को प्रणाम किया और उन्होंने उन्हें लंबी आयु का आशीर्वाद दिया। यह आशीर्वाद इस प्रकार फलित हुआ की शिवभक्त मार्कण्डेय जी की आसन्न मृत्यु के समय भगवान शिव ने स्वयं मृत्यु को भी मार डाला और ऋषि मार्कंडेय अमर हो गए।

७. पयोव्रत

कुछ विशेष आहार पर निर्भर रहकर भी ईश्वर साधन करना भी व्रत की श्रेणी में आ सकता है। जैसे कुछ संन्यासी केवल दूध पर ही जीवित रहते हैं और फल या अन्न भी नहीं ग्रहण करते ,इसलिए उन्हें ‘पयोव्रती ‘ कहा जाता है। (पय = दूध)

व्रत एवं उपवास में अंतर निष्कर्ष

तो इस प्रकार हम पाते हैं की व्रत की परिधि बहुत विशाल है और उपवास भी व्रत के अंतर्गत आ सकता है जबकि इसका विपरीत हमेशा सत्य नहीं होता।उपवास निराहार रहकर की जाने वाली ईश्वर साधना है और व्रत दृढ संकल्प के साथ नियम पालन कर धर्म की वृहत्तर ईश्वर उपासना है। परन्तु दोनों का ही लक्ष्य ईश्वर साधना ही है। शारीरिक और मानसिक सीमाओं से ऊपर उठकर ईश्वर की आराधना के लिए ही दोनों साधन व्रत एवं उपवास , बनाये गए हैं।

व्रत और उपवास से संबंधित इस लेख में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गयी है। यदि यह जानकारी आपको पसंद आये तो अपना सुझाव कमेंट बॉक्स में अवश्य दें। यदि आप इस विषय में और भी कोई जानकारी चाहते हैं तो आप कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। आपके हर प्रश्न का उत्तर अवश्य दिया जायेगा।

FAQ

Q1. निराहार व्रत क्या होता है

A. निराहार दो शब्दों से मिलकर बना है।
नि:= बिना , आहार=भोजन। अर्थात बिना भोजन के रहने को निराहार कहते हैं। इसमें जल पी सकते हैं।

Q2. निर्जला व्रत क्या होता है

A. निर्जला दो शब्दों से मिलकर बना है।
नि:= बिना , जल =पानी । अर्थात बिना पानी और बिना भोजन के रहने को निर्जला व्रत कहते हैं। इसमें भोजन तो क्या जल भी नहीं पी सकते हैं।

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