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तुलसीदास अमृतवाणी दोहे-अर्थ सहित & English Lyrics-4

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तुलसीदास के दोहे-तुलसीदास अमृतवाणी:( हिन्दी भावार्थ सहित)-4

Tulsidas Ke Dohe: Tulasidas Amritvani – Lyrics with meaning in Hindi

तुलसीदास अमृतवाणी दोहे अर्थ सहित & English Lyrics-3

रे मन सब सो नीरस है, सरस राम सो होहि|
भलो सिखवान देत हैं, निस दिन तुलसी तोहि ||61||

हिन्दी भावार्थ:यह सब संसार नीरस और तत्वहीन है और सिर्फ़ राम के प्रताप से ही सब सरस होता है| यह हित करने वाली सीख तुलसी सदा सबसे कहते हैं|

हरे चरहि तापहि बरे, क्षरे पसारहि हाथ|
तुलसी स्वारथ  मीत  सब, परमारथ रघुनाथ||62||

हिन्दी भावार्थ:जब सब अच्छा होता है तो सब साथ आ जाते हैं, सूखे के मौसम में(क्षति होने पर ) सब दूर चले जाते हैं और अपना सब क्षीण हो जाने पर लोग माँगते है| इस प्रकार सब स्वार्थवश ही नाता रखते हैं| परमार्थ सुख देने वाले सिर्फ़ श्री रामजी ही हैं|


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भाग छोट अभिलाष बड़ , करौ एक विश्वास|
हे हहि सुख सुनी सुजन सब, खल करिहहि  उपहास||63||

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी रामचरितमानस लिखना प्रारंभ करते हुए ये बात कहते हैं की , मेरा छोत टा भाग्य है लेकिन महत्वाकांक्षा बहुत बड़ी है (श्री रामजी का चरित्रा लिख ने की)| लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है कि सज्जन लोग मेरे इस प्रयास से खुश होंगे और दुष्ट लोग खिल्ली उड़ाएंगे|

स्वारथ सीता राम सो, परमारथ सिया राम|
तुलसी तेरो दूसरे, द्वार कहाँ कहूँ काम||64||

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी कहते हैं की मेरे स्वार्थ और परमार्थ दोनो ही सीता राम से है, और किसके के द्वार पर मेरा क्या काम?अर्थात मेरे तो सब कुछ सीता राम ही हैं|

गृह भेषज  जल पवन पट, पाई कुजोग सुजोग|
होहि कुवस्तु सुवस्तु  जग, लखई सुलक्षण लोग||65||

हिन्दी भावार्थ: घर , औषधि, जल, पवन, और वस्त्र ये जिसके संपर्क में आते हैं उसी के प्रभाव से अच्छे या बुरे समझे जाते हैं| जल घड़े में रहने से पेय हो जात है और धरती पे बह जाने से त्याज्य | पवन फूलों के संपर्क में आने से  सुगंधित और  स्थान भेद से अस्वास्थ्यकर| वस्त्र विवाहित जोड़े के उपर खूब प्रशंसा पाता है और शव के उपर त्याज्य है|

स्वारथ परमारथ सकल, सुलभ एक ही ओर|
द्वार दूसरे दीन का, उचित ना तुलसी तोर||66||

हिन्दी भावार्थ:तुलसीदासजी जी स्वयं के लिए कहते हैं की मेरा स्वार्थ और परमार्थ सब एक ही ओर(श्री रामजी से) से सुलभ है| किसी और से आशा करना हे तुलसी तुझे उचित नही है|

देव,दनुज,नर,नाग,खग, प्रेत,पितर, गंधर्व|
बंदौ किन्नर रजनिचर , कृपा करहू अब सर्व||67||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी रामचरित मानस की रचना प्रारंभ करते हुए सबकी वंदना करते है और कहते हैं कि देवता, दानव, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितृ गण गंधर्व, किन्नर और निशचार सबको वंदन है , सब मुझपर कृपा करें की मैं यह रामचरितमानस यह कठिन कार्य सफलतापूर्वक संपन्न कर सकूँ|

राम वाम दिशि जानकी, लखन दाहिनी ओर|
ध्यान सकल कल्याणमय , सुर तरु तुलसी तोर||68||

हिन्दी भावार्थ: श्री रामजी के बाईं तरफ माता सीता और दाहिनी तरफ लक्ष्मण जी खड़े है. इस प्रकार से ध्यान करना सभी कल्याण को देने वाले कल्प वृक्ष के समान है|

जड़, चेतन, जग,जीव,जत, सकल राम मय जान|
वंदौ सबके पद कमल, सदा जोरि जुग पानी||69||

हिन्दी भावार्थ: जो जड़ हैं , गति हीन हैं, और जीवित हैं, संसार में जीतने भी जीव जन्तु निष्प्राण पदार्थ हैं , सभी को ऱाममय समझो| मैं हाथ जोड़कर इन सबके चरण कमल की वंदना करता हूँ क्योंकि सबमे श्री राम ही हैं|

सम प्रकाश तम पाख दुहुन, नाम भेद विधि कीन्ह |
शशि शोषक पोषक समुझि , जग जस अपजस दीन्ह ||70||

हिन्दी भावार्थ: चंद्रमा की घटती बढ़ती कला के अनुसार लोगों ने शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का विभेद कर दिया और एक को पोषण करने वाला और दूसरे को हानि करने वाला समझ कर चंद्रमा को यश और अपयश का भागी होना पड़ता है|

मान राखिबो माँगिबो, पिय सो नित नव नेह |
तुलसी तीनो तब फबें, जो चातक मत लेह ||71||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास कहते हैं कि पहले आत्मसम्मान की रक्षा, फिर माँगना और फिर प्रियतम से प्रेम को नित्य बढ़ाने की प्रार्थना करना—ये तीनों बातें तभी फबती हैं(जँचती हैं) जब चातक की तरह आपका प्रभु के प्रति प्रेम एकनिष्ठ हो|

प्रिय लागहि अति सबहि मम , भलित राम जस संग|
दारू विचारू की करई कोउ , बन्दिअ मलय प्रसंग||72||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास कहते हैं कि श्रीरामजी के यश के संग से मेरी कविता सभी को अत्यन्त प्रिय लगेगी, जैसे मलय पर्वत के संग से काष्टमात्र चन्दन बनकर वन्दनीय हो जाता है, फिर क्या कोई काठ का विचार करता है ।

बिनु सत्संग ना हरि कथा, तेहि बिनु मोह ना भाग|
मोह गये बिनु राम पद, होई ना दृढ़ अनुराग||73||

हिन्दी भावार्थ: बिना सत्संग किए और हरी कथा सुने मोह नही जाता और बिना मोह गये श्री रामजी के चरनो में दृढ़ प्रीति नही होती|

जुगुती बेधि पुनि टोहि अही,  रामचरित बरताग|
पहिरहि सज्जन विमल उर,शोभा अति अनुराग||74||

हिन्दी भावार्थ: कवित्व का सौंदर्य रामचरित रूपी तागे में विवेक से बीन्ध कर प्रभु भक्ति की माला बनती है| ‘सजन अपने विमल उर पर इसको ( मणिमाला को ) पहनते हैं और अनुराग की शोभा  उत्पन्न होती है

माली, भानु, किसान सम, नीति निपुण नरपाल|
प्रजा भाग बस होहिंगे, कबहु कबहु कलिकाल ||75||

हिन्दी भावार्थ: जैसे माली अपने सब पुष्पों का ख्याल रखता है, सूर्य अपना प्रकाश सबको बराबर बाँटता है, और किसान जैसे अपनी खेती का श्रम पूर्वक सुख त्यागकर ध्यान रखता है ऐसे नीति निपुण राजा कलियुग में कभी कभार ही होंगे|

श्याम सुरभि पय विशद अति , गुणद करहि  सब पान|
गिरा ग्राम्य  सिय राम  जस , गावहि सुनहि सुजान||76||

हिन्दी भावार्थ: श्याम गौ काली होने पर भी उसका दूध बहुत गुणकारी होता है, ऐसा मानकर सब दूध पीते हैं | उसी प्रकार श्र राम चरितमानस की भाषा गवाँ रु होने पर भी श्री राम नाम के रस से युक्त होने के कारण सब इसे बड़े चाव से सुनते हैं|

बरसत हरषत लोग सब, करषत  लखे ना कोय|
तुलसी प्रजा सुभाग ते, भूप भानु सो होई||77||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि जब सूर्य पानी को सोखता है तो किसी को जान नही पड़ता पर जब यही पानी वर्षा होकर बरसता है तो सब लोग सुखी हो जाते हैं| इसी प्रकार राजा को ऐसा होना चाहिए कि कर लेते समय किसी को भार ना लगे , लेकिन जब वह प्रजा को इसका लाभ दे तो सब प्रसन्न हो ज्जायें |ऐसे सूर्य के समान , बड़े भाग्य से प्रजा को  मिलता है|

Tulasidas Amritvani dohe – Lyrics in English

Re man sab so niras hai, Saras Ram o hohi|
Bhalo sikhavan det hain, Nis din Tulasi tohi||61||

Hare charahin tapahin bare, Kshare pasarahin haath|
Tulasi swarath meet sab, Paramarath Raghunath||62||

Bhag chhot abhilash bad, Karau ek vishwas|
Hehahi sukh suni sujan sab, Khal karihahi upahas||63||

Swarath SitaRam so, Paramarath SiyaRam|
Tulasi tero doosare, Dwar kahan kahun kaam||64||

Grah bheshaj jal pawan pat, Paai kujog sujog|
Hohi kuvastu suvastu jag, Lakhai sulakshan log||65||

Swarath paramarath sakal, Sulabh ek hi or|
Dwar doosare din ka, Uchit na Tulasi tor||66||

Dev,Danuj,Nar,Nag,Khag, Pret,Pitar Gandharv|
Bandau Kinnar raj Nichar, Kripa karahu ab sarv||67||

Ram vaam dishi Janaki, Lakhan daahini or|
Dhyan sakal kalyanmay, Sur taru Tulasi tor||68||

Jad Chetan jag,jeev,jat, Sakal Ramay jaan|
Vandau sabke pad kamal, Sada jori jug paani||69||

Sita Lakhan samet Prabhu, Sohan Tulasidas|
Harashat sur barasat suman, Sagun sumngal baas||70||

Sam Prakash tam paakh duhun, Naam bhed vidhi keenh|
Shashi shoshak poshak samuhji, Jag jas apajas deenh||71||

Maan rakhibo mangibo, Piy so nit nav neh|
Tulasi teeno tab fabein, Jo Chatak mati lehu||72||

Priy lagahi ati sabahi mam, Bhalit Ram jas sang|
Daru vicharu ki karai kou, Bandi amalay prasang||73||

Binu satsang na Hari katha, Tehi binu moh na bhaag|
Moh gaye binu Ram pad, Hoi na dridh anuraag||74||

Juguti bedhi puni tohi ahi, Ramacharit barataag|
Pahirahi sajjan vimal ur,Shobha ati anurag||75||

Mali, Bhanu, Kisan sam, Neeti nipun narapaal|
Praja bhag bas hohinge, Kabahu kabahu Kalikal||76||

Shyam surabhi pay vishad ati, Gunad karahi sab paan|
Gira gramya SiyRam jas, Gavahin sunahi sujan||77||

Barashat harashat log sab, Karashat lakhay na koy|
Tulasi praja subhag te, Bhoop Bhanu so hoi||78||

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