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तुलसीदास अमृतवाणी दोहे-अर्थ सहित & English Lyrics-1

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(1)

तुलसीदास के दोहे-अमृतवाणी:( हिन्दी भावार्थ सहित) 

Tulsidas Ke Dohe- Amritvani : Lyrics with meaning in Hindi

चित्रकूट के घाट पे, भाई संतन की भीर|
तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करें रघूबीर||1||

Chitrakoot ke ghat pe, Bhai santan ki bheer|
Tulasidas chandan ghise, Tilak karein Raghubeer||1||

प्रसंग:   कहा जाता है यह दोहा श्री हनुमान जी ने तोते का रूप धारण करके तुलसीदासजी को ध्यान दिलाया था कि वो जिस बालक का तिलक कर रहे हैं वो कोई और नही बल्कि प्रभु श्री राम और लक्ष्मण हैं|

हिन्दी भावार्थ: चित्रकूट के घाट पे, कई संत आए हुए हैं और तुलसीदास चंदन घिसकर  श्री रामचन्द्रजी के माथे पर तिलक लगा रहे हैं|


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जात हीन अब जन्म महि, मुक्त कीन्ह असि नार|
महानंद मन सुख चहसि, ऐसे प्रभुहि विसार||2||

Jat hin ab janm mahi, mukt keenh asi naar|
Mahanand man shukh chahasi, Aise Prabhuhi visar||2||

प्रसंग: जब श्री रामजी  माता सीता को खोकर, वन-वन भटक रहे थे, उसी समय वो शबरी के आश्रम पर गये| शबरी ने भगवान की खूब सेवा की और प्रभु चरणों में अपना शरीर छोड़ दिया| गोस्वामी तुलसीदासजी कह रहे हैं की शबरी  को भी  भगवान ने तार दिया.

हिन्दी भावार्थ:गोस्वामी तुलसीदास  जी कह रहे हैं की शबरी जैसी छोटी जाति और पापिनि समझी जाने वाली ( उस समय की समाज की विषमतायें , जबकि शबरी  महान संत थीं) स्त्री को भी भगवान ने प्रबल भक्ति का नाता जानकार मुक्ति दे दिया| और ऐसे परम दयालु भगवान राम को  छोड़ कर मन अपना सुख चाहत है, ये कैसे सम्भव है? अर्थात ये मन की मूर्खता है की भगवान को छोड़ कर किसी और चीज़ की इच्छा रखता है|

राम प्रेम बिना दूबरो, राम प्रेम ही पीन|
ऱघुबर कबहु ना कर हुंगे, तुलसी जो जल मीन||3||

Ram prem bina doobaro, Ram prem hi peen|
Raghubar kabahu na kar hunge, Tulasi jo jal meen||3||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी उस दिन की बाट देख रहे हैं कि जैसे मछली जल से ही प्राणवान है और बिना जल के प्राण छोड़ देती है, उसी प्रकार प्रभु कब आप मुझ पर ऐसी कृपा करेंगे  कि राम का प्रेम ही हमारा बल हो और राम प्रेम के बिना हम दुबले हो जायें|

नीच मीचु लै जाइ जो राम रजायसु पाइ|
तौ तुलसी तेरो भलो न तु अनभलो अघाइ||4||

Meench meechu le jaaye jo, Ram rajayasu paay|
Ta Tulasi tero bhalo, Natu an bhalo aghay||4||

हिन्दी भावार्थ : ऐ नीच! प्रभु श्रीराम के कार्यों को करते हुए तुझे मौत भी आ जाए तो इसमें भी तू अपना भला ही समझ क्योंकि भगवान राम की सेवकाई के बिना तो तेरा जीवन के बिना तो तेरा जीवन व्यर्थ है| यदि श्री रामजी के लिए प्राण भी चले जायें तो भी हमे अपनी हानि नही समझनी चाहिए|

तुलसी दिन भाल साहू कह, भली चोर कह रात|
निसि वासर को कह भलो, मानो राम  विताती||5||

Tulasi din bhal sahu kah, Bhali chor kah raaat|
Nis vasar ko kah bhalo, Mano Ram viatati||5||

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की साहूकार और सेठ लोग दिन को अच्छा  बताते हैं और चोर रात्रि तो अच्छा बताते हैं (अपने अपने लाभ को सोचते हुए) लेकिन राम भक्तों के लिए तो रात और दिन एक सामना हैं | वो किसे अच्छा कहें किसे बुरा कहें  क्योकि बिन राम के दिन और रात, कोई भला नही है |

सधन सगुन सधरम सगन, सबल सुसाई महीप|
तुलसी जे अभिमान बिनु ,ते तिभुवन के दीप||6||

Sadhan sagun sagharan sagun, Sabal subhayi maheep|
Tulasi je abhiman bino, Te tribhuvan ke dweep||6||

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कहते है कि जो पुरुष धनवान्,गुणवान्, धर्मात्मा सेवको से युक्त,बलवान् और सुयोग्य स्वामी तथा राजा होते हुए भी अभिमान रहित होते है, वे ही तीनो लोको मे नीओ लीक में उनका कीर्ति का प्रकाश होता है।

साहब ते सेवक बडो, जो निज धर्म सुजान|
राम बान्धि उतरे उदधि , लाँघी गये हनुमान||7||

Sahab te sevak bado, Jo nij dharm sujaan|
Ram baandhi utare udadhi, Langhi gaye Hanuman||7||

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की जो सेवक अपनी पूरी निष्ठा के साथ कार्य करता है उसकी ख्याति मलिक से भी बड़ी होती है | जैसे प्रभु श्री राम को तो स्मुद्र पार करने के लिए पुल बंधना पड़ा था पर श्री हनुमानजी  तो उसे कूद कर ही पार कर गये थे |

प्रभु समीप गत सुजन जन, होत सुखद सुविचार|
लवन जलधि, जीवन जलद, भरसक सुधा सुधार||8||

Prabhu sameep gat sujan jan, Hot sukhad suvichar|
Lavan jaladhi, Jeevan jalad, Bharasak sudha sudhar||8||

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की जो लोग सज्जन होते हैं, उनके पास जाने से वो और भी भी सज्जनता से सुशोभित हो जाते हैं | जैसे बदल , समुद्र के खरे पानी से जन्म लेते हैं लेकिन फिर भी मीठा पानी बरसाते हैं |

सुधा साधु सुर तरु सुमन, सुफल सुहावनी बात|
तुलसी सीता पति भगती, सगुण सुमंगल सात||9||

Sudha sadhu sur taru suman, Sufal suhavani baat|
Tulasi Sitapati bhagati, Sagun sumangal saat||9||

हिन्दी भावार्थ : तुलसीदासजी कह रहे हैं की अमृत, साधु, कल्प वृक्ष, सुंदर पुष्प, सुंदर फल और सुहावनी बात और सीता पति श्री राम जी की भक्ति ये सात मंगलकारी हैं | ये हमेशा सुख देने वाले है और शुभ ही करते हैं |

जो जो जेहिं जेहिं रस मगन तहँ सो मुदित मन मानि|
रस गुण दोष विचार सो, रसक रीति पहचानी||10||

Jo jo chehi ras magan, Tah so mudit man maani|
Ras gun dosh vichair so, Rasak reeti pahachani||10||

हिन्दी भावार्थ: जो जो जेहिं जेहिं रस मगन तहँ सो मुदित मन मानि। रसगुन दोष बिचारिबो रसिक रिति पहिचानि। तुलसीदास कहते हैं कि जो-जो जिस-जिस रस में मग्न होता है, वह उसी में संतोष मानकर आनंदित होता है। लेकिन उसके गुण-दोषों को केवल रसिक जन ही पहचानते हैं। 

तुलसी निज करतूति बिनु, मुकुत जात जब कोय|
गया अज़ामिल लोक हरि, नाम सक्यो नही धोय ||11||

Tulasi nij kartooti binu, Mukut jaat jab koy|
Gaya Ajamil lok Hari, Naam sakyo nahi dhoy||11||

हिन्दी भावार्थ: जब कोई बिना अपने प्रयास के मुक्ति पा जाता हा तो उसकी उतनी बड़ाई नही होती | जैसे अज़ामिल वैकुंठ  तो चला गया, लेकिन लोग उसका नाम एक पापी के रूप में जानते हैं |

निज दूषन गुन राम  के, समुझें तुलसीदास|
होइ भलो कलिकाल हूँ, उभय लोक अनयास||12||

Nij dooshan gun ram ke ,Samujhe Tulasidas|
Hoi bhali kalikalhu, Ubhayalok aniyas||12||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं की जो मनुष्य अपने दोषो और श्री रामजी के गुणो को समझ लेता है , इस कलियुग में उसके इह लोक और परलोक दोनो ही सुधार जाते हैं |

राम नाम नरकेसरी, कनक कशिपु कलिकाल|
जापक जल प्रहलाद जिमी, पालिहि दलि सुरसाल ||13||

Ram naam Narkesari, Kanak Kashipu Kalikal|
Jaapak jal Prahalad jimi, Paalihi dali sursal||13||

हिन्दी भावार्थ: श्री रामजी का नाम भगवान नरसिंह के सामन है और कलियुग , हिरण्यकश्यप राक्षस के समान | राम नाम भजने वाले  भक्तजन प्रहलाद के समान हैं |राम नाम कलियुग  का हनन करके जापक और देवताओं की रक्षा करता है |

अनुचित उचित विचार तजि, जे पालहि पितु बैन|
ते भाजन सुख-सुजस के, बसहिं अमरपति ऐन||14||

Anuchit uchit vikaru taji , Je paalahi pitu bain|
Te bhojan sukh sujas ke, Basahi amarpati yen||14||

हिन्दी भावार्थ: जो संतति अपने पिता की बात का पालन  उचित अनुचित का विचार छोड़कर ,करते हैं वो इस लोक में सुख और यश प्राप्त करते हैं और परलोक में स्वर्ग का सुख भोगते हैं|

शठ सेवक की प्रीति रूचि , रखिहहि राम कृपाल|
उपल किए जल जान जहि, सचिव सुमति कपि भालू||15||

Shath sevak ki preeti ruchi , Rakhihahi Ram Kripal|
Upal kiye jal jaan jahi, Sachiv sumati kapi bhalu||15||

हिन्दी भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं की प्रभु श्री राम मुझ जैसे दुष्ट सेवक की भी प्रीति और रूचि को अवश्य रखेंगे जैसे उन्होने पत्थरों को भी जहाज़ बना दिया और बंदरों और भालुओं को भी मंत्री|

राम निकाइ रावरी, है सबही को नीक|
जो यह सांची है सदा, तो नीका तुलसीक||16||

Ram nikaai raavari, Hai sabahi ko neek|
Jo yah saanchi hai sada, To neeka Tulaseek||16||

हिन्दी भावार्थ: हे रामजी आपके अच्छाई से सबका ही भला होता है, जो यह बात सत्य है, तो तुलसीदास का भी सदा कल्याण होगा| इसमे कोई संदेह नही है |

स्वारथ सुख सपनेहु अगम, परमारथ ना प्रवेश|
राम नाम सुमिरत मिटहि , तुलसी कठिन कलेश||17||

Swarath sukh sapanehu agam, Paramarath na pravesh|
Ram naam sumart mitahi, Tulasi kathin kalesh||17||

हिन्दी भावार्थ: स्वार्थी व्यक्ति जिनके लिए सपने में भी सुख सुलभ नही है और, परमार्थ में मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में जिनका प्रवेश नही है| ऐसे लोगों को भी राम नाम जपने से  कठिन से कठिन दुखों से भी  छुटकारा  मिल जात है |  अर्थात, जिनका स्वार्थ नही सिद्ध होता और न ही परमार्थ  सिद्ध होता है, ऐसे लोगों के भी इन दोनो लक्ष्यों की प्रति के लिए, रास्ते के क्लेश और दुख सिर्फ़ राम नाम जपने से मिट जाते हैं|

प्रभु तरु तर कपि डार पर, पीकिये आप समान|
तुलसी कहु ना राम से, साहिब शील निधान||18||

Prabhu taru tar Kapi daar par, Peekiye aap samaan|
Tulasi kahu na Ram se, Sahab sheel nibhan||18||

हिन्दी भावार्थ: प्रभु श्री राम वृक्ष  के नीच बैठने वाले हैं और बंदर वृक्ष  की शाखाओं पर बैठने वाले लेकिन फिर भी प्रभु ने उनको अपने समान बना दिया| तुलसीदास जी कहते हैं की प्रभु श्री राम सा शीलवान और सज्जन स्वामी कहाँ मिलेगा | अर्थात कहीं नही |

कहत कठिन समुझत कठिन, साधन कठिन विवेक|
होई घुलाक्षर न्याय जो, पुनि प्रत्यूह अनेक||19||

Kahat Kathin samujhat kathin, Saadhan kathin vivek|
Hoi ghulakshar nyay jo, Puni pratyuh anek||19||

हिन्दी भावार्थ: ब्रह्मज्ञान मेंकठिन और साधने में भी कठिन है। यदि घुणाक्षर न्याय से (संयोगवश) कदाचित यह ज्ञान हो भी जाए, तो फिर (उसे बचाए रखने में) अनेकों विघ्न हैं

मुझे भरोसो एक बल, एक आस विश्वास|
एक राम घनश्याम हित , चातक तुलसीदास||20||

Mujhe bharoso ek bal, Ek aas vishwas|
Ek Ram ghanshyam hit, Chatak Tulasidas||20||

हिन्दी भावार्थ: प्रस्तुत दोहे में तुलसीदासजी कहते हैं कि केवल एक ही भरोसा है, एक ही बल है, एक ही आशा है ।और एक ही विश्वास है। एक रामरूपी श्यामघन ( मेघ ) के लिए ही यह तुलसीदास चातक बना हुआ है|

तुलसीदास अमृतवाणी दोहे अर्थ सहित & English Lyrics-2

Tulasidas Amritvani dohe – Lyrics in English

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