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कंजूस दर्जी

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कंजूस दरजी

(पुरानी ग्रामीण आँचलिक कहानी)

एक था दर्जी, एक थी दर्जिन। दोनों बड़े  कंजूस थे। उनके घर कोई मेहमान आता, तो उन्हें लगता कि कोई आफत आ गई। एक बार उनके घर दो मेहमान आए। दरजी के मन में फिकर पैदा हो गई। उसने सोचा कि ऐसी कोई तरकीब चाहिए कि ये मेहमान यहां से चले जायें।

दर्जी ने घर के अन्दर जाकर दर्जिन से कहा, “सुनो, जब मैं तुमको गालियां दूं, तो जवाब में तुम भी मुझे गालियां देना। और जब मैं अपना गज लेकर तुम्हें मारने दौड़ू तो तुम आटे वाली मटकी लेकर घर के बाहर निकल जाना। मैं तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ूगा। मेहमान समझ जायेंगे कि इस घर में झगड़ा है, और वे वापस चले जायंगे।”

दर्जिन बोली, “अच्छी बात है।”

कुछ देर के बाद दर्जी  दुकान में बैठा-बैठा दर्जिन  को गालियां देने लगा। जवाब में दर्जिन ने भी गालियां दीं। दर्जी  गज लेकर दौड़ा। दर्जिन  ने आटे वाली मटकी उठाई और भाग खड़ी हुई।


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मेहमान सोचने लगे, “लगता है यह दर्जी  बड़ा कंजूस  है। यह हमको खिलाना नहीं चाहता, इसलिए यह सारा नाटक कर रहा है। लेकिन हम इसे छोड़ेंगे नहीं। चलो, हम पहली मंजिल पर चलें और वहां जाकर-सो जाएं। मेहमान ऊपर जाकर सो गए। यह मानकर कि मेहमान चले गए होंगे, कुछ देर के बाद दर्जी  और दर्जिन  दोनों घर लौटे। मेहमानों को घर में न देखकर दर्जी  बहुत खुश हुआ और बोला, “अच्छा हुआ बला टली।”

फिर दर्जी  और दर्जिन  दोनों एक-दूसरे की तारीफ़ करने लगे।

दर्जी  बोला, “मैं कितना होशियार हूं कि गज लेकर दौड़ा!”

दर्जिन  बोली, “मैं कितनी फुर्तीली हूं, कि मटकी लेकर भागी।”

मेहमानों ने बात सुनी, तो वे ऊपर से ही बोले, “और हम कितने चतुर हैं कि ऊपर आराम से सोए हैं।”

सुनकर दर्जी -दर्जिन  दोनों खिसिया गए। उन्होंने मेहमानों को नीचे बुला लिया और अच्छी तरह खिला-पिलाकर बिदा किया।

 

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