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सास बहू का वैमनस्य

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सास बहू का वैमनस्य

एक सज्जन थे उनका विवाह हुआ,शादी विवाह के बाद जो उनके घर में बहु आयी,उसका अपनी सास से थोड़ी बातों के लिए नोक-झोक शुरू हुई | जैसा कि अक्सर हर घर में कुछ बातों के लिए नोक-झोक होता रहता है | ऐसा ही सास और बहु में भी हो रहा था | बेटा कभी माँ कि तरफ तो कभी पत्नी कि तरफ,दोनों में सामंजस्य बनाने कि कोशिस में लगा हुआ था लेकिन नहीं हो पा रहा था क्योंकि सास और बहु में पट नहीं रही थी | उसकी पत्नी एक दिन परेशान हो कर मायके चली गयी | पत्नी के पिता वैद्य थे | वह अपने पिता से बोली कि मैं अपनी सास से तंग आ गयी हूं,रोज लड़ाई – झगड़ा होता है ,आप मुझे ऐसी दवा दीजिये जिसे मैं सास को खिलाऊँ और वो धीरे -धीरे समाप्त हो जाये |

पिता ने बेटी को समझाया कि ये गलत कार्य है और ऐसा नहीं करना चाहिए | पिता कि बात सुनकर बेटी ने कहा कि यदि आप मुझे वैसी दवा नहीं देंगे तो मैं आपके सामने ही प्राण त्याग दूंगी | व्यक्ति को इतना घमंड,क्रोध,ईर्ष्या,जलन हो जाता है | पिता बोले कि अच्छा मैं तुम्हारा बाप हूँ इसलिए मैं तुम्हारे हित के लिए जो उचित होगा करूँगा | पिता ने एक दवा बेटी को देते हुए कहा कि लो रोज अपनी सास के खाने में इसको मिला दिया करना और बोले कि बहुत धीरे-धीरे यह प्रक्रिया हो ताकि किसी को शंका न हो ,लगभग ६-८ महीने में उसका शरीर छूट जायेगा ,लेकिन एक शर्त है कि इस प्रक्रिया में एक बात ध्यान रखना है कि उसको किसी तरह का दुःख,कस्ट,क्रोध उत्पन्न न होने देना ,नहीं तो फिर यह दवा असर नहीं करेगी |

बेटी ने सोचा जब इतना ही है तो दिल पर पत्थर रख कर के अपने स्वभाव में परिवर्तन करूंगी और ससुराल चली आयी और सास से बहुत अच्छा व्यवहार करने लगी | रोज रात में अपनी सास के पेर दबाना,मालिश करना और खाने में अपने पिता कि दी हुई दवाई डालती रही | ऐसा करते करते ३ महीने बीत गए,सास ने देखा कि बहु कितनी अच्छी है, पड़ोस में उसकी तारीफ भी करने लगी,बहु कितनी अच्छी है,मेरा ख्याल रखती है,समय पर सारे कार्य करती है,किसी को कस्ट नहीं होने देती | जब बहु ने ये सारी बातें सुनी तो परेशान हो गयी, अरे ! ५ महीने हो गए , ६-८ महीने में ये मर जाएँगी ,मैं ये क्या कर रही हूँ,क्योंकि दोनों में प्रेम हो गया था,माहौल बदल गया था ,पूरा परिवार एक साथ उठने बैठने लगा था |

बहु अपने पिता के घर गयी और बोली कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी,मेरी सास तो बहुत अच्छी है अब उनके मरने में एक महीना बचा है ,इसलिए कोई दवा दीजिये जिससे वो दीर्घायु प्राप्त करें | पिता सारी बात सुन कर हसने लगे और बोले कि बेटी मैंने तुम्हे जो दवा दी थी वो भोजन को पचाने वाला पाचक था | हमारे अंदर भी बहुत सी कमिया है,अहंकार है,घृणा है,ईर्ष्या है, ये मेरे नहीं हैं इन्हे हमने अपने घर में बुला कर पाल लिया है,इनको हटाते ही हमारे पास ईश्वर का दिया हुआ प्रेम ही रह जायेगा |

— पूज्य गुरुपद बाबा
श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम् पड़ाव वाराणसी

लेख सौजन्य : अवधूत भगवान राम विश्व अघोर संगठन

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