May 29, 2023
0
(0)

बड़ा पापी कौन ?

एक बार एक संत के दो शिष्य उनसे मिलने जा रहे थे। पूरे दिन का सफर था। चलते-चलते रास्ते में एक नदी पड़ी। उन्होंने देखा कि उस नदी में एक स्त्री डूब रही है। शिष्य के लिए स्त्री का स्पर्श वर्जित माना जाता है। ऐसी दशा में क्या हो? उन दोनों शिष्यों में से एक ने कहा- “हमें धर्म की मर्यादा का पालन करना चाहिए। स्त्री डूब रही है तो डूबे! हमें क्या!” लेकिन दूसरा शिष्य अत्यंत दयावान था। उसने कहा- “हमारे रहते कोई इस तरह मरे यह तो मैं सहन नहीं कर सकता।” इतना कहकर वह पानी में कूद पड़ा डूबती स्त्री को पकड़ लिया और कंधे का सहारा देकर किनारे पर ले आया। दूसरे शिष्य ने उसकी बड़ी भर्त्सना की, रास्ते भर वह कहता रहा कि- “मैं जाकर तथागत से कहूंगा कि आज तुमने मर्यादा का उल्लंघन करके कितना बड़ा पाप किया है।”

दोनों संत के सामने पहुंचे तो दूसरे शिष्य ने एक सांस में सारी बातें कह सुनाईं- “भंते! मैंने इसको बहुतेरा रोका, पर यह माना ही नहीं। बड़ा भयंकर पाप किया है इसने।”
संत ने उसकी बात बड़े ध्यान से सुनी, फिर पूछा- “इस शिष्य को उस स्त्री को कंधे पर बाहर लाने में कितना समय लगा होगा? कम-से-कम पंद्रह मिनट तो लग ही गए होंगे। अच्छा! संत पूछा- “इस घटना के बाद यहां आने में तुम लोगों को कितना समय लगा?” शिष्य ने हिसाब लगाकर उत्तर दिया- “यही कोई छ: घंटे!”

संत ने कहा- “भले आदमी! इस बेचारे ने तो उस स्त्री की प्राण रक्षा के लिए उसे सिर्फ पंद्रह मिनट ही अपने कंधे पर रखा लेकिन तू तो उसे छ: घंटे से अपने मन में बिठाए हुए है, वह भी इसलिए कि मुझसे इसकी शिकायत कर सके। बोल दोनों में बड़ा पापी कौन है?”

बेचारा शिष्य निरुत्तर हो गया। वह समझ गया कि पाप सिर्फ शरीर से ही नही मन से भी होता है, मनुष्य बड़ा पापी मन से होता है।

Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀


Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!