विरह पर कबीर के दोहे|Kabir Ke Dohe On Separation
अंखियाॅ तो झैन परि, पंथ निहार निहारजीव्या तो छाला पारया, राम पुकार पुकार। Aakhiyan to jhain pari , panth nihar...
अंखियाॅ तो झैन परि, पंथ निहार निहारजीव्या तो छाला पारया, राम पुकार पुकार। Aakhiyan to jhain pari , panth nihar...
कबीर खारहि छारि के, कंकर चुनि चुनि खायरतन गावये रेत मैं, फिर पाछै पछताय। Kabir kharahi chhari ke ,kankar chuni...
कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहितीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि। Kabir aundhi khopari,kabahu dhapai nahiTeen lok ki...
काहु जुगति ना जानीया,केहि बिधि बचै सुखेतनहि बंदगी नहि दीनता, नहि साधु संग हेत। kahu jugati na janiya,kehi bidhi bachai...
अंतर यही बिचारिया, साखी कहो कबीरभौ सागर में जीव है, सुनि कै लागे तीर। Anter yahi bichariya,sakhi kaho KabirBhau sagar...