वृंदावन स्थित निधिवन(Nidhivan) में युगल किशोर भगवान श्री कृष्ण-राधा जी का परम पुनीत धाम माना जाता है। यह उनकी नित्य लीला स्थली है। आइये जानते हैं कि भगवान की कौतुक स्थली निधिवन में रात को क्या होता है?
मान्यता है की आज भी नित्य रात्रि को यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण श्री राधा जी और उनकी गोपी सखियों के साथ परमानन्द की रासलीला रचाते हैं। यह लीला आध्यात्मिक धरातल पर होती है और सामान्य नेत्रों से दृष्टिगोचर नहीं होती।
निधिवन(Nidhivan) परिसर में बहुत सारे तुलसी के वृक्ष हैं जो जोड़े में हैं। इनमें से एक किसी गोपी को और दूसरा उनके साथ श्रीकृष्ण को निरूपित करता है। ये वृक्ष आपस में एक दूसरे के साथ अद्भुत रूप से गुथम-गुत्था हैं। परिसर में रंगमहल नाम का मंदिर भी है जहाँ गिरधर श्री कृष्ण श्री राधा जी के साथ विश्राम करते हैं। यहाँ एक और मंदिर है जिसे राधा मंदिर के नाम से जानते हैं , यहाँ राधा जी ने प्रभु श्री कृष्ण की बांसुरी चुराई थी। परिसर में हरिभक्त स्वामी श्री हरिदास की एक तीर्थस्थली भी है। इसके अलावा यहाँ एक कुंड भी है जिसे श्री कृष्ण भगवान ने तब बनाया था जब गोपियों ने भगवान ने रासलीला के मध्य पानी की मांग की थी।
निधिवन के वृक्ष- Nidhivan Trees
पूरा निधिवन(Nidhivan) हरे भरे वृक्षों से आच्छादित है। ये निधिवन के वृक्ष(Nidhivan Trees) एक अति विशिष्ट प्रकार की तुलसियाँ हैं। इनका आकार हमारे घरों की आम तुलसियों से कुछ बड़ी पर बड़े वृक्षों जैसे आम,कटहल आदि से बहुत छोटी होता हैं। प्रायः सभी वृक्ष जोड़ो में हैं। इनमे से एक किसी सखी का और जोड़ा श्री कृष्ण का स्वरुप माना जाता है। दूर से निधिवन वृन्दावन शहर के ठीक बीचो बीच स्थित एक छोटा जंगल जैसे ही दिखता हैं। टेडी मेढ़े तने वाले ये वृक्ष काफी पुराने प्रतीत होते हैं आस पास की धरती भी अधिकतर सूखी ही नज़र आती है लेकिन फिर भी ये वृक्ष सदा पत्तों से हरे भरे नज़र आते हैं। बड़ी आश्चर्य की बात ये है कि इन वृक्षों कि शाखाएं ऊपर की बजाय नीचे की ओर बढ़ती हैं। पेड़ इस प्रकार घने रूप से बढ़ाते हैं की बीच से मार्ग के लिए कई वृक्षों को डंडे के सहारे रोका गया है।
शास्त्रों में कहा गया है कि वृन्दावन में वृक्ष , पौधे पेड़ पशु योनि भी संतो,भक्तों को ही मिलती है। निधिवन के वृक्ष (Nidhivan Trees)केवल वृक्ष न प्रतीत होकर जीवंत प्रेमी जीव की भांति प्रतीत होते हैं। भाव-प्रवण प्रेमियों की तरह आस पास को दो तुलसी वृक्षों की शाखाएं एक दूसरे से इस प्रकार लिपटी हुयी हैं कि सच में ही वो एक दूसरे में लोप हो जाना चाहती हैं। रात्रि को यही वृक्ष गोपी कर कृष्ण का रूप धारण कर रास रचाते हैं। यह आध्यात्मिक पटल की बातें हैं और प्रत्यक्ष आँखों की पहुँच से दूर हैं , पर कई सारे संतो , योगीजनों की बातों से यह तथ्य प्रमाणित है।
तुलसी के इन पौधों को यहाँ से ले जाना बिलकुल मना है। जिन लोगों ने इन वृक्षों को यहाँ से दूर करने का प्रयास किया उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़े।
निधिवन मंदिर-रंगमहल- Nidhivan Temple-Rangmahal
निधिवन में रंगमहल नामक एक महल है।इसी को कुछ लोग निधिवन मंदिर(Nidhivan Temple) के नाम से भी जानते हैं। यह वह स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने श्री राधिका जी को स्वयं अपने हाथों से सजाया था। निधिवन(Nidhivan) में नित्य रासलीला प्रसंग के पश्चात प्रभु श्री कृष्ण राधारानी जी के साथ यहाँ विश्राम करते हैं। युगल जोड़ी के विश्राम के लिए चन्दन की सुगन्धित शैय्या की व्यवस्था है। हर दिन संध्या काल में निधिवन(Nidhivan) का द्वार बंद होने पके पहले पुजारी जी इस शैय्या की साज सज्जा व व्यवस्था करते हैं।
श्री राधारानी के लिए,
- चूड़ियां
- वस्त्र
- आभूषण
- फूल
- फल आदि की व्यवस्था करते हैं।
इसके अलावा शैय्या के पास मिठाई,पान सुपारी,के साथ साथ सुबह दंतधावन के लिए नीम के दातुन और जल से भरा पात्र भी रखते हैं।सावधानीपूर्वक की गयी सारी व्यवस्थाओं के बाद रंगमहल(Rangmahal) और निधिवन(Nidhivan) के मुख्य द्वार बंद कर दिए जाते हैं और फिर इन्हे अगली सुबह ही खोला जाता है।
श्रद्धा का उत्स सुबह पुनः प्रकट होता है जब सुबह मंदिर का पट खुलता है। रात को अच्छे से सिलवट विहीन सजाया गया बिस्तर किसी के द्वारा सोया हुआ लगता है। नीम के दातुन प्रयुक्त किये हुए प्रतीत होते हैं। मिठाई और पान के पत्ते भी कुछ खाये हुए लगते हैं। साथ ही श्री राधारानी के लिए रखी गयी चूड़ियां,फल और कपड़े प्रयोग किये हुए समझ आते हैं।
प्रायः रंगमहल(Rangmahal) का द्वार सायं ६ से ७ बजे तक बंद किये जाता है और फिर इन्हे अगली सुबह ५ बजे के लगभग पुनः खोला जाता है। रंगमहल में भक्त केवल श्रृंगार का सामान ही चढ़ाते है और प्रसाद स्वरुप उन्हें भी श्रृंगार का सामान ही मिलता है।
निधिवन में रात को क्या होता है-Nidhivan Mein Rat Ko Kya Hota Hai
संध्या आरती के पश्चात निधिवन(Nidhivan) को बंद कर दिया जाता है। इसके बाद निधिवन में कोई नहीं रहता है यहाँ तक कि दिन में दिखने वाले पक्षी भी सायं यहाँ से दूर उड़ते दिखाई देते हैं।दिन में घूमने वाले बन्दर भी संध्या को निधिवन(Nidhivan) छोड़ देते हैं। सूर्यास्त के पश्चात यहाँ किसी को भी आने की अनुमति नहीं है।
यहाँ के आस पास के मकानों में निधिवन(Nidhivan) की तरफ कोई खिड़की नहीं खुलती है। ऐसा लोग सावधानीवश करते हैं ताकि भूल से भी कोई खिड़की से रात्रि के समय इस ओर न देख ले। ऐसी सावधानी इसलिए बरतते हैं क्योंकि निधिवन में रात्रि के समय प्रभु कि रासलीला होती है और उस समय यदि कोई भूलकर भी वहां रह गया तो या तो उसकी मृत्यु हो गयी या तो वह पागल हो गया। यदि किसी के घर में खिड़की इस तरफ बनी भी हो तो वह शाम की आरती की घंटी के बाद उसे बंद कर देते हैं। स्थानीय लोगों ने रात्रि को निधिवन(Nidhivan) से आने वाली पायल ,संगीत आदि की ध्वनि सुनने की भी बात की है। निधिवन एक अलौकिक दिव्य स्थल है यहाँ रासलीला भी दिव्य धरातल पर होती है। इसलिए यहाँ आने वाले श्रद्धा से शीश नवाते हैं।
बांके बिहारी का प्राकट्य स्थल- Banke Bihari ka Prakaty Sthal
निधिवन(Nidhivan) को बांके बिहारी का प्राकट्य स्थल भी माना जाता है। वृंदावन के संत स्वामी हरिदास ने अपनी भक्ति और समर्पण से दिव्य युगल राधा कृष्ण को प्रसन्न किया और वे उनके सामने प्रकट हुए। बाद में, राधा और कृष्ण दोनों ने हरिदास ठाकुर के साथ रहने के लिए बांके बिहारी नामक एक ही मूर्ति रूप में मिल गए। कुछ वर्षों तक, बांके बिहारी की निधिवन में ही पूजा की गई और फिर थोड़े समय बाद उन्हें वृन्दावन में ही अलग मंदिर में स्थापित किया गय। इस मंदिर को ही अब बांके बिहारी मंदिर के नाम से जानते हैं।
संत हरिदास मंदिर- Sant Haridas Temple
निधिवन में संत हरिदास मंदिर (Sant Haridas Temple) है जो एक दिलचस्प कथा से जुड़ा हुआ है। यह 15वीं शताब्दी का समय था जब दिव्य संत हरिदास ने अपना आधार निधिवन(Nidhivan) बनाया था। भगवान कृष्ण को प्रभावित करने के उद्देश्य से उन्होंने बांसुरी बजाई। एक दिन भगवान कृष्ण उनके सपने में आए और निधिवन में ठीक उसी स्थान पर प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया। इसलिए इस स्थान का नाम प्राकट्य सातल (स्थल) भी पड़ गया।
ललिता कुंड (कुआं)-Shri Lalita Kund
निधिवन(Nidhivan) के अंदर एक छोटा कुआं स्थित है। इस ललिता कुंड से जुड़ी एक रोचक कहानी है। रास लीला करते समय श्री राधा की सखियाँ जिनका नाम ललिता था, प्यासी हो गईं। उसकी प्यास की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भगवान कृष्ण ने कुआँ बनाने के लिए एक बांसुरी का उपयोग किया। इसके कारण इस कुएं को “ललिता कुंड” के नाम से जाना जाता है। दिखने में तो यह एक कटाई कुआं जैसा लगता है।
श्री राधा मंदिर- Shri Radha Mandir
जब आप निधिवन(Nidhivan) जाते हैं, तो आपको ज्यामितीय डिजाइन वाला फर्श मिलेगा। इसी तल पर भगवान कृष्ण, राधा और गोपियां रासलीला करती हैं। इसका निर्माण उस स्मृति में किया गया है जिसमें राधा ने अपनी सखियों या सखियों के साथ कृष्ण की बांसुरी चुराई थी। श्री राधा की सखियों का नाम विशाखा और ललिता था।
निधिवन का रहस्य-Nidhivan Temple Mystery
निधिवन का प्रमुख रहस्यमय तथ्य (Nidhivan Temple Mystery) है यह है कि जिसने भी रात्रि को रासलीला देखने का प्रयत्न किया है उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़े हैं। या तो व्यक्ति का कहीं पता ही नहीं चला यदि बच भी गया तो बोलने देखने की क्षमता ही खो बैठा। उनका मानसिक संतुलन भी खो जाता है। जिसने भी वहां जो कुछ भी देखा सुना वह उसे व्यक्त करने की क्षमता ही खो बैठा
निधिवन(Nidhivan) से जुड़ा एक और रोचक बात रॉक गार्डन (Rock garden) की है जहाँ युवा कृष्ण के पैरों के निशान हैं। इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण का बछड़ा भी पहाड़ों में देखा जा सकता है। लोग यह भी कहते हैं कि श्री कृष्ण कि बांसुरी कि मधुर ध्वनि सुनकर बड़े बड़े पहाड़ पिघलकर चट्टानों में बदल जाते हैं।
निधिवन की सच्ची कहानी-Nidhivan ki Katha
गीताप्रेस गोरखपुर में पूज्यश्रीहरि बाबा महाराज की एक डायरी रखी है उसमे बाबा के द्वारा हस्तलिखित लेख है। उसमें उन्होनें अपने पूज्य गुरुदेव के जीवन की एक सत्य घटना लिखी है।वृंदावन के निधिवन की सच्ची घटना है।
निधिवन(Nidhivan) में एक बार बाबा ने रात बिताई कि देखूँ तो सही कि सत्य में आज भी रास होता है क्या? कहते हैं एक दिन रात भर रहे कुछ नही दिखा, तब भी मन में यह विचार नहीं आया कि यह सब झूठ है।दूसरी रात फिर बिताई मंदिर बंद होने पर लताओं में छुप कर रात बिताई। उस रात कुछ न के बराबर मध्यम -मध्यम अनुभव हुआ, एकदम न के बराबर। उस दिव्य संगीत को सुना लेकिन उस संगीत के स्वर- लहरियों का ऐसा प्रताप हुआ की बाबा मूर्छित हो गये। जब सुबह चेतना में आये तब मन ही मन ऐसा संकल्प ले लिया कि अब दर्शन तो करना ही है।बाबा ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर एक बार और प्रयास किया कि देखूँ तो सही रास कैसा होता है?
इस तीसरी रात श्रीहरिबाबा के पूज्य गुरुदेव लताओं के बीच कहीं छुप गये। आधी रात तक उन्होनें लिखा कि कहीं कुछ दर्शन नही हुआ परंतु प्रतीक्षा में रहे। मध्य रात्रि होने पर निधिवन में एक दिव्य सुगंध का प्रसार होने लगा, एक अलौकिक सुगंध। अब बाबा सावधान हो गये समझ गये कि लीला आरंभ होने वाली है।बाबा अब और अधिक सतर्कता से बैठ गये।
तभी कुछ समय बाद बाबा को कुछ धीरे- धीरे नूपुर के झंकार की आवाज सुनाई देने लगी छन-छन-छन। बाबा को लगा जैसे कोई आ रहा है तब बाबा और सावधान हो गये। बाबा ने मन को और अधिक दृढ़ किया संभाला।अब बाबा ने बड़े गौर से देखने का प्रयास किया तब बाबा ने देखा कि किशोरी जी- लाल जी के कंठ मे गलवईयाँ डालकर धीरे धीरे एक एक कदम बढ़ाकर निधिवन(Nidhivan) की लताओं के मध्य से चली आ रहीं हैं।बाबा तो देखकर हतप्रभ आश्चर्यचकित जड़ से हो गये।
बाबा और संभल गये और बाबा ने लिखा कि आज प्रियाजी को देखकर मन मे बड़ी आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हो रही है।प्रिया जी प्रत्येक लता के पास जाकर जाकर कुछ सूँघ रहीं थीं।लालजी ने पूछा- “हे किशोरी जी आप हर एक लता के पास जाकर क्या सूँघ रही हो? क्या आपको कोई सुगंध आ रही है?”
श्री किशोरीजी ने कहा- “लालजी आज हमें ऐसा अनुभव हो रहा है कि हमारे इस निकुँज वन में किसी मानव ने प्रवेश कर लिया है हमें किसी मानव की गंध आ रही है।”
इतना सब सुनकर बाबा की आँखो से झर-झर अश्रु बह निकले। बाबा के मन में भाव आया कि सेवा कुँज मे प्रिया-प्रियतम विहार कर रहे हैं, क्यों न जिस मार्ग पर ये जा रहे हैं उस मार्ग को थोड़ा सोहनी लगाकर स्वच्छ कर दूँ किंतु तभी बाबा ने कल्पना करी कि नही नही अरे अगर मार्ग को सोहनी से साफ किया तो मैंने क्या सेवा की? सेवा तो उस सोहनी ने की मैंने कहाँ की तो फिर क्या करुँ?
वह कल्पना करने लगे क्यों न इन पलकों से झाड़ू लगाने का प्रयास करुँ फिर ध्यान आया अगर इन पलकों से लगाऊँगा तो इन पलकों को श्रेय मिलेगा।तब आखिर मैं क्या करूँ? आँखों से अश्रु प्रवाह होने लगा कि मैं कैसे सेवा करूँ आज साक्षात प्रिया-प्रियतम का विहार चल रहा है और मैं सेवा भी नही कर पा रहा हूँ, कैसे सेवा करूँ?
उसी क्षण प्रिया जी ने कहा- “लालजी आज हमारे नित्यविहार का दर्शन करने के लिये कोई मानव प्रवेश कर गया है? किसी मानव की गंध आरही है।”
उधर तो बाबा की आँखो से अश्रु बह रहे थे और इधर लालजी प्रिया जी के चरणों में बैठ गये लालजी के भी अश्रुपात होने लगे।
प्रियाजी ने पूछा- “लालजी क्या बात है? आपके अश्रु कैसे आने लगे?”
तब श्रीजी के चरणों मे बैठै श्यामसुन्दर नतमस्तक हो गये और कहने लगे- “श्रीजी आप जैसी करुणामयी सरकार तो केवल आप ही हो सकतीं हैं अरे आप कहती हो की किसी मानव की गंध आरही है। हे श्रीजी जिस मानव की गंध आपने ले ली हो फिर वो मानव रहा कहाँ उसे तो आपने अपनी सखी रुप मे स्वीकार कर लिया।”
श्रीजी ने कहा- “चलो फिर उस मानव की ओर।”
कहते है बाबा तो आँख बंद कर किंकर्तव्यविमूढ़ से ध्यान समाधी में रो रहे हैं कि कैसे सेवा करूँ ? तभी दोनों युगल सामने प्रकट हो गये।पूछने लगे- “बाबा रास देखने ते आयो है?”
न बाबा कुछ बोल पा रहे न कुछ कह पारहे हैं … अपलक निहार रहे हैं। श्रीजी ने कहा- “रास देखते के ताय तो सखी स्वरुप धारण करनो पड़े है सखी बनोगे।”
बाबा कुछ नही बोल पाये तब करुणामयी सरकार ने कृपा करके अपने हाथ से अपनी श्रीजी प्रसादी “चंद्रीका” उनके मस्तक पर धारण करा दी।
इसके बाद बाबा ने अपने डायरी में लिखा- “इसके बाद जो लीला मेरे साथ हुई न वो वाणी का विषय था न वो कलम का विषय था। यह सब स्वामीजी की कृपा से निवृत निकुँज की लीलायें प्राप्त होती हैं।”
स्वामी जी के रस प्राप्ति के लिये इन सात को पार करना होता है-
- प्रथम सुने भागवत, भक्त मुख भगवत वाणी।
- द्वितीय आराध्य ईश व्यास, नव भाँती बखानी।
- तृतीय करे गुरु समझ, दक्ष्य सर्वज्ञ रसीलौ।
- चौथे बने विरत् , बसे वनराज वसीलौ।
- पाँचे भूले देह सुधि।
- छठे भावना रास की।
- साते पावें रीति रस, श्री स्वामी हरिदास की।
वृन्दावन के अन्य दर्शनीय स्थल-Vrindavan ke Any Sthal
निधिवन(Nidhivan) के अलावा, यहां मंदिर भी हैं जहां आप जा सकते हैं और वहां पूजा कर सकते हैं। इन मंदिरों में शामिल हैं:
- बांके बिहारी मंदिर
- प्रेम मंदिर
- श्री राधा रमण मंदिर
- मदन मोहन मंदिर
- प्रियकांत जू मंदिर
- शाहजी मंदिर और कई और।
वृंदावन कैसे पहुंचें
सड़क मार्ग से वृंदावन दिल्ली-आगरा NH-2 पर स्थित है। एक और रास्ता जो वहां जाता है वह है नया यमुना एक्सप्रेसवे। दिल्ली लगभग 200 किलोमीटर दूर है। इस दूरी को तय करने में 4 घंटे तक का समय लग सकता है।
ट्रेन द्वारा: ट्रेनों का मुख्य स्टेशन दिल्ली-चेन्नई के साथ-साथ मुंबई-दिल्ली मुख्य लाइनों पर मथुरा है। कई ट्रेन सेवाएं, यात्री और एक्सप्रेस दोनों ट्रेनें मथुरा को दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद, कलकत्ता, ग्वालियर, देहरादून, इंदौर और आगरा सहित भारत के अन्य शहरों से जोड़ती हैं।
हवाईजहाज से: निकटतम हवाई अड्डा आगरा 67 किलोमीटर दूर स्थित है। निकटतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिल्ली में पाया जा सकता है।
वृंदावन जाने का सबसे अच्छा समय
वृंदावन जाने का एक आदर्श समय सर्दियों में या अक्टूबर से मार्च तक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रीष्मकाल में आप सूर्य की चिलचिलाती गर्मी के कारण वृंदावन की अपनी यात्रा का आनंद नहीं उठा पाएंगे।
नोट- भक्तों को निधिवन(Nidhivan) के चित्र लेने की अनुमति नहीं है। इसलिए आपको भी उनके फैसले का सम्मान करना चाहिए।
निधिवन की फोटो-Nidhivan ki Photo
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