Join Adsterra Banner By Dibhu

शरद पूर्णिमा

0
(0)

आश्विन माह के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को ‘रास पूर्णिमा’ (रासलीला पूर्णिमा) भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि में चंद्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है।इस रात चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की बरसात करता है। इसलिए इस रात में खीर को खुले आसमान में रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद मानकर खाया जाता है। दिलचस्प बात है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास होता है।

इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है।

वैज्ञानिक भी मानते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य व सकारात्मकता देने वाली मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा धरती के बहुत समीप होता है। शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा की किरणों में खास तरह के लवण व विटामिन आ जाते हैं। पृथ्वी के पास होने पर इसकी किरणें सीधे जब खाद्य पदार्थों पर पड़ती हैं तो उनकी क्वालिटी में बढ़ोतरी हो जाती है।

नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा  (Sharad Purnima) की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशिद काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती है और घर घर विचरण करती हैं।। माता यह देखती है कि कौन जाग रहा है? अतःइस रात को कोजागरी रात भी कहा जाता है । अर्थात अपने कर्तव्‍यों को लेकर कौन जागृत है? जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं, मां उन पर असीम कृपा करती है। कहा जाता है कि इस दिन जागरण करने वाले की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।  

शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं. इस दिन को मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) के जन्‍मदिन के रूप में भी मनाया जाता है । मां की विशेष कृपा बनी रहे इसके लिए शरद पूर्णिमा का दिन भक्‍तों के लिए काफी खास माना जाता है। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रूप से किया जाता है।

शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सुबह उठकर व्रत करके अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए। इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी का दीपक जलाकर, गंध पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन अगर अनुष्ठान किया जाए तो ये सफल होता है।

मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था।   इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है। गोपियों को शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने बंसी बजाकर अपने पास बुलाया और ईश्वरीय अमृत रस का पान कराया था । यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है।

शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी रात में जो भक्त भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत भर जाता है और ये किरणें हमारे लिए बहुत लाभदायक होती हैं। इन दिन सुबह के समय घर में माँ लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।

                                विधि

      इस दिन प्रातः काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए। रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए। पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें। खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें। सबको उसका प्रसाद दें। पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूँ का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।

     .                           कथा

      एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पूर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।
      उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली- ”तु मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ”यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है।“ उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। 

शरद पूनम की रात को क्या करें, क्या न करें ?

  1. अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना।
  2. इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है ।
  3. शरद पूर्णिमा की चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है ।
  4. अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है । जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न होता है।
खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद…

खीर को रसराज कहते हैं । सीताजी को अशोक वाटिका में रखा गया था । रावण के घर का क्या खायेंगी सीताजी ! तो इन्द्रदेव उन्हें खीर भेजते थे ।

1.खीर बनाते समय घर में चाँदी का गिलास आदि जो बर्तन हो, आजकल जो मेटल (धातु) का बनाकर चाँदी के नाम से देते हैं वह नहीं, असली चाँदी के बर्तन अथवा असली सोना धोकर खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे । लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाओ तो लौह तत्त्व भी उसमें आ जायेगा । खीर में इलायची, खजूर या छुहारा डाल सकते हो लेकिन बादाम, काजू, पिस्ता, चारोली ये रात को पचने में भारी पड़ेंगे । रात्रि 8 बजे महीन कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में रखी हुई खीर 11 बजे के बाद भगवान को भोग लगा के प्रसादरूप में खा लेनी चाहिए । लेकिन देर रात को खाते हैं इसलिए थोड़ी कम खाना । सुबह गर्म करके भी खा सकते हो ।
(खीर दूध, चावल, मिश्री, चाँदी, चन्द्रमा की चाँदनी – इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती ।) यह खीर खाने से सालभर मनुष्य स्वथ्य रहता है ।

2.इस रात्रि में 3-4 घंटे तक बदन पर चन्द्रमा की किरणों को अच्छी तरह पड़ने दें ।
3.दो पके सेवफल के टुकड़े करके शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी में रखने से उनमें चन्द्रकिरणें और ओज के कण समा जाते हैं । सुबह खाली पेट सेवन करने से कुछ दिनों में स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक लाभकारी परिवर्तन होते हैं ।
4. 250 ग्राम दूध में 1-2 बादाम व 2-3 छुहारों के टुकड़े करके उबालें । फिर इस दूध को पतले सूती कपड़े से ढँककर चन्द्रमा की चाँदनी में 2-3 घंटे तक रख दें । यह दूध औषधीय गुणों से पुष्ट हो जायेगा । सुबह इस दूध को पी लें ।
5. सोंठ, काली मिर्च और लौंग डालकर उबाला हुआ दूध चाँदनी रात में 2-3 घंटे रखकर पीने से बार-बार जुकाम नहीं होता, सिरदर्द में लाभ होता है ।
6.तुलसी के 10-12 पत्ते एक कटोरी पानी में भिगोकर चाँदनी रात में 2-3 घंटे के लिए रख दें । फिर इन पत्तों को चबाकर खा लें व थोड़ा पानी पियें । बचे हुए पानी को छानकर एक-एक बूँद आँखों में डालें तथा नाभी में मलें। आँखों से धुँधला दिखना, बार-बार पानी आना आदि में इससे लाभ होता है । तुलसी के पानी की बूँदें चन्द्रकिरणों के संग मिलकर प्राकृतिक अमृत बन जाती हैं।

नोट : दूध व तुलसी के सेवन में दो घंटे का अंतर रखें ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं,
‘पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।’

अर्थात रसस्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।(गीताः15.13)

सम्बंधित लेख सारणी:

  1. शरद पूर्णिमा
  2. शरद पूर्णिमा रात्रि – क्या करें, क्या न करें?
1.Sharad Purnima in Year 2021 - 19 October 2022,Tuesday 
(Tithi Timings-7.02pm on 19 October 2021 to 8.25pm on 20 October 2021)
  (मंगलवार  १९.१०.२१-७.०२ सायं से, बुधवार  २०.१०.२१ -८.२५ सायं तक )
2.Sharad Purnima in Year 2018 - 24 October 2018
3.Sharad Purnima in Year 2022 - 9 October 2022, Sunday
Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


संकलित लेख

About संकलित लेख

View all posts by संकलित लेख →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः