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संकटा माता की कथा व्रत व पूजन विधि | Sankata Mata Ki Katha, Vrat, Puja

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प्रस्तुत है आप सभी के लिए संकटों को हारने वाली संकटा माता की कहानी( Sankata Mata Katha)।इस लेख में संकटा माता की पूजा विधि ,पूजा में लगने वाली सभी सामग्री, और संकटा माता की दोनों कहानियों का वर्णन किया गया है।

Table of Contents

संकटा माता की पूजा विधि – Sankata Mata Pooja Vidhi

आइये पहले जानते हैं संकटा माता की पूजा विधि से पहले उनके पूजा में लगने वाली सभी सामग्री।

संकटा माता पूजन सामग्री – Sankata Mata Pooja Samagri

संकटा माता की मूर्ति , एक लाल वस्त्र बाजोट पर बिछाने के लिए , धूप अगरबत्ती , दीप , गुड़हल का फूल , गुड़हल न मिलने पर कोई भी अन्य लाल फूल लें, एक फूलों की माला, नैवद्य ( चावल के चूरा बनाकर उसमें गाय का देसी घी , शक्कर और गुलाब जल मिलाके सुगन्धित लड्डू बनाएं ), मौसमी फल जैसे केला, नारियल, संतरा , अमरुद , सेब आदि , सिन्दूर और श्रृंगार की सामग्री।


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संकटा माता व्रत व पूजन की विधि – Sankata Mata Vrat va Poojan Vidhi

1.तड़के प्रातः काल नित्य कर्म आदि से निवृत्त होकर से भली प्रकार स्नान कर लें।
2.स्वच्छ वस्त्र या नए वस्त्र धारण कर लें।
3.पूजा स्थल को अच्छी तरह से स्वच्छ करके गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें।
4.एक छोटी चौकी या बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर माता संकटा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
5.एक कलश में जल भरकर उसेक ऊपर पांच पल्लव या अम्र पात्र पर नारियल स्थापित कर लें।
6. पूजा में पहले माता के हाथ जोड़ कर ध्यान करें

अथ संकटा माता ध्यानम
ध्यायेSहं परमेश्वरीम् दशभुजां नेत्रत्रयोद् भासिताम्
सद्य: सङ्कटतारिणीम् गुणमयीमारक्तवर्णाम् शुभाम् ।

संस्कृत न पढ़ पाने की स्थिति में हिंदी में निम्न ध्यान करें
दस भुजा, तीन नेत्रों से संपन्न गुणमयी ,सुन्दर शुभ्रांगी, लाल वर्ण वाली, संकट से शीघ्र तारने वाली, शुभ्र स्फटिक की माला, कमल के फूल, जलपूर्ण कलश,शंख, चक्र, गदा, त्रिशूल, तलवार , डमरू आदि से सुशोभित परमेश्वरि संकटा माता के मैं ध्यान करता/करती हूँ।


7.ध्यान के पश्चात संकटा माता की विधिवत पूजा करें। धूप दीप नैवेद्य चढ़ाएं। श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें।
8.नैवेद्य चढ़ाएं और हाथ जोड़ कर माता से अपना दुःख दूर करने की प्रार्थना करें।
9.इसके पश्चात श्रद्धापूर्वक संकटा माता की व्रत कथा सुने। कथा के पश्चात संकटा माता की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।माता संकटा चालीसा और श्री संकटा स्त्रोत भी पढ़ सकते हैं।

10. संध्या होने पर सूर्यास्त के उपरांत अपना उपवास खोलें और भोजन में केवल मीठी वस्तुएं ही ग्रहण करें।

संकटा माता की कथा कहने सुनने का फल

संकटा माता की कथा कहने और संकटा माता का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। जो लोग संकटा माता की कथा सुनते और पढ़ते है, उनके घरो में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है। इसलिए संकटा माता की कथा को पूरा पढ़े, संकटा माता आपकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करेगी।

Sankatha Mata Near Sindhiya Ghat Varanasi 4

Sankata Mata ki Katha

1. संकटा माता व्रत कथा- बुढ़िया और उसका बेटा

Sankata Mata Vrat Katha Old Lady & Her son

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक बूढ़ी औरत रहा करती थी। उस बूढ़ी मां का एक बेटा भी था, जिसका नाम रामनाथ था। एक बार जब रामनाथ धन कमाने के लिए परदेश चला गया तो बुढ़िया बहुत दुःखी हो गई। उसके दुःखी होने का कारण यह था कि उसकी बहू उसे बहुत सताती थी, दिनरात बहू उसे खरी-खोटी सुनाती और ताने मारती रहती थी। बहू के ताने मारने और खरी–खोटी सुनाने की वजह से बुढ़िया उदास हो कर घर के बाहर बने हुए कुएं पर बैठ जाती थी और रोने लगती थी।बुढ़िया के रोने का यह सिलसिला रोज चलता रहा।

एक दिन की बात है जब वह बूढ़ी औरत रो रही थी उस कुएं से ‘दिए की मां’ नाम की एक औरत निकली और उसने बुढ़िया से पूछा–”हे बूढ़ी मां! तुम रोजाना इस तरह कुएं पर बैठ कर क्यों रोती रहती हो? तुम्हे क्या कष्ट है तुम मुझे अपने दुख का कारण बताओ मैं अवश्य ही तुम्हारे दुख को दूर करने का प्रयत्न करूंगी।”

उस स्त्री का प्रश्न सुनकर बुढ़िया ने कोई जवाब नहीं दिया और वैसे ही रोती रही। दिए की मां बार–बार बुढ़िया से सवाल किए जा रही थी। उसके इस प्रकार बार–बार पूछने से बुढ़िया झुंझला उठी और उस स्त्री से बोली कि –तुम मुझसे ऐसा क्यों पूछ रही हो, तुम क्या सचमुच ही मेरा दुख जानकर उसे दूर कर दोगी?

बुढ़िया की बात सुनकर दिए की मां ने कहा– “तुम मुझे अपना दुःख नि:संकोच बताओ तब हो सकता है कि मैं तुम्हारी कोई सहायता कर पाऊं।”

तब बुढ़िया ने दिए की मां से कहा कि मेरा बेटा धन कमाने के लिए परदेश चला गया है और उसके जाने के बाद से मेरी बहू मुझे बहुत सताती है, हर वक्त मुझे बुराभला कहती रहती है, बस यही मेरे दुख का कारण है।

दिए की मां ने बुढ़िया से कहा–”यहां वन में संकटा माता रहती हैं। तुम उनके पास जाकर अपना दुख उन्हे सुना कर उनसे प्रार्थना करो कि वह तुम्हारे कष्ट को दूर कर दें। संकटा माता बहुत दयालु हैं, दुखियों के दुख दूर करती हैं, निःसंतानो को संतान देती हैं, निर्बल को बलवान बनाती हैं और अभागों को भाग्यवान बनाती हैं। उनकी कृपा से सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अचल हो जाता है और कुंवारी कन्याओं को अपनी इच्छा के अनुसार वर की प्राप्ति होती है। रोगी व्यक्ति अपने रोग से मुक्त हो जाता है, इसके अलावा जो कोई भी मनोकामना हो, संकटा माता सभी को पूरा करती हैं इसमें कोई भी सन्देह नहीं है।”

बुढ़िया का संकटा माता का व्रत करना

बुढ़िया ने जब दिए की मां की ऐसी बातें सुनी तो वह वन में संकटा माता के पास जाकर उनके पैरों में गिर कर जोर–जोर से विलाप करने लगी।

संकटा माता ने बड़े ही प्यार से बुढ़िया से पूछा कि बुढ़िया तुम किस कारण इतना दुःखी हो कर रोती रहती हो?

बुढ़िया ने कहा–हे माता! आपसे तो कुछ भी छिपा हुआ नहीं है, आप तो सब कुछ जानती हैं। अतः अगर आप मेरे दुख को दूर करने का आश्वासन दें तो मैं अपना दुख आपको बताऊं।

तब संकटा माता ने कहा–हे बुढ़िया! तुम मुझे अपना दुःख अवश्य बताओ क्योंकि दुःखियों का दुःख दूर करना ही मेरा काम है। मैं निश्चय ही तुम्हारे कष्टों को दूर करने का प्रयत्न करूंगी।

संकटा माता के ऐसा कहने पर बुढ़िया ने कहा–हे माता! मेरा बेटा धन कमाने के लिए परदेश चला गया है उसके जाने के बाद से मेरी बहू मुझे बहुत जली–कटी बातें सुनाती है। उसकी बातें मुझसे सहन नहीं होती हैं बस इसी कारण परेशान हो कर मैं बार–बार रोया करती हूं।

बुढ़िया के दुःख को जानकर संकटा माता ने उससे कहा कि हे बुढ़िया! तुम अब घर जाओ और जाकर मेरे लिए मनौती मांग कर मेरी पूजा करो, इससे तुम्हारा बेटा सकुशल वापस घर आ जायेगा। मेरी पूजा के दिन सुहागिन औरतों को आमंत्रित कर उन्हे भोजन कराना, ऐसा करने से तुम्हारा बेटा अवश्य ही तुम्हारे पास आ जायेगा। संकटा माता के कहे अनुसार उस बुढ़िया ने मनौती मांग कर पूजा की और सुहागिन औरतों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। परन्तु जब बुढ़िया ने स्त्रियों के लिए लड्डू बनाने शुरू किए तो उससे सात की जगह आठ लड्डू बन गए। बुढ़िया ने सोचा कि कहीं मुझसे गिनने में कोई गलती तो नहीं हो रही है, उसने फिर से लड्डू गिने लेकिन लड्डू आठ ही थे। अब बुढ़िया असमंजस में पड़ गई कि अपने आप आठ लड्डू बन जाने का क्या कारण है?

उसी समय संकटा माता एक बूढ़ी औरत का वेश धारण कर बुढ़िया के सामने प्रकट हुईं और फिर बुढ़िया से पूछा–”क्यों बुढ़िया आज तुम्हारे घर कोई उत्सव है क्या? “

यह सुनकर बुढ़िया बोली–”आज मैने संकटा माता की पूजा की है और सुहागिन औरतों को भोजन के लिए आमंत्रित किया है, परन्तु जब गिन कर सात लड्डू बनाती हूं तो वे लड्डू अपने आप आठ बन जाते हैं। इसी वजह से मैं चिंता में पड़ गई हूं कि कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हो रही है।”

बुढ़िया की बात सुनकर संकटा माता ने कहा कि– “क्या तुमने किसी वृद्धा को भी आमंत्रित किया है?”

तब बुढ़िया ने कहा कि– “मैने किसी भी बुढ़िया को आमंत्रित नहीं किया है। लेकिन तुम कौन हो?”

संकटा माता ने कहा– “मैं एक वृद्धा हूं, तुम मुझे ही आमंत्रित कर लो।”

ऐसा सुनकर उस बुढ़िया ने वृद्धा का रूप धारण किए हुए संकटा माता को भोजन के लिए आमंत्रित कर लिया। उसके बाद बुढ़िया के घर सभी आमंत्रित सुहागिनें आ पहुंचीं। बुढ़िया ने सभी को अंदर बुलाकर संकटा माता की पूजा करने के बाद लड्डू तथा अन्य मिठाई का भोजन कराया। इससे संकटा माता उस बुढ़िया पर बहुत प्रसन्न हुई और उसके बेटे के मन में अपनी माता से मिलने की इच्छा उत्पन्न हुई, और वह अपने घर वापस आने के लिए चल पड़ा।

संकटा माता के व्रत के प्रभाव से बुढ़िया के बेटे का वापस आना

कुछ दिन बीतने पर बुढ़िया फिर से संकटा माता की पूजा करके सुहागिनों को भोजन करा रही थी कि तभी किसी ने उसे उसके बेटे के आने की खबर दी, लेकिन वह बुढ़िया अपने काम में लगी रही, उसने कहा–”लड़के को बैठने दो, मैं सुहागिनों को जिमा कर अभी आती हूं।”

जब लड़के की पत्नी ने पति के घर आने का समाचार सुना तो वह उसी समय अपने पति के स्वागत के लिए घर के लिए चल दी। लड़के ने अपनी पत्नी को देखकर सोचा कि यह मुझसे कितना प्रेम करती है जो मेरे आने की खबर पाते ही मुझसे मिलने के लिए आ गई परंतु मेरी मां को मुझसे जरा भी प्रेम नहीं है जो मेरी मां मेरे आने की खबर पाकर भी मुझसे मिलने के लिए नहीं आई। जब पूजा समाप्त हुई और सभी सुहागिनें भोजन करके अपने घर वापस लौट गईं तो बुढ़िया अपने बेटे से मिलने के लिए उसके पास पहुंची। लड़के ने पूछा–”मां अब तक कहां थीं?”

बुढ़िया ने कहा कि– “बेटा मैंने तुम्हारी कुशलता के लिए संकटा माता से मनौती मांगी थी उसी को पूरा करने के लिए सुहागिनें आमंत्रित की थीं उन्हीं को भोजन करा रही थी।”

संकटा माता की कृपा से लड़के का मन अपनी पत्नी से हट गया और उसने अपनी मां से कहा–”मां या तो यह यहां रहेगी या फिर मैं रहूंगा।”

बुढ़िया ने कहा– “बेटा मैंने तुम्हे बहुत कठिन तपस्या से पाया है इसीलिए मैं तुम्हे नहीं छोड़ सकती, इसीलिए चाहे बहू का त्याग भी करना पड़े मैं कर सकती हूं।” अतः लड़के से अपनी पत्नी को घर से निकाल दिया।

बुढ़िया की बहू का राजा की धर्म बहन बनना

बुढ़िया की बहू जब घर से निकली तो बहुत दुःखी होकर पीपल के पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगी। उस राज्य का राजा तभी उधर से गुजर रहा था उसे रोता हुआ देखा तो उसके पास जाकर उससे पूछा कि– “तुम कौन हो और इस तरह क्यों रो रही हो?”

तब उसने अपनी सारी व्यथा राजा को कह सुनाई। राजा ने कहा– “आज से तुम मेरी धर्म बहन हो, तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हारे सभी कष्टों को दूर करने का प्रयत्न करूंगा।”

यह कहकर राजा बुढ़िया की बहू को अपने साथ महल में ले आया। महल में पहुंच कर राजा ने अपनी रानी को उस स्त्री की सारी व्यथा सुनाई और कहा कि आज से यह मेरी धर्म बहन है और यह हमारे साथ महल में ही रहेगी। इसको किसी भी प्रकार का कोई भी कष्ट नहीं होना चाहिए।

संकटा माता के प्रसाद का रानी द्वारा अपमान

राजा के यहां रहते हुए कुछ दिन बीतने पर बुढ़िया की बहू ने भी धर्म से प्रेरित होकर संकटा माता का व्रत करना शुरू कर दिया और फिर एक दिन सुहागिनें खिलाने के लिए आमंत्रित की तो उसने रानी को भी आमंत्रित किया। जब सभी सुहागिनें भोजन करने लगीं तो रानी ने कहा– “मुझे तो रबड़ी, मलाई और स्वादिष्ट भोजन ही हजम होते हैं, यह पत्थर के समान लड्डू कैसे हजम होंगे। ऐसा कहकर रानी ने लड्डू खाने से मना कर दिया।”

रामनाथ का अपनी पत्नी को वापस ले जाना

संकटा माता की कृपा से कुछ समय बाद रामनाथ अपनी पत्नी को ढूंढता हुआ महल में पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने अपनी पत्नी को संकटा माता की पूजा करते देखा तो उसने संकटा माता को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और अपनी पत्नी से बोला कि– “हे प्रिये! मेरे अपराध को क्षमा करो।”

पत्नी ने कहा कि– “स्वामी इसमें आप का कोई दोष नहीं है यह सब तो मेरी गलती की वजह से ही हुआ था। आप मेरे ईश्वर हो, आप ही मुझे क्षमा करें।”

यह कहकर दोनों ने विधिवत् संकटा माता की पूजा की और उसके बाद सुहागिनों को जिमा कर वे दोनों राजा से आज्ञा लेकर अपने घर की ओर प्रस्थान करने को तैयार हुए। जाते समय रामनाथ की पत्नी ने राजा–रानी से कहा, कि – “जब मुझ पर दुःख पड़ा था तो आपने धर्म भाई बनाकर मुझे आश्रय दिया था। मैं आपके एहसान को हमेशा याद रखूंगी। यदि आपको कभी भी किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तो मेरी कुटिया में निःसंकोच चले आना।” ऐसा कहकर वह दोनों अपने घर की ओर प्रस्थान कर गए।

रानी का राज पाट नष्ट होना

संकटा माता के अनादर करने के कारण रानी पर भारी संकट आ पड़ा। रामनाथ की पत्नी के जाते ही राजा का सारा राजपाट नष्ट हो गया। ऐसी विपत्ति में पड़कर रानी ने राजा से कहा– तुम्हारी धर्म बहन ना जाने कैसी थी उसके यहां से जाते ही सब कुछ नष्ट हो गया। रानी ने कहा कि तुम्हारी धर्म बहन जाते समय कह गई थी कि जब मेरे ऊपर कष्ट पड़ा था तो मैं तुम्हारे यहां आई थी और अगर तुम्हे कभी मेरी जरूरत पड़े तो तुम मेरे घर चले आना। रानी बोली कि हमें उसके घर चलना चाहिए।

ऐसा सोचकर राजा और रानी दोनों अपनी धर्म बहन के घर पहुंच गए। वहां जाकर रानी ने बुढ़िया को बहू से कहा– “हे बहन! पता नहीं क्यों तुम्हारे मेरे घर से आते ही हमारी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और हमें इस हालत में तुम्हारे घर आना पड़ा।”

रानी की बात सुनकर उस स्त्री ने कहा– “बहन! मैं तो कुछ नहीं जानती, मेरी तो सब कर्ता–धर्ता संकटा माता हैं। इनके अलावा कोई दूसरा नहीं है। इसलिए तुम मेरी बात मानों और अपनी भूल के लिए संकटा माता से क्षमा याचना करो, उन्ही की मनौती से तुम्हारा काम बन जाएगा। तुम्हारे सारे बिगड़े काम अपने आप सुधर जाएंगे।”

संकटा माता के व्रत के प्रभाव से पुनः राज पाट की प्राप्ति

बुढ़िया की बहू की बात सुनकर रानी ने भी श्रद्धा और भक्ति से संकटा माता का व्रत किया। सुहागिनों को भोजन का आमंत्रण दिया और सुहागिनों को जिमा कर अनजाने में हुई अपनी सब गलतियों की संकटा माता से क्षमा मांगी। रानी के क्षमा मांगने और व्रत कर के सुहागिनें खिलाने से संकटा माता रानी पर प्रसन्न हो गई।

संकटा माता ने रात में रानी को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि – “तुम दोनों राजा–रानी अपने महल को लौट जाओ, वहां जाकर मेरी पूजा करना और उसके बाद सुहागिनों को जिमाना, ऐसा करने से तुम्हारा गया हुआ राजपाट तुम्हे दोबारा मिल जायेगा।”

सुबह उठते ही रानी ने अपने स्वप्न की बात राजा को बताई, रानी की बात सुनकर राजा उसी समय रानी को साथ लेकर अपने महल की ओर चल दिया।

महल में पहुंच कर रानी ने संकटा माता के कहे अनुसार पूरी श्रद्धा और भक्ति से संकटा माता की पूजा की और सुहागिनों को आमंत्रित करके उन्हे भोजन कराया। ऐसा करने से संकटा माता की कृपा से उनका राजपाट उन्हे वापस मिल गया और उनका बिगड़ा हुआ समय सुधर गया। राजा और रानी दोनों पहले की तरह राज्य का सुख भोगने हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

।।बोलो संकटा माता की जय।।

Sankata mata ki katha

2. संकटा माता व्रत कथा- रानी का बेटा

Sankata Mata Vrat Katha Queen and Her Son

एक बार की बात है एक राज्य में एक राजा रहते थे। राजा बड़े ही प्रजा प्रेमी और सबका भला चाहने वाले थे। उनके राज्य में उनके परिवार को और प्रजा को किसी भी तरह की कोई कमी नहीं थी। सब लोग बहुत खुशहाल और सुख शांति से रहते थे। लेकिन राजा को हमेशा एक चिंता सताती रहती थी, क्योंकि उस राजा और रानी की कोई संतान नहीं थी।

एक दिन राजा सुबह सवेरे सैर पर निकले, तब एक औरत अपने घर के बाहर झाड़ू लगा रही थी। राजा को देखकर वो बोली कि हे भगवान आज सुबह सवेरे कैसे वंशहीन आदमी का चेहरा देख लिया। आज का दिन तो बहुत खराब जाएगा। राजा ने यह बात सुनी अनसुनी करके अपने महल में वापस आ गए।

राजा पूरे दिन इसी घटना को याद कर करके दुखी और परेशान हो गए। रात के भोजन के समय जब उनकी रानी ने उनकी चिंता का कारण पूछा तो उन्होंने कुछ नहीं कह कर बात को टाल दी। लेकिन जब रानी के बहुत बार पूछने पर कि राजा जी आपको क्या चिंता सता रही है? आपको किस बात की परेशानी है? तो राजा ने अपनी रानी को सुबह वाला घटनाक्रम बता दिया।

रानी साहिबा की चिंता

राजा की बात सुनकर रानी को भी दुख हुआ कि वह अपनी प्रजा की देखभाल करने में कोई कमी नहीं रखता है, लेकिन फिर भी उनको संतान ना होने की वजह से लोग उनका चेहरा देखना अशुभ मानते हैं। राजा की परेशानी की वजह से रानी भी चिंता में आ गई और यही बात रानी की एक विश्वसनीय दासी ने पूछ ली, रानी साहिबा आपकी चिंता का कारण क्या है? वह क्या चीज है जो आपको परेशान कर रही है?

रानी ने उसे टालना चाहा, लेकिन दासी की बहुत आग्रह करने पर रानी ने अपनी सेविका को राजा के साथ सुबह जो हुआ वह सब जस का तस सुना दिया। इस पर रानी की सेविका ने उन्हें विश्वास दिलाया कि आप मेरी बात मानों और जैसा मैं कहती हूं बिल्कुल वैसा ही करते रहिए तो इस पर रानी ने अपनी दासी की बात मान ली।

रानी के गर्भवती होने की मुनादी

रानी की दासी ने अगले दिन पूरे राज्य में मुनादी फिरवा दी की रानी गर्भवती हो गई है, इस पर राजा ने बहुत खुश हो कर ढेर सारे उपहार दिए और जब राजा रानी से मिलने गए तो दास जी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि आप जब तक रानी के बालक नहीं होता, तब तक तब उनके कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकेंगे।

राजा के बहुत मनाने पर भी दासी नहीं मानी और राजा को वहां से रवाना कर दिया। रानी बैठे-बैठे परेशान हो रही थी कि अपनी दासी के कहने पर रानी नै राजा से ही नहीं, बल्कि पूरी राज्य की प्रजा से झूठ बोला था कि वह गर्भवती है। धीरे धीरे करते करते 9 महीने पूरे हो गए और अब रानी को दिन-रात चिंता सताने लगी। रानि बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गई थी क्योंकि उसे पता था कि राजा कभी भी आकर उनसे पूछ सकते हैं कि बताओ हमारा बालक कहां है?

तब रानी राजा को क्या जवाब देगी? रानी ने अपने यह दुविधा अपनी दासी से कहीं, लेकिन दासी ने उन्हें कहा कि आप निश्चित होकर मेरा विश्वास करें।

रानी के पुत्र जन्म होने की मुनादी

तब दासी ने पूरे राज्य में यह मुनादी फिरवादी की रानी ने एक बहुत ही सुंदर पुत्र रत्न को जन्म दिया है। यह सुनकर राज्य में सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए, जब राजा अपने पुत्र को देखने के लिए रानी के कमरे में गए तब दासी ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक लिया और कहा कि हे महाराज जब आपने इतनी प्रतीक्षा की है तो थोड़ी प्रतीक्षा और कर लीजिए।

अब आप अपने पुत्र का मुंह कुछ समय बाद ही देखना। दास ने फिर नगर में मुनादी फिरवाड़ी की राजकुमार का नामकरण संस्कार हो गया है फिर कुछ और समय बीतने के बाद उसने यह मुनादी करवाई कि राजकुमार का मुंडन संस्कार भी हो गया है। राजा से अब नहीं रहा गया।

राजा रानी के कक्ष में रानी से मिलने गए, दासी ने उन्हें दरवाजे पर रोककर बोला कि हे महाराज अभी अपने पुत्र का मुंह देखना आपके लिए शुभ संकेत नहीं है इसलिए आप अपने पुत्र को सिर्फ तभी देख पाएंगे जब वह 12 वर्ष का हो जाएगा। जब उसकी उम्र 12 वर्ष हो जाएगी तब हम उसका विवाह करवाएंगे। अब तो आप अपने पुत्र का मुंह उसके विवाह मंडप में भी नहीं देख सकेंगे।

१२ वर्ष के राजकुमार के विवाह की तैयारी

यह कहकर दासी रानी का कमरा अंदर से बंद कर दिया। धीरे-धीरे समय बीता और 12 वर्ष पूरे हो गए। 12 वर्ष पूरे होने पर दासी ने अपने राजा से कहा कि है महाराज अब आपका पुत्र 12 वर्ष का हो गया है। आप उसके लिए वधु ढूंढना शुरू कर दीजिए और शादी की तैयारियां करवाना भी शुरू कर दीजिए। राजा ने अपने पुत्र के लिए दूर देश के एक बहुत ही सुंदर राजकुमारी से अपने पुत्र का विवाह तय कर दिया।

राज्य में राजकुमार की शादी की तैयारियां बहुत धूमधाम से चलने लगी। दूसरी तरफ दासी ने सवा मन चावल का आटा मंगवाया, इस आटे से उसने एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक 12 वर्ष के बालक जितना पुतला बनवाया। इस पुतले पर दासी नेगी और मेवों से बहुत ही सुंदर सजावट की। इसके बाद दासी ने उस पुतले को बिल्कुल एक दूल्हे की तरह सजाया और एक पालकी मंगवाई दासी ने उस चावल के पुतले को बहुत ही सुगंधित कर दिया और उस पालकी में बिठा दिया।

दासी ने राजा से विशेष प्रार्थना कि हमेशा मेरे ही साथ रहे हैं इसलिए आज उनकी बारात में ही उनके साथ पालकी में बैठूंगी। दासी की यह प्रार्थना राजा ने स्वीकार कर ली और बारात चलने लगी। चलते-चलते बारात एक घने जंगल से गुजरी और रास्ते में जब संकटा माता का मंदिर आया तो वहां पर दासी ने विश्राम लेने के लिए कहा।

राजकुमार के सुगन्धित पुतले का माताओं द्वारा भोग लगाया जाना

इसके बाद दासी उस चावल के पुतले को पालकी में ही रखकर कुएं से पानी पीने के लिए चले गए। जंगल में संकटा माता और उनकी सहेलियों एक बहुत अच्छी खुशबू आई और उन्होंने देखा कि यह खुशबू एक पालकी से आ रही है। संकटा माता और उनकी सहेलियों ने पालकी में झांक कर देखा तो उन्हें पता चला कि पालकी में एक बहुत ही विशाल मानव रूपी मिठाई रखी हुई है सब ने मिलकर उस मिठाई को पूरा खा लिया। मिठाई खाकर संकटा माता और उनकी सहेलियां वापस मंदिर में चले गए।

जब लोग कुँयें से पानी पीकर वापस आए तो देखा कि पालकी में तो कोई नहीं है यह देखकर दासी बहुत घबरा गई। वह संकटा माता के मंदिर में जाकर जोर-जोर से विलाप करने लगी कि माता ‘लेटा दो या बेटा दो’ ‘लेटा दो या बेटा दो’।

संकटा माता का प्रकट होना और बेटा देना

दासी का विलाप सुनकर संकटा माता प्रकट हुई और दासी ने माता से कहा कि हे ‘लेटा दो या बेटा दो’ ‘लेटा दो या बेटा दो’, लेटा दो या बेटा दो।

तो माता ने कहा कि अब मैं तुम्हें बेटा कहां से दूं और मिठाई बहुत सुगंधित थी तो मैं तो अब उसे खा गयी।’ लेकिन दासी ने विलाप करना नहीं छोड़ा तो संकटा माता ने उसकी बात मानते हुए कहा कि -“ठीक है मैं तुम्हें एक बेटा देती हूं लेकिन मेरी एक शर्त है।”

दासी ने बोला कि -“माता बताइये आपकी क्या शर्त है?”

तो संकटा माता ने कहा कि-“मैं तुम्हें एक बेटा जरूर दूंगी। लेकिन 24 घंटे के अंदर मैं अपना बेटा वापस ले लूंगी।”

दासी ने माता की बात मान ली और संकटा माता ने अपने चमत्कार से दासी को एक बहुत ही सुंदर 12 वर्ष का बेटा दिया। इतना अप्रतिम सुंदर बालक देखकर दासी तो आश्चर्यचकित ही हो गई। बालक को पालकी में बिठाकर जब वे सब विवाह स्थल पर पहुंचे तो राजकुमार को चँवरी में बैठाया गया।

तब दासी ने राजा से कहा कि है महाराज अब आप अपने पुत्र का चेहरा देख सकते हैं। जब राजा अपने राजकुमार के पास गया तो अपने बेटे का इतना सुंदर और भव्य रूप देखकर आश्चर्यचकित रह गया। तब राजन ने कहा कि बालक की ऐसी सुंदरता की वजह से आपने मुझे इतने वर्ष तक इसके पास भी नहीं जाने दिया। लेकिन अब मैं अपने पुत्र को जी भर कर देख लूंगा।

संकटा माता के दिए राजकुमार का विवाह और घर आना

राजकुमार का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ और सभी लोग वापस अपने राज्य आ गए। दासी ने रानी को अपने बेटे और बहू की आरती उतारने के लिए दरवाजे पर बुलाया। लेकिन रानी तो डर के मारे अपने कक्ष में कांप रही थी। रानी को यह लग रहा था कि उसके असल में तो कोई पुत्र है ही नहीं, यह बात जब राजा को पता चलेगी तो राजा उससे गुस्से में आकर भयंकर दंड देंगे।

लेकिन दासी के बार-बार बाहर बुलाने पर रानी ने जब खिड़की से बाहर देखा तो सच में ही एक बहुत ही सुंदर राजकुमार- राजकुमारी को अपने दरवाजे पर खड़ा पाया। रानी पूजा की थाली बाहर लेकर आई और अपने बेटे को घर के अंदर प्रवेश दिलाया। दासी की चिंता बढ़ गई जब उसे संकटा माता की बात याद आई।

दासी ने एक युक्ति लगाई और रानी से जाकर कहा कि कल हम बहू की मुंह दिखाई की रस्म का आयोजन करेंगे तो राज्य की सभी औरतों को निमंत्रण देना है रानी ने कहा ठीक है तो अगले दिन सुबह राज्य भर की सारी औरतें राजमहल के सामने इकट्ठा होने लगी।

संकटा माता के द्वारा सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद

दासी ने बहू को खूब अच्छे से सत्संग समझाया कि तुम्हें हर स्त्री के पैर छूने हैं चाहे वह स्त्री किसी भी वर्ग की वह किसी भी जाति की हो, तुम्हें हर स्त्री के पैर छूकर जब तक भरथरी अखंड सौभाग्यवती भव पुत्रवती भव का आशीर्वाद ना दे। तब तक तुम किसी के पैर छोड़ना मत, बहू ने ऐसा ही किया मैंने सारी औरतो के पैर छुए और सब ने बहु को अखंड सौभाग्यवती भव पुत्रवती भव का आशीर्वाद दिया।

लेकिन देखा कि दूर एक पेड़ के नीचे एक बूढ़ी औरत बहुत ही मैले कपड़े पहन कर चुपचाप बैठी है उसके पास भी गई और उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेने की कोशिश की तब उस बूढ़ी मैया ने बहू को सुखी रहने का और खुश रहने का आशीर्वाद दिया।

लेकिन बहू ने तभी बूढ़ी मैया के पैर नहीं छोड़े सबुरी मैया के मुंह से अचानक निकल गया, “अखंड सौभाग्यवती भव:! पुत्रवती भव:!”

उनके इतना कहते ही दासी वहां भागते भागते आई और बूढ़ी मैया से बोली – “हे माता हमने आप को पहचान लिया है। अब आप अपना बेटा वापस नहीं ले सकती है क्योंकि आपने हमारी बहू को अखंड सौभाग्यवती भव और पुत्रवती भव का आशीर्वाद दिया तो अगर आप हमारा बेटा ले लेंगी तो बहू अखंड सौभाग्यवती कैसे रह पाएगी?

यह सुनकर संकटा माता रानी हंसने लगी और कहने लगी कि -तुम बहुत चतुर हो, आज तुमने हमें हरा दिया। इस प्रकार दासी रानी राजा और बहू सभी सुख समृद्धि से रहने लगे।

हे माता रानी! जिस प्रकार आपने रानी को पुत्र देकर उसके संकट को दूर किया। दासी की प्रार्थना सुनकर उसके संकट को पूरा किया। उसी प्रकार आप हमारे जीवन के संकट दूर करके हमारा जीवन भी सुख समृद्धि से भर दें।

|| बोलो संकटा माता की जय ||

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धर्मो रक्षति रक्षितः