महाराणा प्रताप को चेतक की प्राप्ति
प्रताप को चेतक की प्राप्ति
चेतक अश्व गुजरात के व्यापारी काठीयावाडी नस्ल के तीन घोडे चेतक,त्राटक और अटक लेकर मारवाड आया।अटक परीक्षण में काम आ गया। त्राटक महाराणा प्रताप ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और नीले घोड़े का नाम ‘चेतक’ था, जो महाराणा प्रताप ने रखा।
बाज नहीं, खगराज नहीं, पर आसमान में उड़ता था। इसीलिए उसका नाम पड़ा चेतक। इसके पैरों की टाप हाथी की सूंड तक पहुंचती थी और प्रताप ऊपर बैठे दुश्मन पर वार करते थे।
बताते हैं कि चेतक ने हल्दीघाटी के युद्ध में अपनी अद्भुत वीरता और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। वह घायल राणा प्रताप को दुश्मनों के बीच से सुरक्षित निकाल लाया था। इसी दौरान एक बरसाती नाला लांघते वक्त वह घायल हो गया और वीरगति को प्राप्त हुआ। इस नाले को अकबर की मुगल सेना पार नहीं कर सकी थी।
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चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ सहित बुंदेलखड़ में आज भी गाये जाते हैं। महाराणा प्रताप का जहां भी नाम आता है वहां चेतक को आज भी याद किया जाता है।
माना जाता है की चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था। हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना से अपने स्वामी महाराणा प्रताप की जान की रक्षा के लिए चेतक 25 फीट गहरे दरिया से कूद गया था।
हल्दीघाटी में बुरी तरह घायल होने पर महाराणा प्रताप को रणभूमि छोड़नी पड़ी थी और अंत में इसी युद्धस्थल के पास चेतक घायल हो कर उसकी मृत्यु हो गई। आज भी चेतक का मंदिर वहां बना हुआ है और चेतक की पराक्रम कथा वर्णित है।
उस समय चेतक की अपने मालिक के प्रति वफादारी किसी दूसरे राजपूत शासक से भी ज्यादा बढ़कर थी। अपने मालिक की अंतिम सांस तक वह उन्ही के साथ था और युद्धभूमि से भी वह अपने घायल महाराज को सुरक्षित रूप से वापस ले आया था। इस बात को देखते हुए हमें इस बात को वर्तमान में मान ही लेना चाहिए की भले ही इंसान वफादार हो या ना हो, जानवर हमेशा वफादार ही होते हैं।

