आज संसार में फैली घृणा प्रेम के कारण नहीं,
बल्कि वासना के कारण है, क्योकि..!!
वासना तनाव लाती है, प्रेम विश्वास लाता है।
वासना में कपट और छल है, प्रेममें विनोदिता, लीला है।
वासना एक अंग पर केन्द्रित होती है,
प्रेम पूर्ण अस्तित्व पर।
वासना में तुम झपटना चाहते हो,( कब्जा करना)
प्रेम में तुम देना चाहते हो, (समर्पण करना।)
वासना में प्रयत्न है, प्रेम प्रयत्नहीन है।
वासना हिंसा लाती है, प्रेम बलिदान लाता है।
वासना में मांग है, प्रेम में अधिकार है।
वासना तुम्हें दुविधा देती है,
प्रेम तुम्हें केन्द्रित करता है।
वासना नीरस और अँधकारमय है,
प्रेम के अनेक रुप रंग हैं।
वासना कहती है, ”जो मैं चाहूँ, वही तुम्हें मिले”
प्रेम कहता है,” जो तुम चाहो वही तुम्हे मिले”
वासना ज्वर और कुन्ठा लाती है,
प्रेम उत्कंण्ठा और मिठास लाता है।
वासना जकड़ती है, विनाश करती है;
प्रेम स्वतंत्रता लाता है, मुक्त करता है।
वासना और प्रेम दोनों विरोधी हैं,
जबकि समाज ने इसे एक रूप दिया है ;
समाज प्रेम विरोधी और वासना के पक्ष में है,
शादी वासना की तृप्ति के लिए है ;
प्रेम समाज को पसंन्द नही,
क्योकि प्रेम ही परमात्मा है ;
आज मनुष्य में मानवता मर चुकी है,
वासना को ही प्रेम मान लिया गया है ;
प्रेम क्या है , कोई जानना ही नही चाहता।
प्रेम दो शरीर नही दो आत्माओं का मिलन है,,
लेख सौजन्य – सौ. वृंदा प्रकाश
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