वाहेगुरु का अर्थ – एक विचार
वाहेगुरु -कहते हैं कि वासुदेव,हरि,गोबिन्द और राम के प्रारंभिक अक्षरों से यह बना है।
योगिराज पातंजलि ने कई पैगम्बरों का जिक्र किया था,जिसमें उन्होंने गुरु नानक साहिब का विशेष रूप से वर्णन किया था।
उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि वे वाहगुरु मूल मंत्र देंगे,जिसका पहले किसी ने प्रयोग नहीं किया ।
मेरी समझ में वाह गुरु पढ़ा जाना चाहिये।यह गुरु की प्रशंसा है,वाह, वाह।
गुरु यहाँ परमात्मा,परमब्रम्ह हैं।वाहगुरु का अर्थ है कि हम परमब्रम्ह की प्रशंसा कर रहे हैं।
जब सिद्धों ने गुरु नानक से पूछा था –कौन गुरु,तू किसका चेला?
तो गुरु नानक ने कहा-शबद गुरु,सुरति धुन चेला।
गुरुं नानक ने परमात्मा को ही गुरु माना है।
एक शबद है–
आदि अंत एकै अवतारा,
सोई गुरु समझयो हमारा।
नमस्कार तिस ही को हमारी,
सगल प्रजा जिन आप संवारी।..
इस प्रकार गुरु और सद्गुरु में अंतर है।
Dibhu.com-Divya Bhuvan is committed for quality content on Hindutva and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supportting us more often.😀
वाहगुरु गुरुमंत्र है।जिसने भी इसकी साधना की,वह काम,क्रोध,आदि विकारों से दूर होता जाता है,यदि मांसाहारी है तो मांसाहार की उसकी प्रवृत्ति धीरे धीरे समाप्त हो जाती है,दया,करूणा, क्षमा,अहिंसा आदि दैविक गुण उसमें प्रगट होने लगते हैं।
वह धीरे धीरे अद्भुत सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है।
वाहगुरु मंत्र के जाप से उसे किसी देवता के दर्शन नहीं होते हैं,बल्कि वह आज्ञाचक्र में ॐ,या एक ओंकार,या प्रकाश देखता है।
साधना के विभिन्न स्तरों पर उसे विभिन्न प्रकार की अनुभूति होगी।
Post courtesy: Shamsher Singh

