सिक्ख और हिंदू अलग-अलग नही है-मैं यह सब तब जान पाया जब हमें अपनी वंशावली में मेरे नक्कड दादा का नाम पंडित सरदार गंडा सिंह मिला फिर जब पिता जी से जानकारी ली तो उन्होने कहा की हमारे पूर्वज के नाम से ही मोहल्ला “खूह गंडा सिंह वाला” नाम से जाना जाता था जिसे बाद में लोग पंडतां दा मोहल्ला कहने लग गये। उस कडी को जोड़े हुए जब मोहियाल ब्राह्मणों का सिख इतिहास पढा तो सारी परतें खुलती चली गई। जब पिता जी से पूछा के गंडा सिंह जी और उनके भाई झलमन सिंह जी के बाद हमारे पूर्वजों ने केशधारी होना क्यों छोड दिया तो वो कुछ खास बता नही पाये पर कहा कि शायद तब महाराजा रंजीत सिंह कि राज खतम हो गया था और पंजाब अंग्रेजों के अधीन हो गया था तो अंग्रेजों ने सिख फौज को हटा दिया था।
पर अब पता चलता है कि उसी समय सिखी को हिन्दू सनातन धर्म से अलग दिखाने की शाजिस चल रही थी तो सनातनी लोग उस शा जिस का हिस्सा ना बनते हूए वापिस सहिजधारी ही नही हूए बलकि सिखी से ही दूर होते चले गए। ईस में आखीरी चोट 1984 में भिंडरावाले ने कर दी थी। पर कुदरत को कुछ और मंजूर था। मेरा ऐकसीडेंट हुआ और फिर गलत ईलाज के चलते मेरी हालत खराब थी तो मेरा झुकाव अध्यात्म की और बढ़ा और फिर मैं गुरूबानी शब्द कीर्तन सुनने लगा। ईस तरह मुझे अपने पूर्वजों के सिख इतिहास का पता चला।
हलांकि घर में कोई भी सिखी से जुड़ा हुआ नही है पर मेरा जन्म ही 13 अप्रैल का है, तो गुरू गोबिंद सिंह जी से तो मैं बचपन से ही जुडा हुआ हूं । स्कूल में भी गुरू गोबिंद सिंह जी और गुरू नानक देव जी की पेंटिंग बनाता रहता था। आतंकवाद के दौर में मुझे सिखों और हिन्दूऔ को अलग धर्म का बताना मुझे समझ में नही आता था। बस भिंडरावाला सही नही लगता था पर मुझे केशधारी सिखों से कभी नफरत नही हूई ।…
ना वह मरे ना ठागे जाए
जिनके राम वसै मन माहि।।
यह शब्द गुरुवाणी मे सुशोभित है।ऐसे अनेक उदाहरण है जो यह साबित करते है कि सिक्ख और हिंदू अलग-अलग नही है।
Post courtesy: Param Sharma Lowe

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