पूजा में दिया जाने वाला अर्ध्य क्या है?
पूजा में दिया जाने वाला अर्ध्य क्या है?
पूजा करते समय अर्ध्य एक बहुत महत्वपूर्ण भाग है| षोड़शोपचार और पँचोपचार , दोनो ही पूजा पद्धतियों में अर्ध्य को एक अलग अंग के रूप में स्थान दिया गया है| व्यापक रूप से अधिकतर लोग इसके सही स्वरूप के बारे में अनभिज्ञ हैं| अनजाने में लोग जैसा समझ में आता है वैसे ही अर्ध्य को देते हैं |
सामान्य रूप से पाद्य जैसे पैर धोने के लिए जल है , उसी प्रकार अधिकांश कर्मकांडी अर्घ्य को हाथ धोने का जल मान लेते हैं ।यह एक भ्रम है सही बात नहीं है।
यदि अर्घ्य हाथ धोने के लिए सिर्फ़ जल होता तो हम सांध्य में सूर्य को अर्घ्य देते हैं, वह भी हाथ धोने के लिए हो जाता पर ऐसा नहीं है। विवाह के समय भी वर को अर्घ्य दिया जाता है।
अर्घ्य देते समय कहा जाता है -हस्तयो: अर्घ्यं समर्पयामि यानि मै दोनों हाथों में या हाथों पर ,सप्तमी द्विवचन, यह वस्तु समर्पित करता हूँ।
शिरसा चार्घ्यमादाय शुचिः प्रयत मानसः । (वन पर्व 81।19)
उनने पवित्र और एकाग्र चित्त हो कर सिर पर अर्घ्य धारण किया ।
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अमरकोष –
षट् तु त्रिषु अर्ध्यमर्घार्थे पाद्यम् पादाम वरिणि । ( अमरकोष 2।7।33)
यहाँ और स्पष्ट होता है कि पाद्य पैर धोने के लिए जल है पर अर्घ्य हाथ धोने के लिए जल नहीं है ।
अर्ध्य में आठ वस्तुएं रखना चाहिए –
आपः क्षीरं कुशाग्रम् च दधि सर्पि सतंडुलम् ।
यवः सिद्धार्थकश्चैव अष्टाङ्गोर्घ : प्रकीर्तितः ।।
इन सब में जल को छोड़कर कोई भी हाथ धोने की वस्तु नहीं हैं ।
साहित्य से भी एक उदाहरण देखें –
|| ददतु तरवः पुष्पै रर्घ्यम् फलैश्च मधुश्च || (उत्तर रामचरित 3।24)
अर्घ ,अर्घ्य का शब्दिक अर्थ होता है पूजा की सामग्री ,देवता या सम्मानित व्यक्तियों को आदर सहित दिया गया उपहार ,अनमोल वस्तु जो उपहार में दी जाये ।
किसी के आने पर स्वागत में हम जो भी दें वह वस्तु अर्घ्य है। यह पूजा का उपचार है। उपचार का अर्थ होता है-सेवा,सम्मान ,पूजा।
अर्घ्य हाथ धोने का जल नहीं ,सम्मान में दी गई वस्तु है।
अर्ध्य देने का मंत्र :
गन्ध पुष्प अक्षतैर्युक्तम अर्घ्यम् सम्पादितम मया। ग्रहाण त्वम् प्रभु प्रसन्ना भव सर्वदा॥
||Gandh pushp akshatairyuktam ardhyam sampaditam maya|Grahaan tvam prabhu prasanna bhav sarvada||