ज्ञान पर कबीर के दोहे|Kabir Ke Dohe On Knowledge
छारि अठारह नाव पढ़ि छाव पढ़ी खोया मूलकबीर मूल जाने बिना,ज्यों पंछी चनदूल। Chhari atharah naw padhi chhaw padhi khoya...
छारि अठारह नाव पढ़ि छाव पढ़ी खोया मूलकबीर मूल जाने बिना,ज्यों पंछी चनदूल। Chhari atharah naw padhi chhaw padhi khoya...
आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धारनेह निबाहन ऐक रास, महा कठिन ब्यबहार। Aagi aanchi sahna sugam , sugam...
अंखियाॅ तो झैन परि, पंथ निहार निहारजीव्या तो छाला पारया, राम पुकार पुकार। Aakhiyan to jhain pari , panth nihar...
कबीर खारहि छारि के, कंकर चुनि चुनि खायरतन गावये रेत मैं, फिर पाछै पछताय। Kabir kharahi chhari ke ,kankar chuni...
कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहितीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि। Kabir aundhi khopari,kabahu dhapai nahiTeen lok ki...
धर्मो रक्षति रक्षितः