काशी नरेशों का संक्षिप्त इतिहास,सूची एवं समय काल
आधुनिक बनारस राज्य (Banaras Estate) की स्थापना श्री मनसा राम जी (Shri Mansa Ram Ji)ने की थी। ये एक भूमिहार ब्राह्मण थे। इनका गोत्र गौतम था। कहा जाता कि करीब 1000 साल पहले इनके पूर्वजों को किसी साधू ने भविष्यवाणी की थी की इनके वंशज भविष्य में काशी क्षेत्र के राजा होंगे। इनका पैतृक परिवार निवास बनारस के समीप गंगापुर नाम के स्थान में बताया जाता है।
श्री मनसा राम जी ने 17 वीं शताब्दी में बनारस के नाज़िम ( एक मंडल के सूबेदार तरह का ओहदा) रुस्तम अली खान के मातहत कार्य करना शुरू किया । अपने बहादुरी भरे कार्यों से और कई लड़ाइयां लड़के वो कसवार के जमींदार बन गए । ये उन्ही के पूर्वजों की जमीन थी जो मुस्लिम आक्रमणकारियों ने बहुत पहले छीन ली थी । उनके कार्यों और प्रतिभा से प्रभावित होकर अवध के नवाब सआदत खान ने अपनी मृत्यु से एक साल पहले उन्हें 1736 में रुस्तम अली खान का उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
इसके कुछ समय पश्चात उस समय के तत्कालीन मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने उन्हें बनारस , जौनपुर, ग़ाज़ीपुर और चुनार की सरकारों का राजा और नाज़िम घोषित किया। उन्हें कासवार के ‘राजा बहादुर’ की उपाधि भी प्रदान की।
मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला सन 1737 में मराठा पेशवा बाजीराव से हार चुका था और 1739 में नादिर शाह ने भी उसे बुरी तरह से हराया था। ऐसे ऐसी स्थिति में बादशाह को योग्य सूबेदारों और सहयोगियों की आवश्यकता थी। सम्भवतः मनसाराम जी की काबिलियत को इसी वजह से तेजी से वरीयता दी गयी ।
मनसाराम ने मुग़लों के क्षीण होते साम्राज्य के अन्तिम काल में जान-माल लूट लेने वाले क्रूर दस्युओं से अपनी राजनीतिक सूझबूझ एवं रण-कौशल द्वारा प्रजा की सुरक्षा की और इन अराजक तत्वों की गतिविधियों पर पूर्ण अंकुश लगाकर छिन्न-भिन्न शासन को सुदृढ़ करते हुए नए राजवंश की स्थापना का श्रेय प्राप्त किया।
श्री मनसाराम जी के पश्चात् उनके पुत्र महाराज श्री बलवंत सिंह जी साहेब बहादुर ने और लड़ाइयां लड़ी और अपने राज्य सीमा को और बढ़ाया। उन्होंने अपनी राजधानी गंगापुर में बनायी और वहां किला भी बनवाया , लेकिन बाद में राजधानी को बनारस के गंगा उस पार रामनगर में स्थानांतरित किया।
अवध के नवाब की दृष्टि अभी भी इनके राज्य पर थी। सन 1950 से 1960 के बीच, उसने कई बार इनके नए राज्य पर चढ़ाई की लेकिन बलदेव सिंह ने कुशल छापामार गुरिल्ला युद्ध नीति का परिचय देते हुए नवाब को हर बार वापस भागने पर मजबूर कर दिया। हार कर नवाब ने इनकी सत्ता स्वीकार कर ही ली और दोनों पक्षों में समझौता हो गया कि नवाब अब अपनी सीमा से बाहर इनके इलाके में दखल नहीं करेगा और बलदेव सिंह को काशी राज्य का स्वतंत्र राजा मानेगा।
महाराज श्री बलवंत सिंह जी साहेब बहादुर के बाद उनके सुपुत्र श्री चेत सिंह जी काशी नरेश (Kashi Naresh) के पद पर आसीन हुए।
महाराजा बलवंत सिंह जी- Maharaja Balwant Singh Ji
श्री बलवंत सिंह सन 1740 से 1770 तक काशी राज्य के नरेश काशी नरेश (Kashi Naresh)रहे।
मनसाराम की नन्दकुमारी नायक पत्नी से बलवन्त सिंह (बरिबन्ड सिंह) का जन्म हुआ, जिन्होंने अपनी शूरवीरता से जीते हुए भूखण्डों का पिता से भी अधिक विस्तार करते हुए गंगापुर से हटकर रामनगर को अपनी राजधानी बनाया और मन् 1740 ई. के आस-पास एक विशाल दुर्ग का निर्माण कराया। दुर्ग में पश्चिम ओर शिव मंदिर का निर्माण करा कर उसमें शिव लिंग की स्थापना की और सुयोग्य सन्तान होने की प्रतिष्ठा प्राप्त की। इस मंदिर के द्वार पर अंकित श्लोकों से महाराज की वंश परम्परा तथआ शासन क्षेत्र का संकेत मिलता है।
काशी नरेश पुस्तकालय में उपलब्ध उर्दू ग्रन्थ, ‘बलवन्त नामा‘ से राजा बलवन्त सिंह का जीवन-परिचय एवं शासनकाल का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। आपके दरबार के फलित ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान पं॰ परमानन्द पाठक ने रामनगर दुर्ग के मुहूर्त-शोधन का कार्य सम्पन्न कराया था। फलित ज्योतिष के उत्कृष्ट ग्रन्थ ‘प्रथ्नमाणिक्य-माला‘ के रचयिता पं॰ परमानन्द पाठक ही थे।
महाराजा बलवन्त सिंह शौर्य सम्पन्न शासक के साथ-साथ धर्मनिष्ठ, संस्कृत्यनुरागी राजपुरुष थे। आपकी गुण-ग्राहकता से राज दरबार में सरस्वती, पुत्रों के पूर्ण आदर एवं सम्मान प्राप्त था, जिससे पं॰ परमानन्द पाठक एवं अनेक कवि तथा विद्वानों में सुप्रसिद्ध कवि रघुनाथ इत्यादि आपके दरबार में सुप्रसिद्ध कवि रघुनाथ इत्यादि आपके दरबार की शोभा बढ़ाते थे, जिनके द्वारा रचित ‘काव्यकलाधर‘, ‘रसिक मोहन‘, ‘इश्क महोत्सव‘ आदि कृतियां हैं।
महाराज चेत सिंह जी- Maharaj Chet Singh Ji
श्री चेत सिंह सन 1770 से 1780 तक काशी राज्य के नरेश रहे। सन् 1770 ई. में महाराजा बलवन्त सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र श्री चेत सिंह (Chet Singh Ji) काशी-राज की गद्दी पर आसीन हुए और मात्र 10 वर्षों तक ही के शासनकाल में अपनी शूरवीरता और पराक्रम से प्रथम ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings )को काशी पर आक्रमण करने के परिणाम स्वरुप समस्त काशीवासियों के विरोध के कारण, भयभीत होकर काशी से भाग जाने पर सजबूर कर दिया। वारेन हेस्टिंग्स के पलायन की हड़बड़ी और घबराहट से सम्बन्धित एक कहावत आज भी प्रचलित है-
घोड़ा पर हौदा और हाथी पर जीन,
चुपके से भागा, वारेन हेस्टिंग।
Read: Battle of Shivala( How Warren Hastings fled)
राजा चेत सिंह का किला (Chet Singh Fort) वर्तमान में गंगा घाट के किनारे स्थित है,व् इन्ही के नाम पर वाराणसी में एक मोहल्ले का नाम भी है जिसे हम सब चेतगंज के नाम से जानते है।
महाराजा महीप नारायण सिंह जी- Maharaj Mahip Narayan Singh
महीप नारायण सिंह सन 1781 से 1794 तक काशी राज्य के नरेश रहे। महाराजा महीप नारायण सिंह (Maharaj Mahip Narayan Singh) का जन्म 1756 ई. में हुआ था। काशी नरेश चेत सिंह के बनारस छोड़कर ग्वालियर में बस जाने के बाद उनके भानजे महीप नारायण सिंह को 14 सितबंर 1781 को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा काशी का महाराजा बनाया गया। महीप नारायण सिंह, महराजा बलवंत सिंह की पत्नी महारानी गुलाब कुंवर की बेटी के पुत्र थे, जिनका विवाह दरभंगा जिले के नरहन स्टेट के जमींदार बाबू दुर्गविजय सिंह के साथ हुआ था।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने महीप नारायण सिंह पर राजकीय कुप्रबंध का आरोप लगाकर 1 लाख रुपये सालाना पेंशन के बदले काशी के चार राजस्व जिलों के प्रशासन को हस्तगत कर लिया। 12 सितंबर 1795 को महाराजा महीप नारायण सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र उदित नारायण सिंह काशी के राजा घोषित किए गए।
महाराजा उदित नारायण सिंह बहादुर- Maharaja Udit Narayan Singh Bahadur
महाराजा उदित नारायण सिंह (1770 – 4 अप्रैल 1835), वाराणसी के राजघराने से काशी नरेश थे। इनका राज्यकाल 12 सितंबर 1795 से 4 अप्रैल 1835 तक रहा। ये महिप नारायण सिंह के ज्येष्ठतम जीवित पुत्र थे। महाराजा उदित नारायण सिंह (Udit Narayan Singh) का वाराणसी की संस्कृति में बड़ा योगदान रहा।
महाराजा श्री ईश्वरी नारायण सिंह बहादुर -Maharaja Ishwari Prasad Narayan Singh
श्री महाराजा श्री ईश्वरी नारायण सिंह बहादुर सन 1835 से 1889 तक काशी राज्य के नरेश रहे। महाराजा ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह का जन्म सन् 1818 में हुआ था। काशी नरेश राजा उदित नारायण सिंह के निधन के बाद ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह (Ishwari Prasad Narayan Singh) सन् 1835 ई. में काशी के राजा बने।1857 के गदर में इनहोने किसी का साथ नहीं दिया और एकांतवास में चले गए।अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें 1859 में महाराजा बहादुर की उपाधि प्रदान की।
जी.सी.एस.आई.(GCSI) के तमगे के साथ 13 तोपों की सलामी का सम्मान भी इन्हें अंग्रेजी हुकूमत द्वारा प्रदान किया गया और काशी राज की पूर्व में कुर्क की गई संपत्ति को इन्हें वापस कर दिया गया। इसके साथ ही इन्हें वायसराय की लेजिस्लेटिव कौंसिल (Legislative council) का सदस्य भी मनोनित किया गया। सन् 1889 में इन्हें महाराजाधिराज के साथ 15 तोपों की सलामी का सम्मान दिया गया। माहाराजा ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह साहित्य, संगीत और कला के संरक्षक थे। इन्होंने अपने शासन काल में जन कल्याण के कार्यों में रुचि ली।
महाराजा श्री प्रभु नारायण सिंह साहेब बहादुर-Maharaja Prabhu Narayan Singh
श्री लेफ़्टि.कर्नल महाराजा श्री सर प्रभु नारायण सिंह बहादुर सन १८८९ से १९३१ तक काशी राज्य के नरेश रहे। इनके द्वारा ही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU की स्थापना हेतु १२०० एकड जमीन दान की गई। ये एक योगी महाराज थे। इन्होंने बगैर एनेस्थेसिया लिए अपने हार्निया का ४ घंटे तक आपरेशन करवाया था। डाँक्टर भी इस चमत्कार से हैरान थे। इन्होंने योग द्वारा अपने शरीर को सुन्न कर लिया था।
महाराजा आदित्य नारायण सिंह बहादुर जी- Maharaja Aditya Narayan Singh
कैप्टन महाराजा सर आदित्य नारायण सिंह सन् 1931 से 1939 तक काशी राज्य के नरेश रहे। कैप्टन महाराजा आदित्य नारायण सिंह (Maharaja Aditya Narayan Singh) लेफ्टिनेंट कर्नल महाराजा प्रभु नारायण सिंह के पुत्र थे। इनका जन्म 17 नवंबर 1874 को हुआ था। आदित्य नारायण सिंह सन् 1931 में 4 अगस्त को अपने पिता के स्वर्गवास के पश्चात काशी नरेश बने।
महाराजा आदित्य नारायण सिंह का विवाह सलेमगढ़ (कुशीनगर) के राजा शेषाद्रि प्रसाद नारायण सिंह की बहन के साथ हुआ था। महाराजा आदित्य नारायण सिंह के देहावसान के पश्चात उनके दत्तक पुत्र श्री विभूति नारायण सिंह (Maharaja Vibhuti Narayan Singh) काशी नरेश की गद्दी पर आसीन हुए।
काशी नरेशों की सूची- List of Kashi Naresh
क्रम संख्या | काशी नरेश का नाम | शासन का समय काल (सन) | शासन की अवधि |
1 | राजा श्री मनसाराम सिंह जी साहेब बहादुर | 1736-1740 | 4 वर्ष |
2 | महाराज श्री बलवंत सिंह जी साहेब बहादुर | 1740-1770 | 30 वर्ष |
3 | महाराजा श्री चेत सिंह जी साहेब बहादुर | 1770-1780 | 10 वर्ष |
4 | महाराजा श्री महीप नारायण सिंह जी साहेब बहादुर | 1781-1794 | 13 वर्ष |
5 | महाराजा श्री उदित नारायण सिंह साहेब बहादुर | 1794-1835 | 41 वर्ष |
6 | महाराजा श्री ईश्वरी नारायण सिंह साहेब बहादुर | 1835-1889 | 54 वर्ष |
7 | लेफ़्टि.कर्नल महाराजा श्री सर प्रभु नारायण सिंह साहेब बहादुर | 1889-1931 | 42 वर्ष |
8 | कैप्टन महाराजा श्री सर आदित्य नारायण सिंह | 1931-1939 | 8 वर्ष |
9 | महाराजा डॉ॰ श्री विभूति नारायण सिंह | 1939-1946 | 7 वर्ष |
काशी नरेशों के शासन काल की कुल समयावधि -1736 से 1946 = 210 वर्ष
डॉ॰श्री विभूति नारायण सिंह (Maharaj Vibhuti Narayan Singh) भारतीय स्वतंत्रता पूर्व अंतिम नरेश थे। इसके बाद 15 अक्टूबर 1948 को राज्य भारतीय संघ में मिल गया। सन 2000 में इनकी मृत्यु उपरांत इनके पुत्र श्री अनंत नारायण सिंह ही काशी नरेश हैं और इस परंपरा के वाहक हैं।
काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह दिल्ली में ब्रिटिश जनरल के साथ सन् 1912 में बनारस का प्रतिनिधित्व करते हुए।
नारायण राजवंश
काशी का ‘नारायण वंश‘ (Narayan Dynasty) बनारस पर शासन करने वाला वंश है। यह भूमिहार ब्राह्मण परिवार है। रामनगर किला तथा इसका संग्रहालय 18वीं शताब्दी से ही काशीनरेश का निवास तथा इस राजवंश के इतिहास का निक्षेपस्थल रहा है। आज भी काशीनरेश (Kashi Naresh) बनारस के लोगों के लिये श्रद्धेय हैं। बनारस के लोग काशीनरेश को शिव का अवतार मानते हैं। काशी नरेश ही काशी के सभी प्रमुख सांस्कृतिक आयोजनों के मुख्य संरक्षक तथा आवश्यक अंग होते हैं।
References:
https://www.facebook.com/Bharat-Ratna-to-Kashi-Naresh-1384040261919385/
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Lachit जी,
आपका लेख बहुत ही सत्य व researched है।
कुछ त्रुटियां जो आपसे हो गई हैं लेख के प्रथम भाग में आपने बलदेव सिंह का जिक्र किया है जो कि महाराज श्री बलवंत सिंह जी साहेब बहादुर होना चाहिए। जोकि राजा श्री मनसाराम सिंह जी साहेब बहादुर के पुत्र थे वह महाराजा श्री चेत सिंह जी साहेब बहादुर के पिता हजूर।
और जो चित्र आप ने महाराजा श्री चेत सिंह जी साहेब बहादुर की लगाई है, वह महाराजा श्री प्रभु नारायण सिंह साहेब बहादुर जी की है।
कृपया कर उसे सही कर दे।
श्री कुंवर ईशान जी ! त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए सहर्ष धन्यवाद ! हमने लेख में आपके द्वारा उल्लिखित त्रुटियों का सुधार कर लिया है ! आपका बहुत बहुत आभार !
-लचित बहादुर
We Indians are lucky that time to time the great kings protected the sanctity of Kashi despite of multiple invasion .
Thanks for providing such knowledge to us . School textbook and higher education colleges are just spitting the venom against Indian culture and about our great warriors .
Keep your work continue . Thanks .