रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि का अर्थ
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम सुई आवै कहाँ करै तरवारि।।
रहीम जी का यह दोहा एक बहुत बड़ी सामाजिक सीख देने के लिए कहा गया है।
दोहे का अर्थ
रहीम जी कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु का त्याग नहीं करना चाहिए क्योंकि जो काम सुई कर सकती है वह काम तलवार नहीं कर सकती। कहीं तलवार से भी कपड़े सियें जाते हैं क्या ?
सन्दर्भ एवं व्याख्या
यहाँ यह दोहा हमारे समाज में बहुत सटीक बैठता है। क्योंकि कुछ लोग जीवन में थोड़ी सी प्रगति करते ही अपने पुराने गरीब मित्रो और रिश्तों को भूलने लग जाता है। उसे अब उसके नए ऊँचे समाज के लोगों की संगत ही रास आती है। पुराने सम्बन्धी और मित्र उसे पिछड़े नज़र आने लगते हैं। यद्यपि यह उसकी महान भूल है क्योंकि कल को जब वह मुसीबत में होगा वही पुराने रिश्ते उसका साथ निभाने में सबसे आगे रहेंगे। नए रिश्तों को बहुत अच्छे से निभाएं पर अपने पुराने मित्रों और संबंधों को कभी न भूलें।
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तलवार और सुई का उदाहरण बहुत सटीक है यहाँ पर। देखा जाए जाये तो सुई और तलवार दोनों लोहे से ही बने हैं। एक तलवार से भले हज़ार सुइयां बन सकती हैं लेकिन जब जरूरत हो तो न तो तलवार सुई का काम कर सकती है और न सुई तलवार का काम कर सकती है। छोटे का महत्त्व अपनी जगह है और बड़े का अपनी जगह।
वाक्य प्रयोग
राजीव ने शहर में बड़ी नौकरी पाकर अपने गाँव में रहने वाले भाई से नाता तोड़ लिया। लेकिन वर्षों बाद जब राजीव को गंभीर बीमारी हुयी तब उसके गाँव के भाई ने ही आकर उसकी महीनो सेवा सुश्रुषा की। तब राजीव को समझ आया कि रहिमन देख बड़े को लघु ने दीजिये डारि।
Q.सुई और तलवार का उदाहरण किस कवि ने दिया है
A.भक्त कवि श्री रहीम जी द्वारा