संत श्री कबीर दास के दोहे ज्ञान से परिपूर्ण और शिक्षाप्रद होते हैं। प्रस्तुत है संत कबीर के दोहे हिंदी में : Kabir Ke Dohe in Hindi
आंखों देखा घी भला, ना मुख मेला तेल ।
साधु सों झगडा भला, ना साकट सों मेल ।।1
अर्थ: आँखों से देखा हुआ घी दर्शन मात्र भी अच्छा होता है किन्तु तेल तो मुख में डाला हुआ भी अच्छा नहीं होता । ठीक इसी तऱह साधु जनों से झगडा कर लेना अच्छा है किन्तु बुद्धिहीन से मिलाप करना उचित नहीं है ।
आब गया आदर गया, नैनन गया सनेह ।
यह तीनों तबही गये, जबहिं कहा कछु देह ।।2
अर्थ: अपनी आन चली गई, यान सम्मान भी गया और आँखों से प्रेम की भावना चली गयी । ये तीनों तब चले गये जब कहा कि कुछ दे दो अर्थात आप जब कभी किसी से कुछ माँगोगे । अर्थात् भिक्षा माँगना अपनी दृष्टी से स्वयं को गिराना है अतः भिक्षा माँगने जैसा त्याज्य कार्य कदापि न करो ।
कागा कोका धन हरै, कोयल काको देत ।
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनो करि लेत ।।3
अर्थ: कौवा किसी का धन नहीं छीनता और न कोयल किसी को कुछ देती है किन्तु कोयल कि मधुर बोली सबको प्रिय लगती है । उसी तरह आप कोयल के समान अपनी वाणी में मिठास का समावेश करके संसार को अपना बना लो ।
राजपाट धन पायके, क्यों करता अभिमान ।
पडोसी की जो दशा, सो अपनी जान ।।4
अर्थ: राज पाट सुख सम्पत्ती पाकर तू क्यों अभिमान करता है । मोहरूपी यह अभिमान झूठा और दारूण दुःख देणे वाला है । तेरे पडोसी जो दशा हुई वही तेरी भी दशा होगी अर्थात् मृत्यु अटल सत्य है । एक दिन तुम्हें भी मरना है फिर अभिमान कैसा ?
सतगुरु हमसों रीझि कै, कह्य एक परसंग ।
बरषै बादल प्रेम को, भिंजी गया सब अंग ।।5
अर्थ: सद्गुरू ने मुझसे प्रसन्न होकर एक प्रसंग कहा जिसका वर्णन शब्दों में कर पाना अत्यन्त कठिन है । उनके हृद्य से प्रेम रुपी बादल उमड कर बरसने लगा और मेरा मनरूपी शरीर उस प्रेम वर्षा से भीगकर सराबोर हो गया ।
जिन गुरु जैसा जानिया , तिनको तैसा लाभ ।
ओसे प्यास न भागसी , जब लगि धसै न आस ।।6
अर्थ: जिसे जैसा गुरु मिला उसे वैसा ही ज्ञान रूपी लाभ प्राप्त हुआ । जैसे ओस के चाटने से सभी प्यास नहीं बुझ सकती उसी प्रकार पूर्ण सद्गुरु के बिना सत्य ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता ।
हरिजन तो हारा भला , जीतन दे संसार ।
हारा तो हरिं सों मिले , जीता जम के द्वार ।।7
अर्थ: संसारी लोग जिस जीत को जीत और जिस हार को हार समझते हैं हरि भक्त उनसे भिन्न हैं । सुमार्ग पर चलने वाले उस हार को उस जीत से अच्छा समझते हैं जो बुराई की ओर ले जाते हैं । संतों की विनम्र साधना रूपी हार संसार में सर्वोत्तम हैं ।
कबीर पांच पखेरुआ , राखा पोश लगाय ।
एक जू आया पारधी , लगइया सबै उड़ाय ।।8
अर्थ: सन्त शिरोमणि कबीर दस जी कहते है कि अपान, उदान , समान , व्यान और प्राण रूपी पांच पक्षियों को मनुष्य अन्न जल आदि पाल पोषकर सुरक्षित रखा किन्तु एक दिन काल रूपी शिकारी उड़ाकर अपने साथ ले गया अर्थात मृत्यु हो गयी ।
शब्द सहारे बोलिये , शब्द के हाथ न पाव ।
एक शब्द औषधि करे , एक शब्द करे घाव ।।9
अर्थ: मुख से जो भी बोलो, सम्भाल कर बोलो कहने का तात्पर्य यह कि जब भी बोलो सोच समझकर बोलो क्योंकि शब्द के हाथ पैर नहीं होते किन्तु इस शब्द के अनेकों रूप हैं। यही शब्द कहीं औषधि का कार्य करता है तो कहीं घाव पहूँचाता है अर्थात कटु शब्द दुःख देता है ।
जिभ्या जिन बस में करी , तिन बस कियो जहान ।
नहिं तो औगुन उपजे, कहि सब संत सुजान ।।10
अर्थ: जिन्होंने अपनी जिह्वा को वश में कर लिया , समझो सरे संसार को अपने वश में कर लिया क्योंकि जिसकी जिह्वा वश में नहीं है उसके अन्दर अनेकों अवगुण उत्पन्न होते है । ऐसा ज्ञानी जन और संतों का मत है ।
सबै रसायन हम पिया , प्रेम समान न कोय ।
रंचन तन में संचरै , सब तन कंचन होय ।।11
अर्थ: मैंने संसार के सभी रसायनों को पीकर देखा किन्तु प्रेम रसायन के समान कोइ नहीं मिला । प्रेम अमृत रसायन के अलौकिक स्वाद के सम्मुख सभी रसायनों का स्वाद फीका है । यह शरीर में थोड़ी मात्रा में भी प्रवेश कर जाये तो सम्पूर्ण शरीर शुद्ध सोने की तरह अद्भुत आभा से चमकने लगता है अर्थात शरीर शुद्ध हो जाता है ।
अहिरन की चोरी करै , करे सुई का दान ।
उंचा चढी कर देखता , केतिक दूर विमान ।।12
अर्थ: अज्ञानता में भटक रहे प्राणियों को सचेत करते हुए कबीरदास जी कहते है – ए अज्ञानियों । अहरन की चोरी करके सुई का दान करता है । इतना बड़ा अपराध करने के बाद भी तू ऊँचाई पर चढ़कर देखता है कि मेरे लिए स्वर्ग से आता हुआ विमान अभी कितना दूर है । यह अज्ञानता नहीं तो और क्या है ?
सुमिरण मारग सहज का, सतगुरु दिया बताय ।
सांस सांस सुमिरण करूं, इक दिन मिलसी आय ।।13
अर्थ: सुमरीन करने का बहुत ही सरल मार्ग सद्गुरू ने बता दिया है । उसी मार्ग पर चलते हुए मैं सांस सांस में परमात्मा का सुमिरन करता हूं जिससे मुझे एक दिन उनके दर्शन निश्चित ही प्राप्त होगें । अर्थात् सुमिरन प्रतिदिन की साधना हैं जो भक्त को उसके लक्ष्य की प्राप्ति करती है ।
चाल बकुल की चलत हैं, बहुरि कहावै हंस ।
ते मुक्ता कैसे चुंगे, पडे काल के फंस ।।14
अर्थ: चाल तो बुगले की चलते हैं और स्वयं को हंस कहलाना पसंद करते हैं । ऐसे अज्ञानी भला किस तरह ज्ञान रुपी मोती को चुग सकेगें । इस तरह के प्राणी अज्ञान रुपी अंधकार में फंसकर सदा जीवन-मरण के चक्कर में उलझे रहेंगे । उनकी मुक्ति नहीं हो सकती ।
साधू भुखा भाव का, धन का भूखा नाहिं ।
धन का भुखा जो फिरै, सो ती साधू नाहिं ।।15
अर्थ: साधू संत प्रेम रुपी भाव के भूखे होते है, उन्हें धन की अभिलाषा नहीं होती किन्तु जो धन के भूखे होते हैं । जिसके मन में धन प्राप्त करने कि इच्छा होती है वे वास्तव में साधु है ही नहीं ।
गुरु नारायन रूप है, गुरु ज्ञान को घाट ।
सतगुरु बचन प्रताप सों, मन के मिटे उचाट ।।16
अर्थ: गुरु को साक्षात परमेश्वर का रूप जानों और संसारिक विषयों से मुक्ति प्रदान करने वाला गुरुज्ञान, सरोवर का घाट है । ऐसे गुरु के वाचनों से मन का सारा सन्देह, सारा कलेश मिट जाता है तथा हृदय शान्त हो जाता है ।
सब धरती कागद करूं, लिखनी सब बनराय ।
सात समुद्र का मसि करूं, गुरु गुण लिखा न जाय ।।17
अर्थ: सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज मान लें, जंगलों की लकडीयों की ल्क्म बना ली जाय तथा सात महा समुद्रों के जल को स्यांही बना लो जाये फिर भी गुरु के गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता क्योंकि गुरु का ज्ञान असीमित है उनकी महिमा अपरम्पार है ।
यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं ।
सीस उतारे भुइॅ धरे, तब घर पैठे माहिं ।।18
अर्थ: यह मौसी का घर नहीं है कि जिसमें प्रवेश करने पर पूर्ण आदर और सन्मान प्राप्त होगा । यह प्रेमरूपी घर है । एस प्रेम रुपी घर में प्रवेश करने के लिए कठीन साधना की आवश्यकता होती है । अपना मस्तक काट कर धरती पर चढाना होती है तब भगवान अपने घर में प्रवेश करने कि अनुमति देते हैं अर्थात् तन मन, सब कुछ प्रभु के चरणों में अर्पित करो ।
न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन का मैला न जाय ।
मीन सदा जल में रहै, धोये बस न जाय ।।19
अर्थ: नहाने धोने से क्या हुआ जब मन की मैल ही न धुली । मछली सदैव जल में रहती है उसको जल से कितना भी धोओ परन्तु उसकी दुर्गन्ध नहीं जाती ।
दुरबल को न सताइये, जाकी मोटी हाय ।
मुई खाल की सांस से, सार भसम होई जाय ।।20
अर्थ: दुर्बल को कभी नहीं सताओ अन्यथा उसकी ‘हाय’ तुम्हें लग जायेगी । मरे हुए चमडे की धौकानी से लोहा भी भस्म ही जाता है । अर्थात- दुर्बल को कभी शक्तिहीन मत समझो ।
विषय से सम्बंधित लेख :
कबीर के दोहे-भाग 1-अनुभव: Kabirdas Ke Dohe-Experience
कबीर के दोहे-भाग 2-काल: Kabirdas Ke Dohe-Death
कबीर के दोहे-भाग 3-माया: Kabirdas Ke Dohe-Illusion
कबीर के दोहे-भाग 4-नारी: Kabirdas Ke Dohe-Women
कबीर के दोहे-भाग 5-सेवक: Kabirdas ke Dohe-Servant
कबीर के दोहे-भाग 6-भिक्षा: Kabirdas ke Dohe-Alms
कबीर के दोहे-भाग 7-वेश: Kabirdas ke Dohe-Garb
कबीर के दोहे-भाग 8-बन्धन: Kabirdas ke Dohe-8 Bondage
कबीर के दोहे-भाग 9-चेतावनी: Kabirdas Ke Dohe-Warning
कबीर के दोहे-भाग 10-वाणी: Kabirdas Ke Dohe-Speech
कबीर के दोहे-भाग 11-परमार्थ: Kabirdas Ke Dohe-Welfare
कबीर के दोहे-भाग 12-वीरता: Kabirdas Ke Dohe-Bravery
कबीर के दोहे-भाग 13-भक्त: Kabirdas Ke Dohe-Devotee
कबीर के दोहे-भाग 14-संगति: Kabirdas Ke Dohe-Company
कबीर के दोहे-भाग 15-परामर्श: Kabirdas Ke Dohe-Advice
कबीर के दोहे-भाग 16-मन: Kabirdas Ke Dohe-Mind
कबीर के दोहे-भाग 17-मोह: Kabirdas Ke Dohe-Attachment
कबीर के दोहे-भाग 18-लोभ: Kabirdas Ke Dohe-Greed
कबीर के दोहे-भाग 19-पारखी: Kabirdas Ke Dohe-Examiner
कबीर के दोहे-भाग 20-विरह: Kabirdas Ke Dohe-Separation
कबीर के दोहे-भाग 21-प्रेम: Kabirdas Ke Dohe-Love
कबीर के दोहे-भाग 22-ज्ञानी: Kabirdas Ke Dohe-Scholar
कबीर के दोहे-भाग 23-विश्वास: Kabirdas Ke Dohe-Faith
कबीर के दोहे-भाग 24-सर्वव्यापक ईश्वर: Kabirdas Ke Dohe-Omnipotent God
कबीर के दोहे-भाग 25-ईश्वर स्मरण: Kabirdas Ke Dohe-Rememberance
कबीर के दोहे-भाग 26-खोज: Kabirdas Ke Dohe-Search
कबीर के दोहे-भाग 27-क्रोध: Kabirdas Ke Dohe-Anger
कबीर के दोहे-भाग 28-बुद्धि: Kabirdas Ke Dohe-Intellect
कबीर के दोहे-भाग 29-संतजन: Kabirdas Ke Dohe-Saints
कबीरदास जी के प्रसिद्द दोहे
Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,
Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com