रामायण पाठ में सम्पुट कैसे लगाएं
रामायण में संपुट कैसे लगाया जाता है?-Samput Kaise Lagayein
रामायण पाठ में सम्पुट लगाने के लिए निम्न बातों का मुख्य रूप से ध्यान रखना पड़ता है। जैसे,
- सम्पुट का प्रयोग करने से पहले उसे 108 बार उच्चारण करते हुए हवन कर लें । इससे वह सम्पुट आपके प्रयोग के लिए सिद्ध हो जाता है। यद्यपि श्री रामचरितमानस की चौपाइयां स्वतः सिद्ध हैं फिर भी उनके मनोकामना पूर्ति के के लिए प्रयोग से पहले उन्हें इस विधि से सिद्ध करना पूर्ण फलदाई है।
- सम्पुट हमेशा दोहों के उच्चारण के पहले और उनके उच्चारण के बाद एक एक बार बोले जाते हैं। श्री रामचरितमानस में दो दोहों के बीच में कई सारी चौपाइयां होती हैं और उनके अंत में दोहे होते हैं जिनको थोड़ा अलग तरीके से बोलते हैं। बस यहीं पर इन दोहों के पहले और बाद में सम्पुट लगाते हैं।
- यदि रोज थोड़ा थोड़ा रामचरितमानस का पाठ कर रहे हैं तो अंतिम चौपाई के बाद सम्पुट नही लगाना है। वहां विश्राम दीजिए । फिर अगले दिन पाठ प्रारंभ करने पर सम्पुट बोलकर दोहे से पाठ प्रारंभ करिए।
यही विधि है सम्पुट लगाने की।
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पहले दोहे और चौपाई में अंतर समझें-Difference between Doha & Chaupai
रामचरितमानस पाठ में दोहे और चौपाइयां दोनों होती हैं। दोहे में दो पद होते हैं जबकि चौपाई में चार पद होते हैं। हर चार पांच चौपाइयों के बाद एक या दो दोहे होते हैं। इन्हीं दोहों के आगे और पीछे सम्पुट लगाएं जाते हैं।
यह दोहा है-
भरतु जनकु मुनिजन सचिव साधु सचेत बिहाइ। –पहला पद
लागि देवमाया सबहि जथाजोगु जनु पाइ॥ –दूसरा पद
यह चौपाई है-
कृपासिंधु लखि लोग दुखारे।(-पहला पद) निज सनेहँ सुरपति छल भारे॥(-दूसरा पद)
सभा राउ गुर महिसुर मंत्री।(-तीसरा पद) भरत भगति सब कै मति जंत्री॥1॥(-चौथा पद)
दोहे और चौपाई में अंतर समझ लेने के बाद आइये अब सम्पुट लगाने कि विधि उदहारण से समझते हैं।
सम्पुट लगाने का उदाहरण-Samput ka Udaharan
आइए एक उदाहरण से समझते हैं।
>पाठ करते हुए प्रथम दोहे के पहले यहां संपुट लगाइए
दोहा :
भरतु जनकु मुनिजन सचिव साधु सचेत बिहाइ।
लागि देवमाया सबहि जथाजोगु जनु पाइ॥302॥
>यहां संपुट लगाइए
चौपाईयां
कृपासिंधु लखि लोग दुखारे। निज सनेहँ सुरपति छल भारे॥
सभा राउ गुर महिसुर मंत्री। भरत भगति सब कै मति जंत्री॥1॥
रामहि चितवत चित्र लिखे से। सकुचत बोलत बचन सिखे से॥
भरत प्रीति नति बिनय बड़ाई। सुनत सुखद बरनत कठिनाई॥2॥
जासु बिलोकि भगति लवलेसू। प्रेम मगन मुनिगन मिथिलेसू॥
महिमा तासु कहै किमि तुलसी। भगति सुभायँ सुमति हियँ हुलसी॥3॥
आपु छोटि महिमा बड़ि जानी। कबिकुल कानि मानि सकुचानी॥
कहि न सकति गुन रुचि अधिकाई। मति गति बाल बचन की नाई॥4॥
>अब यहां संपुट लगाइए
दोहा :
भरत बिमल जसु बिमल बिधु सुमति चकोरकुमारि।
उदित बिमल जन हृदय नभ एकटक रही निहारि॥303॥
>अब यहां पुनः संपुट लगाइए
चौपाइयां
भरत सुभाउ न सुगम निगमहूँ। लघु मति चापलता कबि छमहूँ॥
कहत सुनत सति भाउ भरत को। सीय राम पद होइ न रत को॥1॥
सुमिरत भरतहि प्रेमु राम को। जेहि न सुलभु तेहि सरिस बाम को॥
देखि दयाल दसा सबही की। राम सुजान जानि जन जी की॥2॥
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इसी प्रकार यदि रोज थोड़ा-थोड़ा पाठ कर रह हों तो पाठ समाप्त करते हुए अंतिम दोहे के पहले तो सम्पुट लगाएं पर दोहे के बाद सम्पुट न लगाएं।
परन्तु यदि पाठ या अध्याय पूर्णतयाः समाप्त कर रहे हों तो अंतिम दोहे के पहले और बाद में सम्पुट लगाकर पढ़ें और पाठ समाप्त करें।