Join Adsterra Banner By Dibhu

जातो से गईली भातो न मिलल-भोजपुरी मुहावरा

5
(5)

भोजपुरी का यह मुहावरा या लोकोक्ति अपने अंदर बहुत गहन पहलुओं को समेटे हुए है। ‘जातो से गइली भातो न मिलल‘ लोकोक्ति में जात और भात दो मुख्य शब्द है यहां। दोनों ही शब्द बड़े महत्वपूर्ण सामाजिक संबंधों को निरूपित करते हैं।

जात से गइली भातो न मिलल में ‘जात’ क्या होता है?

पहले गावों में जाति व्यक्ति का व्यवसाय और उसके सामाजिक ताने बाने को निश्चित करती थी। ज इति ज=जन्म से , इति=ऐसा ही…अर्थात जन्म से ही व्यक्ति का समाज और कार्य क्षेत्र नियत होता था। यह वेदों वाली वर्ण ( वरण=चयन करना) वाली व्यवस्था नहीं रह गई थी । जाति के अपने फायदे और नुकसान दोनो ही थे। जाति के अंदर स्वीकृत कार्य को करने की अनुमति थी और सहायता भी प्रदान की जाती थी। पर जब कोई व्यक्ति जाति हित विरुद्ध कार्य देता था तो उसे जाति बिरादरी से बाहर कर दिया जाता था । अब बहिष्कृत व्यक्ति न तो वो कार्य कर सकता था जो उसने बचपन से सीखा है और न ही उसकी प्रतिष्ठा राज जाती थी।

अतः जात से गइली भातो न मिलल लोकोक्ति में जात से जाने का अर्थ अपनी पारम्परिक व्यवसाय खो देने से होता है। जो कि व्यक्ति कि रोजी रोटी का जरिया होती है।

जात से गइली भातो न मिलल में ‘भात’ क्या होता है?

भात खिलाना एक और गूढ़ परम्परा है हमारे गावों की । इसमें केवल परिवार के महत्वपूर्ण कार्य अवसर जैसे उत्सव शोक आदि पर केवल बहुत नजदीकी सुहृद लोगों को बुलाया जाता है। ये वो लोग होते हैं जो आपके सुख दुख में आपके परिवार के साथ खड़े रहते हैं। इसलिए भात का निमंत्रण बड़े ही खास मित्रों और सुहृदों को ही भेजा जाता है। वैसे लोग जो आपके कठिन से कठिन समय में भी साथ खड़े होते हैं। एक तरीके से ये सुख दुख के सच्चे साथी होते हैं।

भात का निमंत्रण विवाह से पहले भी दिया जाता है और घर में मृत्यु के समय भी।

ये भात सबको नहीं भेजा जाता भले ही आप अपनी जाति से हों। किसी के भात का निमंत्रण प्राप्त करना बड़े सम्मान की बात है। इसे ठुकराने से पहले कई बार सोचें क्योंकि कई बार ये खानदानी दुश्मनी को भी जन्म दे सकता है।

यदि व्यक्ति गलती से कोई ऐसा कार्य कर जाए कि न तो उसकी जाति उस पक्ष में हो और भात वाले सुहृद साथ रह जाएं तो ऐसे व्यक्ति का कोई सामाजिक सहारा न रह जायेगा। लोग उसे न तो आजीविका के कार्य में सहायता देंगे और न ही उसे अपने यहां भात निमंत्रण देंगे।तो उसका सुख दुख का सहारा भी समाप्त।अतः जात से गइली भातो न मिलल लोकोक्ति में भात से जाने का अर्थ अपने मित्र , सम्बन्धियों और सुख दुःख के सहारे को खो देने से है।

इस प्रकार जातो से गईली भातो न मिलल लोकोक्ति का अर्थ है कि व्यक्ति का सामाजिक स्वीकार्यता सब ओर से समाप्त हो गई ।

जात से गइली भातो न मिलल-इसी लोकोक्ति के अन्य रूपांतर

  1. जात से गइली भातो न मिलल
  2. जातो से गईली भातो न मिलल
  3. जातो गयल भातो गयल
  4. जात गईल भातो ना खईनी

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः