Join Adsterra Banner By Dibhu

ॐ जय जगदीश हरे के रचयिता पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी

0
(0)

देश में बहुत से महानुभाव हैं जिनको हमारे पाठ्यक्रम व इतिहास में न्यायोचित स्थान नहीं मिला। हमारा इतिहास ऐसे रोचक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्वों से भरा हुआ है जिनके बारे में जान कर आपको गर्व की अनुभूति होगी, परन्तु जिनके बारे में जनसाधारण अनजान है क्योंकि हमारे कुछ लोगों ने उन्हें कहीं दबा दिया। ऐसे ही व्यक्तित्वों में हैं पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी।

यदि आपने किसी पूजा या आरती में भाग लिया है तो संभव है कि कदाचित आप उनकी ही रचना सुन रहें हों या गा रहे हों। जी हाँ, वह प्रख्यात रचना है –

‘ॐ जय जगदीश हरे।’

यह आरती आज हर हिन्दू घर में गाई जाती है। इस आरती की तर्ज पर अन्य देवी देवताओं की आरतियाँ बन चुकी है और गाई जाती है। परंतु इस मूल आरती के रचयिता के बारे में काफी कम लोगों को पता है। इस आरती के रचयिता थे – पं. श्रद्धाराम शर्मा या श्रद्धाराम फिल्लौरी। परन्तु हमारे इतिहास में पण्डित जी का योगदान केवल इसी भजन तक सीमित नहीं है।

पं. श्रद्धाराम शर्मा का जन्म पंजाब के जिले जालंधर में स्थित फिल्लौर शहर में में एक निर्धन परिवार में हुआ था। वे सनातन धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, संगीतज्ञ तथा हिन्दी और पंजाबी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनका विवाह सिख महिला महताब कौर के साथ हुआ था। बचपन से ही उन्हें ज्योतिष और साहित्य के विषय में गहरी रूचि थी।


banner

वे बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।उन्होनें वैसे तो किसी प्रकार की शिक्षा हासिल नहीं की थी परंतु उन्होंने सात साल की उम्र तक गुरुमुखी में पढाई की और दस साल की उम्र तक वे संस्कृत, हिन्दी, फ़ारसी भाषाओं तथा ज्योतिष की विधा में पारंगत हो चुके थे। जीविका चलाने के लिए उन्होंने कथायाचन को अपना अवलंब बनाया। अपने धर्म व भारतीय साहित्य के अध्ययन करते हुए उन्होंने ज्ञान अर्जित किया और समाज में ख्याति अर्जित की। वे एक प्रतिष्ठित धर्म प्रचारक, ज्योतिषी, साहित्यकार, संगीतज्ञ के रूप में प्रख्यात हुए।

उन्होने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’ और ‘पंजाबी बातचीत’ जैसी पुस्तकें लिखीं। ‘सिक्खां दे राज दी विथियाँ’
उनकी पहली किताब थी। इस किताब में उन्होनें सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित रूप से बताया था।

यह पुस्तक लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय साबित हुई थी और अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस (जिसका भारतीय नाम अब आईएएस हो गया है) परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था। पं. श्रद्धाराम शर्मा गुरूमुखी और पंजाबी के अच्छे जानकार थे और उन्होनें अपनी पहली पुस्तक गुरूमुखी मे ही लिखी थी! परंतु वे मानते थे कि हिन्दी के माध्यम से ही अपनी बात को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है।

हिन्दी के जाने माने लेखक और साहित्यकार पं. रामचंद्र शुक्ल ने पं. श्रद्धाराम शर्मा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी के पहले
दो लेखकों में माना है।

उन्होनें 1877 में भाग्यवती नामक एक उपन्यास लिखा था जो हिन्दी में था। माना जाता है कि यह हिन्दी का पहला उपन्यास है।
इस उपन्यास का प्रकाशन 1888 में हुआ था। इसके प्रकाशन से पहले ही पं. श्रद्धाराम का निधन हो गया परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने काफी कष्ट सहन करके भी इस उपन्यास का प्रकाशन करावाया था।

वैसे पं. श्रद्धाराम शर्मा धार्मिक कथाओं और आख्यानों के लिए काफी प्रसिद्ध थे। वे महाभारत का उध्दरण देते हुए अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर देते थे। उनका आख्यान सुनकर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर देशभक्ति की भावना भर जाती। उन्होंने अपने ओजपूर्ण भाषण से लोगों को देश की स्वाधीनता के लिए प्रेरित करना शुरू किया।

इससे अंग्रेज सरकार की नींद उड़ने लगी और उसने 1865 में पं. श्रद्धाराम को फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी।लेकिन उनके द्वारा लिखी गई किताबों का पठन विद्यालयों में हो रहा था और वह जारी रहा। निष्कासन का उन पर कोई असर नहीं हुआ, बल्कि उनकी लोकप्रियता और बढ गई। निष्कासन के दौरान उन्होनें कई पुस्तकें लिखी और लोगों के सम्पर्क में रहे।

पं. श्रद्धाराम ने अपने व्याख्यानों से लोगों में अंग्रेज सरकार के खिलाफ क्रांति की मशाल ही नहीं जलाई बल्कि साक्षरता के लिए भी ज़बर्दस्त काम किया। समस्त संघर्षों के मध्य उन्होंने समाज में अपने लिए विशिष्ठ स्थान बनाया और जनसेवा के पथ से अलग नहीं हुए। अपने कार्य से उन्होंने “पण्डित जी” की उपाधि अर्जित कर ली, और उनका प्रभाव समाज के हर व्यक्ति पर गाढ़े रंग की तरह चढ़ने लगा।

1870 में उन्होने एक ऐसी आरती लिखी – जो भविष्य में घर घर में गाई जानी थी:

वह आरती थी – ओम् जय जगदीश हरे

पं. शर्मा जहाँ कहीं व्याख्यान देने जाते , ओम जय जगदीश आरती गाकर सुनाते। उनकी यह आरती लोगों के बीच लोकप्रिय होने लगी और फिर तो आज कई पीढियाँ गुजर जाने के बाद भी यह आरती गाई जाती रही है और कालजयी हो गई है।

इस आरती का उपयोग प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी एक फिल्म में किया था और इसलिए कई लोग इस आरती के साथ मनोज कुमार का नाम जोड़ देते हैं।

पं. शर्मा सदैव प्रचार और आत्म प्रशंसा से दूर रहे थे। शायद यह भी एक वजह हो कि उनकी रचनाओं को चाव से पढने वाले लोग भी उनके जीवन और उनके कार्यों से परिचित नहीं हैं। समाजसेवा, लेखन, एवं स्वतंत्रता संघर्ष में पण्डित व्यस्त रहे और उनकी जीवनसंध्या 43 वर्ष की आयु में 24 जून 1881 को लाहौर में पं. श्रद्धाराम शर्मा ने आखिरी सांस ली। परन्तु उनकी कृति के माध्यम से वे आज भी हम सब के ह्रदय में स्थान बनाये हुए हैं।

क्या आपको लगता है कि हमें पण्डित जी जैसे लोगों के बारे में जागरूक होना चाहिए? अगर हाँ तो उनके बारे में औरों को बतायें और उनकी प्रतिभा तथा स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका को याद करें।

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


संकलित लेख

About संकलित लेख

View all posts by संकलित लेख →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः