Join Adsterra Banner By Dibhu

हल्दीघाटी के बाद हुआ दिवेर का महायुद्ध जिसमें अकबर की करारी हार हुयी

5
(2)

दिवेर का महायुद्ध: हिन्दुओं की जिहादी मुगलों पर निर्णायक विजय

दिवेर का निर्णायक युद्ध हल्दीघाटी के 7 वर्षों बाद हुआ

दिवेर का पहला युद्ध जो कि मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह व सुल्तान खां के नेतृत्व में मुग़ल सेना के बीच लड़ा गया। यह युद्ध हल्दीघाटी (1576) के ल. 7 वर्षों बाद २६ अक्टूबर, १५८२  दिवेर की घाटी में हुआ, जहाँ महाराणा प्रताप ने मुग़लों को निर्णायक रूप से पराजित कर 36,000 यवनों को मौत के घाट उतार कर पूरे मेवाड़ से मुग़ल ज़ख़ीरे को मटियामेट कर दिया।

दिवेर का युद्ध जिसमें मेवाड़ी राजपूतों की अकबर के ऊपर निर्णायक जीत हुयी

मेवाड़ की निर्णायक जीत- 84 मुगल चौकियां ध्वस्त की गईं, व 36 थाने मेवाड़ से उठ गए ,कुम्भलगढ़ पर पुनः प्रताप ने कब्जा किया तथा केवल चितौड़ व मांडल गढ़ को छोड़ कर सम्पूर्ण मेवाड़ पर प्रताप का आधिपत्य हो गया। (राज प्रशस्ति ग्रंथ)

राज. विवि. के शीर्षस्थ इतिहासकार डॉ गोपीनाथ लिखते हैं –

"दिवेर की विजय महाराणा के जीवन का उज्ज्वल कीर्तिमान था। हल्दीघाटी का जो नैतिक विजय व परीक्षण युद्ध था, वहाँ दिवेर का युद्ध एक निर्णायक युद्ध सिद्ध हुआ।
इसी विजय के फल स्वरूप मेवाड़ पर पुनः महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया।
इस युद्ध के पश्चात मुगल सैनिक हतोत्साहित हो गए। हल्दीघाटी युद्ध मे बहे राजपूतों के रक्त का बदला दिवेर में चुकाया गया।
दिवेर की विजय ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराणा प्रताप का शौर्य, संकल्प और वंश गौरव अकाट्य और अमिट है, जिसने त्याग व बलिदान से सत्ता वादी नीति को परास्त किया।"

दिवेर का युद्ध-जेम्स टॉड

अंग्रेज़ इतिहासकार जेम्स टॉड लिखता है कि-

१. "दिवेर का युद्ध ही वह युद्ध था जिसमें मुग़लों पर हिन्दुओं ने निर्णायक विजय पताका लहरा दी।" टॉड ने  इस युद्ध को ' मेवाड़ का मैराथन युद्ध ' की संज्ञा दी।

२. “ दिवेर की नाल में प्रताप ने मुग़ल सेना को भी गाजर मूली की तरह काट डाला। भगोड़ों का आमेट तक पीछा कर के सारे ज़ख़ीरे को मौत के घाट उतार दिया।कोमलमेर में अब्दुल्ला व उसकी सेना निर्ममता से काट डाली गई।

३. उदयपुर से तो मुग़ल सेना भाग ही खड़ी हुई। चित्तौड़ के अतिरिक्त पूरा मेवाड़ प्रताप ने जीत लिया। प्रताप के प्रतिशोध ने मेवाड़ को मरुस्थल बना दिया।“

दिवेर का युद्ध ही वह युद्ध है जहाँ के लिए भामाशाह ने अपने जीवन की पूरी संपत्ति महाराणा प्रताप को अर्पित कर दी। भामाशाह का नाम तो वाम पंथी छुपा न पाए, पर दिवेर का सत्य चबा गए।

दिवेर के दूसरे युद्ध में महाराणा अमर सिंह ने मुग़ल घुसपैठिए जहांगीर को पराजित किया था।यह गाथा फिर कभी । (वामपंथी इतिहासकारों, तथाकथित बुद्धिजीवियों, व विचारकों ने एक क्रान्तिकारी युद्ध को हमारी सामूहिक स्मृति से ही मिटा दिया है ?)

द्विवेर युद्ध की पूर्व भूमिका, योजना और कार्यान्वन

 18 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध के बाद 1578 में महाराणा प्रताप ने कालागुमान पंचायत के मिनकियावास के जंगल में युद्ध की योजना बनाई और दिवेर व छापली के दर्रों के बीच हुए युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगल सेना को उल्टे पांव लौटने को मजबूर कर दिया।

1578 में महाराणा प्रताप ने दिवेर युद्ध की रणनीति तैयार की। दिवेर से कुछ दूरी पर घाटी के मुहाने पर दूसरी मुगल चौकी थी, जहां बहलोल खान था। 7.5 फीट ऊंची कद काठी का यह मुगल सैनानी उब्जेकिस्तान से आकर अकबर की सेना में शामिल हुआ था। बहलोल खान का सामना प्रताप से हुआ तो प्रताप ने अपनी तलवार के प्रबल प्रहार से टोप, बख्तर, घोड़े की पाखट, घोड़े समेत चीर डाला। अन्यमुगल सैनिकों का भी यहां वहां कत्ल कर दिया गया। दिवेर की घाटी पर प्रताप का आधिपत्य हो गया। फिर महाराणा प्रताप को चावंड में नवीन राजधानी बनाकर लोकहित में जुटने का अवसर मिला।

विजयादशमी को मिली आजादी

द्विवेर युद्ध का प्रथम युद्ध: ( तिथिक्रम:विजयादशमी संवत १६४०/२६ अक्टूबर,सन १५८२)

1582 में विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजन कर दिवेर घाटी के पूर्व सिरे पर जहां मुगल सेना पड़ाव डाले पड़ी थी, वहीं हमला कर दिया। दिवेर की सामरिक स्थिति का आंकलन कर प्रताप ने शाहबाज खान द्वारा हस्तगत मेवाड़ की मुक्ति का अभियान यहां से प्रारंभ किया।

इस युद्ध में अमरसिंह, भामाशाह, चुंडावत, शक्तावत, सोलंकी, पडिहार, रावत आदि राजपूतों तथा भील सैनिकों से युक्त पराक्रम सेना के साथ दिवेर पर आक्रमण किया।

मेवाड़ी सेना के आने की सूचना मिलते ही सुल्तान खान युद्ध के लिए सामने आया तथा उसने आस पास के मुगल थानों में भी खबर भेज दी। वहां 14 मुगल सरदार दिवेर युद्ध में मुगलों की सहायता के लिए पहुंचे।

मेवाड़ तथा मुगल सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। सुल्तान खान हाथी पर बैठा अपनी सेना का संचालन कर रहा था। प्रताप के एक सैनिक सोलंकी भृत्य पडिहार ने तलवार के वार से हाथी के अगले पैर काट डाले तथा प्रताप ने हाथी के मस्तक को भाले से फोड़ दिया। हाथी गिर पड़ा एवं सुल्तान खान को हाथी छोडऩा पड़ा और वह घोड़े पर बैठकर लडऩे लगा।

उसका सामना अमरसिंह से हुआ। अमरसिंह ने सुल्तान खान पर भाले का एक भरपूर वार किया। अमर सिंह का वार इतना जोरदार था कि भाला उसके शरीर और घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धंसा और सेनापति सुल्तान खान मूर्ति की तरह एक जगह गड़ गया।

Dewair war Prince Amar Singh killing Mughal General Sultan Khan

इसके बाद सभी थाने व चौकियों से मुगल भाग खड़े हुए। दिवेर युद्ध ने प्रमाणित कर दिया कि महाराणा प्रताप का शौर्य, संकल्प अमिट है। स्वतंत्रता प्रेमी इस शासक ने जीवनभर पग-पग पर युद्ध का सामना किया।

इतिहासकार डॉ. गोपीनाथ मुंडे के अनुसार दिवेर की विजय एक उज्जवल कीर्तिमान था, तो हल्दीघाटी का युद्ध नैतिक विजय व परीक्षण युद्ध था और दिवेर का युद्ध निर्णायक बना।

प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड ने दिवेर को मैराथन ऑफ मेवाड़ की संज्ञा दी। जिस प्रकार एथेंस जैसी छोटी इकाई ने फारस जैसी बलवती शक्ति को मैराथन में पराजित किया था, उसी प्रकार मेवाड़ जैसे छोटे से राज्य ने मुगल साम्राज्य के वृहद सैनिक बल को दिवेर में हरा दिया।

महाराणा प्रताप के विजय की यही दास्तान अब हमेशा देश के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी रहेगी।

!! जय महाराणा प्रताप !!
!! जय राजपूताना !!
!! जय माता दी’ !!

किस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा गया है?

Facebook Comments Box

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

We are sorry that this post was not useful for you!

Let us improve this post!

Tell us how we can improve this post?

Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,


Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com


संकलित लेख

About संकलित लेख

View all posts by संकलित लेख →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

धर्मो रक्षति रक्षितः