राठौड़ राजपूतों की वंशपरम्परा एवं उनकी शाखाएँ
राठौड़ राजपूतों की उत्तपति सूर्यवंशी राजा के राठ(रीढ़) से उत्तपन बालक से हुई है, इस लिए ये राठोड कहलाये। राठोरो की वंशावली मे उनकी राजधानी कर्नाट और कन्नोज बतलाई गयी है ।
राठौड़ सेतराग जी के पुत्र राव सीहा जी थे। मारवाड़ के राठौड़ उन ही के वंशज है ।राव सीहा जी ने करीब 700 वर्ष पूर्व द्वारिका यात्रा के दोरान मारवाड़ मे आये और राठौड़ वंश की नीव रखी ।राव सीहा जी राठोरो के आदि पुरुष थे।
अर्वाचीन राठौड़ शाखाएँ:
खेडेचा, महेचा , बाडमेरा , जोधा , मंडला , धांधल , बदावत , बणीरोत , चांदावत , दुदावत , मेड़तिया , चापावत , उदावत , कुम्पावत , जेतावत , करमसोत बड़ा ,करमसोत छोटा , हल सुन्डिया , पत्तावत , भादावत , पोथल , सांडावत , बाढेल , कोटेचा , जैतमालोत , खोखर , वानर , वासेचा , सुडावत , गोगादे , पुनावत ,सतावत , चाचकिया , परावत , चुंडावत , देवराज , रायपालोत , भारमलोत , बाला , कल्लावत , पोकरना . गायनेचा , शोभायत , करनोत , पपलिया , कोटडिया ,डोडिया , गहरवार , बुंदेला , रकेवार , बढ़वाल , हतुंधिया , कन्नोजिया , सींथल , ऊहड़ , धुहडिया , दनेश्वरा , बीकावत , भादावत , बिदावत आदि।
राठौड़ वंश :
कश्यप ऋषि के घराने में राजा बली राठौड़ का वंश राठौड़ वंश कहलाया ऋषि वंश राठौड़ की उत्पत्ति सतयुग से आरम्भ होती है।
वेद – यजुर्वेद
शाखा – दानेसरा
गोत्र – कश्यप
गुरु – शुक्राचार्य
देवी – नाग्नेचिया
पर्वत – मरुपात
नगारा – विरद रंणबंका
हाथी – मुकना
घोड़ा – पिला (सावकर्ण/श्यामकर्ण)
घटा – तोप तम्बू
झंडा – गगनचुम्बी
साडी – नीम की
तलवार – रण कँगण
ईष्ट – शिव का
तोप – द्न्कालु
धनुष – वान्सरी
निकाश – शोणितपुर (दानापुर)
बास – कासी, कन्नोज, कांगडा राज्य, शोणितपुर, त्रिपुरा, पाली, मंडोवर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़,इडर, हिम्मतनगर, रतलाम, रुलाना, सीतामऊ, झाबुबा, कुशलगढ़, बागली, जिला-मालासी अजमेरा आदि ठिकाना दानसेरा शाखा का है।
दारु मीठी दाख री सूरां मीठी शिकार
सेजां मीठी कामिणी तो रण मीठी तलवार
व्रजदेशा चन्दन वना मेरुपहाडा मोड़
गरुड़ खंगा लंका गढा राजकुल राठौड़
दारु पीवो रण चढो राता राखो नैण
बैरी थारा जल मरे सुख पावे ला सैण
राठोड़ों की सम्पूरण खापें और उनके ठिकाने जोधा ,कोटडिया ,गोगादेव ,महेचा ,बाड़मेरा ,पोकरणा राडधरा ,उदावत,खोखर ,खावड़ीया ,कोटेचा ,उनड़, इडरिया , राठौड़ों की प्राचीन तेरह खापें थी ।
राजस्थान में आने वाले सीहाजी राठोड दानेश्वरा खाप के राठोड़ थे सीहाजी के वंशजो से जो खांपे चली वे निम्न प्रकार है।
- इडरिया राठौड़ :- सोनग ( पुत्र सीहा ) ने इडर पर अधिकार जमाया अतः इडर के नाम से सोनग के वंशज इडरिया राठौड़ कहलाये।
- हटूकिया राठौड़ :- सोनग के वंशज हस्तीकुण्डी ( हटुंडी ) में रहे वे हटूंडीया राठोड़ कहलाये जोधपुर इतिहास में ओझा लिखते हे की सीहाजी से पहले हटकुण्डी में राष्ट्र कूट बालाप्रसाद राज करता रहा उसके वंशज हटूंणडीया राठौड़ हे परन्तु हस्तीकुण्डी शासन करने वाले राष्ट्रकूटों ( चंद्रवंशी ) का कोई वंशज नजर नहीं आता है ( दोहठ ) राठौड़ – सीहा राठोड़ के बाद कर्मशः सोनग , अभयजी , सोहीजी , मेहपाल जी ,भारमल जी , व् चूंडारावजी हुए चूंडाराव अमरकोट के सोढा राणा सोमेश्वर के भांजे थे।
इनके समय मुसलमान ने जोर लगाया की अमरकोट के सोढा हमारे से बेटी व्यवहार करें तब चूंडाराव जो उस समय अमरकोट थे इनकी सहायता से मुसलमान की बारातें बुलाई गयी एवं स्वयं इडर से सेना लेकर पहुंचे सोढों और राठौड़ों ने मिलकर मुसलमानों की बरातों को मार दिया उस समय वीर चूंडराव को दू:हठ की उपाधि दी गयी थे अतः चूंडराव के वंशज दोहठ कहे गए ये राठौड़ , अमरकोट , सोराष्ट्र , कच्छ , बनास कांठा , जालोर , बाड़मेर , जैसलमेर , बीकानेर जिलों में कहीं – कहीं निवास करते रहे है। - बाढ़ेल ( बाढ़ेर ) राठौड़ :- सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बीजाजी ने द्वारका के चावड़ो को बाढ़ कर ( काट कर ) द्वारका ( ओखा मंडल ) पर अपना राज्य कायम किया इसी कारन बेरावलजी के वंशज बाढ़ेल राठोड़ हुए आजकल ये बाढ़ेर राठोड़ कहलाते है गुजरात में पोसीतरा , आरमंडा , बेट द्वारका बाढ़ेर राठौड़ों के ठिकाने थे।
- बाजी राठौड़ :- बेरावल जी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठोड़ कहलाये है गुजरात में महुआ वडाना आदीइनके ठिकाने हे बाजी राठौड़ आज भी गुजरात में हि बसते है।
- खेड़ेचा राठौड़ :- सीहा के पुत्र आस्थान ने गुहिलों से खेड़ जीता खेड़ नाम से आश्थान के वंशज खेड़ेचा राठोड़ कहलाते है।
- धुहड़ीया राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धूहड़ के वंशज धुहड़ीया राठौड़ कहलाये।
- धांधल राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठोड़ कहलाये पाबूजी राठौड़ इसी खांप के थे इन्होने चारणी को दीये गए वचनानुसार पणीग्रहण संस्कार को बीच में छोड़कर चारणी के गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की यही पाबुजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते है।
- चाचक राठौड़ : – आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठोड़ कहलाये।
- हरखावत राठौड़ :- आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज।
- जोलू राठौड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज।
- सिंधल राठौड़ :- जोपसा के पुत्र सिंधल के वंशज ये बड़े पराक्रमी हुए इनका जेतारण पाली पर अधिकार था जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया।
- उहड़ राठौड़ :- जोपसा के पुत्र उहड़ के वंशज।
- मुलु राठौड़ :- जोपसा के पुत्र मुलु के वंशज।
- बरजोर राठौड़ :- जोपसा के पुत्र बरजोड के वंशज।
- जोरावत राठौड़ :- जोपसा के वंशज।
- रेकवाल राठौड़ :- जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है ये मल्लारपुर , बाराबकी , रामनगर , बड़नापुर , बहराईच उतरापरदेश में है।
- बागड़ीया राठौड़ :- आस्थान जी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए नोगासा बांसवाड़ा के ऐक स्तम्भ लेख बैसाख वदी1361 में मालूम होता हे की रामा पुत्र वीरम सवर्ग सिधारा ओझाजी ने इसी वीरम के वंशजों को बागड़ीया राठोड़ माना है क्यूँ की बांसवाड़ा का क्षेत्र बागड़ कहलाता था।
- छप्पनिया राठौड़ :- मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गांवो का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है यहाँ के राठौड़ छप्पनिया राठोड़ कहलाये यह खांप बागदीया राठोड़ों से निकली है उदयपुर रियासत में कणतोड़ गांव की जागीरी थी।
- आसल राठौड़ :- आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठोड़ कहलाये।
- खोपसा राठौड़ :- आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज।
- सिरवी राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज।
- पीथड़ राठौड़ :- आस्थान के पुत्र पीथड़ के वंशज।
- कोटेचा राठौड़ :- आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए बीकानेर जिले में करनाचंडीवाल , हरियाणा में नाथूसरी व् भूचामंडी , पंजाब में रामसरा आदी इनके गांव है।
- बहड़ राठौड़ :- धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज।
- उनड़ राठौड़ :- धुहड़ के पुत्र उनड़ के वंशज।
- फिटक राठौड़ :- रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठोड़ हुए।
- सुंडा राठौड़ :- रायपाल के पुत्र सुंडा के वंशज।
- महीपाल राठौड़ :- रायपाल के पुत्र महीपाल के पुत्र वंशज।
- शिवराजोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज।
- डांगी :- रामपाल के पुत्र डांगी के वंशज ढोलिन से शादी की अथवा इनके वंशज ढोली हुए।
- मोहनोत :- रायपाल के पुत्र मोहन ने ऐक महाजन की पुत्री से शादी की इस कारन उसके वंशज मुह्नोत वेश्य कहलाये मुह्नोत नेंणसी इसी ख्यात से थे।
- मापावत राठौड़ :- रायपाल के वंशज मापा के वंशज।
- लूका राठौड़ :- रायपाल के वंशज लूका के वंशज।
- राजक:- रायपाल के वंशज रजक के वंशज।
- विक्रमायत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज।
- भोंवोत राठौड़ :- रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज।
- बांदर राठौड़ :- रायपाल के पुत्र कानपाल हुए कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाडा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठोड़ कहलाये घड़सीसर ( बीकानेर ) राज्य बताते है।
- ऊना राठौड़ :- रायपाल के पुत्र ऊडा के वंशज।
- खोखर राठौड़ :- छाडा के पुत्र खोखर के वंशज खोखर ने सांकडा सनावड़ा आदी गांवो पर अधिकार किया और खोखर गांव ( बाड़मेर ) बसाया अलाऊधीन खिलजी ने सातल दे के समय सिवाना पर चढ़ाई की तब खोखर जी सातल दे के पक्ष में वीरता के साथ लड़े और युद्ध मे काम आये।
खोखर जिनगांवो में रहते है :-
जैसलमेर जिले में , निम्बली , कोहरा , भाडली , झिनझिनयाली , मूंगा , जेलू , खुडियाला , आस्कंद्र, भादरिया , गोपारयो, भलरीयो , जायीतरा, नदिया बड़ा , अडवाना, सांकडा ,पालवा ,सनावड़ा , खीखासरा , कस्वा चुरू – रालोत जोगलिया
बाड़मेर में – खोखर शिव , खोखर पार जोधपुर में – जुंडदिकयी, खुडियाला , खोखरी पाला , बिलाड़ा नागोर में खोखरी पाली – बाली , गंदोग , खोखरी पाला , बिलाड़ा ।
विक्रमी 1788 में अहमदाबाद पर हमला किया गया तब भी खोखारों ने नी वीरता दिखाई थी।
- सिंहकमलोत राठौड़ :- छाडा के पुत्र सिंहमल के वंशज अलाऊदीन के सातेलक के समय सिवाना पर चढ़ाई की थी |
- बीठवासा उदावत राठौड़ :- रावल टीडा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा की बीठवास जागीर में था अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये उदाजी के पुत्र बीरम जी बीकानेर रियासत के साहुवे गांव से आये जोधाजी ने उनको बीठवसिया गांव के जागीर दी इस गांव के आलावा वेग्डीयो और धुनाड़ीया गांव भी इनकी जागीरी में थे।
- सलखावत राठौड़ :- छाडा के पुत्र टीडा के पुत्र सलखा के वंशज सल्खावत राठौड़ कहलाये।
- जैतमालोत :- सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैत्मालोत राठौड़ कहलाये बीकानेर में कहीं कहीं निवास करते है।
- जूजाणीया :- जैतमाल के पुत्र खेतसी के वंशज है गांव थापाणा इनकी जागीर में था।
- राड़धरा राठौड़ :- जैतमाल के पुत्र खिंया ने राड़धरा पर अधिकार किया अतः इनके वंशज राड़धरा कहलाये।
- महेचा राठौड़ :- सलखा राठोड़ के पुत्र मल्लिनाथ बड़े प्रसिद्ध हुए बाड़मेर का महेवा क्षेत्र सलखा के पिता टीडा के अधिकार में था। विक्रमी संवत 1414 में मुस्लिम सेना का आक्रमण हुआ सलखा को केद कर लिया गया। केद से छूटने के बाद विक्रमी संवत1422 में आपने श्वसुर राणा रूपसी पड़िहार की सहायता से महेवा को वापिस जीत लिया। विक्रमी संवत 1430 में मुसलमानों का फिर आक्रमण हुआ सलखा ने वीर गति पायी। सलखा के स्थान पर ( माला ) मल्लिनाथ राज्य का स्वामी हुआ इन्होने मुसलमानों से सिवाना का किला जीता और अपने आपने छोटे भाई जैतमाल को दे दिया व् छोटे भाई वीरम को खेड़ की जागीरी दे दी। नगर व् भिरड़ गढ़ के किले भी मल्लिनाथ ने अधिकार में किये।
मलिनाथ शक्ति संचय कर राठोड़ राज्य का विस्तार करने और हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने पर तुले रहे। उन्होंने मुसलमानों के आक्रमण को विफल किया। मल्लिनाथ और उनकी राणी रुपादें नाथ संप्रदाय में दिक्सीत हुए और ये दोनों सिद्ध माने गए। मल्लिनाथ के जीवन काल में हि उनके पुत्र जगमाल को गादी मिल गयी। जगमाल भी बड़े वीर थे। गुजरात का सुल्तान तीज पर इक्कठी हुयी लड़कियों को हर ले गया तब जगमाल अपने योधाओं के साथ गुजरात गए और सुल्तान की पुत्री गीन्दोली का हरण कर लाया। तब राठौड़ों और मुसलमानों में युद्ध हुआ इस युद्ध में जगमाल ने बड़ी वीरता दिखाई कहा जाता हे की सुल्तान के बीबी को तो युद्ध में जगह – जगह जगमाल हि दिखयी दिया।
प्रस्तुत दोहा:
पग पग नेजा पाड़ीया पग -पग पाड़ी ढाल
बीबी पूछे खान ने जंग किता जगमाल
इन्ही जगमाल का महेवा पर अधिकार था इस कारन इनके वंशज महेचा कहलाते है। जोधपुर परगने में थोब , देहुरिया , पादरडी, नोहरो आदी इनके ठिकाने है ।उदयपुर रियासत में नीबड़ी व् केलवा इनकी जागीर में थे| उनकी ख्याते निम्न है। - पातावत महेचा :- जगमाल के पुत्र रावल मंडलीक के बाद कर्मश भोजराज , बीदा, नीसल , हापा , मेघराज व् पताजी हुए इन्ही के वंशज पातावत कहलाये जालोर और सिरोही में इनके कई गांव है।
- कलावत महेचा :- मेघराज के पुत्र कल्ला के वंशज
- दूदावत महेचा :- मेघराज के पुत्र दूदा के वंशज
- उगा :- वरसिंह के पुत्र उगा के वंशज
- बाड़मेरा :- मल्लिनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाड़मेरा राठौड़ कहलाये इनके वंशज बाड़मेर में और कई गांवो में रहते है।
- पोकरणा :- मल्लिनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजो का पोकरण इलाके में निवास हुआ वे पोकरणा राठौड़ कहलाये इनके गांव सांकडा , सनावड़,लूना , चौक , मोडरड़ी , गुडी आदी जैसलमेर में है।
- खाबड़ीया :- मल्लिनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए। भारमल के पुत्र खीमुं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे। इनके वंशज कच्छ में है। भारमल के दुसरे पुत्र माँढण के वंशज माडवी कच्छ में रहते है। वंशज खाबड़ गुजरात के इलाके के नाम से खाबड़ीया कहलाये। इनके गांव कुछ राजस्थान के बाड़मेर में रेडाणा और देदड़ीयार है। कुछ घर पाकिस्तान में भी है।
- कोटड़ीया :- जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया। अतः कुंपा के वंशज कोटड़ीया राठौड़ कहलाये। जगमाल के पुत्र खींव्सी के वंशज भी कोटड़ीया कहलाये। इनके गांव बाड़मेर में , कोटड़ा , बलाई , भिंयाड़ इत्यादि है।
- गोगादे :- सलखा के पुत्र वीरम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठौड़ कहलाये। केतु ( चार गांव ) सेखला (15 गांव ) खिराज ,गड़ा आदी इनके ठिकाने है।
- देवराजोत :- बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठोड़ कहलाये । सेतरावो इनका मुख्या ठिकाना है। इसके आलावा सुवालिया आदी ठिकाने थे।
- चाड़देवोत :- वीरम के पुत्र व् देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठौड़ कहलाये। जोधपुर परगने का देचू इनका मुख्या ठिकाना था गीलाकोर में भी इनकी जागीरी थी।
- जेसिधंदे :- वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज।
- सतावत :- चुंडा वीरमदेवोत के पुत्र सता के वंशज।
- भींवोत :- चुंडा के पुत्र भींव के वंशज खाराबेरा जोधपुर इनका ठिकाना था।
- अरड़कमलोत:- चुंडा के पुत्र अरड़कमलोत वीर थे। राठौड़ों और भाटियों के शत्रुता के कारन शार्दुल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लोट रहा था तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध में दोनों हि वीरता से लड़े शार्दुल भाटी वीरगति प्राप्त हुए और राणी कोडमदे सती हुयी। अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमल राठौड़ कहलाये।
- रणधीरोत :- चुंडा के पुत्र रणधीर के वंशज है फेफाना इनकी जागीर थी।
- अर्जुनोत :- राव चुंडा के पुत्र अर्जुन के वंशज।
- कानावत :- चुंडा के पुत्र कान्हा के वंशज।
- पूनावत :- चुंडा के पुत्र पूनपाल के वंशज है गांव खुदीयास इनकी जागीरी में था।
- जैतावत राठौड़ :- राव रणमलजी के ज्येष्ठ पुत्र अखेराज थे। इनके दो पुत्र पंचायण व् महाराज हुए। पंचायण के पुत्र जैतावत कहलाये। राठौड़ों ने जब मेवाड़ के कुम्भा से मंडोर वापिस लिया उस समय अखेराज जी ने अपना अंगूठा चीरकर खून से जोधा का तिलक किया और कहा आपको मंडोर मुबारक हो। उतर में जोधाजी ने कहा आपको बगड़ी मुबारक हो ।उस समय बगड़ी (सोजत परगना )मेवाड़ से छीन लिया और बगड़ी अखेराज को प्रदान कर दी। तब से यह रीती चली आई थी की जब भी जोधपुर के राजा का राजतिलक बगड़ी का ठाकुर अंगूठे के खून से राजतिलक होता।और बगड़ी ऐक बार पुनः उन्हें दी जाती। अखेराज के पोत्र जैताजी बड़े वीर थे। विक्रमी संवत 1600 में हुए सुमेल के युद्ध में शेरसाह से चालाकी से मालदेव आपने पक्ष के योधाओं को लेकर पलायन कर गए थे परन्तु जैताजी और कुंपा जी ने अदभुत पराक्रम दिखाते हुए शेरशाह की सेना का मुकाबला किया दोनों द्वारा अनेको शत्रुओं को धरा शाही कर वीरगति पाने पर शेरशाह उनकी मृत देह को देखकर दंग रह गया था। जैतावत ने समय समय पर मारवाड़ की रक्षा और राठौड़ों की आन के लिए रणभूमि में तलवारें बजायी थी। मारवाड़ में इनका प्रमुख ठिकाना बगड़ी था तथा दूसरा खोखरा| दोनों ठिकानो को हाथ का कुरव और ताज्मी का सम्मान प्राप्त था।
- पिरथीराजोत जैतावत :-जैताजी के पुत्र प्रथ्वीराज के वंशज कहलाये बगड़ी मारवाड़ और सोजत खोखरो बाली इनके ठिकाने रहे।
- आसकरनोत जैतावत :- जैताजी के पोत्र आसकरण देईदानोत के वंशज आसकरनोत जैतावत है। मारवाड़ में थावला , आलासण, रायरो बड़ो, सदा मणी, लाबोड़ी , मुरढावों , आदी ठिकाने इनके थे।
- भोपपोत जैतावत :- जैताजी के पुत्र देई दानजी के पुत्र भोपत के वंशज भोपपोत जैतावत कहलाते है। मारवाड़ में खांडो देवल ,रामसिंह को गुडो आदी ठिकाने इनके है।
- कलावत राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र अखेराज इनके पुत्र पंचारण के पुत्र कला के वंशज कलावत राठोड़ कहलाये। कलावत राठौड़ों के मारवाड़ में हूँण व् जाढण दो गांवो के ठिकाने थे।
- भदावत:- राव रणमल के पुत्र अखेराज के बाद क्रमश पंचायत व् भदा हुए इन्ही भदा के वंशज भदावत राठोड़ कहलाये। देछु जालोर के पास तथा खाबल व् गुडा सोजत के पास के मुख्य ठिकाने थे।
- कुम्पावत :- मंडोर के रणमल जी के पुत्र अखेराज के दों पुत्र पंचायण व् महाराज हए महाराज के पुत्र कुम्पा के वंशज कुंपावत राठोड़ कहलाये। मारवाड़ का राज्य ज़माने में कुम्पा व् पंचायण के पुत्र जेता का महत्व पूरण योगदान रहा था। चितोड़ से बनवीर को हटाने में भी कुंपा की महत्वपूरण भूमिका थी। मालदेव ने वीरम का जब मेड़ता से हटाना चाहा , कुम्पा ने मालदेव का पूरण साथ लेकर इन्होने अपना पूरण योग दिया।
मालदेव ने वीरम से डीडवाना छीना तो कुंपा को डीडवाना मिला। मालदेव की 1598 विक्रमी में बीकानेर विजय करने में कुंपा की महत्वपूरण भूमिका थी। शेरशाह ने जब मालदेव पर आक्रमण किया और मालदेव को अपने सरदारों पर अविश्वास हुआ तो उन्होंने अपने साथियों सहित युद्ध भूमि छोड़ दी परन्तु जेता व् कुम्पा ने कहा धरती हमारे बाप की दादाओं के शोर्य से प्राप्त हुयी है हम जीवीत रहते उसे जाने नहीं देंगे। दोनों वीरों ने शेरशाह की सेना से टक्कर ली अद्भुत शोर्य दिखाते हुए मात्रभूमि की रक्षार्थ बलिदान हो गए।
उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर शेरशाह के मुख से यह शब्द निकले पड़े मेने मुठ्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सलतनत खो दी थी। यह युद्ध सुमेल के पास चेत्र सुदी ५ विक्रमी संवत 1600 इसवी संवत 1544 में हुआ। कुंपा के 8 पुत्र थे। माँडण को अकबर ने आसोप की जागीरी डी थी। आसोप कुरव कायदे में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था। दुसरे पुत्र प्रथ्वीराज सुमेल युद्ध में मारे गए थे। उनके पुत्र महासिंह को बतालिया व् ईशरदास को चंडावल आदी के ठिकाने मिले थे। रामसिंह सुमेल युद्ध में मारे गए थे। उनके वंशजों को वचकला ठिकाना मिला। उनके पुत्र प्रताप सिंह भी सुमेल युद्ध में मारे गए।
मांडण के पुत्र खीवकर्ण ने कई युद्ध में भाग लिया। वे बादशाह अकबर के मनसबदार थे। सूरसिंह जोधपुर के साथ दक्षिण के युधों में लड़े और बूंदी के साथ हुए युद्ध में काम आये।
इनके पुत्र किशनसिंह ने गजसिंह जोधपुर के साथ कई युध्दों में भाग लिया। किशन सिंह ने शाहजहाँ के समुक्ख लिहत्थे नाहर को मारा।अतः ईनका नाम नाहर खां भी हुआ। विक्रमी संवत 1737 में नाहर खां ने पुष्कर में वराह मंदिर पर हमला किया 6 अन्य कुम्पाव्तों सहित नाहर खां के पुत्र सूरज मल वहीँ काम आये। सूरज मल जी के छोटे भाई जैतसिंह दक्षिण के युद्ध में विक्रमी 1724 में काम आये। आसोप के महेशदासजी अनेक युद्धों में लड़े और मेड़ता युध्द में वीर गति पायी। - महेशदासोत कुम्पावत:- विक्रमी संवत 1641 में बादशाह ने सिरोही के राजा सुरतान को दंड देने मोटे राजा उदयसिंह को भेजा। इस युध् में महेशदास के पुत्र शार्दूलसिंह ने अद्भुत पराक्रम दिखाया और वहीँ रणखेत में रहे। अतः उनके वंशज भावसिंह को 1702विक्रमी में कटवालिया के अलावा सिरयारी बड़ी भी उनका ठिकाना था ऐक ऐक गांव के भी काफी ठिकाने थे।
- इश्वरदासोत कुंपावत :- कुंपा के पुत्र इश्वरदास के वंशज कहलाये। इनका मुख्या ठिकाना चंडावल था। यह हाथ कुरब का ठिकाना था। इश्वरदास के वंशज चाँद सिंह को महाराजा सूरसिंह ने 1652 विक्रमी में प्रदान किया था। 1658 ईस्वी के धरमत के युद्ध में चांदसिंह के पुत्र गोर्धनदास युद्ध में घोड़ा उठाकर शत्रुओं को मार गिराया और स्वयं भी काम आये। इस ठिकाने के नीचे 8अन्य गांव थे राजोसी खुर्द , माटो ,सुकेलाव इनके ऐक ऐक गांव ठिकाने है।
- मांडनोत कुम्पावत:- कुम्पाजी के बड़े पुत्र मांडण के वंशज माँडनोत कहलाये। इनका मुख्या ठिकाना चांदेलाव था। जिसको माँडण के वंशज छत्र सिंह को विजय सिंह ने इनायत किया। इनका दूसरा ठिकाना रुपाथल था। जगराम सिंह को विक्रमी में गजसिंह पूरा का ठिकाना भी मिला। 1893 में वासणी का ठिकाना मानसिंह ने इनायत किया; लाडसर भी इनका ठिकाना था। यहाँ के रघुनाथ सिंह , अभयसिंह द्वारा बीकानेर पर आक्रमण करने के समय हरावल में काम आये जोधपुर रियासत में आसोप , गारासणी ,सर्गियो , मीठड़ी आदी , इनके बड़े ठिकाने थे।
- जोधसिंहोत कुम्पावत:- कुम्पाजी के बाद क्रमश माँडण , खीवकण , किशनसिंह , मुकुन्दसिंह , जैतसिंह , रामसिंह , व् सरदारसिंह हुए सरदार सिंह के पुत्र जोधसिंह ने महाराजा अभयसिंह जोधपुर की तरह अहमदाबाद के युद्ध में अच्छी वीरता दिखाई महराजा ने जोधसिंह को गारासण खेड़ा, झबरक्या और कुम्भारा इनायत दिया इनके वंशज कहलाये जोधसिन्होत।
5.महासिंह कुम्पावत :- कुम्पाजी के पुत्र महासिंह के वंशज महासिंहोत कहलाते है \ महाराजा अजीतसिंह ने हठ सिंह फ़तेह सिंह को सिरयारी का ठिकाना इनायत दिया 1847 विक्रमी में सिरयारी के केशरी सिंह मेड़ता युद्ध में काम आये सिरयारी पांच गांवो का ठिकाना था। - उदयसिंहोत कुंपावत :- कुम्पाजी के चोथे पुत्र उदयसिंह के वंशज उदयसिंहोत कुम्पावत कहलाते है। उदयसिंह के वंशज छतरसिंह को विक्रमी 1831 में बूसी का ठिकाना मिला। विक्रमी संवत 1715 के धरमत के युद्ध में उदयसिंह के वंशज कल्याण सिंह घोड़ा आगे बढाकर तलवारों की रीढ़ के ऊपर घुसे और वीरता दिखाते हुए काम आये। यह कुरब बापसाहब का ठिकाना था। चेलावास ,मलसा , बावड़ी , हापत, सीहास, रढावाल , मोड़ी ,आदी ठिकाने छोटे ठिकाने थे।
- तिलोकसिन्होत कुम्पावत:- कूम्पा के सबसे छोटे पुत्र तिलोक सिंह के वंशज तिलोकसिन्होत कूम्पावत कहलाये। तिलोकसिंह ने सूरसिंह जोधपुर की तरह से किशनगढ़ के युद्ध में वीरगति प्राप्त की। इस कारन तिलोक सिंह के पुत्र भीमसिंह को घणला का ठिकाना सूरसिंह जोधपुर ने विक्रमी 1654 में इनायत किया।
- जोधा राठौड़ :- राव रिड़मल के पुत्र जोधा के वंशज जोधा राठौड़ कहलाये जोधा राठौड़ों की निम्न खांप है |
- बरसिन्होत जोधा :- जोधा की सोनगरी राणी के पुत्र बरसिंह के वंशज बरसिन्होत जोधा कहलाये। बरसिंह अपने भाई दुदा के साथ मेड़ते रहे परन्तु मुसलमानों ने उन्हें मेड़ते से निकाल दिया। मालवा के झबुवा में बरसिन्होत जोधा राठौड़ों का राज्य था।
- रामावत जोधा :- जोधपुर के शासक जोधा के बाद क्रमश बरसिंह आसकरण हुए। आसकरण के पोत्र रामसिंह ने बांसवाड़ा की गद्दी के लिए चौहानों और राठोड़ों के बीच युद्ध विक्रमी 1688 में वीरता dikhayi तथा वीरगति को प्राप्त हुए। रामसिंह के तेरह पुत्र थे ,जो रामावत राठोड़ कहलाये। रामसिंह के तीसरे पुत्र जसवंतसिंह के जयेष्ट पुत्र अमरसिंह को साठ गांवो सहित खेड़ा की जागीरी मिली, jo रतलाम राज्य में था। यह अंग्रेजी सरकार द्वार कुशलगढ़ बांसवाडा के नीचे कर दिया गया। विक्रमी संवत 1926 में कुशलगढ़ बांसवाडा के नीचे कर दिया।
- भारमलोत जोधा :- जोधा की हूलणी राणी के पुत्र भारमल के वंशज भारमलोत जोधा कहलाये। इनके वंशज झाबुआ राज्य में निवास करते है।
- शिवराजोत जोधा :- जोधा की बघेली राणी के पुत्र शिवराज।
मेवाड़ का इतिहास पढ़ते रहे और शेयर करते रहे।
जय राजपूताना जय मां भवानी धर्म क्षत्रिय युगे युगे।
Post by : रॉयल राजपूत अज्य ठाकुर गोत्र भारद्वाज सूर्यवंशी।
Reference:
https://www.facebook.com/photo/?fbid=514182826284695&set=a.242141136822200
राठौड राजपूत वंश की उत्पत्ति, इतिहास एवं वंश बेल
Dibhu.com is committed for quality content on Hinduism and Divya Bhumi Bharat. If you like our efforts please continue visiting and supporting us more often.😀
Tip us if you find our content helpful,
Companies, individuals, and direct publishers can place their ads here at reasonable rates for months, quarters, or years.contact-bizpalventures@gmail.com