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तर्पण के विरुद्ध फैलाई गयी एक झूठी कहानी

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सोशल मीडिया पर एक सज्जन ने अपने को एक समझदार बुद्धिजीवी दिखाते हुए एक मनगढंत कहानी पोस्ट की :

गुरु नानक भ्रमण करते हुए हरिद्वार पहुँचे। कोई धार्मिक पर्व था। गंगातट पर भारी भीड़ थी। श्रद्धालु लोग आते और गंगा स्नान करते। प्रातःकाल का समय था, गुरु ने सोचा स्नान और भवन के लिए इतना उपयुक्त स्थान कहाँ मिलेगा। वे भी गंगातट की ओर स्नान के लिए चल पड़े।
 
 वहाँ जाकर देखते क्या है, एक व्यक्ति पूर्व की ओर जल उलीच रहा है। उसे देख कर दूसरे साथी ने भी अर्घ्य देना प्रारम्भ कर दिया तात्पर्य यह है कि जो भी स्नान के लिए आता वह तर्पण की बात न भूलता। गुरु नानक ने यह देखकर एक व्यक्ति से पूछा-आप अभी वह क्या कर रहे थे? उस व्यक्ति ने कुछ रुखाई और कुछ दुष्टभाव से कहा-कर क्या रहे थे-पितरों को तर्पण कर रहे थे।

   गुरु ने कपड़े उतारे, स्नान किया और पीछे आकाशाभिमुख खड़े होकर गंगा जी से बाहर पानी उलीचने लगे। पास ही खड़े लोगों को अटपटा सा लगा। उन्होंने पूछा-महाशय आप यह क्या कर रहे है, तर्पण पूर्वाभिमुख होकर किया जाता है या पश्चिम की ओर मुख करके फिर ऐसे तो नहीं किया जाता है, जैसे आप कर रहे है। यह दृश्य देखने कि लिए तब तक काफी भीड़ इकट्ठी हो गई थी।

 नानक ने मुस्कराकर उत्तर दिया-भाइयों हमारे खेत पंजाब में है, उन्हें पानी दे रहा हूँ। खेते सूख रहे होंगे।

 पास खड़े आदमी हँस पड़े, एक वृद्ध आदमी ने कहा-गुरु जी, इतनी दूर यहाँ से पंजाब और वहाँ आपके खेत में भला पानी कैसे पहुँच जायेगा।

अब गुरु की बारी थी। उनने कहा-भाइयों पिता लोक से दूर नहीं है, यदि आपका दिया पानी पितर लोक पहुँच कर पूर्वजों को संतोष दे सकता है तो मेरा तर्पण पंजाब के खेतों में क्यों नहीं पहुँच सकता?

लोग स्तम्भित थे, कुछ ठीक समझ नहीं पाये। पास ही एक बालक खड़ा था, उसने समझाया ठीक ही तो है-हम पितरों के प्रति श्रद्धा रखें पर जो जीवित पितर माता पिता, पड़ोसी और समाज के दूसरे पीड़ित लोग है, उनके प्रति भी तो अपनी श्रद्धा बनाये रहें। यदि इनके प्रति श्रद्धा और परोपकार का भाव बनाये न रख सके तो तर्पण से ही क्या लाभ।

इस मनगढंत कहानी को पोस्ट करते हुए उन सज्जन ने इतना भी नहीं ध्यान रखा कि उन्होंने झूठ फ़ैलाने का लिए महान संत गुरु नानक को भी नहीं छोड़ा। उनको तर्पण करते हुए व्यक्ति के उत्तर में दुष्ट भाव भी दिखा गया और एक नन्हे बालक से ज्ञान की बात भी कहलवा दी।

मतलब ये कि सनातन धर्म कि मान्यताओं को झुठलाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं ये लोग। और कोढ़ में खाज वाली बात तब चरितार्थ होती है जब हमारे ही पढ़े लिखे उच्च शिक्षा प्राप्त लोग भी इनके प्रोपोगंडा को न समझते हुए इन मनगढंत कहानियो को अग्रेषित करते रहते हैं।

इसका प्रत्युत्तर देते हुए हमारे सनातन धर्मी एक भाई ने उनके इस झूठ की तबियत से बखिया उधेड़ी। पढ़िए उन्ही के शब्दों में

एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा कि..

“मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।”

पंडित जी के पूछने पर उस फकीर ने कहा कि…

जब आपके चढ़ाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा।

इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।”

यह मनगढ़ंत कहानी सुनाकर एक इंजीनियर मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे और मुझसे बोले कि –

“सब पाखण्ड है जी..!”

शायद मैं कुछ ज्यादा ही सहिष्णु हूँ…

इसीलिए, लोग मुझसे ऐसी बकवास करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं है क्योंकि, पहले मैं सामने वाली की पूरी बात सुन लेता हूँ… उसके बाद उसे जबाब देता हूँ।

खैर… मैने कुछ कहा नहीं ….

बस, सामने मेज पर से ‘कैलकुलेटर’ उठाकर एक नंबर डायल किया…
और, अपने कान से लगा लिया।

बात न हो सकी… तो, उस इंजीनियर साहब से शिकायत की।

इस पर वे इंजीनियर साहब भड़क गए।

और, बोले- ” ये क्या मज़ाक है…??? ‘कैलकुलेटर’ में मोबाइल का फंक्शन भला कैसे काम करेगा..???”

तब मैंने कहा…. तुमने सही कहा…
वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि…. स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ???

इस पर इंजीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे-
“ये सब पाखण्ड है , अगर ये सच है… तो, इसे सिद्ध करके दिखाइए”

इस पर मैने कहा…. ये सब छोड़िए
और, ये बताइए कि न्युक्लियर पर न्युट्रॉन के बम्बार्डिंग करने से क्या ऊर्जा निकलती है ?

वो बोले – ” बिल्कुल ! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।”

फिर, मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लियर्स भी हैं और न्युट्रॉन्स भी…!

अब आप इसमें से एनर्जी निकाल के दिखाइए…!!

साहब समझ गए और थोड़े संकोच से बोले-
“जी , एक काम याद आ गया; बाद में बात करते हैं “

कहने का मतलब है कि….. यदि, हम किसी तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन या अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है।

इसका मतलब ये कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है.

सिद्धांत रूप से तो हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद है..
फिर , हवा से ही पानी क्यों नहीं बना लेते ???

अब आप हवा से पानी नहीं बना रहे हैं तो… इसका मतलब ये थोड़े न घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है।

हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं।

इसीलिए, व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें…!

और हाँ…

जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो….

क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे बीज बोकर लगाए हैं…या, किसी को ऐसा करते हुए देखा है?
क्या पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ?
इसका जवाब है नहीं….।

ऐसा इसीलिए है क्योंकि… बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु वह नहीं लगेगी।

इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।

जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं।

उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां-वहां पर ये दोनों वृक्ष उगते हैं।

और… किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन देता है और वहीं बरगद के औषधीय गुण अपरम्पार है।

साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है।

तो, कौवे की इस नयी पीढ़ी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है…

शायद, इसीलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के इन नवजात बच्चों के लिए ही हर छत पर श्राद्ध पक्ष में पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी।

जिससे कि कौवों की नई पीढ़ी का पालन पोषण हो जाये……

इसीलिए…. श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है।

साथ ही… जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध पक्ष का प्रावधान दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।

अतः…. सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि….
जब दुनिया में तुम्हारे ईसा-मूसा-और कथित विद्वानों आदि का नामोनिशान नहीं था…

उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं।

साथ ही… हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है…
कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं…?

देश की आजादी के बाद 70 वर्षों में इन्हीं बातों को सत्ता के संरक्षण में वामी बकैतों द्वारा अंधविश्वास और पाखंड साबित करने का काम हुआ है।

अब बदलते परिवेश में धीरे-धीरे सनातन संस्कृति पुनर्जीवित हो रही है । कुएं के मेंडको, एक किताब, आसमानी किताब, चपटी धरती वालो ये बातें तुम्हारी समझदानी से बाहर की हैं।

समुचित प्रत्युत्तर सौजन्य- श्री सतीश शर्मा जी
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