काशी प्रवास के दौरान रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने आराध्य हनुमान जी के कई मन्दिरों की स्थापना की। उनके द्वारा स्थापित हनुमान मन्दिरों में से एक संकटमोचन मन्दिर, भक्ति की शक्ति का अदभुत प्रमाण देता है। इस मन्दिर में स्थापित मूर्ति को देखकर ऐसा आभास होता है, जेसै साक्षात हनुमान जी विराजमान हैं। इस मन्दिर की एक अद्भुत विशेषता यह भी है कि भगवान हनुमान की मूर्ति की स्थापना इस प्रकार हुई है कि वह भगवान राम की ओर ही देख रहे हैं, जिनकी वेनिःस्वार्थश्रद्धा से पूजा किया करते थे। भगवान हनुमान को प्रसाद के रूप में शुद्ध घी से बने बेसन के लड्डू चढ़ाये जाते हैं। भगवान हनुमान के गले में गेंदे के फूलों की माला सुशोभित रहती है।
मान्यता के अनुसार तुलसीघाट पर स्थित पीपल के पेड़ पर रहने वाले पिचाश से एक दिन तुलसीदास का सामना हो गया। उस पिचाश ने तुलसीदास को हनुमानघाट पर होने वाले रामकथा में श्रोता के रूप में प्रतिदिन आने वाले कुष्ठी ब्राह्मण के बारे में बताया। इसके बाद तुलसीदास जी प्रतिदिन उस ब्राह्मण का पीछा करने लगे। अन्ततः एक दिन उस ब्राह्मण ने तुलसीदास जी को अपना दर्शन हनुमान जी के रूप में दिया। जिस स्थान पर तुलसीदास जी को हनुमान जी का दर्शन हुआ था उसी जगह उन्होंने हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर संकटमोचन का नाम दिया। साढ़े आठ एकड़ भूमि पर फैला संकटमोचन मन्दिर परिसर हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित है। दुर्गाकुण्ड से लंका जाने वाले मार्ग पर करीब 300 मीटर आगे बढ़ने पर दाहिनी ओर कुछ कदम की दूरी पर ही मन्दिर का विशाल मुख्य द्वार है। मुख्य द्वार से मन्दिर का फासला करीब 50 मीटर का है। मुख्य मन्दिर में हनुमान जी की सिन्दूरी रंग की अद्वितीय मूर्ति स्थापित है।
माना जाता है कि यह हनुमान जी की जागृत मूर्ति है। गर्भगृह की दीवारों पर लिपटे सिन्दूर को लोग अपने माथे पर प्रसाद स्वरूप लगाते हैं। गर्भगृह में ही दीवार पर नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित है। हनुमान मन्दिर के ठीक सामने एक कुंआ भी है, जिसके पीछे राम जानकी का मन्दिर है। श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के उपरांत राम जानकी का भी आशीर्वाद लेते हैं। वहीं एक तरफ शिव मन्दिर भी है। इस भव्य और बड़े हनुमान मन्दिर में अतिथिगृह भी है, जिसमें मन्दिर में होने वाले तमाम सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने आये अतिथि विश्राम करते हैं। हनुमान जी के मन्दिर के पीछे हवन कुण्ड है, जहाँ श्रद्धालु पूजा पाठ करते हैं। शहर के दक्षिणी छोर पर स्थित इस मन्दिर में बंदरों की बहुतायत संख्या है। पूरे मन्दिर में बंदर इधर-उधर उछल कूद करते रहते हैं। कभी-कभी तो ये बंदर दर्शनार्थियों के पास आकर उनसे प्रसाद भी ले लेते हैं। हालांकि झुण्ड में रहने वाले ये बंदर किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते। मन्दिर में हनुमान जी की पूजा नियत समय पर प्रतिदिन आयोजित होती है। पट खुलने के साथ ही आरती भोर में 4 बजे घण्ट-घड़ियाल, नगाड़ों और हनुमान चालीसा के साथ होती है जबकि संध्या आरती रात नौ बजे सम्पन्न होती है। आरती की खास बात यह है कि सबसे पहले मन्दिर में स्थापित नरसिंह भगवान की आरती होती है। मौसम के अनुसार आरती के समय में परिवर्तन भी हो जाता है। दिन में 12 से 3 बजे तक मन्दिर का कपाट बंद रहता है।
आरती के दौरान पूरा मन्दिर परिसर हनुमान चालीसा से गूंज उठता है। हनुमान जी के प्रति श्रद्धा से ओत-प्रोत भक्त जमकर जयकारे लगाते हैं। वहीं मंगलवार और शनिवार को तो मन्दिर दर्शनार्थियों से पट जाता है। इस दिन शहर के अलावा दूर-दूर से दर्शनार्थी संकटमोचन दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। माहौल पूरी तरह से हनुमानमय हो जाता है। कोई हाथ में हनुमान चालीसा की किताब लेकर उसका वाचन करता है तो कुछ लोग मंडली में ढोल-मजीरे के साथ सस्वर सुन्दरकाण्ड का पाठ करते नजर आते हैं। बहुत से भक्त साथ में सिन्दूर और तिल का तेल भी हनुमान जी को चढ़ाने के लिए लाते हैं। इस तरह मन्दिर में हमेशा भक्तों की आवाजाही का सिलसिला लगा रहता है। वैसे यहाँ होने वाले कार्यक्रमों की बात की जाये तो सालभर कुछ न कुछ बड़े आयोजन होते रहते हैं लेकिन हनुमान जयंती, राम जयंती और सावन महीने में मन्दिर में होने वाले कार्यक्रमों की बात ही निराली है। मन्दिर में हर साल अप्रैल महीने में हनुमान जयंती मनायी जाती है। जयंती के अवसर पर हनुमान जी की भव्य झांकी सजायी जाती है। साथ ही इस मौके पर होने वाला पाँच दिवसीय संकटमोचन संगीत समारोह तो काफी प्रसिद्ध है। यह कार्यक्रम विशुद्ध रूप से शास्त्रीय संगीत का होता है।
इन पाँच दिनों में शास्त्रीय संगीत की स्वरलहरियों से पूरा मन्दिर परिसर झंकृत हो उठता है। आलम यह रहता है कि इस पाँच दिवसीय कार्यक्रम में संगीत सरिता की शुरूआत प्रतिदिन गोधुली बेला 7 बजे से होती है। इसके बाद तो जैसे-जैसे रात गंभीर होती जाती है, शास्त्रीय संगीत परत दर परत लोगों के बीच घुलने लगती है और कार्यक्रम प्रत्युष बेला तक चलता रहता है। शास्त्रीय संगीत की तीनों विधा यानी गायन, वादन और नृत्य की बेहतरीन प्रस्तुति होती है। कई दशकों से चल रहे इस कार्यक्रम में देश और विदेश के ख्यातिलब्ध संगीत साधकों ने अपनी कला को हनुमान जी को समर्पित किया है। कई कलाकार तो वर्षों से लगातार इस संगीत के महाउत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे हैं।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार भगवान हनुमान मनुष्यों को शनि गृह के क्रोध से बचते हैं अथवा जिन लोगों की कुण्डलियो में शनि गलत स्थान पर स्तिथ होता है, वे विशेष रूप से ज्योतिषीय उपचार के लिए इस मन्दिर में आते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान हनुमान सूर्य को फल समझ कर निगल गए थे, तत्पश्चात देवी देवताओं ने उनसे बहुत याचना कर सूर्य को बाहर निकालने का आग्रह किया। कुछ ज्योतिषों का मानना है कि हनुमान की पूजा करने से मंगल गृह के बुरे प्रभाव अथवा मानव पर अन्य किसी और गृह की वजह से बुरे प्रभाव को बेअसर किया जा सकता हैं।
Post courtesy: Shri Yogesh Agrawal
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