तैतिरिय संहिता के समय वर्षारंभ का जो उदाहरण मिलता है, (माघी पूर्णा से) वह सृष्टि आरम्भ के वर्ष का उदाहरण है! यानिकि सृष्टिआरम्भ माघी पूर्णा से बसंत ऋतु के आरम्भ के साथ हुआ । फिर माघ कृष्ण चतुर्दशी को ब्रह्मा विष्णु के विवाद के मध्य महाशिवरात्री को ज्योतिर्लिन्ग का प्राकट्य हुआ!! अगले वर्ष बसंत ऋतु का आरम्भ माघी अमावस्या से होता है, फिर तीसरे वर्ष बसंत ऋतु का आरम्भ फाल्गुन पूर्णा से होता है, इसी तीसरे वर्ष मे अधिक मास आ जाता है और चौथे वर्ष बसंत ऋतु का आरम्भ फिर से माघी पूर्णा से हो जाता है।
कालांतर में जिस वर्ष में माँ शारदे का प्राक्ट्य हुआ, उस वर्ष बसंत ऋतु का आरम्भ माघी अमावस्या से हुआ और फाल्गुन शुक्ल पंचमी ,बसंत पंचमी हुई।
फिर कालांतर में पूर्णिमांत मास मानने के कारण, माघी अमावस्या के बाद माघ शुक्ल पक्ष मानने के कारण माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी मान लिया गया।
अमावस्यांत मास के अनुसार इस माघ शुक्ल पक्ष (जो वास्तव में फाल्गुन शुक्ल था) के बाद माघ कृष्ण मान लिया गया ,और इस पक्ष में महाशिवरात्री पर्व मनाया गया जो वास्तव में फाल्गुन कृष्ण था, और पूर्णिमांत के अनुसार भी फाल्गुन कृष्ण ही था। इस आधार पर ही शाका संवत के अनुसार महाशिवरात्री माघ मास में और विक्रम संवत के अनुसार फाल्गुन मास में होती है, लेकिन जो वास्तविक माघ कृष्ण था उससे दोनो वंचित रह गए!

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