काशी का झुका हुआ रत्नेश्वर मंदिर
काशी का झुका हुआ रत्नेश्वर मंदिर
मंदिरों की नगरी काशी में ढ़ेरों ऐतिहासिक मंदिर हैं जहां हर दिन भक्तों की कतार लगती है। लेकिन इसी काशी में एक ऐसा मंदिर है जो निर्माण के समय से ही झुकी हुई है। काशी के गंगा तट पर स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर रत्नेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास लगभग 500 सालों से भी अधिक पुराना है। वाराणसी के मणिकर्णिका घाट के समीप दत्तात्रेय घाट पर रत्नेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित है।
सोशल मीडिया पर वाराणसी स्थित ये श्री रत्नेश्वर महादेव का मंदिर आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है जिसकी तुलना इटली की पिसा की मीनार से किया जा रहा हैं और बुद्धिजीवी लोग बिना जानकारी किये इटालियन पिज्जा की तरह इसे सोशल मीडिया पर बाटे जा रहे हैं।
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श्री रत्नेश्वर महादेव मंदिर सम्पूर्ण विवरण गूगल पर इस मंदिर के विकिपीडिया में मौजूद है, अतः पढ़े-लिखे लोग अनपढों वाली हरकत करने से पहले इस विकिपीडिया को ही पढ़ लेते तो अच्छा होता। इस मंदिर की ऊँचाई 77 मीटर बताया कर ये अफवाह उड़ाया जा रहा है कि, इसकी ऊँचाई पिसा की मीनार से भी ज्यादा है। जब कि इस मंदिर की वास्तविक ऊँचाई करीबन 43 या 44 फीट (13.14 मीटर) है और ये बात गूगल पर इस मंदिर के विकिपीडिया में भी साफ-साफ लिखा है।
सैकड़ों वर्षों पुराना मंदिर है पर यहाँ न पूजा होती है और न ही गूंजता घंटा-घड़ियाल
जो कहीं नहीं होता वह काशी में सचल होता है। जो कहीं नहीं दिखता वह काशी में साक्षात नजर आता है। औघड़दानी भगवान शिव और उनकी प्रिय नगरी काशी दोनों ही निराली है। केदारखंड में तिल-तिल बढ़ते बाबा तिलभांडेश्वर विराजमान हैं तो विशेश्वर खंड में अंश-अंश झुकता रत्नेश्वर महादेव का मंदिर है। सावन के महीने में भी रत्नेश्वर महादेव मंदिर में ना तो बोल बम के नारे गूंजते हैं और ना ही घंटा घड़ियाल की आवाज सुनाई देती है। मणिकर्णिका घाट के पास दत्तात्रेय घाट पर स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर रत्नेश्वर महादेव तीन सौ सालों से अधिक का इतिहास समेटे हुए हैं।महाश्मशान के पास बसा करीब सैकड़ों वर्षों पुराना यह दुर्लभ मंदिर आज भी लोगों के लिए आश्चर्य ही है।
इस मंदिर में ना तो आपको भक्त दिखेंगे और ना ही घंट घड़ियाल की गूँज सुनाई देगी. काशी के इस ऐतिहासिक मंदिर के श्रापित होने के कारण ना ही कोई भक्त यहाँ पूजा करता और ना ही मंदिर में विराजमान भगवान् शिव को जल चढ़ाता है. आसपास के लोगों का कहना है की यदि मंदिर में पूजा की तो घर में अनिष्ट होना शुरू हो जाएगा.
खुद गंगा करती है जलाभिषेक


इस मंदिर की तुलना इटली के लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा’ मीनार से भी करते हैं. इस मंदिर के बारे में एक और दिलचस्प बात है कि यह मंदिर छह महीने तक पानी में डूबा रहता है. बाढ़ के दिनों में 40 फीट से ऊंचे इस मंदिर के शिखर तक पानी पहुंच जाता है. बाढ़ के बाद मंदिर के अंदर सिल्ट जमा हो जाता है. मंदिर टेढ़ा होने के बावजूद ये आज भी कैसे खड़ा है, इसका रहस्य कोई नहीं जानता है.
रत्नेश्वर मंदिर का इतिहास
मंदिर का इतिहास भी बेहद दिलचस्प बताया जाता है. इस मंदिर के निर्माण के बारे में भिन्न-भिन्न कथाएं कही जाती हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार, जिस समय रानी अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों आदि का निर्माण करा रही थीं उसी समय रानी की दासी रत्नाबाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के समीप एक शिव मंदिर का निर्माण कराने की इच्छा जताई, जिसके लिए उसने अहिल्या बाई से रुपये भी उधार लिए और इसे निर्मित कराया. अहिल्या बाई इसे देख अत्यंत प्रसन्न हुईं, लेकिन उन्होंने दासी रत्नाबाई से कहा कि वह अपना नाम इस मंदिर में न दें, लेकिन दासी ने बाद में अपने नाम पर ही इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रख दिया. इस पर अहिल्या बाई नाराज हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन पूजन की जा सकेगी.
कहा ये भी जाता है की 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य कई राजा,रानियां काशी रहने के लिए आए थे. काशी प्रवास के दौरान उन्होंने कई हवेलियां ,कोठियां और मंदिर बनारस में बनवाएं. उनकी मां भी यहीं रहा करती थीं. उस समय उनका सेवक भी अपनी मां को काशी लेकर आया था. सिंधिया घाट पर राजा के सेवक ने राजस्थान समेत देश के कई शिल्पकारों को बुलाकर मां के नाम से महादेव का मंदिर बनवाना शुरू किया. मंदिर बनने के बाद वो मां को लेकर वहां गया और बोला कि तेरे दूध का कर्ज उतार दिया है. मां ने मंदिर के अंदर विराजमान महादेव को बाहर से प्रणाम किया और जाने लगी. बेटे ने कहा कि मंदिर के अंदर चलकर दर्शन कर लो. तब मां ने जवाब दिया कि बेटा पीछे मुडक़र मंदिर को देखो, वो जमीन में एक तरफ धंस गया है. कहा जाता है तब से लेकर आज तक ये मंदिर ऐसे ही एक तरफ झुका हुआ है. बताया जाता है कि सेवक की मां का नाम रत्ना था, इसलिए मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव पड़ गया.
आज भी तिल-तिल कर झुक रहा है मंदिर
स्थानीय रहवासी पं. कृपाशंकर द्विवेदी ने के मुताबिक रत्नेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना राजमाता महारानी अहिल्याबाई होल्कर की दासी रत्नाबाई ने करवायी थी. आधार कमजोर होने के कारण कालांतर में यह मंदिर एक ओर झुक गया, जो अपने आप में अनोखा है. खास बात यह है कि मंदिर के झुकने का क्रम अब भी कायम है. मंदिर का छज्जा जमीन से आठ फुट ऊंचाई पर था, लेकिन वर्तमान में यह ऊंचाई सात फुट हो गयी है. मंदिर के गर्भगृह में कभी भी स्थिर होकर खड़ा नहीं रहा जा सकता है. गर्भगृह में एक या दो नहीं बल्कि, कई शिवलिंग स्थापित हैं. इसे शिव की लघु कचहरी कहा जा सकता है. द्विवेदी ने बताया कि तत्कालीन नगर आयुक्त बाबा हरदेव सिंह के समय इस मंदिर को सीधा करने और इसकी देखरेख की कवायद शुरू हुई थी. लेकिन यह अभियान कहीं गुम हो गया. कई लोग तीर्थ यात्रियों और श्रद्धालुओं को इसे काशी करवट बताकर मूर्ख बनाते हैं. जबकि काशी करवट मंदिर कचौड़ी गली में है.
!!जय शिव शंकर!!
!!हर हर महादेव!!




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