मित्रता पर कुछ कविताएं एवं रचनाएं
‘मित्र वही है।’
मैथिलीशरण गुप्त की सुन्दर रचना
तप्त हृदय को , सरस स्नेह से, जो सहला दे , मित्र वही है।
रूखे मन को , सराबोर कर, जो नहला दे , मित्र वही है।
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प्रिय वियोग ,संतप्त चित्त को , जो बहला दे , मित्र वही है।
अश्रु बूँद की , एक झलक से , जो दहला दे , मित्र वही है।
हे मित्र
धार वक़्त की बड़ी प्रबल है,
इसमें लय से बहा करो..!
जीवन कितना क्षणभंगुर है,
मिलते जुलते रहा करो..!
यादों की भरपूर पोटली,
क्षणभर में न बिखर जाए..!
दोस्तों की अनकही कहानी,
तुम भी थोड़ी कहा करो..!
हँसते चेहरों के पीछे भी,
दर्द भरा हो सकता है..!
यही सोच मन में रखकर के,
हाथ दोस्त का गहा करो..!
सबके अपने-अपने दुःख हैं,
अपनी-अपनी पीड़ा है..!
यारों के संग थोड़े से दुःख,
मिलजुल कर के सहा करो..!
किसका साथ कहाँ तक होगा,
कौन भला कह सकता है..!
मिलने के कुछ नए बहाने,
रचते-बुनते रहा करो..!
मिलने जुलने से कुछ यादें,
फिर ताज़ा हो उठती हैं..!
इसीलिए यारों नाहक भी,
मिलते जुलते रहा करो..!!!!!
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं…. ….
हरिवंशराय बच्चन
….मै यादों का किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं….
…मै गुजरे पल को सोचूँ तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं….
…अब जाने कौन सी नगरी में,
…आबाद हैं जाकर मुद्दत से….
….मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं….
….कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
….कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
….मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
….कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
…सबकी जिंदगी बदल गयी,
…एक नए सिरे में ढल गयी,
…किसी को नौकरी से फुरसत नही…
…किसी को दोस्तों की जरुरत नही….
…सारे यार गुम हो गये हैं…
….”तू” से “तुम” और “आप” हो गये है….
….मै गुजरे पल को सोचूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं….
…धीरे धीरे उम्र कट जाती है…
…जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,
…कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है…
और कभी यादों के सहारे ज़िन्दगी कट जाती है …
….किनारो पे सागर के खजाने नहीं आते,
….फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते…
….जी लो इन पलों को हस के दोस्त,
फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते ….
….हरिवंशराय बच्चन
आधुनिक मित्र की परिभाषा
मधुशाला का नित्य निमंत्रण,
जो दिलवा दे , मित्र वही है।
व्यथित हृदय हो पीडा में तब,
विल्स जला दे , मित्र वही है।
सुंदर विपुल चंचला का,
नंबर दिलवा दे , मित्र वही है।
मधु-पात्रों में भर कर मदिरा,
पैग बना दे , मित्र वही है।
सुरा विसुध हो जाऊँ जब मैं,
घर पहुँचा दे , मित्र वही है।
—लिखने वाले ने अपना नाम ‘मदिरा शरण गुप्त’ कहा है !!